Sunday, April 24, 2016

तलवारें अब म्यान से बाहर हैं...

उत्तराखंड को लेकर अगले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला आए, यह मामला खत्म होने वाला नहीं है। बल्कि समर अब तेज होगा। तलवारें खिंच चुकी हैं और पेशबंदियाँ चल रहीं हैं। उत्तराखंड के अलावा मणिपुर, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी के भीतर बगावत के स्वर ऊँचे हो रहे हैं। यह सब बीजेपी के कांग्रेस मुक्त अभियान के तहत भी हो रहा है। दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी अस्तित्व रक्षा के लिए पूरी तरह मैदान में उतरने जा रही है। इसके लिए उसने नीतीश कुमार के संघ मुक्त भारत अभियान में शामिल होने का फैसला किया है। वस्तुतः यह कांग्रेस का हमें बचाओ अभियान भी है। बंगाल में कांग्रेस और वामदलों का गठबंधन यदि सफल हुआ तो राजनीति की दिशा बदल भी सकती है। 

Saturday, April 23, 2016

पेचीदगियों से भरा ‘संघ मुक्त भारत’ अभियान

लोकतंत्र की रक्षा के लिए नीतीश कुमार ‘संघ मुक्त’ भारत कार्यक्रम लेकर आ रहे हैं। पर उसके पहले वे राष्ट्रीय स्तर पर अपनी उपस्थिति को बेहतर बनाना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने सबसे पहले अपने दल की राष्ट्रीय अध्यक्षता को सम्हाला है। वे जल्द से जल्द बीजेपी विरोधी दलों की व्यापक एकता के केन्द्र में आना चाहते हैं। वे कहते हैं कि यह काम कई तरह से होगा। कुछ दलों का आपस में मिलन भी हो सकता है। कई दलों का मोर्चा और गठबंधन भी बन सकता है। कोई एक संभावना नहीं है, अनेक संभावनाएं हैं। इस मोर्चे की प्रक्रिया और पद्धति का दरवाजा खुला है। पिछले पचासेक साल से यह प्रक्रिया चल रही है। बहरहाल अब नीतीश कुमार ने इसमें कांग्रेस को भी शामिल करके इसे नई दिशा दी है। जिससे इस अवधारणा के अंतर्विरोध बढ़ गए हैं।

Monday, April 18, 2016

विदेशी विश्वविद्यालयों की एक और दस्तक

विदेशी शिक्षा संस्थान फिर से दस्तक दे रहे हैं. खबर है कि नीति आयोग ने देश में विदेशी विश्वविद्यालयों के कैम्पस खोले जाने का समर्थन किया है. आयोग ने पीएमओ और मानव संसाधन मंत्रालय के पास भेजी अपनी रपट में सुझाव दिया है कि विश्व प्रसिद्ध विदेशी शिक्षा संस्थाओं को भारत में अपने कैम्पस खोलने का निमंत्रण देना चाहिए. खास बात यह है कि आयोग ने यह रपट अपनी तरफ से तैयार नहीं की है. मानव संसाधन मंत्रालय और पीएमओ की यह पहल है.

Sunday, April 17, 2016

बाधा दौड़ में मोदी

मोदी सरकार आने के बाद से असहिष्णुता बढ़ी है, अल्पसंख्यकों का जीना हराम है, विश्वविद्यालयों में छात्र परेशान हैं और गाँवों में किसान। यह बात सही है या गलत, विपक्ष ने इस बात को साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। बावजूद इसके नरेन्द्र मोदी के प्रशंसक अभी तक उनके साथ हैं। उनकी खुशी के लिए पिछले हफ्ते राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक मोर्चों से एकसाथ कई खबरें मिलीं हैं, जो सरकार का हौसला भी बढ़ाएंगी। पहली खबर यह कि इस साल मॉनसून सामान्य से बेहतर रहेगा। यह घोषणा मौसम दफ्तर ने की है। दूसरी खबर यह है कि खनन, बिजली तथा उपभोक्ता सामान के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन से औद्योगिक उत्पादन में फरवरी के दौरान 2.0% की वृद्धि हुई है। इससे पिछले तीन महीनों में इसमें गिरावट चल रही थी।

Wednesday, April 13, 2016

प्रगति करनी है तो बैंकों को बदलिए

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सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को व्यक्तियों और इकाइयों पर बैंकों के बकाया कर्ज के बारे में रिजर्व बैंक की ओर दी गई जानकारी सार्वजनिक करने की मांग के पक्ष में  नजर आया। पर आरबीआई ने गोपनीयता के अनुबंध का मुद्दा उठाते हुए इसका विरोध किया। मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर और न्यायमूर्ति आर भानुमती के पीठ ने कहा- इस सूचना के आधार पर एक मामला बनता है। इसमें उल्लेखनीय राशि जुड़ी है। मालूम हो कि रिजर्व बैंक ने मंगलवार को सील बंद लिफाफे में उन लोगों के नाम अदालत के समक्ष पेश किए जिन पर मोटा कर्ज बाकी है। इस सूचना को सार्वजनिक करने की बात पर भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से इसका विरोध किया गया। केंद्रीय बैंक ने कहा कि इसमें गोपनीयता का अनुबंध जुड़ा है और इन आँकड़ों को सार्वजनिक कर देने से उसका अपना प्रभाव पड़ेगा। पीठ ने कहा कि यह मुद्दा महत्त्वपूर्ण है, लिहाजा अदालत इसकी जांच करेगी कि क्या करोड़ों रुपए के बकाया कर्ज का खुलासा किया जा सकता है। साथ ही इसने इस मामले जुड़े पक्षों से विभिन्न मामलों को निर्धारित करने को कहा जिन पर बहस हो सकती है। पीठ ने इस मामले में जनहित याचिका का दायरा बढ़ा कर वित्त मंत्रालय और इंडियन बैंक्स एसोसिएशन को भी इस मामले में पक्ष बना दिया है। इस पर अगली सुनवाई 26 अप्रैल को होगी। याचिका स्वयंसेवी संगठन सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन ने 2003 में दायर की थी। पहले इसमें सार्वजनिक क्षेत्र के आवास एवं नगर विकास निगम (हडको) द्वारा कुछ कंपनियों को दिए गए कर्ज का मुद्दा उठाया गया था। याचिका में कहा गया है कि 2015 में 40000 करोड़ रुपए के कर्ज बट्टे-खाते में डाल दिए गए थे। अदालत ने रिजर्व बैंक से छह हफ्ते में उन कंपनियों की सूची मांगी है जिनके कर्जों को कंपनी ऋण पुनर्गठन योजना के तहत पुनर्निर्धारित किया गया है। पीठ ने इस बात पर हैरानी जताई कि पैसा न चुकाने वालों से वसूली के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए।

 
हम विजय माल्या को लेकर परेशान हैं। वे भारत आएंगे या नहीं? कर्जा चुकाएंगे या नहीं? नहीं चुकाएंगे तो बैंक उनका क्या कर लेंगे वगैरह। पर समस्या विजय माल्या नहीं हैं। वे समस्या के लक्षण मात्र हैं। समस्या है बैंकों के संचालन की। क्या वजह है कि सामान्य नागरिक को कर्ज देने में जान निकल लेने वाले बैंक प्रभावशाली कारोबारियों के सामने शीर्षासन करने लगते हैं? उन्हें कर्ज देते समय वापसी के सुरक्षित दरवाजे खोलकर नहीं रखते। बैंकों के एक बड़े पुनर्गठन का समय आ गया है। यह मामला इस हफ्ते सुप्रीम कोर्ट में उठ रहा है। चार रोज पहले इस काम के लिए गठित बैंक बोर्ड ब्यूरो (बीबीबी) ने अपनी पहली बैठक में जरूरी पहल शुरू कर दी है।