Sunday, December 13, 2020

ईयू डिसइनफोलैब की असलियत क्या है?

 


यूरोपीय यूनियन में फ़ेक न्यूज़ पर काम करने वाले एक संगठन 'ईयू डिसइनफोलैब' ने दावा किया है कि पिछले 15 साल से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक नेटवर्क काम कर रहा है, जिसका मक़सद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को बदनाम करना और भारत के हितों को फ़ायदा पहुँचाना है। यह खबर पाकिस्तानी मीडिया पर पिछले दो-तीन दिन से काफी सुर्खियाँ बटोर रही है। इस खबर को भारत में बीबीसी हिंदी, द वायर और स्क्रॉल ने विस्तार से प्रकाशित किया है। वहीं इंडिया टुडे, एएनआई और फर्स्ट पोस्ट ने भारत के विदेश मंत्रालय के स्पष्टीकरण को प्रकाशित किया है।

बीबीसी हिंदी ने आबिद हुसैन और श्रुति मेनन बीबीसी उर्दू, बीबीसी रियलिटी चेक को इस खबर का क्रेडिट देते हुए जो खबर दी है, वह मूलतः बीबीसी अंग्रेजी की रिपोर्ट का अनुवाद है। ज्यादातर रिपोर्टों में इस संस्था के विवरण ही दिए गए हैं। किसी ने यह नहीं बताया है कि इस संस्था की साख कितनी है और इस प्रकार की कितनी रिपोर्टें पहले तैयार हुई हैं और क्या केवल पाकिस्तान के खिलाफ ही प्रोपेगैंडा है या पाकिस्तान की कोई संस्था भी भारत के खिलाफ प्रचार का काम करती है।

किसान आंदोलन : गतिरोध टूटना चाहिए

किसान आंदोलन से जुड़ा गतिरोध टूटने का नाम नहीं ले रहा है। सरकार और किसान दोनों अपनी बात पर अड़े हैं। सहमति बनाने की जिम्मेदारी दोनों की है। जब आप आमने-सामने बैठकर बात करते हैं, गतिरोध तभी टूटता है पर कई दौर की वार्ता के बाद भी बात वहीं की वहीं है। किसानों का कहना है कि बात तो करने को हम तैयार हैं, पर पहले आप तीन कानूनों को वापस लें। उन्होंने अपने आंदोलन का विस्तार करने की घोषणा की है, जिसमें हाइवे जाम करना, रेलगाड़ियों को रोकना और टोल प्लाजा पर कब्जा करने का कार्यक्रम भी शामिल है। फिलहाल किसानों का तांता लगा हुआ है, एक वापस जाता है, तो दस नए आते हैं।

केंद्र सरकार ने किसानों को लिखित रूप से देने का आश्वासन किया है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी रहेगा। सरकार ने कानून में बदलाव की पेशकश की है, ताकि सरकारी और प्राइवेट मंडियों के बीच समानता रहे। बाहर से आने वाले व्यापारियों पर भी शुल्क लगाने की बात मान ली गई है। व्यापारियों का पंजीकरण होगा और विवाद खड़े होने पर अदालत जाने का अवसर रहेगा। पर किसानों की एक ही माँग है कि तीनों कानूनों को वापस लो।

Saturday, December 12, 2020

चीन को तुर्की-ब-तुर्की जवाब

 


भारत और चीन के बीच जवाबी बयानों का सिलसिला अचानक चल निकला है। गत बुधवार 9 दिसंबर को ऑस्ट्रेलिया के एक थिंकटैंक लोवी इंस्टीट्यूट में विदेशमंत्री एस जयशंकर के एक बयान के जवाब में अगले ही दिन चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने लद्दाख के घटनाक्रम की सारी जिम्मेदारियाँ भारत के मत्थे मढ़ दीं। उन्होंने कहा कि हम तो बड़ी सावधानी से द्विपक्षीय समझौतों का पालन कर रहे थे। इसके जवाब में शुक्रवार को भारतीय प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा कि चीन को अपने शब्दों और अपने कार्यों का मिलान करके देखना चाहिए। 

अब शनिवार को विदेशमंत्री एस जयशंकर ने फिर कहा है कि पिछले सात महीनों से लद्दाख में चल रहे गतिरोध में भारत की परीक्षा हुई है और इसमें हम सफल होकर उभरेंगे और राष्ट्रीय सुरक्षा की चुनौतियों पर पार पाएंगे। फिक्की की वार्षिक महासभा के साथ एक इंटर-एक्टिव सेशन में जयशंकर ने कहा कि पूर्वी लद्दाख में जो हुआ, वह वास्तव में चीन के हित में नहीं था। इस घटना-क्रम के कारण भारत के प्रति दुनिया की हमदर्दी बढ़ी है। 

कोरोना महामारी ने खोल कर रख दी वैश्विक स्वास्थ्य नीतियों की पोल, गारंटी नहीं कि वैक्सीन के बाद नहीं होगा संक्रमण


सन 2020 में जब दुनिया को महामारी ने घेरा तो पता चला कि सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं अस्त-व्यस्त हैं। निजी क्षेत्र ने मौके का फायदा उठाना शुरू कर दिया। यह केवल भारत या दूसरे विकासशील देशों की कहानी नहीं है। ब्रिटेन और अमेरिका जैसे धनवान देशों का अनुभव है।

प्रमोद जोशी

कोविड-19 ने इनसान के सामने मुश्किल चुनौती खड़ी की है, जिसका जवाब खोजने में समय लगेगा। कोई नहीं कह सकता कि इस वायरस का जीवन-चक्र अब किस जगह पर और किस तरह से खत्म होगा। बेशक कई तरह की वैक्सीन सामने आ रहीं हैं, पर वैक्सीन इसका निर्णायक इलाज नहीं हैं। इस बात की गारंटी भी नहीं कि वैक्सीन के बाद संक्रमण नहीं होगा। यह भी पता नहीं कि उसका असर कितने समय तक रहेगा।

महामारी से सबसे बड़ा धक्का करोड़ों गरीबों को लगा है, जो प्रकोपों का पहला निशाना बनते हैं। अफसोस कि इक्कीसवीं सदी के तीसरे दशक की ओर देख रही दुनिया अपने भीतर की गैर-बराबरी और अन्याय को नहीं देख पा रही है। इस महामारी ने सार्वजनिक स्वास्थ्य के प्रति दुनिया के पाखंड का पर्दाफाश किया है।

नए दौर की नई कहानी

सार्वजनिक स्वास्थ्य को लेकर वैश्विक रणनीति का जिक्र अस्सी के दशक में शुरू हुआ था। फिर नब्बे के दशक में दुनिया ने पूंजी के वैश्वीकरण और वैश्विक व्यापार के नियमों को बनाना शुरू किया। इस प्रक्रिया के केंद्र में पूंजी और कारोबारी धारणाएं ही थीं। ऐसे में गरीबों की अनदेखी होती चली गई। हालांकि उस दौर में वैश्विक गरीबी समाप्त करने और उनकी खाद्य समस्या का समाधान करने के वायदे भी हुए थे, पर पिछले चार दशकों का अनुभव अच्छा नहीं रहा है।

Friday, December 11, 2020

भारत-चीन रिश्तों की बर्फ पिघलने के आसार नहीं


भारत और चीन के बीच तनाव कितना ही रहा हो, दोनों सरकारों के विदेश विभाग आमतौर पर काफी संयत तरीके से प्रतिक्रियाएं व्यक्त करते रहे हैं, पर इस हफ्ते दोनों देशों के व्यवहार में फर्क नजर आया। संयोग से इसी हफ्ते रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव का ऐसा वक्तव्य सामने आया, जिससे लगता है कि रूस को भारतीय विदेश-नीति के नियंताओं से शिकायत है।

पिछले बुधवार यानी 9 दिसंबर को भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ऑस्ट्रेलिया के थिंक टैंक लोवी इंस्टीट्यूट के एक ऑनलाइन इंटर-एक्टिव सेशन में कहा कि चीन ने लद्दाख में एलएसी पर भारी संख्या में सैनिक तैनात करने के बार में पाँच अलग-अलग स्पष्टीकरण दिए हैं। हालांकि उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि वे पाँच स्पष्टीकरण क्या हैं, पर उन्होंने इतना जरूर कहा कि चीन ने द्विपक्षीय समझौतों का बार-बार उल्लंघन किया। उन्होंने यह भी कहा कि पिछले 30-40 साल में बने रिश्ते इस समय बहुत मुश्किल दौर में हैं।