Wednesday, September 15, 2021

स्कूल खोलने के खतरे हैं, पर उनकी जरूरत भी है


हालांकि महामारी की तीसरी और चौथी लहरों का खतरा सिर पर है, फिर भी दुनियाभर में स्कूल फिर से खुल रहे हैं। दूसरी तरफ बच्चों के संरक्षकों की चिंताएं बढ़ रही हैं, अदालतों ने कई तरह के एहतियात बरतने के निर्देश दिए हैं, फिर भी बहुत से लोग सवाल कर रहे हैं कि जल्दी क्या है? कुछ समय और रुक जाते, तो क्या हो जाता?  बेशक स्कूलों को खोलने के खतरे हैं, पर कम से कम तीन बड़े कारणों से उन्हें अब खोलने की जरूरत है।

स्कूलों के बंद होने से पूरी एक पीढ़ी समय से पीछे चली गई है, उसे और पीछे धकेलना ठीक नहीं। दूसरे, स्कूलों यानी शिक्षा का रिश्ता पूरी सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था से है। पिछले साल के शटडाउन के बाद जब शेष व्यवस्था को खोला गया, तो स्कूलों को भी देर-सबेर खोलना होगा। जितनी देर लगाएंगे, नुकसान उतना ज्यादा होगा। तीसरे, बड़ी संख्या में बहुत से लोगों की रोजी-रोटी स्कूलों के साथ जुड़ी हुई है। इनमें शिक्षकों, शिक्षा-सामग्री तैयार करने वालों, बच्चों की यूनिफॉर्म तैयार करने वालों, रिक्शा चालकों से लेकर बस ड्राइवरों, आयाओं और ऐसे तमाम लोगों की रोजी-रोटी का सवाल है। उनका जीवन दूभर हुआ जा रहा है।

एहतियात की जरूरत

स्कूल खोले जाएंगे, तब साथ में कई प्रकार की एहतियात भी बरती जाएंगी। सच यह भी है कि बच्चे अब घरों से बाहर निकलने लगे हैं। मसलन काफी बच्चों ने ट्यूशन पढ़ना शुरू कर दिया है। अपने अपार्टमेंट, कॉलोनी या गाँव में वे खेल भी रहे हैं। दूसरी सामूहिक गतिविधियों में भी शामिल होने लगे हैं। पर औपचारिक स्कूलिंग का अपना महत्व है।

स्कूलों की बंदी का प्रभाव अलग-अलग देशों पर अलग-अलग तरीके से पड़ा है। भारत उन देशों में है, जहाँ स्कूल सबसे लम्बे समय तक बंद रहे हैं। इसका सबसे बड़ा असर ग्रामीण क्षेत्रों पर पड़ा है। उन गरीब घरों के बच्चे कई साल पीछे चले गए हैं, जिन्हें शिक्षा की मदद से आगे आने का मौका मिलता। काफी बच्चों की शिक्षा के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो गए हैं। इस साल जुलाई तक दुनिया के करीब 175 देशों में स्कूल फिर से खुल गए थे। भारत भी कब तक उन्हें बंद रखेगा? कुछ देशों में जैसे कि फ्रांस, डेनमार्क, पुर्तगाल और नीदरलैंड्स में ज्यादातर, खासतौर से प्राइमरी स्कूल उस वक्त भी खुले रहे, जब महामारी अपने चरम पर थी।

Tuesday, September 14, 2021

मुल्ला बरादर की काबुल में गैर-हाज़िरी के पीछे कोई न कोई वजह तो है


अफगानिस्तान में तालिबानी सरकार में नव नियुक्त उप प्रधानमंत्री मुल्ला बरादर की अनुपस्थिति को लेकर कयास जारी हैं। पिछले हफ्ते तालिबान सरकार की घोषणा होने के पहले तक माना जा रहा था कि वे नई सरकार में प्रधानमंत्री बनेंगे, पर ऐसा हुआ नहीं। उनकी जगह मोहम्मद हसन अखुंद को प्रधानमंत्री बनाया गया, जिन्होंने कभी बामियान की बुद्ध प्रतिमाओं को तोड़ने के काम का नेतृत्व किया था। बताया जाता है कि तालिबान सरकार के पदों को तय करने में पाकिस्तान की भूमिका है। 

दोहा में सोमवार को तालिबान के राजनीतिक दफ़्तर के प्रवक्ता डॉक्टर मोहम्मद नईम की ओर से तालिबान सरकार के उप-प्रधानमंत्री और राजनीतिक दफ़्तर के प्रमुख मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर के ग़ायब होने को लेकर एक वॉट्सऐप ऑडियो संदेश जारी किया गया।

इस ऑडियो संदेश में मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर ने कहा, 'कई दिनों से सोशल मीडिया पर ये ख़बरें गर्दिश कर रही हैं, मैं उन्हीं दिनों में सफ़र में था और कहीं गया हुआ था। अलहम्दुलिल्लाह मैं और हमारे तमाम साथी ठीक हैं। अक्सर औक़ात मीडिया हमारे ख़िलाफ़ ऐसे ही शर्मनाक झूठ बोलता है।'

बीबीसी हिंदी ने इस सिलसिले में इस्लामाबाद से ख़ुदा-ए-नूर नासिर की एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। यह रिपोर्ट बीबीसी की उर्दू वैबसाइट पर भी है।

इससे पहले 12 सितंबर को मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर के एक प्रवक्ता मूसा कलीम की ओर से एक पत्र जारी हुआ था जिसमें कहा गया था, जैसे कि वॉट्सऐप और फेसबुक पर अफ़वाह चल रही थी कि अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति भवन में तालिबान के दो गिरोहों के बीच गोलीबारी में मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर बुरी तरह ज़ख़्मी हुए और फिर इसके कारण उनकी मौत हो गई। ये सब झूठ है।

अलबत्ता बीबीसी की रिपोर्ट में यह भी लिखा गया है, लेकिन दोहा और काबुल में तालिबान के दो ज़राए (सूत्रों) ने बीबीसी को बताया है कि गुज़श्ता जुमेरात या जुमे की रात को अर्ग में मुल्ला अब्दुल ग़नी बिरादर और हक्कानी नेटवर्क के एक वज़ीर ख़लील अलरहमान के दरम्यान तल्ख़-कलामी हुई और उनके हामियों में इसी तल्ख़-कलामी पर हाथापाई हुई थी, जिसके बाद मुल्ला बिरादर नई तालिबान हुकूमत से नाराज़ हो कर क़ंधार चले गए। ज़राए के मुताबिक़ जाते वक़्त मुल्ुला अबदुलग़नी बिरादर ने हुकूमत को बताया कि उन्हें ऐसी हुकूमत नहीं चाहिए थी।

Monday, September 13, 2021

स्त्रियों की उपेक्षा और अनदेखी करने वाले समाज का नाश निश्चित है


शनिवार 11 सितम्बर को काबुल विश्वविद्यालय के लेक्चर रूम में तालिबान समर्थक करीब 300 अफगान महिलाएं इकट्ठा हुईं थी। सिर से पांव तक पूरी तरह से ढंकी ये महिलाएं हाथों में तालिबान का झंडा लिए हुए थीं। इस दौरान कुछ महिलाओं ने मंच से संबोधित कर तालिबान के प्रति वफादारी की कसमें भी खाईं। इन अफगान महिलाओं की तस्वीरों ने इस्लामिक अमीरात में महिलाओं के अधिकारों और सम्मान की झलक दिखाई है। कोई इनके हाथ को न देख सके इसके लिए उन्होंने काले रंग के दस्ताने पहन रखे थे। इन महिलाओं ने वायदा किया कि वे लैंगिक अलगाव की तालिबान-नीति का पूरी तरह पालन भी करेंगी।

इसके पहले 2 सितम्बर को अफगानिस्तान के पश्चिमी हेरात प्रांत में गवर्नर कार्यालय के बाहर लगभग तीन दर्जन महिलाओं ने प्रदर्शन किया। उनकी मांग थी कि नई सरकार में महिला अधिकारों के संरक्षण को प्राथमिकता दी जाए। इस रैली की आयोजक फ्रिबा कबरजानी ने कहा कि ‘लोया जिरगा’ और मंत्रिमंडल समेत नई सरकार में महिलाओं को राजनीतिक भागीदारी मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अफगान महिलाएं आज जो कुछ भी हैं, उसे हासिल करने के लिए उन्होंने पिछले 20 साल में कई कुर्बानियां दी हैं। कबरजानी ने कहा, “हम चाहते हैं कि दुनिया हमारी सुने और हम अपने अधिकारों की रक्षा चाहते हैं।” 

Sunday, September 12, 2021

भारत ऑस्ट्रेलिया टू प्लस टू

टू प्लस टू वार्ता में शामिल भारत और ऑस्ट्रेलिया के रक्षा और विदेशमंत्री

भारत ने शनिवार को ऑस्ट्रेलिया के साथ नई दिल्ली में पहली बार 2+2 मंत्रिस्तरीय संवाद की मेजबानी की। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और विदेशमंत्री एस. जयशंकर ने ऑस्ट्रेलिया के रक्षामंत्री पीटर ड्यूटन और विदेशमंत्री मैरिस पाइन
 के साथ अफगानिस्तान के राजनीतिक बदलाव पर चर्चा की।

जून 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन के बीच वर्चुअल वार्ता के दौरानभारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापक साझेदारी पर बातचीत हुई थी। दोनों देशों के बीच यह साझेदारी एक मुक्तखुलेसमावेशी और नियम-आधारित हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साझा दृष्टिकोण पर आधारित थी। इस क्षेत्र में शांतिविकास और व्यापार के मुक्त प्रवाहनियम-आधारित व्यवस्था और आर्थिक विकास में ऑस्ट्रेलिया और भारत दोनों का अहम योगदान है।

बैठक के बाद संयुक्त बयान के अनुसार मंत्रियों ने आतंकवाद और हिंसक उग्रवाद का मुकाबला करनेआतंकवाद के वित्तपोषण का मुकाबला करनेआतंकवाद और हिंसक उग्रवाद के लिए इंटरनेट के शोषण को रोकनेकानून प्रवर्तन सहयोग को मजबूत करने सहित आतंकवाद के क्षेत्र में सहयोग जारी रखने पर सहमति व्यक्त की। बयान में कहा गया है कि दोनों पक्षों ने संयुक्त राष्ट्रजी20जीसीटीएफएआरएफआईओआरए और एफएटीएफ जैसे बहुपक्षीय मंचों के साथ-साथ क्वॉड परामर्श में आतंकवाद का मुकाबला करने में सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।

मालाबार अभ्यास

भारत और ऑस्ट्रेलिया ने रक्षा संबंधों के महत्व को दोहराया। साथ ही मंत्रियों ने दोनों देशों के बीच बढ़ते रक्षा सहयोग को स्वीकार किया और रक्षा जुड़ाव बढ़ाने की पहल पर चर्चा की. बयान में कहा गया कि दोनों पक्षों ने हाल ही में संपन्न मालाबार अभ्यास 2021 की सफलता का भी स्वागत किया। मंत्रियों ने मालाबार अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया की निरंतर भागीदारी का स्वागत किया। इस बात की सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि ऑस्ट्रेलिया अब मालाबार अभ्यास में स्थायी रूप से भाग लेगा। ऑस्ट्रेलिया ने भारत को भविष्य के तलिस्मान सैबर युद्धाभ्यास में भाग लेने के लिए आमंत्रित कियाजो अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के बीच हरेक दो साल में आयोजित होता है।

तालिबान समर्थक स्त्रियाँ भी सामने आईं



शनिवार को काबुल विश्वविद्यालय के लेक्चर रूम में तालिबान समर्थक करीब 300 अफगान महिलाएं इकट्ठा हुईं थी। सिर से पांव तक पूरी तरह से ढंकी ये महिलाएं हाथों में तालिबान का झंडा लिए हुए थीं। इस दौरान कुछ महिलाओं ने मंच से संबोधित कर तालिबान के प्रति वफादारी की कसमें भी खाईं।

इन अफगान महिलाओं की तस्वीरों ने इस्लामिक अमीरात में महिलाओं के अधिकारों और सम्मान की झलक दिखाई है। कोई इनके हाथ को न देख सके इसके लिए उन्होंने काले रंग के दस्ताने पहन रखे थे। इन महिलाओं ने वायदा किया कि वे लैंगिक अलगाव की तालिबान-नीति का प्रतिबद्धता के साथ पालन भी करेंगी।

नवभारत टाइम्स में पढ़ें विस्तार से

जेहादी-जीत का जश्न

9/11 की 20वीं बरसी को जेहादी अपनी दोहरी जीत के तौर पर मना रहे हैं. यह मौका तालिबान की सत्ता में वापसी का भी है। अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की वापसी को जेहाद के लिए एक तख़्तापलट और देश से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के तौर पर देखा जा रहा है। 20 साल पहले अमेरिका में विमानों को अगवा किए जाने के लिए ज़िम्मेदार आतंकी संगठन अल-क़ायदा ने तालिबान को उसकी 'ऐतिहासिक जीत' के लिए आगे बढ़कर बधाई दी है। यह सब कुछ ऐसे वक़्त में हो रहा है जब पश्चिमी ताक़तें मुस्लिम बहुल हिंसा प्रभावित देशों से अपनी सेनाओं की संख्या कम कर रही हैं।

बीबीसी हिंदी पर विस्तार से पढ़ें मीना अल-लामी का यह आलेख

ग्वांतानामो बे के पाँच कैदी

9/11 हमले की मनहूस वर्षगांठ पर नए सिरे से उसके उन पांच संदिग्धों पर ध्यान देने की ज़रूरत है जिन पर उस साज़िश को रचने का आरोप है। ख़ालिद शेख़ मोहम्मद समेत ये पांचों अभियुक्त ग्वांतानामो बे में इसी हफ़्ते कोरोना वायरस की वजह से 18 महीने के अंतराल के बाद पेश हुए। इस प्री-ट्रायल को देखने वहां इस हमले के शिकार लोगों के रिश्तेदार, एनजीओ के सदस्य और कुछ चुनिंदा पत्रकार भी मौजूद थे। पहले ही दुनिया से कटा हुआ महसूस करने वाले ग्वांतानामो बे और इस मुक़दमे की भयावहता को देखते हुए यह कोर्ट-रूम पहले ही अपने आप में अनूठा था।

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