Thursday, July 1, 2021

भारत के आर्थिक सुधार तीन दशक और अब उससे आगे...

भारत के आर्थिक उदारीकरण के तीस साल पूरे हो गए हैं। उदारीकरण को लेकर तब भी भ्रांतियाँ थीं और आज भी हैं। इन दिनों इस विषय पर फिर से लेख पढ़ने को मिल रहे हैं। आज के बिजनेस स्टैंडर्ड में एके भट्टाचार्य का यह आलेख पढ़ने को मिला, जो मुझे विचारणीय लगता है।

एके भट्टाचार्य

July 01, 2021

तीस वर्ष पहले एक वित्त मंत्री ने (जो उस समय संसद सदस्य भी नहीं थे) साहसी सुधारों की एक ऐसी शृंखला शुरू की जिसने देश में आर्थिक नीति निर्माण की प्रक्रिया को नाटकीय रूप से बदल दिया।

उस वक्त भारतीय अर्थव्यवस्था असाधारण राजकोषीय संकट तथा भुगतान संतुलन के संकट से जूझ रही थी। उसे उबारने के लिए तत्कालीन सरकार के शुरुआती 100 दिनों में इनमें से अधिकांश सुधारों को जिस तरह शुरू किया गया वह भी कम नाटकीय नहीं था।

जिस समय इन बड़े सुधारों को अंजाम दिया गया उस समय सरकार को लोकसभा में बहुमत हासिल नहीं था और वित्त मंत्री की तरह तत्कालीन प्रधानमंत्री भी संसद के सदस्य नहीं थे। संकट इतना बड़ा था कि इन निर्णयों की राजनीतिक उपयुक्तता पर भी सवाल उठाए गए। प्रधानमंत्री नवंबर 1991 में एक उपचुनाव के जरिये लोकसभा पहुंचे और वित्त मंत्री भी लगभग उसी समय असम से राज्य सभा में पहुंचे। जी हां, हम सन 1991 से 1996 तक कांग्रेस सरकार का नेतृत्व करने वाले पीवी नरसिंह राव और उनके वित्त मंत्री मनमोहन सिंह की बात कर रहे हैं।

इस अल्पमत सरकार के कार्यकाल के शुरुआती 100 दिनों में सुधारों की बात करें तो इस सरकार ने बेहद तेजी से काम किया। सरकार गठन के एक पखवाड़े से भी कम समय के भीतर 2 जुलाई को सिंह ने डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये का 9.5 फीसदी अवमूल्यन किया और एक दिन बाद 12 फीसदी अवमूल्यन और कर दिया गया। रुपये के मूल्य में दो चरणों में की गई यह कमी कोई इकलौता कदम नहीं था। न ही यह केवल सिंह और राव के सुधार थे। तत्कालीन वाणिज्य मंत्री पी चिदंबरम ने भी साहसी वाणिज्य नीति सुधारों का पैकेज पेश किया था।

Wednesday, June 30, 2021

पंजाब में कांग्रेस आत्मघात की ओर


सम्भव है कि कांग्रेस के पास भविष्य की कोई रणनीति हो, पर वह कम से कम मुझे नजर नहीं आ रही है। पंजाब में जिस तरीके से नवजोत सिंह सिद्धू को स्थापित करने की कोशिश की जा रही है और उसका प्रचार भी जोर-शोर से किया जा रहा है, उससे नेतृत्व की नासमझी ही दिखाई पड़ रही है। वह भी चुनाव के ठीक पहले। पार्टी यदि सिद्धू के नेतृत्व में चुनाव लड़ना चाहती है, तो उसे इसे स्पष्ट करना चाहिए और खुलकर सामने आना चाहिए। इस तरीके से तो न तो कैप्टेन अमरिंदर सिंह का भला होगा और न सिद्धू को कुछ मिलेगा। हाँ, यह हो सकता है कि यह पंछी उड़कर किसी और जहाज पर जाकर न बैठ जाए।

कुछ दिन पहले अमरिंदर सिंह दिल्ली आए और दो दिन यहाँ रहे। उनकी मुलाकात गांधी परिवार के किसी से नहीं हो पाई, तो उसमें विस्मय की बात नहीं थी। पर सिद्धू के साथ 30 जून को पहले प्रियंका गांधी के साथ और शाम को राहुल गांधी के साथ हुई मुलाकातें और फिर उसका प्रचार साफ बता रहा है कि हाईकमान के सोच की दिशा क्या है। हाल में पार्टी की तरफ से पार्टी के पंजाब प्रभारी हरीश रावत ने कहा था कि पार्टी अध्यक्ष जुलाई के पहले या दूसरे हफ्ते तक इस मामले में कोई फैसला करेंगी। अलबत्ता पार्टी ने मुख्यमंत्री से 18 मामलों पर काम करने को कहा है। मुख्यमंत्री इस विषय पर प्रेस कांफ्रेंस करके जानकारी देंगे।

Monday, June 28, 2021

कोरोना के इलाज में ‘एंटीबॉडी-कॉकटेल’ से उम्मीदें

कोविड-19 के मोर्चे से मिली-जुली सफलता की खबरें हैं। जहाँ इसकी दूसरी लहर उतार पर है, वहीं तीसरी का खतरा सिर पर है। दूसरे, दुनिया में टीकाकरण की प्रक्रिया तेज है रही है। और तीसरे, मोनोक्लोनल एंटीबॉडी कॉकटेल के रूप में एक उल्लेखनीय दवाई सामने आई है। ब्रिटेन के ऑक्सफोर्ड विवि में हुए क्लिनिकल परीक्षणों में रिजेन-कोव2 नाम की औषधि ने कोविड-19 संक्रमित मरीजों के इलाज में अच्छी सफलता हासिल की है। यह मोनोक्लोनल एंटीबॉडी कॉकटेल है, जो इसके पहले कैंसर, एबोला और एचआईवी के इलाज में भी सफल हुई हैं। पिछले साल जब अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को कोरोना हुआ, तब उन्हें भी यह दवा दी गई थी।

यह दवा नहीं रोग-प्रतिरोधक है, जो शरीर का अपना गुण है, पर किसी कारण से जो रोगी कोविड-19 का मुकाबला कर नहीं पा रहे हैं, उन्हें इसे कृत्रिम रूप से देकर असर देखा जा रहा है। इसकी तुलना प्लाज़्मा थिरैपी से भी की जा सकती है। परीक्षण अभी चल ही रहे हैं। यह तय भी होना है कि यह दवा मरीजों के किस तबके के लिए उपयोगी है। पिछले साल इसी किस्म के परीक्षणों में ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने डेक्सामैथासोन (स्टीरॉयड) को उपयोगी पाया था।

कॉकटेल क्यों?

अमेरिकी फार्मास्युटिकल कम्पनी रिजेनेरॉन की रिजेन-कोवमें दो तरह की एंटीबॉडी 'कैसिरिविमैब' और 'इमडेविमैब' का कॉम्बीनेशन है। ये एंटीबॉडी शरीर में रोगाणु को घेरती है। दो किस्म की एंटीबॉडी का इस्तेमाल इसलिए किया जाता है, ताकि वायरस किसी एक की प्रतिरोधी क्षमता विकसित करने न पाए। पिछले एक साल में इस दवाई की उपयोगिता तो काफी हद तक साबित हुई है, पर इसका व्यापक स्तर पर इस्तेमाल अभी शुरू नहीं हुआ है।

Sunday, June 27, 2021

कश्मीर से सकारात्मक-संदेश


इस हफ्ते 24 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ कश्मीरी नेताओं की वार्ता ने न केवल जम्मू-कश्मीर में बल्कि पूरे दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता की सम्भावनाओं का द्वार खोला है। इस बातचीत के सही परिणाम मिलेंगे या नहीं, यह भी कहना मुश्किल है, पर कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के शब्दों में यह सही दिशा में उठाया गया कदम है। कश्मीर में लोकतांत्रिक-प्रक्रिया की प्रक्रिया शुरू होने के साथ दूसरी प्रक्रियाएं शुरू होंगी, जिनसे हालात को सामान्य बनाने का मौका मिलेगा। इनमें सांस्कृतिक, शैक्षिक और सामाजिक गतिविधियाँ शामिल हैं।

पहले परिसीमन

सरकार ने जो रोडमैप दिया है उसके अनुसार राज्य में पहले परिसीमन, फिर चुनाव और उसके बाद पूर्ण राज्य का दर्जा देने की प्रक्रिया होगी। पिछले साल स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री ने कहा था कि राज्य में परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद चुनाव होंगे। उसके पहले अगस्त 2019 में गृहमंत्री अमित साह ने संसद में कहा था कि समय आने पर जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाएगा। वस्तुतः यह कश्मीर के नव-निर्माण की प्रक्रिया है।

सन 2019 में संसद से जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक के पारित होने के बाद मार्च 2020 में परिसीमन आयोग का गठन किया गया था। इस आयोग को रिपोर्ट सौंपने के लिए एक साल का समय दिया गया था, जिसे इस साल मार्च में एक साल के लिए बढ़ा दिया गया है। 6 मार्च, 2020 को सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई के नेतृत्व में आयोग का गठन किया था।

प्रधानमंत्री के साथ बातचीत का सबसे बड़ा सकारात्मक पहलू यह है कि पूरी बातचीत में बदमज़गी पैदा नहीं हुई। बैठक में राज्य के तीन पूर्व मुख्यमंत्री ऐसे थे, जो 221 दिन से 436 दिन तक कैद में रहे। उनके मन में कड़वाहट जरूर होगी। वह कड़वाहट इस बैठक में दिखाई नहीं पड़ी। बेशक बर्फ पिघली जरूर है, पर आगे का रास्ता आसान नहीं है।

Friday, June 25, 2021

जम्मू-कश्मीर में अब तेज होगी चुनाव-क्षेत्रों के परिसीमन की व्यवस्था


कश्मीर में पहले परिसीमन, फिर चुनाव और पूर्ण राज्य का दर्जा। सरकार ने अपना रोडमैप स्पष्ट कर दिया है। संसद में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक के पारित होने के बाद मार्च  2020 में परिसीमन आयोग का गठन किया गया था। इस आयोग को रिपोर्ट सौंपने के लिए एक साल का समय दिया गया था, जिसे इस साल मार्च में एक साल के लिए बढ़ा दिया गया है।

पिछले साल स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री ने कहा था कि राज्य में परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद चुनाव होंगे। 6 मार्च, 2020 को सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई के नेतृत्व में आयोग का गठन किया। जस्टिस देसाई के अलावा चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा और जम्मू-कश्मीर राज्य के चुनाव आयुक्त केके शर्मा आयोग के सदस्य हैं। इसके अलावा आयोग के पाँच सहायक सदस्य भी हैं, जिनके नाम हैं नेशनल कांफ्रेंस के सांसद फारूक अब्दुल्ला, मोहम्मद अकबर लोन और हसनैन मसूदी। ये तीनों अभी तक आयोग की बैठकों में शामिल होने से इनकार करते रहे हैं। अब आशा है कि ये शामिल होंगे। इनके अलावा पीएमओ के राज्यमंत्री जितेन्द्र सिंह और भाजपा के जुगल किशोर शर्मा के नाम हैं।

इस आयोग को एक साल के भीतर अपना काम पूरा करना था, जो इस साल मार्च में एक साल के लिए बढ़ा दिया गया है। कोरोना के कारण आयोग निर्धारित समयावधि में अपना काम पूरा नहीं कर पाया। यदि लद्दाख की चार सीटों को अलग कर दें, तो पाकिस्तान अधिकृत क्षेत्र की सीटों को मिलाकर इस समय की कुल संख्या 107 बनती है, जो जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के अंतर्गत 111 हो जाएगी। बढ़ी हुई सीटों का लाभ जम्मू क्षेत्र को मिलेगा।