Sunday, September 12, 2021

अफगानिस्तान पर असमंजस

अफगानिस्तान की तालिबान सरकार एक बड़ी गलती करने से बच गई। नई सरकार के शपथ-ग्रहण समारोह के लिए 11 सितम्बर की तारीख घोषित कर दी गई थी, जिसे बाद में रद्द किया गया। बताया जाता है कि चीन ने सलाह दी कि ऐसी गलती मत करना। फिर भी तालिबान ने उस रोज अपने राष्ट्रपति भवन पर तालिबानी झंडा फहरा कर नई सरकार के औपचारिक कार्यारम्भ की घोषणा की। यानी वे इस दिन से जुड़ी प्रतीकात्मकता को छोड़ेंगे नहीं। 9/11 का आतंकी हमला अमेरिका के इतिहास का काला दिन है। इस दिन शपथ-ग्रहण का मतलब था अमेरिका को साफ इशारा। चूंकि वह हमला अलकायदा ने किया था, इसलिए मतलब साफ था कि हम अलकायदा के साथ हैं। तालिबान और चीन अभी अमेरिका से पंगा लेना नहीं चाहेंगे।

ब्रिक्स सम्मेलन

अफगानिस्तान में कई तरह का धुँधलका है, जिसे साफ होने में समय लगेगा। गत 9 सितम्बर को हुए ब्रिक्स देशों के शिखर सम्मेलन में इस बात पर आम सहमति थी कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल वैश्विक आतंकवाद के लिए नहीं होना चाहिए। सम्मेलन का घोषणापत्र हालांकि भारत की अध्यक्षता में जारी हुआ है, पर इसे भारतीय विदेश-नीति की पूरी अभिव्यक्ति नहीं मान लेना चाहिए। आतंकवाद को लेकर भारत और दूसरी तरफ रूस और चीन के दृष्टिकोणों में अंतर है और ब्रिक्स में इन देशों का खासा प्रभाव है।

चीनी रवैया

यह बात पाँच साल पहले अक्तूबर 2016 में गोवा में हुए ब्रिक्स के शिखर सम्मेलन में स्पष्ट हो गई थी। लगभग उसी समय अमेरिका ने तालिबान के साथ गुपचुप सम्पर्क बना लिया था। सन 2018 को अमेरिका और कतर के प्रभाव से पाकिस्तान ने मुल्ला बरादर को जेल से रिहा कर दिया था। पाकिस्तान ने उन्हें 2010 में गिरफ्तार किया था। अमेरिका-पाकिस्तान-चीन-रूस रिश्तों की भावी रूपरेखा तभी से बनने लगी थी। गोवा ब्रिक्स सम्मेलन जिस साल हुआ उसी साल पठानकोट और उड़ी पर पाकिस्तानी हमले हुए थे और इस सम्मेलन के ठीक पहले भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक किया था।

Saturday, September 11, 2021

‘राजनीतिक हिन्दुत्व’ पर सम्मेलन

 

राजनीतिक हिन्दुत्व को लेकर दुनिया के 53 से ज्यादा विश्वविद्यालयों से जुड़े अकादमिक विद्वानों का एक वर्चुअल सम्मेलन 10 से 12 सितम्बर के बीच चल रहा है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस सम्मेलन का आयोजन विश्वविद्यालयों के इन विभागों के सहयोग से हो रहा है। सम्मेलन को लेकर विवाद की एक लहर है, जो भारतीय राजनीति और समाज को जरूर प्रभावित करेगी। सम्मेलन का शीर्षक विचारोत्तेजक है। शीर्षक है, ग्लोबल डिस्मैंटलिंग ऑफ ग्लोबल हिंदुत्व यानी वैश्विक हिंदुत्व का उच्छेदन। इस सम्मेलन के आलोचक पूछते हैं कि क्या आयोजक ऐसा ही कोई सम्मेलन ग्लोबल इस्लाम को लेकर करने की इच्छा रखते हैं? छोड़िए इस्लाम क्या वे डिस्मैंटलिंग कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चायना का आयोजन कर सकते हैं?  

हिंदू और हिंदुत्व का फर्क

सम्मेलन के आयोजक राजनीतिक हिंदुत्व और हिंदू धर्म के बीच सैद्धांतिक रूप से अंतर मानते हैं, पर भारतीय राजनीति में हिंदू और हिंदुत्व का अंतर किया नहीं जाता और व्यावहारिक रूप से हिंदुत्व के आलोचक भी हिंदू और हिंदुत्व के अंतर को अपनी प्रतिक्रियाओं में व्यक्त नहीं करते। बल्कि सम्मेलन के पहले ही दिन विमर्श में शामिल पैनलिस्ट मीना धंढा ने साफ कहा कि मुझे दोनों में कोई फर्क नजर नहीं आता है। बहरहाल इस सम्मेलन के नकारात्मक प्रभाव होंगे। इसके समर्थक मानते हैं कि इसे हिंदू धर्म के खिलाफ अभियान नहीं मानना चाहिए, पर इसके विरोधी सम्मेलन को हिंदू विरोधी मान रहे हैं।

Thursday, September 9, 2021

अब खुलेंगे तालिबान से जुड़े मुद्दे


तालिबान सरकार घोषित होने के अफगानिस्तान के दूतावासों का क्या होगा
? क्या वहाँ नए कर्मचारी आएंगे? यह सवाल तब खड़ा होगा, जब दुनिया की सरकारें तालिबान सरकार को मान्यता देंगी। काबुल में नई सरकार की घोषणा होने के बाद अफगानिस्तान के नई दिल्ली स्थित दूतावास ने एक बयान जारी करके कहा है कि यह सरकार अवैध है। अफगान दूतावास का बयान तालिबान से खुद को दूर करता है, जिन्होंने पिछले महीने सत्ता संभाली थी। सवाल यह भी है कि दूतावास की हैसियत क्या होगी? दुनिया भर में अफगानिस्तान के दूतावासों का अब क्या होगा?

यह सवाल भारत सहित अधिकतर तालिबान के नेतृत्व वाले नए शासन की मान्यता के मुद्दों को खोलेगा। भारत की स्थिति महत्वपूर्ण होगी क्योंकि यह सुरक्षा परिषद का एक अस्थायी सदस्य है और यूएनएससी प्रतिबंध समिति की अध्यक्षता करता है। संयुक्त राष्ट्र को अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन के भविष्य के बारे में फैसला करना होगा, जिसका कार्यादेश इसी महीने समाप्त हो रहा है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध समिति को भी उन प्रतिबंधित आतंकवादियों के बारे में विचार करना होगा जो मंत्रिमंडल का हिस्सा हैं। नई सरकार के 33 में से कम से कम 17 संयुक्त राष्ट्र की आतंकवादी सूची में हैं। हाल में सुरक्षा परिषद के एक प्रस्ताव से पर्यवेक्षकों ने अनुमान लगाया था कि तालिबान के साथ आतंकवाद का विशेषण हटा लिया गया है। पर यह अनुमान ही है, क्योंकि ऐसी कोई घोषणा नहीं है। पश्चिमी देशों के जिस ब्लॉक के साथ भारत जुड़ा है, उसकी सबसे बड़ी चिंता इस बात को लेकर है कि अफगानिस्तान अब चीनी पाले में चला जाएगा। 

तालिबान से जुड़े मामलों में एक महत्वपूर्ण मसला है कि अल कायदा के साथ उसके रिश्तों का। बीबीसी मॉनिटरिंग के द्रिस अल-बे की एक टिप्पणी में पूछा गया है कि तालिबान की वापसी से एक अहम सवाल फिर उठने लगा है कि उनके अल-क़ायदा के साथ के संबंध किस तरह के हैं। अल-क़ायदा अपने 'बे'अह' (निष्ठा की शपथ) की वजह से तालिबान से जुड़ा हुआ है। पहली बार यह 1990 के दशक में ओसामा बिन लादेन ने तालिबान के अपने समकक्ष मुल्ला उमर से यह 'कसम' ली थी। उसके बाद यह शपथ कई बार दोहराई गई, हालाँकि तालिबान ने इसे हमेशा सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं किया है।

Wednesday, September 8, 2021

तालिबान की इस सरकार को दुनिया आसानी से मान्यता नहीं देगी

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तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान में नई सरकार की कमान जिन हाथों में दी है वे अमेरिकी सरकार की चिंता बढ़ाने वाले हैं। अमेरिकी प्रतिनिधि जलमय खलीलज़ाद ने दोहा में तालिबान के जिन प्रतिनिधियों के साथ बात करके समझौता किया था, वे लचीले तालिबानी थे, पर सरकार में उनकी हैसियत महत्वपूर्ण नहीं है। कहना मुश्किल है कि वे आने वाले समय में अमेरिका या पश्चिमी देशों को समझ में आएंगे। अमेरिका अभी यह भी देखना चाहेगा कि इस सरकार के साथ अल कायदा के रिश्ते किस प्रकार के हैं। सरकार में कई लोग ऐसे हैं जिन्हें या तो संयुक्त राष्ट्र ने आतंकवादियों की सूची में डाल रखा है या जिनकी अमेरिका को तलाश है। नए गृहमंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी पर तो अमेरिका ने 50 लाख डॉलर का इनाम घोषित कर रखा है। अमेरिका को दूसरी चिंता अफगानिस्तान में बढ़ते चीनी प्रभाव की है। मंगलवार को जो बाइडेन ने कहा कि अब चीन इस इलाके में अपना असर बढ़ाने की कोशिश ज़रूर करेगा।

बीबीसी हिंदी ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को उधृत करते हुए लिखा है कि बाइडेन से पत्रकारों ने पूछा, क्या आप इस बात से चिंतित हैं कि अमेरिका ने जिसे प्रतिबंधित कर रखा है, उसे चीन फंड देगा? इस पर बाइडन ने कहा, चीन एक वास्तविक समस्या है। वह तालिबान के साथ व्यवस्था बनाने की कोशिश करने जा रहा है। पाकिस्तान, रूस, ईरान सभी अपनी रणनीति पर काम कर रहे हैं। उधर ईयू ने कहा है कि तालिबानी सरकार समावेशी नहीं है और उसमें उचित प्रतिनिधित्व भी नहीं है। नई सरकार में सभी समुदायों का प्रतिनिधित्व नहीं हैं। खासतौर से स्त्रियाँ और शिया शामिल नहीं हैं।

कहा यह भी जा रहा है कि तालिबान बगराम एयरबेस चीन के हवाले कर सकता है। अलबत्ता मंगलवार को चीनी विदेश मंत्रालय ने अपनी दैनिक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस सम्भावना को ख़ारिज किया। पर क्या मौखिक रूप से खारिज कर देने के बाद खत्म हो जाती है?  अफगानिस्तान को छोड़ते समय अमेरिकी ने सीआईए के अपने दफ्तर की लगभग सारी चीजें फूँक दीं, पर न जाने कितने प्रकार के गोपनीय सूत्र अमेरिका यहाँ छोड़कर गया है। चीन की दिलचस्पी इन बातों में होगी।

अमेरिका और रूस के बीच क्या सम्पर्क-सेतु का काम करेगा भारत?

निकोल पत्रुशेव के साथ अजित डोभाल

दिल्ली में रूस की सिक्योरिटी कौंसिल के प्रमुख और अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए के प्रमुख का एकसाथ होना महत्वपूर्ण समाचार है।
सीआईए चीफ विलियम बर्न्स मंगलवार 7 सितम्बर को दिल्ली पहुंचे थे। उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल से मुलाकात की थी। इस चर्चा में तालिबान की सरकार के गठन और अफगानिस्तान से लोगों को निकालने के प्रयासों पर बात हुई। अब आज बुधवार को रूस की सुरक्षा परिषद के सचिव जनरल निकोल पत्रुशेव दिल्ली आए हैं। उन्होंने रक्षा सलाहकार अजित डोभाल से मुलाकात की है। इनके अलावा वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेशमंत्री एस जयशंकर से भी मुलाकात कर रहे हैं।

अफगानिस्तान के बदले घटनाक्रम को लेकर पर्यवेक्षकों में मन में इस बात को लेकर सवाल हैं कि भारतीय विदेश-नीति की दिशा क्या है? अफगानिस्तान में सरकार बनने में हुई देरी के कारण अभी तालिबान को मान्यता देने के सवाल पर असमंजस है। तालिबान के भीतर अभी कई प्रकार के अंतर्विरोध हैं, जो देर-सबेर सामने आएंगे। तालिबान के पास लड़ाई का अनुभव है, सरकार चलाने का नहीं। दूसरे उन्होंने दुनिया से कई तरह के वायदे कर रखे हैं, पर वायदे करने वाले धड़े की भूमिका सरकार में कमज़ोर है। बहरहाल फिर भी देर-सबेर भारत नई सरकार को मान्यता दे सकता है, पर ज्यादा बड़ा सवाल यह है कि वैश्विक राजनीति किस दिशा में जाने वाली है। भारत ने पहले ही कहा कि जब लोकतांत्रिक ब्लॉक तालिबान को मान्यता देगा, हम भी दे देंगे।

अमेरिका और रूस के अधिकारियों के साथ दिल्ली में बैठक ऐसे मौके पर हुई है, जब तालिबान ने अंतरिम सरकार का एलान कर दिया है। इसके अलावा आने वाले दिनों में पीएम नरेंद्र मोदी क्वॉड शिखर सम्मेलन और शंघाई सहयोग संगठन की बैठकों में हिस्सा लेने वाले हैं। इस महीने नरेंद्र मोदी तीन दिन की अमेरिका-यात्रा पर जा रहे हैं। उसी दौरान क्वॉड का शिखर सम्मेलन भी होगा। इससे पहले 16-17 सितम्बर को ताजिकिस्तान की राजधानी दुशान्बे में शंघाई सहयोग संगठन का शिखर सम्मेलन होने वाला है। और आज भारत ब्रिक्स का शिखर सम्मेलन आयोजित करने जा रहा है।