Wednesday, September 20, 2017

सेना से जुड़ी जन-भावनाएं

वायु सेना के मार्शल अर्जन सिंह के अंतिम संस्कार के समय सरकारी व्यवस्था पर प्रेक्षकों ने खासतौर से ध्यान दिया है. उनके अंतिम संस्कार के पहले रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन ने बरार स्क्वायर पहुंच कर उन्हें अंतिम विदाई दी. रविवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनके घर जाकर श्रद्धांजलि दी. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी बरार स्क्वायर पहुंच कर श्रद्धांजलि दी. सेना के तीनों अंगों के प्रमुख भी उन्हें अंतिम विदाई देने के लिए मौजूद रहे. तमाम केन्द्रीय मंत्री और अधिकारी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने पहुँचे. मीडिया ने काफी व्यापक कवरेज दी.

Monday, September 18, 2017

मंत्री जी! ज़बान संभाल के...

पेट्रोल की बढ़ती कीमतों को लेकर सरकार पहले से विरोधी दलों की मार झेल रही थी कि पर्यटन राज्यमंत्री केजे अल्फोंस के बयान ने आग में घी डाल दिया है. ब्यूरोक्रेट से राजनेता बने अल्फोंस शब्दवाण के महत्व को समझ नहीं पाए.
वे कहते कि पेट्रोल के खरीदार अर्थव्यवस्था के मददगार बनें तो उस बात को दूसरे अंदाज में लिया जाता, पर उन्होंने कहा, पेट्रोल खरीदने वाले भूखे नहीं मर रहे हैं. केवल लहजे के कारण उन्होंने बात बिगाड़ ली.
बयान देना भी कला है
कीमतों को सही ठहराने के पीछे उनकी मंशा कितनी भी सही क्यों न हो, इस तंज को पसंद नहीं किया जाएगा. अलफोंस काबिल अफसर रहे हैं और मंत्री के रूप में उनकी छवि भी अच्छी है, पर उन्हें समझना होगा कि राजनीति में साफगोई की सीमाएं हैं.
कुछ दिन पहले ही बीफ को लेकर उन्होंने ऐसा ही एक बयान दिया था, जिसे लेकर सोशल मीडिया में हलचल मची रही. उन्होंने कहा था, विदेशी पर्यटक भारत आना चाहते हैं तो वे अपने देश में ही बीफ खाकर आएं.

Sunday, September 17, 2017

राहुल का पुनरागमन

राहुल गांधी ने अपने पुनरागमन की सूचना अमे‍रिका के बर्कले विश्वविद्यालय से दी है। पुनरागमन इसलिए कि सन 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के वक्त उन्होंने भारतीय राजनीति में पूरी छलांग लगाई थी। पर उस चुनाव में वे विफल रहे। इसके बाद जनवरी 2013 में पार्टी के जयपुर चिंतन शिविर में उन्हें एक तरह से पार्टी की बागडोर पूरी तरह सौंप दी गई, जिसकी पूर्णाहुति 2014 की ऐतिहासिक पराजय में हुई। उसके बाद से उनका मेक-ओवर चल रहा है।

राहुल ने जिस मौके पर पार्टी के नेतृत्व की जिम्मेदारी हाथ में लेने का निश्चय किया है, वह बहुत अच्छा नहीं है। उनकी पहचान चुनाव जिताऊ नेता की नहीं है। हालांकि उन्होंने टेक्स्ट बुक स्टाइल में राजनीति की शुरुआत की थी, पर उनका पहला राउंड पूरी तरह विफल रहा है। अगले दौर में वे किस तरह सामने आएंगे, यह अभी स्पष्ट नहीं है।

कांग्रेसी तुरुप का आखिरी पत्ता

अमेरिका के बर्कले विश्वविद्यालय में राहुल गांधी ने पार्टियों में वंशवाद से जुड़े एक सवाल पर कहा कि पूरा देश ही इस रास्ते पर चलता है। उन्होंने इसके लिए अखिलेश यादव, डीएमके नेता स्टालिन से लेकर अभिनेता अभिषेक बच्चन तक के नाम गिनाए। यानी भारत में ज्यादातर पार्टियाँ वंशवाद पर चलती हैं, इसलिए हमें ही दोष मत दीजिए। अंबानी अपना बिजनेस चला रहे हैं और इन्फोसिस में भी यही चल रहा है।

राहुल गांधी ने तमाम सवालों के जवाब दिए। पर उनका उद्देश्य बीजेपी पर प्रहार करना था। उन्होंने कहा, देश ने बीते 70 साल में जितनी तरक्की हासिल की है, उसे सिर उठा रहे ध्रुवीकरण और नफरत की राजनीति रोकने का काम कर रही है। उदार पत्रकारों की हत्या की जा रही है, दलितों को पीटा जा रहा है, मुसलमानों और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है। अहिंसा का विचार खतरे में है।

उनकी बर्कले वक्तृता उन्हें राजनीतिक मंच पर लाने की अबतक की सबसे बड़ी कोशिश है। शायद वे जल्द ही पार्टी अध्यक्ष पद भी संभालें। सन 2004 में यानी अब से 13 साल पहले जब उन्हें लांच करने का मौका आया था, तब उनकी उम्र 34 साल थी। तब शायद यह लगा होगा कि उनके लिए समय उपयुक्त नहीं है। पर उसके बाद जब भी उन्हें लांच करने का मौका आया, उन्होंने खुद हाथ खींच लिए।

सवाल मेरिट की उपेक्षा का है

भाई-भतीजावाद, दोस्त-यारवाद, वंशवाद, परिवारवाद वगैरह का मतलब होता है मेरिट यानी काबिलीयत की उपेक्षा। यानी जो होना चाहिए, उसका न होना। जीवन में काम बनाने के लिए भी हमें रिश्ते चाहिए। गाड़ी का चालान हो गया, फलां के अंकल दरोगा हैं। जुगाड़ का पूरा तंत्र है, जिसे ‘नेटवर्किंग’ कहते हैं। जब हमारा काम नहीं बनता तब हमें शिकायत होती है कि किसी दूसरे का काम ‘भाई-भतीजावाद’ की वजह से हो गया। तब हमारा मन उदास होता है। काबिलीयत के प्रमाणपत्र लेकर हम घर वापस लौट आते हैं।

यह अंतिम सत्य नहीं है। अंतिम सत्य है काबिलीयत। ज्यादा महत्वपूर्ण वह व्यवस्था है, जो काबिलीयत की कद्र करे। पर दुनिया की अच्छी से अच्छी व्यवस्था में भी खानदान का दबदबा है। ‘पेडिग्री’ सिर्फ पालतू जानवरों की नहीं होती। इन दिनों फिल्म जगत में कँगना रनौत ने इस प्रवृत्ति के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। खानदान के सहारे जो ऊपर पहुँच जाते हैं, वे मानते हैं कि भारत में ऐसा ही चलता है। किसी के पास प्रतिभा हो और सहारा भी मिले तो आगे बढ़ने में देर नहीं लगती। पर खच्चर को अरबी घोड़ा नहीं बनाया जा सकता। यह सामाजिक अन्याय भी है, पर है। यह भी सच है कि प्रतिभा, लगन और धैर्य का कोई विकल्प नहीं है।