Tuesday, May 18, 2021

हमस-इसराइल टकराव का निहितार्थ


इसराइल और हमस के बीच टकराव ऐन उस मौके पर हुआ है, जब लग रहा था कि पश्चिम एशिया में स्थायी शांति के आसार पैदा हो रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि अरब देशों का इसराइल के प्रति कठोर रुख बदलने लगा था। तीन देशों ने उसे मान्यता दे दी थी और सम्भावना इस बात की थी कि सऊदी अरब भी उसे स्वीकार कर लेगा। इस हिंसा से उस प्रक्रिया को धक्का लगेगा। अब उन अरब देशों को भी इसराइल से रिश्ते सुधारने में दिक्कत होगी, जिन्होंने हाल में इसराइल के साथ रिश्ते बनाए हैं। पर वैश्विक राजनीति में कोई बुनियादी बदलाव नहीं आने वाला है। इस हिंसा के दौरान इसराइल के समर्थक देशों का रुख भी साफ हुआ है।

इस महीने के पहले हफ्ते में इसराइली सुरक्षा बलों ने यरूशलम के दमिश्क गेट पर फलस्तीनियों को जमा होने से रोका, जिसके कारण यह हिंसा भड़की है। इस घटना में काफी लोग घायल हुए थे। इसके बाद उग्रवादी संगठन हमस को आगे आने का मौका मिला। उन्होंने इसराइल पर रॉकेटों से हमला बोल दिया, जिसका जवाब इसराइल ने बहुत बड़े स्तर पर दिया है। इन दिनों इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू अपने देश में राजनीतिक संकट में थे। इस लड़ाई से उनकी स्थिति सुधरेगी। दूसरी तरफ हमस का प्रभाव अब और बढ़ेगा। जहाँ तक भारत का सवाल है, हमारी सरकार ने काफी संतुलित रुख अपनाया है। इस टकराव ने इस्लामिक देशों को इसराइल के बारे में किसी एक रणनीति को बनाने का मौका भी दिया है। एक तरफ मुस्लिम देशों का नया ब्लॉक बनाने की बातें हैं, वहीं सऊदी अरब और ईरान के बीच रिश्ते सुधारने के प्रयास भी हैं। तुर्की भी इस्लामिक देशों का नेतृत्व करने के लिए आगे आया है।  

हालांकि इस टकराव को युद्ध नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इसमें आसपास का कोई देश शामिल नहीं हैं पर इससे वैश्विक-राजनीति में आ रहे परिवर्तनों पर प्रभाव पड़ेगा। खासतौर से अरब देशों और इसराइल के रिश्तों में आ रहे सुधार को धक्का लगेगा। इस परिघटना का असर अरब देशों और ईरान के बीच सम्बंध बेहतर होने की प्रक्रिया पर भी पड़ेगा।

Monday, May 17, 2021

महामारी के उस पार क्या खुशहाली खड़ी है?


पिछले साल इतिहासकार युवाल नोवा हरारी ने फाइनेंशियल टाइम्स में प्रकाशित अपने एक लेख में कहा था कि आपातकाल ऐतिहासिक प्रक्रियाओं को फास्ट फॉरवर्ड करता है। जिन फ़ैसलों को करने में बरसों लगते हैं, वे रातोंरात हो जाते हैं। उन्हीं दिनों बीबीसी के न्यूज़ऑवर प्रोग्राम में उन्होंने कहा, महामारी ने वैज्ञानिक और राजनीतिक दो तरह के सवालों को जन्म दिया है। वैज्ञानिक चुनौतियों को हल करने की कोशिश तो दुनिया कर रही है लेकिन राजनीतिक समस्याओं की ओर उसका ध्यान कम गया है।

पिछले साल जबसे महामारी ने घेरा है, दुनियाभर के समाजशास्त्री इस बात का विवेचन कर रहे हैं कि इसका जीवन और समाज पर क्या असर होने वाला है। यह असर जीवन के हर क्षेत्र में होगा, मनुष्य की मनोदशा पर भी। हाल में विज्ञान-पत्रिका साइंटिफिक अमेरिकन ने इस दौरान इंसान के भीतर पैदा हुए गुहा लक्षण (केव सिंड्रोम) का उल्लेख किया है।

गुहा-मनोदशा

एक साल से ज्यादा समय से लगातार गुफा में रहने के बाद व्यक्ति के मन में अलग-थलग रहने की जो प्रवृत्ति पैदा हो गई है, क्या वह स्थायी है? क्या इंसान खुद को फिर से उसी प्रकार स्वतंत्र और सुरक्षित महसूस कर पाएगा, जैसा पहले था? क्या सोशल डिस्टेंसिंगदुनिया का स्थायी-भाव होगा? कम से कम इस पीढ़ी पर तो यह बात लागू होती है। वैक्सीन लेने के बाद भी हम खुद को पूरी तरह सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे हैं।

Sunday, May 16, 2021

दूसरी लहर से आगे का परिदृश्य


पिछले एक-डेढ़ महीने के हौलनाक-मंज़र के बाद लगता है कि कोरोना की दूसरी लहर जितनी तेजी से उठी थी, उतनी तेजी से इसके खत्म होने की उम्मीदें हैं। इस लहर का सबसे बड़ा सबक क्या है? क्या हम ईमानदारी से अपनी खामियों को पढ़ पाएंगे? ऐसा क्यों हुआ कि भारी संख्या में लोग अस्पतालों के दरवाजों पर सिर पटक-पटक कर मर गए? उन्हें ऑक्सीजन नहीं मिली, दवाएं नहीं मिलीं, इलाज नहीं मिला। ऐसे तमाम सवाल हैं।

क्या सरकार (जिसमें केंद्र ही नहीं, राज्य भी शामिल हैं) की निष्क्रियता से ऐसा हुआ? क्या सरकारें भविष्य को लेकर चिंतित और कृत-संकल्प है? क्या यह संकल्प ‘राजनीति-मुक्त’ है? भविष्य का कार्यक्रम क्या है? जिस चिकित्सा-तंत्र की हमें जरूरत है, वह कैसे बनेगा और कौन उसे बनाएगा? हमारी सार्वजनिक-स्वास्थ्य नीति क्या है? वैक्सीनेशन-योजना क्या है? लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था क्या सदमे को बर्दाश्त कर पाएगी? सवाल यह भी है कि साल में दूसरी बार संकट से घिरे प्रवासी कामगारों की रक्षा हम कैसे करेंगे?

प्रवासी कामगार

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र, दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रवासी श्रमिकों को सूखा राशन प्रदान करने का निर्देश दिया। अधिकारियों को प्रवासी मजदूरों के पहचान पत्रों पर जोर नहीं देना है। मजदूरों पर यकीन करते हुए उन्हें राशन दिया जाए। इन मजदूरों के लिए एनसीआर में सामुदायिक रसोइयाँ स्थापित करने और यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है कि उन्हें दिन में दो बार भोजन मिले। उन्हें परिवहन मिले, जो अपने घरों में वापस जाना चाहते हैं। ये वही समस्याएं हैं, जो पिछले साल के लॉकडाउन के वक्त इन कामगारों ने झेली थीं।

Friday, May 14, 2021

दूसरी लहर को लेकर काफी सही साबित हो रहा है आईआईटी कानपुर का गणितीय मॉडल


आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों ने भारत में कोविड-19 की तीसरी लहर का जो गणितीय मॉडल तैयार किया है, वह काफी हद तक राष्ट्रीय स्तर पर और देश के प्रमुख राज्यों के स्तर पर सटीक चल रहा है। हाल में इस मॉडल को लेकर काफी चर्चा रही थी। मैं तबसे इनके अपडेट पर नजर रखता हूँ। आप यदि इसे तारीखों के हिसाब से देखना चाहते हैं, तो इसकी वैबसाइट पर जाना पड़ेगा, पर यदि केवल नेचुरल कर्व को समझ सकते हैं, तो देखें कि नीले रंग की रेखा वास्तविक आँकड़े को बता रही है और नारंगी रेखा इनके मॉडल की है। 

इस मॉडल पर जो जानकारी आज सुबह तक दर्ज है, उसके अनुसार 12 मई को देश में 3,76,013 संक्रमणों के नए मामले आए, जबकि इस मॉडल ने 3,26,092 का अनुमान लगाया था। अब इसका अनुमान है कि 15 मई को यह संख्या तीन लाख के नीचे और 23 मई को दो लाख के नीचे और 3 जून को एक लाख के नीचे चली जाएगी। इसके बाद 8 जुलाई को यह संख्या 10 हजार से भी नीचे होगी। जुलाई और अगस्त में स्थितियाँ करीब-करीब सामान्य होंगी।

दिल्ली और उत्तर प्रदेश के अनुमानों पर भी नजर डालनी चाहिए। इसके अनुसार 12 मई को दिल्ली में 14,440 नए मामले आए, जबकि इस मॉडल के अनुसार 15,711 आने चाहिए थे। उत्तर प्रदेश का आँकड़ा 11 मई तक का है, जिसके अनुसार 25,289 मामले आए, जबकि इनके मॉडल के अनुसार 23,290 होने चाहिए। इसकी वैबसाइट पर जाकर आप उन शहरों के आँकड़ों की तुलना भी कर सकते हैं, जिनका मॉडल इन्होंने तैयार किया है। मुझे यह मॉडल काफी हद तक सही लग रहा है।  

इनकी वैबसाइट का लिंक यहाँ है 

https://www.sutra-india.in/about

Thursday, May 13, 2021

संघ के कार्यक्रम में अजीम प्रेमजी का सम्बोधन


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने 'Positivity Unlimited' नाम से ऑनलाइन भाषणों  की शुरुआत की है। ये भाषण 11 से 15 मई के बीच प्रसारित हो रहे हैं। इनका उद्देश्य लोगों में महामारी के बीच सकारात्मकता और विश्वास बढ़ाना है। यह श्रृंखला संघ की कोविड रेस्पॉन्स टीम आयोजित कर रही है। इसका प्रसारण दूरदर्शन पर रोज हो रहा है। इसके अंतर्गत गत 12 मई को विप्रो के प्रमुख अज़ीम प्रेमजी का भाषण हुआ।

प्रेमजी ने इस मौके पर कहा कि कोविड-19 के कारण पैदा हुए संकट का सामना करने की बुनियाद साइंस और सत्य पर आधारित होनी चाहिए। साथ ही इसका असर कितना गहरा और कितनी दूर तक हुआ है, इसे स्वीकार किया जाना चाहिए। हमें सबसे पहले पूरी ताकत के साथ हर दिशा में सक्रिय होना चाहिए। साथ ही यह काम अच्छे विज्ञान के सहारे किया जाना चाहिए। जो काम विज्ञान के आधार पर नहीं होते, वे उद्देश्य को पूरा करने में बाधक होते हैं।

उन्होंने कहा कि अच्छे विज्ञान का मतलब है सत्य को स्वीकार करना और उसका सामना करना। यानी हमें वर्तमान संकट के आकार, उसकी गहराई और उसके प्रसार को पूरी तरह स्वीकार करना चाहिए। दो मिनट के वीडियो में प्रेमजी ने कहा कि इस स्थिति में पूरे देश को अपने मतभेदों के भुलाकर और एकजुट होकर समस्या का सामना करना चाहिए। हम जब एकसाथ होते हैं, तब ज्यादा ताकतवर होते हैं, जब बिखरे हुए होते हैं, तब कमजोर होते हैं।