Sunday, May 6, 2012

एनसीटीसी की भैंस चली गई पानी में

सतीश आचार्य का कार्टून
नेशनल काउंटर टेररिज्म सेंटर पर शनिवार को हुई बैठक से जिन्होंने उम्मीदें लगा रखी थीं, उन्हें निराशा हाथ लगी। कोई भी पक्ष अपनी बात से हिलता नज़र नहीं आ रहा है। खासतौर से जो इसके विरोधी हैं उनके रुख में सख्ती ही आई है। मसलन ममता बनर्जी और जयललिता चाहती हैं कि पहले इसकी अधिसूचना वापस ली जाए। केन्द्र सरकार ने सावधानी बरती होती तो यह केन्द्र-राज्य सम्बन्धों का मामला नहीं बनता। पर अब बन गया है। फिलहाल इसमें किसी बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं लगती।

Thursday, May 3, 2012

हाईस्पीड रेलगाड़ियाँ यानी तेज रफ्तार शहरीकरण




शहरीकरण समस्या है या समस्याओं का समाधान है? पहली बात यह कि आर्थिक गतिविधियों के केन्द्र शहर हैं, गाँव नहीं हैं। दूसरे खेती में क्रांति के लिए भी औद्योगिक क्रांति की ज़रूरत है। खेती में विकास दर बढ़ भी जाए, पर गाँवों के विकास का रास्ता दिखाई नहीं पड़ता। गाँवों से शहर आए लोग तमाम दिक्कतों से जूझने के बावजूद गाँव वापस नहीं जाना चाहते। पर शहरीकरण विषमता और तमाम समस्याएं लेकर आता है। हमें मानवीय चेहरे वाले शहरीकरण की ज़रूरत है, जो प्रदूषण मुक्त हो और जहाँ गरीबों को सम्मान और सुख से जीने के साधन मुहैया हों। 

Wednesday, May 2, 2012

क्या मीडिया ने भी आरुषी मामले को उलझाया?




ऐसा लगता है कि आरुषी मामले में मीडिया ने तलवार परिवार को दोषी मान लिया है।बेशक  इस मामले को जटिल और विकृत बनाने में पुलिस और सीबीआई की भूमिका सबसे बड़ी है, पर मीडिया को रिपोर्ट करते वक्त समझदारी से काम भी करना चाहिए।

Monday, April 30, 2012

तड़कामार कल्चर में सचिन का सम्मान

मंजुल का कार्टून
सचिन तेन्दुलकर इस वक्त देश के सबसे बड़े खेल-प्रतीक हैं। अच्छे खिलाड़ी हैं। और सिर्फ आँकड़ों पर भरोसा करें तो दुनिया के सार्वकालिक सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी हैं। पिछले साल उन्हें भारत रत्न देने की मुहिम शुरू हुई थी। वह मिल भी जाता, पर किसी ने ध्यानचंद का नाम हवा में उछाल दिया और वह मुहिम ठंडी पड़ गई। सचिन को क्या-क्या नहीं मिलना चाहिए इस पर कई तरह की राय है। खासतौर से उन्हें राज्यसभा का सदस्य बनाए जाने पर कुछ लोगों ने इसके राजनीतिक निहितार्थ खोजे हैं।

पाकिस्तानी लोकतंत्र की परीक्षा

जिसकी उम्मीद थी वही हुआ। पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री युसुफ रज़ा गिलानी को अदालत की अवमानना का दोषी पाया। उन्हें कैद की सज़ा नहीं दी गई। पर अदालत उठने तक की सज़ा भी तकनीकी लिहाज से सजा है। पहले अंदेशा यह था कि शायद प्रधानमंत्री को अपना पद और संसद की सदस्यता छोड़नी पड़े, पर अदालत ने इस किस्म के आदेश जारी करने के बजाय कौमी असेम्बली के स्पीकर के पास अपना फैसला भेज दिया है। साथ ही निवेदन किया है कि वे देखें कि क्या गिलानी की सदस्यता खत्म की जा सकती है।