Thursday, June 10, 2021

कांग्रेस की टूट का लम्बा सिलसिला

काँग्रेस की स्थापना के समय सन् 1885 का चित्र

भारत के सबसे पुराने राजनीतिक दल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन 1885 में हुआ था और इस पार्टी ने देश की आज़ादी की लड़ाई में बड़ा योगदान दिया था। आजादी के बाद इसी पार्टी ने सबसे अधिक समय तक देश पर शासन किया। 1947 से अब तक टुकडों-टुकड़ों में कांग्रेस ने कोई 54 साल तक केंद्र की सरकार चलाई।

इस बीच पार्टी का कई बार विभाजन हुआ और वर्तमान कांग्रेस भी इसका एक धड़ा ही था जिसे कांग्रेस (आई) यानी कांग्रेस इंदिरा कहा जाता था। बाद में चुनाव आयोग ने इसे ही असली कांग्रेस का दर्जा दे दिया। जवाहर लाल नेहरू के नाती और इंदिरा गाँधी के बेटे राजीव गाँधी की पत्नी सोनिया गाँधी इस समय कांग्रेस की अध्यक्ष हैं। उन्होंने 1998 में कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभाला था। एक छोटे से दौर में उनके पुत्र राहुल गांधी पार्टी अध्यक्ष बने थे, पर 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की पराजय के बाद उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। उसके बाद सोनिया गांधी फिर से का4यकारी अध्यक्ष की भूमिका निभा रही हैं। पार्टी के अध्यक्ष का चुनाव जून में कराने की योजना थी, पर महामारी के कारण यह चुनाव फिर टल गया है।

Wednesday, June 9, 2021

जितिन प्रसाद ने भी कांग्रेस छोड़ी


उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के युवा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद ने पार्टी छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया है। बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने उन्हें पार्टी की सदस्यता दिलाई। इस मौके पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी मौजूद थे। 2019 में भी कांग्रेस छोड़कर उनके बीजेपी में आने की चर्चा चली थी, पर अंतिम क्षणों में वह घोषणा रुक गई। उस वक्त खबर थी कि जितिन प्रसाद बीजेपी में शामिल होने के लिए दिल्ली रवाना हो चुके हैं। बहरहाल बाद में खबर आई कि प्रियंका गांधी ने उन्हें फोन करके मना लिया और प्रसाद रास्ते से लौट गए। अब कहा जा रहा है कि इसबार जितिन प्रसाद ने दो दिनों से अपना फोन बंद कर रखा था।

पर्यवेक्षकों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को कमजोर करने के बीजेपी के अभियान की शुरुआत हो गई है। जितिन प्रसाद ब्राह्मणों के बड़े नेता माने जाते हैं और यूपी में ब्राह्मण मतदाताओं की 10% की बड़ी हिस्सेदारी है।  जितिन प्रसाद ने बीजेपी मुख्यालय में पार्टी की सदस्यता लेने के बाद कहा कि मैंने कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी में शामिल होने का फैसला बहुत सोच-समझकर लिया है। उन्होंने कहा कि राष्ट्र के नाम पर कोई राजनीतिक दल है तो वह एकमात्र बीजेपी है। उन्होंने कहा, "मैं ज्यादा बोलना नहीं चाहता हूं, मेरा काम बोलेगा। मैं बीजेपी कार्यकर्ता के रूप में 'सबका साथ, सबका विश्वास' और 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' के लिए काम करूंगा।"

यूपी में महत्वपूर्ण भूमिका

पीयूष गोयल ने उन्हें बीजेपी मुख्यालय में पार्टी की सदस्यता दिलाई। उन्होंने जितिन प्रसाद को उत्तर प्रदेश का बड़ा नेता बताया और कहा कि यूपी की राजनीति में प्रसाद की बड़ी भूमिका होने वाली है। गोयल ने उत्तर प्रदेश की जनता के हित में जितिन प्रसाद के किए गए कामों का भी उल्लेख किया और कहा कि उनके आने से यूपी में बीजेपी का हाथ और मजबूत हुआ है।

नेतन्याहू के हटने पर भी इसराइल की राजनीतिक अस्थिरता खत्म नहीं होगी

नफ्ताली बेनेट (बाएं) और नेतन्याहू

इसराइल का नवगठित राजनीतिक गठजोड़ आगामी रविवार तक टूटा नहीं, तो 71 वर्षीय बिन्यामिन नेतन्याहू की 12 साल पुरानी सरकार का गिरना लगभग तय नजर आ रहा है। उनकी सरकार गिराने के लिए जो गठजोड़ बना है, उसमें विचारधाराओं का कोई मेल नहीं है। यह गठजोड़ नेतन्याहू के साथ पुराना हिसाब चुकाने के इरादे से एकसाथ आए नेताओं ने मिलकर बनाया है, जो कब तक चलेगा, कहना मुश्किल है। खासतौर से यदि विपक्ष का नेतृत्व नेतन्याहू जैसे ताकतवर नेता के हाथ में होगा, तो इसका चलना और मुश्किल होगा। फिलहाल लैपिड-बेनिट गठबंधन यदि विश्वास मत नहीं जीत पाया, तो इसराइल में फिर से चुनाव होंगे।

इसराइल में आनुपातिक प्रतिनिधित्व की चुनावी प्रक्रिया की वजह से किसी एक पार्टी के लिए चुनाव में बहुमत जुटाना मुश्किल होता है। इसी वजह से वहाँ पिछले दो साल में चार बार चुनाव हो चुके हैं। मार्च में हुए चुनाव में बिन्यामिन नेतन्याहू की दक्षिणपंथी लिकुड पार्टी सबसे आगे रही थी, लेकिन वह सरकार बनाने लायक बहुमत नहीं जुटा सकी जिसके बाद दूसरे नंबर की मध्यमार्गी येश एटिड पार्टी को सरकार बनाने का निमंत्रण दिया गया था। उन्हें बुधवार 2 जून की मध्यरात्रि तक बहुमत साबित करना था। उनकी समय-सीमा खत्म होने ही वाली थी कि नेतन्याहू-विरोधी नेता येर लेपिड ने घोषणा की कि आठ दलों के बीच गठबंधन हो गया है और अब हम सरकार बनाएँगे। अभी तक देश में ऐसा गठबंधन असम्भव लग रहा था, जो सरकार बना सके।

बेमेल गठजोड़

आठ पार्टियों के गठबंधन के लिए हुए समझौते के तहत बारी-बारी से दो अलग दलों के नेता प्रधानमंत्री बनेंगे। सबसे पहले दक्षिणपंथी यामिना पार्टी के नेता नफ्ताली बेनेट 2023 तक प्रधानमंत्री रहेंगे। उसके बाद 27 अगस्त को वे यह पद मध्य येश एटिड पार्टी के नेता येर लेपिड को सौंप देंगे। फलस्तीनी मुसलमानों की पार्टी इसराइल में किंगमेकर बनकर उभरी है। मंसूर अब्बास का कहना है कि समझौते में कई ऐसी चीज़ें हैं, जिनसे अरब समाज को फ़ायदा होगा।

Tuesday, June 8, 2021

फिर से शुरू हुई वायरस के स्रोत की वैश्विक-खोज


अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 26 मई को अपनी खुफिया एजेंसियों से कहा कि वे कोरोना वायरस के मूल-स्रोत की जांच में तेजी लाएं। इसके पहले भी उन्होंने पूछताछ की थी। वह दरयाफ्त गोपनीय थी, पर अब बाइडेन ने सार्वजनिक रूप से छानबीन की बात करके और 90 दिन की समय-सीमा देकर मसले को गम्भीर बना दिया है।

हाल में विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक सम्मेलन में भी जाँच की माँग उठाई गई है। यूरोपियन यूनियन ने भी जाँच से जुड़ा एक दस्तावेज डब्लूएचओ की तरफ बढ़ाया है। भारत ने पहली बार आधिकारिक रूप से जाँच का समर्थन किया है। विदेश मंत्रालय ने कहा है कि डब्लूएचओ-रिपोर्ट इसका पहला चरण था। किसी फैसले तक पहुंचने के लिए और अध्ययन की जरूरत है।

अंदेशा है कि कोविड-19 का वायरस या तो वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरॉलॉजी या उसके पास ही स्थित एक दूसरी प्रयोगशाला से दुर्घटनावश निकला है। पिछले साल कयास था कि वायरस को जैविक हथियार के रूप में विकसित किया जा रहा है। प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों ने साजिश की उस थ्योरी को खारिज किया था। फरवरी 2020 में लैंसेट में प्रकाशित आलेख में इन वैज्ञानिकों ने लिखा कि यह ज्यादा से ज्यादा ज़ूनॉटिक-स्पिलओवर हो सकता है। यानी कि वायरस किसी जानवर के शरीर से निकल कर किसी मनुष्य को संक्रमित कर गया। सन 2002 में सार्स संक्रमण में भी ऐसा हुआ था।

Monday, June 7, 2021

मखमल में टाट का पैबंद क्यों लगा रहे हैं केजरीवाल?


दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की सरकार मीडिया के सहारे आई थी। मीडिया के सहारे ही वह अपनी स्थिति को बनाए रखने में सफल होती रही है। पिछले महीने जब ऑक्सीजन की कमी के कारण कोरोना पीड़ितों को परेशानी हुई, तो सरकार ने जिम्मेदारी केंद्र की ओर सरका दी। 2020 के विधानसभा चुनाव के पहले दिल्ली सरकार के जबर्दस्त ‘चुनाव-प्रचार’ में मोहल्ला क्लिनिकों का शोर था। अब जब अप्रेल और मई त्राहि-त्राहि मची, तब ये क्लिनिकें सीन से नदारद थीं।

केजरीवाल सरकार 2015 से अब तक विज्ञापनों पर 805 करोड़ रुपये खर्च कर दिए, लेकिन एक नया अस्पताल नहीं खोला। अब जब वह घर-घर राशन पहुँचाने की प्रतिज्ञा कर रही है, तब उसे बताना चाहिए कि राशन की दुकानों का क्या होगा? कितनी हैं दुकानें? वे कहाँ जाएंगी? राशन कार्डों की स्थिति क्या है? किसके पास जाएगा राशन? ऐसे तमाम सवाल हैं, जिनके जवाब मिलने चाहिए। सवाल यह भी है कि केंद्रीय खाद्य सुरक्षा योजना में वह अपना पैबंद क्यों लगाना चाहती है? अपने पैसे से कोई नया कार्यक्रम शुरू क्यों नहीं करती?

केजरीवाल की व्यथा

अरविंद केजरीवाल ने कहा, मैं बहुत व्यथित हूँ। अगले हफ़्ते से गरीबों के घर-घर राशन पहुँचाने का काम शुरू होने वाला था। हमारी सारी तैयारियां हो चुकी थीं और अचानक आपने (यानी मोदी जी ने) दो दिन पहले इसे क्यों रोक दिया? कहा गया कि हमने केंद्र सरकार से इसकी मंजूरी नहीं ली। हमने एक बार नहीं पाँच बार आपकी मंजूरी ली है, जबकि कानूनन किसी मंजूरी की जरूरत नहीं है।

बात-बात पर दिल्ली सरकार की प्रेस कांफ्रेंसें हो रही हैं। गरीबों को अनाज देने की केंद्रीय योजना का श्रेय लेने के लिए उसमें लोकलुभावन ट्विस्ट दिया गया है। जब पिज्जा की होम डिलीवरी हो सकती है, तो राशन की क्यों नहीं? जरूर हो सकती है। शुरू कीजिए ऐसा कार्यक्रम। पर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत चलने वाली योजना में 90 प्रतिशत से ज्यादा पैसा केंद्र सरकार खर्च करती है तो राज्य सरकार को इसका श्रेय क्यों लेना चाहिए?