Friday, March 19, 2021

पाकिस्तान से शांति का संदेश

 


पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने और फिर सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा ने कहा है, कि भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में सुधार होना चाहिए। प्रधानमंत्री के साथ जनरल बाजवा के बयान का आना भी बड़ा संदेश दे रहा है।

पिछले बुधवार को इमरान खान ने पाकिस्तान के थिंकटैंक नेशनल सिक्योरिटी डिवीजन के दो दिन के इस्लामाबाद सिक्योरिटी डायलॉग का उद्घाटन करते हुए कहा कि हम भारत के साथ रिश्तों को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं, पर भारत को इसमें पहल करनी चाहिए। पर उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि उनका आशय क्या है।

इसी कार्यक्रम में बाद में जनरल बाजवा बोले थे। इसमें उन्होंने कहा, ''जब तक कश्मीर मुद्दा हल नहीं हो जाता तब तक उपमहाद्वीप में शांति का सपना पूरा नहीं होगा। अब अतीत को भुला कर आगे बढ़ने का समय आ गया है।" पाकिस्तान की तरफ़ से हाल ही में सीमा पर युद्ध विराम समझौता किया गया है। जिसके बाद सेना प्रमुख जनरल जावेद बाजवा की भारत से बातचीत की पेशकश सामने आई है। उनकी इस पेशकश की सकारात्मक बात यह है कि इसमें कश्मीर से अनुच्छेद 370 की वापसी और इसी किस्म के विवादास्पद विषयों के नहीं उठाया गया है।

इस सिलसिले में एक और रोचक खबर यह है कि क़मर जावेद बाजवा ने अपनी सेना के जवानों को भारतीय लोकतंत्र की सफलता पर आधारित किताब पढ़ने की सलाह दी है। उन्होंने कहा कि यह जानने की ज़रूरत है कि भारत ने किस तरह से राजनीति को अपनी सेना को अलग रखा है।

Tuesday, March 16, 2021

बंगाल की भगदड़ और मीडिया का यथास्थितिवादी नज़रिया


पश्चिम बंगाल में नंदीग्राम विधानसभा सीट पर सबकी निगाहें हैं। यहाँ से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का मुकाबला उनसे बगावत करके भारतीय जनता पार्टी में आए शुभेंदु अधिकारी से है। इस क्षेत्र का मतदान 1 अप्रेल को यानी दूसरे दौर में होना है। शुरुआती दौर में ही राज्य की राजनीति पूरे उरूज पर है। एक तरफ बंगाल की राजनीति में तृणमूल कांग्रेस को छोड़कर भागने की होड़ लगी हुई है, वहीं मीडिया के चुनाव-पूर्व सर्वेक्षणों में अब भी ममता बनर्जी की सरकार बनने की आशा व्यक्त की गई है। शायद यह उनकी यथास्थितिवादी समझ है। चुनाव कार्यक्रम को पूरा होने में करीब डेढ़ महीने का समय बाकी है, इसलिए इन सर्वेक्षणों के बदलते निष्कर्षों पर नजर रखने की जरूरत भी होगी।

भारत में चुनाव-पूर्व सर्वेक्षणों का इतिहास अच्छा नहीं रहा है। आमतौर पर उनके निष्कर्ष भटके हुए होते हैं। फिर ममता बनर्जी की पराजय की घोषणा करने के लिए साहस और आत्मविश्वास भी चाहिए। बंगाल का मीडिया लम्बे अर्से से उनके प्रभाव में रहा है। बंगाल के ही एक मीडिया हाउस से जुड़ा एक राष्ट्रीय चैनल इस बात की घोषणा कर रहा है, तो विस्मय भी नहीं होना चाहिए। अलबत्ता तृणमूल के भीतर जैसी भगदड़ है, उसपर ध्यान देने की जरूरत है। मीडिया के विश्लेषण 27 मार्च को मतदान के पहले दौर के बाद ज्यादा ठोस जमीन पर होंगे। पर 29 अप्रैल के मतदान के बाद जो एक्ज़िट पोल आएंगे, सम्भव है उनमें कहानी बदली हुई हो।

भगदड़ का माहौल

सन 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से टीएमसी के 17 विधायक, एक सांसद कांग्रेस, सीपीएम और सीपीआई के एक-एक विधायक अपनी पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। यह संख्या लगातार बदल रही है। हाल में मालदा के हबीबपुर से तृणमूल कांग्रेस की प्रत्याशी सरला मुर्मू ने टिकट मिलने के बावजूद तृणमूल छोड़ दी और सोमवार 8 मार्च को भाजपा में शामिल हो गईं। बंगाल में यह पहला मौका है, जब किसी प्रत्याशी ने टिकट मिलने के बावजूद अपनी पार्टी छोड़ी है। बात केवल बड़े नेताओं की नहीं, छोटे कार्यकर्ताओं की है। केवल तृणमूल के कार्यकर्ता ही नहीं सीपीएम के कार्यकर्ता भी अपनी पार्टी को छोड़कर भागे हैं। इसकी वजह पिछले दस वर्षों से व्याप्त राजनीतिक हिंसा है।

Monday, March 15, 2021

सियासी आँधी में घिरे इमरान खान

पाकिस्तानी संसद के ऐवान-ए-बाला यानी सीनेट के चुनाव में हार के बाद प्रधानमंत्री इमरान खान ने वहाँ की राष्ट्रीय असेम्बली में विश्वासमत हासिल कर लिया है। शनिवार 6 मार्च को हुए मतदान में उनके पक्ष में 178 वोट पड़े, जबकि विरोधी दलों ने मतदान का बहिष्कार किया। पर ये 178 वोट खुले मतदान में पड़े हैं, जबकि सीनेट का चुनाव गुप्त मतदान से हुआ था। लगता है कि कुछ सदस्यों को मौके का इंतजार है, पर वे खुलकर सामने आना भी नहीं चाहते।

इस वक़्त सबसे अहम सवाल है कि देश के विरोधी दलों का उगला हदफ़ (निशाना) क्या होगा? पर्यवेक्षकों का कहना है कि एकबार शिगाफ़ (दरार) पड़ जाए, तो बार-बार उसपर वार करना जरूरी होता है। लगता है कि इमरान खान की सत्ता कमज़ोर पड़ रही हैं। अलबत्ता विरोधी दलों ने 26 मार्च को पूरे देश में लांग मार्च का कार्यक्रम बनाया है। इस लांग मार्च के साथ ही देश में फिर से चुनाव कराने की माँग शुरू हो गई है।

फौज किसके साथ?

फिलहाल विपक्ष सीनेट में अपना अध्यक्ष लाने की कोशिश करेगा और उसके बाद पंजाब की सूबाई सरकार को गिराने या बदलवाने की। मरियम नवाज शरीफ का कहना है कि पंजाब में पीटीआई के विधायकों ने अब हमसे सम्पर्क करना शुरू कर दिया है। यानी कहानी अभी खत्म नहीं हुई है, बल्कि उसका अगला अध्याय शुरू होने जा रहा है। सवाल यह भी है कि फौज (जिसे पाकिस्तान में एस्टेब्लिशमेंट या व्यवस्था कहा जाता है) किसके साथ है?

इमरान खान का विश्वासमत हासिल करना भी पाकिस्तान की राजनीति के लिहाज से अटपटा है। अप्रेल 2010 में हुए संविधान के 18वें संशोधन के बाद यह पहला मौका था, जब किसी प्रधानमंत्री ने विश्वासमत हासिल किया है। इसके पहले जरूरी होता था कि नवनियुक्त प्रधानमंत्री अपना पद संभालने के 30 दिन के भीतर विश्वासमत हासिल करे। अब सांविधानिक-व्यवस्था में इसकी जरूरत नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 91 की धारा 7 के अनुसार जब तक बहुमत को लेकर राष्ट्रपति को संदेह नहीं हो, वह अपने अधिकार का इस्तेमाल नहीं करेगा।

इमरान खान को अपनी तरफ से विश्वासमत हासिल करने की कोई जरूरत थी भी नहीं थी। उनसे राष्ट्रपति ने नहीं कहा था। शायद वे असुरक्षा से घिरे हैं और अपना बहुमत साबित करके अपने सुरक्षा-घेरे को मजबूत करना चाहते हैं। इमरान के पक्ष 155 वोट उनकी पार्टी पीटीआई के थे, सात एमक्यूएम (पी) के पाँच-पाँच बलोचिस्तान अवामी पार्टी, और पाकिस्तान मुस्लिम लीग-क़ायद और एक-एक वोट अवामी मुस्लिम लीग और जम्हूरी वतन पार्टी का था।

Saturday, March 13, 2021

टेक्नो-लोकतंत्र की खुली खिड़की और हवाओं को कैद करने की कोशिशें


डिजिटल मीडिया और सोशल मीडिया के विनियमन के लिए केंद्र सरकार की नवीनतम कोशिशों को लेकर तीन तरह की दलीलें सुनाई पड़ रही हैं। पहली यह कि विनियमन न केवल जरूरी है, बल्कि इसे
नख-दंत की जरूरत है। यह बात सुप्रीम कोर्ट ने भी कही है। दूसरी, विनियमन ठीक है, पर इसका अधिकार सरकार के पास नहीं रहना चाहिए। इस दलील में उन बड़ी तकनीकी कंपनियों के स्वर भी शामिल हैं, जिनके हाथों में डिजिटल (या सोशल) मीडिया की बागडोर है। और तीसरी दलील मुक्त-इंटरनेट के समर्थकों की है, जिनका कहना है कि सरकारी गाइडलाइन न केवल अनैतिक है, बल्कि असांविधानिक भी हैं। इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन का यह विचार आगे जाकर आधार, आरोग्य सेतु और  प्रस्तावित डीएनए कानून को भी सरकारी सर्विलांस का उपकरण मानता है।  

लोकतंत्र के तीन स्तम्भ धीरे-धीरे आकार ले रहे हैं। इनमें पहला राज्य है, जिसमें सरकार एक निकाय है, और जिसमें न्यायपालिका और राजनीतिक संस्थाएं शामिल हैं। दूसरे बाजार है, यानी बड़ी तकनीकी कम्पनियाँ। तीसरे स्वयं नागरिक। दुनिया के करीब सात अरब नागरिकों में से हरेक का अपना एजेंडा है। उनके प्रतिनिधित्व का दावा करने वाला एक अलग संसार है।

ग्लोबल ऑडियंस

सूचना के नियमन की कोशिश केवल भारत में ही नहीं है। युवाल नोवा हरारी के शब्दों में वैश्विक समस्याओं के वैश्विक समाधानखोजे जा रहे हैं। हाल में पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि को जमानत पर रिहा करने का आदेश देते हुए अदालत ने कहा था, बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में ग्लोबल ऑडियंस की तलाश का अधिकार शामिल है। संचार पर भौगोलिक बाधाएं नहीं हैं। एक नागरिक के पास कानून के अनुरूप संचार प्राप्त करने के सर्वोत्तम साधनों का उपयोग करने का मौलिक अधिकार है।

स्वतंत्रता का यह एक नया आयाम है। इंटरनेट ने यह वैश्विक-खिड़की खोली है। नागरिक के जानकारी पाने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़े अधिकारों को पंख लगाने वाली तकनीक ने उसकी उड़ान को अंतरराष्ट्रीय जरूर बना दिया है, पर उसकी आड़ में बहुत से खतरे राष्ट्रीय सीमाओं में प्रवेश कर रहे हैं। सोचना उनके बारे में भी होगा।

Wednesday, March 10, 2021

पीसी चाको के हटने से कांग्रेस को एक और झटका


कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पीसी चाको ने पार्टी से नाता तोड़कर कांग्रेस पार्टी की आंतरिक राजनीति को चौराहे पर खड़ा कर दिया है। ऐसा नहीं है कि इस इस्तीफे से केरल में पार्टी की गुटबंदी खत्म हो जाएगा, पर इतना जरूर है कि केंद्रीय नेतृत्व का ध्यान इस ओर जाएगा। चाको ने कहा है कि पार्टी लगातार कमजोर होती जा रही है। इसके पीछे कोई और नहीं, खुद पार्टी है।

पीसी चाको ने अपना इस्तीफा पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजा। केरल में 6 अप्रैल को होने जा रहे विधानसभा चुनाव से पहले इस इस्तीफे से पार्टी की संभावनाओं पर भी असर पड़ेगा। यों भी माना जा रहा है कि इसबार वाममोर्चे की सरकार बनने जा रही है, जो केरल की राजनीति में एक नई बात होगी। अभी तक का चलन था कि एकबार वामपंथी सरकार बनती थी, तो उसके बाद कांग्रेसी। पर इसबार शायद वामपंथी सरकार लगातार दूसरी बार बनेगी।

चाको ने केरल में कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेताओं रमेश चेन्नीथला और ओमान चैंडी और उनके दो गुटों पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि दोनों नेता हमेशा सीटें और संगठन के बाद आपस में बांट लेते हैं। केरल में केवल उन नेताओं का भविष्य है जो इनमें से किसी ग्रुप का हिस्सा हैं, अन्य को हमेशा दरकिनार कर दिया जाता है। मैं हाईकमान से कहता रहा हूं कि इस पर रोक लगनी चाहिए, लेकिन आलाकमान भी इन समूहों के दिए प्रस्तावों से सहमत है।''

चाको ने पार्टी के भीतर ग्रुप-23 का जिक्र भी किया। उन्होंने कहा, नेताओं ने मुझसे भी सम्पर्क साधा था, पर मैं किसी पत्र-अभियान के पक्ष में नहीं था। अलबत्ता मैं पत्र में उठाए गए सवालों से सहमत था। अफसोस की बात है कि पार्टी पिछले डेढ़ साल में अपने लिए अध्यक्ष नहीं खोज पाई।