Wednesday, March 24, 2021

क्या किसान आंदोलन को दलितों का समर्थन मिलेगा?

इस सवाल को भारतीय राजनीति ने गम्भीरता से नहीं लिया कि पंजाब और हरियाणा का किसान आंदोलन बड़ी जोत वाले किसानों (कुलक) के हितों की रक्षा के लिए खड़ा हुआ है या गाँव से जुड़े पूरे खेतिहर समुदाय से, जिनमें खेत-मजदूर भी शामिल हैं? किसान आंदोलन के सहारे वामपंथी विचारधारा उत्तर भारत में अपनी जड़ें जमाने का प्रयास करती नजर आ रही है। लम्बे अरसे तक साम्यवादियों ने किसानों को क्रांतिकारी नहीं माना। चीन के माओ जे दुंग ने उनके सहारे राज-व्यवस्था पर कब्जा किया, जबकि यूरोप में साम्यवादी क्रांति नहीं हुई, जहाँ औद्योगिक-क्रांति हुई थी। बहरहाल साम्यवादी विचारों में बदलाव आया है और भारत की राजनीति में वे अब आमूल बदलाव के बजाय सामाजिक-न्याय और जल, जंगल और जमीन जैसे सवालों पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।

हरियाणा के कैथल से खबर है कि जवाहर पार्क में रविवार को एससी बीसी संयुक्त मोर्चा कैथल द्वारा बहुजन महापंचायत एवं सामाजिक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने शिरकत की और लोगों को सम्बोधित किया। गुरनाम चढूनी ने कहा कि ये आंदोलन केवल किसानों का आंदोलन नहीं है। ये आंदोलन किसानों ने शुरू किया है, अब यह जनमानस का आंदोलन है, क्योंकि इन तीन कृषि कानूनों का केवल किसानों को ही नुकसान नहीं है बल्कि देश के हर वर्ग को इन कृषि कानूनों का नुकसान है, क्योंकि पूरे देश का भोजन चंद लोगों के खजाने में जाकर कैद हो जाएगा. उन्होंने कहा कि आज की पंचायत को हमने दलित सम्मेलन के नाम से बुलाया है। अब हम सभी एक साथ मिलकर इस आंदोलन को लड़ेंगे क्योंकि यह देश चंद लोगों के हाथों में बिक रहा है।

Tuesday, March 23, 2021

पाकिस्तान के साथ शांति स्थापना की ठोस वजह


भारत और पाकिस्तान के सम्बन्धों में सुधार की सम्भावनाओं पर कुछ लेख मेरे सामने आए हैं, जिन्हें पढ़ने का सुझाव मैं दूँगा। इनमें पहला लेख है शेखर गुप्ता का, जिन्होंने लिखा है:

पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल कमर अहमद बाजवा ने बीते गुरुवार को इस्लामाबाद सिक्योरिटी डायलॉग में 13 मिनट का जो भाषण दिया, उस पर भारत के जानकार लोगों की पहली प्रतिक्रिया तो उबासी की ही रही होगी। वह बस यही कह रहे हैं कि भारत और पाकिस्तान को अपने अतीत को दफनाकर नई शुरुआत करनी चाहिए, शांति दोनों देशों के लिए जरूरी है ताकि वे अपनी अर्थव्यवस्था पर ध्यान दे सकें वगैरह...वगैरह। हर पाकिस्तानी नेता ने चाहे वह निर्वाचित हो या नहीं, कभी न कभी ऐसा ही कहा है। इसके बाद वे पीछे से वार करते हैं तो इसमें नया क्या है?

म्यूचुअल फंड के विज्ञापनों में आने वाले स्पष्टीकरण से एक पंक्ति को लेकर उसे थोड़ा बदलकर कहें तो यदि अतीत भविष्य के बारे में कोई संकेत देता है तो पाकिस्तान के बारे में बात करना निरर्थक है। बेहतर है कि ज्यादा तादाद में स्नाइपर राइफल खरीदिए और नियंत्रण रेखा पर जमे रहिए। तो यह गतिरोध टूटेगा कैसे?

बमबारी करके उन्हें पाषाण युग में पहुंचाना समस्या का हल नहीं है। करगिल, ऑपरेशन पराक्रम और पुलवामा/बालाकोट के बाद हम यह जान चुके हैं। कड़ा रुख रखने वाले अमेरिकी सुरक्षा राजनयिक रिचर्ड आर्मिटेज जिन्होंने 9/11 के बाद इस धमकी के जरिए पाकिस्तान पर काबू किया था, वह जानते थे कि यह बड़बोलापन है। तब से 20 वर्षों तक अमेरिका ने अफगानिस्तान के बड़े हिस्से को बमबारी कर पाषाण युग में पहुंचा दिया। लेकिन अमेरिका हार कर लौट रहा है। सैन्य, कूटनयिक, राजनीतिक या आर्थिक रूप से कुछ भी ताकत से हासिल नहीं होगा। जैसा कि पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वीपी मलिक ने पिछले दिनों मुझसे बातचीत में कहा भी कि आज पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर या अक्साई चिन को सैन्य बल से हासिल करना संभव नहीं है। जहां तक क्षमता का प्रश्न है ऐसा कोई भी प्रयास वैश्विक चिंता पैदा करेगा और बहुत जल्दी युद्ध विराम करना होगा। बहरहाल, ये मेरे शब्द हैं न कि उनके।

बिजनेस स्टैंडर्ड में पढ़ें पूरा आलेख

पाकिस्तानी जनरल बाजवा का बयान

दुनियाभर में आतंकवाद पर घिरे और आर्थिक तंगी से जूझ रहे पाकिस्तान के सुर बदलने लगे हैं। इमरान सरकार के बाद अब इस देश की शक्तिशाली सेना ने भी शांति का राग अलापा है। सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने कहा कि अतीत को भूलकर भारत और पाकिस्तान आगे बढ़ना चाहिए। उनका कहना है कि दोनों देशों के बीच शांति से क्षेत्र में संपन्नता और खुशहाली आएगी। इतना ही नहीं भारत के लिए मध्य एशिया तक पहुंच आसान हो जाएगा।

Monday, March 22, 2021

परमबीर सिंह के पत्र कांड पर शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' की कवरेज


मुम्बई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह की मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नाम चिट्ठी की खबर आने के बाद से इस मामले ने राजनीतिक रंग पकड़ लिया है। हालांकि शिवसेना ने अभी तक अपनी स्थिति को स्पष्ट नहीं किया था, पर उसके मुखपत्र सामना में आज के संपादकीय से स्थिति स्पष्ट होती है। इसके अलावा अखबार की कवर स्टोरी से भी लगता है कि शरद पवार के साथ पार्टी की सहमति है। सामना के संपादकीय में लिखा है, 'परमबीर सिंह के निलंबन की मांग कल तक महाराष्ट्र का विपक्ष कर रहा था। आज परमबीर सिंह विरोधियों की ‘डार्लिंग’ बन गए हैं और परमबीर सिंह के कंधे पर बंदूक रखकर सरकार पर निशाना साध रहे हैं। महा विकास आघाड़ी सरकार के पास आज भी अच्छा बहुमत है। बहुमत पर हावी होने की कोशिश करोगे तो आग लगेगी, यह चेतावनी न होकर वास्तविकता है। किसी अधिकारी के कारण सरकार बनती नहीं और गिरती भी नहीं है, यह विपक्ष को भूलना नहीं चाहिए!'

सामना की खबर में कहा गया है कि मुकेश अंबानी के घर के बाहर खड़ी कार की जांच एनआईए कर रही है। दूसरी तरफ मनसुख हिरेन प्रकरण की जांच एटीएस कर रही है। इन सब हलचलों के बीच नेता प्रतिपक्ष देवेंद्र फडणवीस ने दिल्ली का दौरा किया और उसके तुरंत बाद ही परमबीर सिंह का पत्र मीडिया के सामने आया। यह कहते हुए राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार ने ‘लेटर बम’ की ‘टाइमिंग’ पर ध्यान आकर्षित किया। गृहमंत्री अनिल देशमुख पर लगाए गए आरोप गंभीर हैं। इस मामले को लेकर आज, सोमवार को मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से चर्चा होगी। गृहमंत्री देशमुख का भी पक्ष सुना जाएगा, ऐसा पवार ने बताया।

गृहमंत्री अनिल देशमुख ने हर महीने 100 करोड़ रुपए जुटाने का टारगेट परमबीर सिंह को दिया था। मुंबई पुलिस आयुक्त पद से तबादला होने के बाद सिंह ने ई-मेल से मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र भेजकर इस तरह का आरोप लगाया। इस पत्र के कारण राज्यभर में खलबली मची हुई है। कल भाजपा ने गृहमंत्री के इस्तीफे की मांग को लेकर आंदोलन किया। इस पृष्ठभूमि पर शरद पवार ने नई दिल्ली स्थित अपने आवास पर एक पत्रकार परिषद का आयोजन किया।

सबूत कहां हैं?

परमबीर सिंह के पत्र के पहले पेज पर देशमुख पर आरोप लगाए गए हैं तो दूसरे पेज पर आत्महत्या कर चुके सांसद मोहन डेलकर का उल्लेख है। सिंह द्वारा लगाए गए आरोप सही में बेहद गंभीर हैं लेकिन उनके द्वारा बताए गए 100 करोड़ रुपए की टारगेट के पैसे कहां जाते हैं, उसका कहीं जिक्र नहीं है।

सरकार अस्थिर करने का प्रयास

शरद पवार ने स्पष्ट किया कि इस मामले के पीछे राज्य की महाविकास आघाड़ी सरकार अस्थिर करने का विरोधियों का प्रयास है। लेकिन विपक्ष चाहे कितनी भी कोशिश कर ले, राज्य सरकार को कोई खतरा नहीं है।

यूएई के प्रयास से भारत और पाकिस्तान के रिश्ते सुधारने की खुफिया कोशिश


भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों में सुधार की कोशिशों को लेकर ब्लूमबर्ग ने खबर दी है कि पिछले महीने दोनों देशों ने नियंत्रण रेखा पर शांति बनाने की जो घोषणा की है, उसके पीछे संयुक्त अरब अमीरात का एक खुफिया रोडमैप है। इसकी झलक गत 25 फरवरी को विदेशमंत्री एस जयशंकर और यूएई के विदेशमंत्री शेख अब्दुल्ला बिन ज़ायेद के संयुक्त घोषणापत्र में देखी जा सकती है।

खबर के अनुसार यूएई के महीनों के खुफिया प्रयासों से नियंत्रण रेखा पर युद्धविराम संभव हो पाया। अपना उल्लेख न करने का आग्रह करते हुए जिस अधिकारी ने यह जानकारी दी है, उसके अनुसार यह युद्धविराम उस लंबी प्रक्रिया की शुरुआत मात्र है, जो इस शांति-स्थापना का काम करेगी।

इस प्रक्रिया का अगला चरण है दोनों देशों के उच्चायुक्तों की बहाली। अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की वापसी के बाद पाकिस्तान ने अपने उच्चायुक्त को वापस बुला लिया था। जवाब में भारतीय उच्चायुक्त भी बुला लिए गए थे।

राजनयिक रिश्तों की बहाली के बाद व्यापारिक रिश्तों की बहाली होगी और कश्मीर के स्थायी समाधान पर बातचीत की शुरुआत होगी। हालांकि सरकारी अधिकारी मानते हैं कि कारोबार और उच्चायुक्तों की बहाली के बाद की प्रक्रिया आसान नहीं है। अलबत्ता पंजाब के ज़मीनी रास्ते से व्यापार फिर शुरू हो सकता है।

भारत और रूस के बीच बढ़ती दूरियाँ


भारत और पाकिस्तान से जूड़े मामलों के पूर्व रूसी प्रभारी ग्लेब इवाशेंत्सोव ने तीन साल पहले एक वीडियो कांफ्रेंस में कहा था कि इस्लामाबाद के साथ बढ़ते रूसी सामरिक रिश्तों को अब रोका नहीं जा सकेगा। ऐसा करना हमारे हित में नहीं होगा। पाकिस्तान एक महत्वपूर्ण देश है, जिसकी क्षेत्रीय और वैश्विक मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका है। पाकिस्तान के साथ रूस की बढ़ती नजदीकी के समांतर भारत के साथ उसकी बढ़ती दूरी भी नजर आने लगी है। भले ही यह अलगाव अभी बहुत साफ नहीं है, पर अनदेखी करने लायक भी नहीं है। इसे अफगानिस्तान में चल रहे शांति-प्रयासों और हाल में हुए क्वाड शिखर सम्मेलन की रोशनी में देखना चाहिए। और यह देखते हुए भी कि अफगानिस्तान में रूस की दिलचस्पी काफी ज्यादा है।  

पिछले साल तालिबान के साथ हुए समझौते के तहत अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं की वापसी की तारीख 1 मई करीब आ रही है। अमेरिका में प्रशासनिक परिवर्तन हुआ है। राष्ट्रपति जो बाइडेन की नीति बजाय एकतरफा वापसी के सामूहिक पहल के सहारे समाधान खोजने की है। हमारी दृष्टि से महत्वपूर्ण बात यह है कि अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र के झंडे-तले एक पहल शुरू की है, जिसमें भारत को भी भागीदार बनाया है।

हिंद-प्रशांत गठजोड़

इस सिलसिले में हाल में अमेरिका के विशेष दूत जलमय खलीलज़ाद अफगानिस्तान आए थे, वहाँ से उन्होंने भारत के  विदेशमंत्री एस जयशंकर के साथ फोन पर बातचीत की। इस बीच 19 से 21 मार्च तक अमेरिकी रक्षामंत्री जनरल लॉयड ऑस्टिन भारत-यात्रा पर आ रहे हैं। इस दौरान न केवल अफगानिस्तान, बल्कि हिंद-प्रशांत सुरक्षा के नए गठजोड़  पर बात होगी। इन दोनों बातों का संबंध भारत-रूस रिश्तों से भी जुड़ा है।