Sunday, June 19, 2016

बहुत देर कर दी हुज़ूर आते-आते

 दिल्ली के सियासी हलकों में खबर गर्म है कि कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री पद की प्रत्याशी के रूप में पेश कर सकती हैं। शुक्रवार को उनकी सोनिया गांधी के साथ मुलाकात के बाद इस सम्भावना को और बल मिला है। इसमें असम्भव कुछ नहीं। शीला दीक्षित कांग्रेस के पास बेहतरीन सौम्य और विश्वस्त चेहरा है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को जैसा चेहरा चाहिए वैसा ही। गुलाम नबी आजाद को उत्तर प्रदेश का गुलाम प्रभारी बनाना पार्टी का सूझबूझ भरा कदम है।

कांग्रेस का आखिरी दाँव

कांग्रेस के पास अब कोई विकल्प नहीं है। राहुल गांधी की सफलता या विफलता  भविष्य की बात है, पर उन्हें अध्यक्ष बनाने के अलावा पार्टी के पास कोई रास्ता नहीं बचा। सात साल से ज्यादा समय से पार्टी उनके नाम की माला जप रही है। अब जितनी देरी होगी उतना ही पार्टी का नुकसान होगा। हाल के चुनावों में असम और केरल हाथ से निकल जाने के बाद डबल नेतृत्व से चमत्कार की उम्मीद करना बेकार है। सोनिया गांधी अनिश्चित काल तक कमान नहीं सम्हाल पाएंगी। राहुल गांधी के पास पूरी कमान होनी ही चाहिए।

राहुल के अध्यक्ष बनने के बाद अब प्रियंका गांधी को लाने की माँग भी नहीं उठेगी। शक्ति के दो केन्द्रों का संशय नहीं होगा। कांग्रेस अब बाउंसबैक करे तो श्रेय राहुल को और डूबी तो उनका ही नाम होगा। हालांकि कांग्रेस की परम्परा है कि विजय का श्रेय नेतृत्व को मिलता है और पराजय की आँच उसपर पड़ने से रोकी जाती है। सन 2009 की जीत का श्रेय मनमोहन सिंह के बजाय राहुल को दिया गया और 2014 की पराजय की जिम्मेदारी सरकार पर डाली गई।

Wednesday, June 15, 2016

इमेज बदलती भाजपा


भारतीय जनता पार्टी का फिलहाल सबसे बड़ा एजेंडा है पैन-इंडिया इमेजबनाना। उसे साबित करना है कि वह केवल उत्तर भारत की पार्टी नहीं है। पूरे भारत की धड़कनों को समझती है। हाल के घटनाक्रम ने उम्मीदों को काफी बढ़ाया है। एक तरफ उसे असम की जीत से हौसला मिला है, वहीं मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस गहराती घटाओं से घिरी है। भाजपा के बढ़ते आत्मविश्वास की झलक इलाहाबाद में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में देखने को मिली, जहाँ एक राजनीतिक प्रस्ताव में कहा गया कि अब देश में केवल बीजेपी ही राष्ट्रीय आधार वाली पार्टी है। वह तमाम राज्यों में स्वाभाविक सत्तारूढ़ पार्टी है। कांग्रेस दिन-ब-दिन सिकुड़ रही है। शेष दलों की पहुँच केवल राज्यों तक सीमित है।

Monday, June 13, 2016

सेंसर की जरूरत क्या है?

पंजाब ड्रग्स के कारोबार की गिरफ्त में है. और इस कारोबार में राजनेता भी शामिल हैं. यह बात मीडिया में चर्चित थी, पर उड़ता पंजाब ने इसे राष्ट्रीय बहस का विषय बना दिया. गोकि बहस अब भी फिल्म तक सीमित है. केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड को बोलचाल में सेंसर बोर्ड कहते हैं. पर प्रमाण पत्र देने और सेंसर करने में फर्क है. फिल्म सेंसर को लेकर लम्बे अरसे से बहस है. इसमें सरकार की भूमिका क्या है? बोर्ड सरकार का हिस्सा है या स्वायत्त संस्था? जुलाई 2002 में विजय आनन्द ने बोर्ड का अध्यक्ष पद छोड़ते हुए कहा था कि सेंसर बोर्ड की कोई जरूरत नहीं. तकरीबन यही बात श्याम बेनेगल ने दूसरे तरीके से अब कही है.

Sunday, June 12, 2016

मोदी के दौरे के बाद का भारत


नरेन्द्र मोदी की विदेश यात्राओं को भारतीय राजनीति अपने तरीके से देखती है। उनके समर्थक और विरोधी अपने-अपने तरीके से उनका आकलन करते हैं, पर दुनिया के देशों में उन्हें सफल प्रधानमंत्री के रूप में देखा जा रहा है। उन्हें ऊर्जा, गति और भारत की उम्मीदों के साथ जोड़ा जा रहा है। संयोग से वे ऐसे दौर में भारत के प्रधानमंत्री बने हैं जब दुनिया को भारत की जरूरत है। एक तरफ चीन की अर्थ-व्यवस्था की तेजी खत्म हो रही है और यूरोप तथा लैटिन अमेरिकी देश किसी तरह अपना काम चला रहे हैं भारतीय अर्थ-व्यवस्था क्रमशः गति पकड़ रही है।

प्रधानमंत्री का पाँच देशों का दौरा विदेश नीति के निर्णायक मोड़ का संकेत भी कर रहा है।  इस यात्रा के तमाम पहलू दक्षिण एशिया के बाहर रहे, पर केन्द्रीय सूत्र दक्षिण एशिया की आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था से ही जुड़ा था। इस यात्रा का हर पड़ाव महत्वपूर्ण था, पर स्वाभाविक रूप से सबसे ज्यादा ध्यान अमेरिका यात्रा ने खींचा। दो साल के अपने कार्यकाल में नरेंद्र मोदी दूसरी  बार अमेरिका के आधिकारिक दौरे पर यानी ह्वाइट हाउस गए थे। अलबत्ता यह उनकी चौथी अमेरिका यात्रा था। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से यह उनकी सातवीं मुलाकात थी। इस दौरे में अमेरिकी संसद में उनका भाषण भी एक महत्वपूर्ण बात थी।

Thursday, June 9, 2016

नाभिकीय अप्रसार और भारत





The New York Times Trips Up on India and the NSG



India must be held accountable for the commitments it made in 2005, when the nuclear deal with the United States was first struck, and not for the sins of others.


The New York Times is free to take whatever position it likes on any issue and if it believes India should not be admitted into the Nuclear Suppliers Group, it has every right to write an editorial advocating ‘No Exceptions for a Nuclear India’.

What it ought not to do is build its argument on faulty analysis, misrepresentation and factual inaccuracies. What follows is a paragraph-by-paragraph explanation of how the newspaper – that I have read and liked for years – has gone wrong, horribly wrong in this editorial.

Para 1
America’s relationship with India has blossomed under President Obama, who will meet with Prime Minister Narendra Modi this week. Ideally, Mr. Obama could take advantage of the ties he has built and press for India to adhere to the standards on nuclear proliferation to which other nuclear weapons states adhere.

Here, the NYT makes a huge assumption: that there are “standards on nuclear proliferation to which other nuclear weapons states adhere” and to which India doesn’t. The ‘other nuclear weapons states’ are the United States, Russia, China, France and Britain (the N-5). The main standard to which the N-5 are meant to adhere is the prescription set out in Article 1 of the Treaty on the Non-Proliferation of Nuclear Weapons (NPT)  to not provide nuclear weapons or knowhow or assistance to non-nuclear weapon states. Article 6 also applies to them but is
non-binding: to “pursue negotiations in good faith on effective measures relating to cessation of the nuclear arms race at an early date and to nuclear disarmament, and on a treaty on general and complete disarmament under strict and effective international control.”


Sunday, June 5, 2016

लोकतंत्र खरीद लो!

एक स्टिंग ऑपरेशन में कर्नाटक के कुछ विधायक राज्यसभा चुनाव में वोट के लिए पैसे माँगते देखे गए हैं। इस मसले पर मीडिया में चर्चा बढ़ती कि तभी मथुरा में जमीन पर कब्जा छुड़ाने की कोशिश में हुआ खून-खराबा खबरों पर छा गया। यह मामला खून-खराबे से ज्यादा खौफनाक है। चुनाव आयोग ने पूरे मामले की जाँच शुरू कर दी है। आयोग क्या फैसला करेगा? और उससे होगा क्या? ज्यादा से ज्यादा चुनाव की प्रक्रिया रद्द हो जाएगी। देश से भ्रष्टाचार दूर करने का संकल्प बगैर राजनीतिक संकल्प के पूरा नहीं होगा। और जब राजनीति इतने खुलेआम तरीके से भ्रष्टाचार का सहारा लेगी तो किसपर भरोसा किया जाए?

Friday, June 3, 2016

कई पहेलियों का हल निकालना होगा राहुल को

कांग्रेस पार्टी की जिम्मेदारी अब राहुल गांधी के कंधों पर पूरी तरह आने वाली है. एक तरह से यह मौका है जब राहुल अपनी काबिलीयत साबित कर सकते हैं. पार्टी लगातार गिरावट ढलान पर है. वे इस गिरावट को रोकने में कामयाब हुए तो उनकी कामयाबी होगी. वे कामयाब हों या न हों, यह बदलाव होना ही था. फिलहाल इससे दो-तीन बातें होंगी. सबसे बड़ी बात कि अनिश्चय खत्म होगा. जनवरी 2013 के जयपुर चिंतन शिविर में उन्हें पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया गया था, तब यह बात साफ थी कि वे वास्तविक अध्यक्ष हैं. पर व्यावहारिक रूप से पार्टी के दो नेता हो गए. उसके कारण पैदा होने वाला भ्रम अब खत्म हो जाएगा.

Tuesday, May 31, 2016

पत्रकारिता की आत्मा व्यवस्था-विरोधी होगी, अखबार भले न हों

हिन्दी अख़बार के 190 साल पूरे हो गए. हर साल हम हिन्दी पत्रकारिता दिवस मनाकर रस्म अदा करते हैं. हमें पता है कि कानपुर से कोलकाता गए किन्हीं पं. जुगल किशोर शुक्ल ने उदंत मार्तंड अख़बार शुरू किया था. यह अख़बार बंद क्यों हुआ, उसके बाद के अख़बार किस तरह निकले, इन अखबारों की और पत्रकारों की भूमिका जीवन और समाज में क्या थी, इस बातों पर अध्ययन नहीं हुए. आजादी के पहले और आजादी के बाद उनकी भूमिका में क्या बदलाव आया, इसपर भी रोशनी नहीं पड़ी. आज ऐसे शोधों की जरूरत है, क्योंकि पत्रकारिता का एक महत्वपूर्ण दौर खत्म होने के बाद एक और महत्वपूर्ण दौर शुरू हो रहा है.

Monday, May 30, 2016

कश्मीर की इस तपिश के पीछे कोई योजना है

कश्मीर में कई साल बाद हिंसक गतिविधियाँ अचानक बढ़ीं हैं. सोपोर, हंडवारा, बारामूला, बांदीपुरा और पट्टन से असंतोष की खबरें मिल रहीं है. खबरें यह भी हैं कि नौजवान और किशोर अलगाववादी युनाइटेड जेहाद काउंसिल के नियंत्रण से बाहर हो रहे हैं. सुरक्षा दलों के साथ मुठभेड़ में मारे गए अलगाववादियों की लाशों के जुलूस निकालने का चलन बढ़ा है. इस बेचैनी को सोशल मीडिया में की जा रही टिप्पणियाँ और ज्यादा बढ़ाया है. नौजवानों को सड़कों पर उतारने के बाद सीमा पार से आए तत्व भीड़ के बीच घुसकर हिंसक गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं.

Sunday, May 29, 2016

हमारे आर्थिक विकास पर टिका है दुनिया का विकास

जिस समय मोदी सरकार के पहले दो साल का समारोह मनाया जा रहा है दुनिया आर्थिक मंदी के खतरे का सामना कर रही है। वैश्विक अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी होने और खासतौर से चीन में गाड़ी का पहिया उल्टा चलने के आसार हैं और अब दुनिया हमारी तरफ देख रही है। हाल में अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष की प्रबंध निदेशक क्रिस्टीन लैगार्ड ने इस दौर में भारत को रोशनी की किरण बताया है। उन्होंने कहा कि यह देश चालू वित्त वर्ष में 7.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करेगा और 2019 तक इसकी जीडीपी जापान और जर्मनी की संयुक्त अर्थव्यवस्था से ज्यादा हो जाएगी।

Thursday, May 26, 2016

मोदी सरकार @दो साल


 Prime Minister Narendra Modi and Bharatiya Janata Party President Amit Shah. Credit: Reuters.
मोदी सरकार के दो साल पूरे होने पर राजनीति, प्रशासन और अर्थ-व्यवस्था को एकसाथ आँका जाएगा। राजनीति का मतलब केवल चुनावों में प्रदर्शन तक सीमित नहीं है। मोदी सरकार की पिछले दो साल में सबसे बड़ी विफलता है अल्पसंख्यकों के मन में बैठा भय। एक बड़ा तबका मानता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का छिपा एजेंडा सामने आ रहा है। मुसलमान वोटर मोदी के नेतृत्व से नाराज है। पार्टी नेतृत्व ने स्थिति को सुधारने की कोशिश भी नहीं की है। बेशक बीजेपी हिन्दू राष्ट्रवाद से जुड़ी पार्टी है। उसे मुसलमानों का एकमुश्त समर्थन मिलने की उम्मीद करनी भी नहीं है, पर देश की प्रशासनिक व्यवस्था हाथ में लेने के बाद उसकी जिम्मेदारी है कि वह मुसलमानों के मन में बैठे डर को दूर करे। 

मोदी सरकार ने 'बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ', 'स्वच्छ भारत', 'मेक इन इंडिया' और 'सबका साथ-सबका विकास' जैसे नारों को लेकप्रिय बनाया। हमें देश को इन भावनाओं से जोड़ने की जरूरत है और इन बातों में नारों की भूमिका होती है। गांधी से लेकर माओ जे दुंग ने अतीत में नारों की मदद से ही अपने सामूहिक अभियान छेड़े थे। पर नारों को जमीन पर व्यावहारिक रूप से उतरना भी चाहिए। वे केवल प्रचारात्मक नारे नहीं हो सकते। जनता की उनमें भागीदारी होनी चाहिए।

मोदी सरकार बनने के बाद केन्द्र सरकार के सचिवालय में काम बढ़ा है। तमाम मंत्री अपना पूरा समय दफ्तरों में लगा रहे हैं। विदेश, बिजली, रेलवे, रक्षा, विदेश व्यापार, उद्योग, परिवहन और इसी तरह के कुछ दूसरे मंत्रालयों में काफी अच्छा काम हुआ है। बड़े नीतिगत बदलाव भी हुए हैं। संयोग से वैश्विक अर्थ-व्यवस्था के लिए खराब समय चल रहा है। इसलिए सबसे बड़ी चुनौती वित्त मंत्रालय के सामने है। आर्थिक उदारीकरण का काम धीमी गति से चल रहा है। यह गति यूपीए के शासन में भी धीमी थी। देश की राजनीतिक ताकतें उदारीकरण का मतलब अपने-अपने तरीके से निकाल रही हैं। मोदी सरकार और उससे पहले मनमोहन सरकार की कोशिश देश में पूँजी निवेश के माहौल को बेहतर बनाने की थी। मनमोहन सरकार को भी बीजेपी के अलावा अपनी ही पार्टी के विरोध का सामना करना होता था।

Monday, May 23, 2016

क्षेत्रीय क्षत्रप क्या बीजेपी के खिलाफ एक होंगे?

इस चुनाव को बंगाल में दीदी और तमिलनाडु में अम्मा की जीत के कारण याद रखा जाएगा। इनके अलावा केरल के पूर्व मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन को उनकी छवि के कारण पहचाना जाएगा। कुछ नाम और हैं जो कल तक राष्ट्रीय स्तर पर ज्यादा जाने-पहचाने नहीं हुए थे। इनमें हिमंत विश्व सरमा, सर्बानंद सोनोवाल, पी विजयन और ओ राजगोपाल शामिल हैं।

Sunday, May 22, 2016

और कितनी फज़ीहत लिखी है कांग्रेस की किस्मत में?

पांच राज्यों के चुनाव नतीजे आने के बाद कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने अपने एक ट्वीट में कहा कि बड़ी सर्जरी की जरूरत है। उन्होंने कहीं यह भी कहा कि गांधी परिवार की वंशज प्रियंका गांधी के राजनीति में आने से कांग्रेसजन को बेहद खुशी होगी। उनमें जननेता के तौर पर उभरने की क्षमता है। अखबारों में उनका यह बयान भी छपा है कि ये चुनाव परिणाम पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व की विफलता को परिलक्षित नहीं करते। तीनों बातें अंतर्विरोधी हैं। तीनों को एकसाथ मिलाकर पढ़ें तो लगता है कि पार्टी के अंतर्विरोधों के खुलने की घड़ी आ रही है। नए और पुराने नेतृत्व का टकराव नजर आने लगा है। समय रहते इसे सँभाला नहीं गया तो असंतोष खुलकर सामने आएगा।

Saturday, May 21, 2016

बीजेपी के प्रभा मंडल का विस्तार

इस चुनाव को बंगाल में ममता दीदी की विस्मयकारी और जयललिताअम्मा की अविश्वसनीय जीत के कारण याद रखा जाएगा। पर इन चुनाव परिणामों की बड़ी तस्वीर है बीजेपी के राष्ट्रीय फुटप्रिंट का विस्तार। उसके लिए पूर्वोत्तर का प्रवेश द्वार खुल गया है। वह असम की जीत को देशभर में प्रचारित करेगी। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने पूरे परिणाम आने के पहले ही इस बात को जाहिर भी कर दिया। असम के बाद पार्टी ने बंगाल में पहले से ज्यादा मजबूती के साथ पैर जमाए हैं। और केरल में उसने प्रतीकात्मक, पर प्रभावशाली प्रवेश किया है।

Friday, May 20, 2016

असम में कांग्रेस का 'सेल्फ गोल'

केरल में 'एंटी इनकम्बैंसी' थी, पर असम में कांग्रेस का सेल्फ गोल भी था. गुरुवार को चुनाव का ट्रेंड आने के थोड़ी देर बाद ही राहुल गांधी के दफ्तर ने ट्वीट किया, हम विनम्रता के साथ जनता के फैसले को स्वीकार करते हैं. चुनाव जीतने वाले दलों को मेरी शुभकामनाएं. एक और ट्वीट में उन्होंने कहा, पार्टी लोगों का भरोसा जीतने तक कड़ी मेहनत करती रहेगी. इस औपचारिक सदाशयता को अलग रखते हुए सवाल पूछें कि अब पार्टी के सामने विकल्प क्या हैं? वह ऐसा क्या करेगी, जिससे लोगों का भरोसा दोबारा जीता जा सके. पाँच राज्यों की विधानसभाओं के परिणामों का निहितार्थ अगले साल होने वाले चुनावों में नजर आएगा. 

Wednesday, May 18, 2016

बीजेपी को मिलेगा 'पैन इंडिया' इमेज बनाने का मौका

बीजेपी के पास पूरे भारत में पकड़ बनाने का मौक़ा

  • 6 घंटे पहले
पाँच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव परिणाम दोनों मुख्य राजनीतिक दलों के लिए बड़े संदेश लेकर आएंगे. इनसे पता लगेगा कि प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने की 'बीजेपी की महत्वाकांक्षा' और घटते प्रभाव के 'कांग्रेसी ख़तरे' कितने वास्तविक हैं.
ये क्षेत्रीय चुनाव हैं. इनका आपस में कोई रिश्ता नहीं है, पर इनके भीतर छिपा राष्ट्रीय संदेश भी होगा. दोनों पार्टियों को इन परिणामों के मद्देनजर कुछ बड़े फैसले करने होंगे. शायद कांग्रेस अब राहुल गांधी को पार्टी का पूर्ण अध्यक्ष घोषित कर दे.
नरेंद्र मोदी के समर्थकImage copyrightEPA
पिछले साल बिहार में बीजेपी की पराजय का कोई संदेश था तो असम में जीत का संदेश भी होगा. इससे बीजेपी को 'पैन इंडिया' छवि बनाने का मौका मिलेगा.
अलबत्ता यह देखना होगा कि दोनों पार्टियाँ इन परिणामों को लेकर किस तरह दिल्ली वापस आएंगी और अपने समर्थकों को क्या संदेश देंगी. ये परिणाम अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों को भी प्रभावित करेंगे. खासतौर से उत्तर प्रदेश को.
Image copyrightP M TEWARI
इन परिणामों से क्षेत्रीय राजनीति के बदलते समीकरणों पर भी रोशनी पड़ेगी. दो महत्वपूर्ण महिला क्षत्रपों का भविष्य भी इन चुनावों से जुड़ा है. फिलहाल 'दीदी' की राजनीति उठान पर और 'अम्मा' की ढलान पर जाती नज़र आती है.
इस बात का संकेत भी मिलेगा कि 34 साल तक वाममोर्चे का गढ़ रहा पश्चिम बंगाल क्या 'वाम मुक्त भारत' का नया मुहावरा भी देगा? यह सवाल उठेगा कि वामपंथी पार्टियों की राष्ट्रीय अपील घटते-घटते हिन्द महासागर के तट से क्यों जा लगी है?
इन परिणामों में जो नई बातें जाहिर होंगी, उनमें सबसे महत्वपूर्ण है भारतीय जनता पार्टी का चार राज्यों में प्रदर्शन. असम में यदि उसे पूर्ण बहुमत मिला या वह सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी तो यह एक नई शुरूआत होगी.
यह सफलता उसे असम की जटिल जातीय और क्षेत्रीय संरचना और 'अपने-पराए' पर केंद्रित राजनीति के कारण मिलेगी. यह शेर की सवारी है, आसान नहीं. पिछले तीन दशक से असम किसी न किसी प्रकार के आंदोलनों से घिरा है. बीजेपी के लिए यह एक अवसर साबित हो सकता है और काँटों का ताज भी.


Tuesday, May 17, 2016

चुनावी चंदे की पारदर्शिता का सवाल

बीजेपी और कांग्रेस तमाम मुद्दों पर एक दूसरे के विरोधी हैं, पर विदेशी चंदे को लेकर एक दूसरे से सहमत हैं. ये दोनों पार्टियाँ विदेशी चंदा लेती हैं, जो कानूनन उन्हें नहीं लेना चाहिए. इसी तरह राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार के दायरे से बाहर रखने के मामले में भी दोनों दलों की राय एक है. हाल की कुछ घटनाएं चेतावनी दे रहीं हैं कि चुनावी चंदे की व्यवस्था को पारदर्शी बनाने का समय आ गया है.

भारत की चुनाव व्यवस्था दुनिया में काले पैसे से चलने वाली सबसे बड़ी व्यवस्था है. जिस व्यवस्था की बुनियाद में ही काला धन हो उससे सकारात्मक बदलाव की उम्मीद कैसे की जा सकती है? दो साल पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने विदेशी कम्पनी वेदांता से चुनावी चंदा लेने के लिए दो राष्ट्रीय पार्टियों कांग्रेस और बीजेपी को दोषी पाया था. 28 मार्च, 2014 को अदालत ने फ़ैसले पर अमल के लिए चुनाव आयोग को छह महीने की वक़्त दिया.

Sunday, May 15, 2016

संसद की संतुलित भूमिका

बजट सत्र में भी शेष प्रश्न बना रहा जीएसटी


संसदImage copyrightAFP
देश में भयावह सूखे का क़हर, जेएनयू-हैदराबाद विश्वविद्यालयों की अशांति, पठानकोट से लेकर इशरत जहां मामलों की सरगर्मी और अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकॉप्टरों की गूँज के बावजूद संसद का बजट सत्र अपेक्षाकृत शालीन रहा और कामकाज भी हुए. लेकिन जीएसटी क़ानून फिर भी पास नहीं हुआ.
यह क़ानून उपयोगी है तो पास क्यों नहीं होता? नरेंद्र मोदी ने राज्यसभा में सेवानिवृत्त हो रहे सांसदों से कहा कि आपके रहते बिल पास होता तो बेहतर था. सत्ता और विपक्ष के बीच अविश्वास क़ायम है.
मॉनसून और शीत सत्रों के पेशेनज़र राष्ट्रपति के अभिभाषण में इस बार प्रतीकों के सहारे कहा गया था कि संसद चर्चा के लिए है, हंगामे के लिए नहीं. शीत सत्र के आख़िरी दिन राज्यसभा के सभापति ने भी इसी आशय की बात कही थी.
इन बातों का असर हुआ. हालांकि तीखी बहस, कटाक्ष और आक्षेप फिर भी हुए. धरना-बहिष्कार भी. लेकिन काम चलता रहा. लोकसभा में एक मिनट का भी गतिरोध नहीं हुआ, जिसके लिए अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने सदन का शुक्रिया अदा किया.
लोकसभाImage copyrightLOKSABHA TV
सत्ता-पक्ष ने भी फ्लोर मैनेजमेंट की कोशिशें कीं. क्षेत्रीय दलों से अलग बात की गई. कांग्रेस भी नरम पड़ी. पिछले दो सत्रों में कामकाज न होने का ठीकरा उसके सिर फोड़ा गया था.
सत्र का दूसरा भाग तकनीकी तौर पर 'नया सत्र' था. उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए पहले दौर के बाद सत्रावसान कर दिया गया था.
पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के मुताबिक बजट सत्र में लोकसभा की उत्पादकता 121 फीसदी और राज्यसभा की लगभग 100 फीसदी के आसपास रही.
लोकसभा के प्रश्नोत्तर काल की उत्पादकता 27 फीसदी रही जो पिछले 15 वर्षों में सबसे ज्यादा है. आँकड़ों में यह सफलता है, पर संसदीय कर्म का मर्म केवल आँकड़ों से नहीं समझा जा सकता.
सहमति-सद्भाव हो तो काम कितने अच्छे तरीके से होता है इसकी मिसाल बना राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय पूसा, समस्तीपुर को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने वाला विधेयक.
प्रणब मोदी परिकरImage copyrightAP
एक ही दिन में दोनों सदनों से यह पास हो गया. उसी दिन राष्ट्रपति के हस्ताक्षर भी इसपर हो गए.
बैंकरप्सी कोड का पास होना इस सत्र की महत्वपूर्ण उपलब्धि है. उदारीकरण से जुड़े क़ानूनों में यह भी एक है. इसकी ज़रूरत ऐसे समय में महसूस की गई जब देश बैंकों की बड़ी धनराशि बट्टेखाते में जाने के कारण चिंतित है.
यह क़ानून बनने से बीमार कंपनियों के लिए अपना बिजनेस समेटना आसान हो जाएगा. अभी कंपनी बंद करने में करीब चार साल लगते हैं. अब यह समय घटकर एक साल रह जाएगा.
दिवालिया कंपनियों से कर्ज़ की वसूली आसान होगी. कारोबार में सरलता और सिस्टम में पारदर्शिता आएगी.
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने हाल ही में कहा है कि भारत के लिए जीएसटी, भूमि और श्रम सुधार से जुड़े क़ानूनों में बदलाव बेहद ज़रूरी है. उदारीकरण से जुड़े क़ानून अब भी अटके हुए हैं.
भूमि अधिग्रहण क़ानून में संशोधन पर सहमति नहीं बन पाई है. उससे जुड़ी संयुक्त संसदीय समिति की सिफ़ारिशें आने में देर हो रही है. शायद मॉनसून सत्र में आएं.

बिहार को लेकर अंदेशा

बिहार में जंगलराज भले न हो, पर वहाँ मंगलराज भी नहीं है। सच बात है कि रोडरेज में दिल्ली में जितनी हत्याएं होती है, उतनी बिहार में नहीं होतीं। पर दिल्ली, दिल्ली है। यहाँ के हालात अलग हैं। बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने जिस अंदाज में यह बात कही है, उससे अहंकार की बदबू आती है। किशोर आदित्य सचदेव के साथ यह अन्याय है। कार को ओवरटेक करने पर हत्या करने वाले के अहंकार पर गौर करने की जरूरत है। इस हत्या और उसके बाद सीवान में पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या से जाहिर यह हो रहा है कि अपराधियों के मन में राज-व्यवस्था का खौफ नहीं है। विकास की दौड़ में पिछड़ चुके बिहार को आगे आना है तो इसके लिए ऐसा माहौल बनाना होगा, जिसमें निवेशक बगैर डरे यहाँ प्रवेश करें।

Saturday, May 14, 2016

कांग्रेसी छतरी में छेद

सन 2014 की ऐतिहासिक पराजय के दो साल अगले हफ्ते पूरे होने जा रहे हैं। इन दो साल में पार्टी ढलान पर उतरती ही गई है। गुजरे दो साल में एक भी घटना ऐसी नहीं हुई, जिससे पार्टी की पराजित आँखों में रोशनी दिखाई पड़ी हो। पिछले दो साल में हुए चुनावों में उसे कहीं सफलता नहीं मिली। बिहार विधानसभा में उसकी स्थिति बेहतर जरूर हुई है, पर दूसरों के सहारे। उसके पीछे कांग्रेस की रणनीति नहीं थी। फिलहाल अकेले दम पर जीतने की कोई योजना उसके पास नहीं है। अब वह उत्तर भारत में गठबंधनों के सहारे वैतरणी पार करना चाहती है।

Tuesday, May 10, 2016

उत्तराखंड में जारी रहेगी अस्थिरता

उत्तराखंड की सबसे बड़ी त्रासदी है अनिश्चय। नैनीताल हाईकोर्ट ने कांग्रेस के 9 बागी विधायकों की अर्जी खारिज करके मंगलवार को होने वाले शक्ति परीक्षण को रोचक बना दिया है। विधायकों को उम्मीद थी कि शायद उनकी सदस्यता बहाल हो जाए। उन्हें वोट का अधिकार मिलता तो मुकाबला एकतरफा हो जाता। अदालत के इस फैसले के बाद अस्थिरता और ज्यादा गहरी हो जाएगी। हरीश रावत के पक्ष में यदि बहुमत विधायक वोट डाल भी देंगे तब भी यह कहना मुश्किल है कि अगले साल चुनाव होने तक वे अपने पद पर बने रहेंगे। कांग्रेस की जिस अंदरूनी कलह के कारण यह स्थिति पैदा हुई है, वह आसानी से खत्म होने वाली नहीं है। पहले तो शक्ति परीक्षण में जीतना ही मुश्किल हुआ जा रहा है। पर रावत सरकार जीत भी गई तो नेतृत्व का बने रहना मुश्किल होगा।

Sunday, May 8, 2016

क्या बीजेपी खोज पाएगी अगस्ता-गंगा का स्रोत?

रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर का कहना है कि अगस्ता-वेस्टलैंड मामला बोफोर्स जैसा साबित नहीं होगा। जैसा बोफोर्स प्रसंग में नहीं हो सका वैसा हम इस मामले में करेंगे। उनके अनुसार पूर्व वायुसेना प्रमुख एसपी त्यागी और गौतम खेतान ‘छोटे नाम’ हैं। उन्होंने तो बहती गंगा में हाथ धोया। हम पता लगा रहे हैं कि इस गंगा का स्रोत कहाँ है। क्या वास्तव में यह पता लगाया जा सकता है कि पैसा किसके पास गया? क्या बीजेपी ने इस मामले को उठाने के पहले इस बात का गणित लगाया है कि इस मामले का अंत कहाँ है? घूम-फिरकर यह मामला फुस्स साबित हुआ तो क्या होगा? क्या सरकार गांधी परिवार पर हाथ डालकर गलती करेगी? क्या सारी बातें सिर्फ माहौल बनाने के लिए की जा रही हैं? ये महत्वपूर्ण सवाल हैं और इनका जवाब समय ही देगा। पर यह तय है कि यह मामला लम्बे समय तक राजनीति में कोलाहल मचाता रहेगा।

Friday, May 6, 2016

दिल्ली पुलिस के ऑपरेशन की कवरेज

नवभारत टाइम्स
दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने 4 मई को बड़ी कामयाबी का दावा किया। उसने बड़ा ऑपरेशन करते हुए 13 व्यक्तियों को हिरासत में लिया है, जिनपर आतंकी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप है। पुलिस का दावा है कि जैश के इस इंडियन मॉड्यूल पर छह महीनों से नजर रखी जा रही थी। इस मामले की कवरेज और उसके संतुलन पर भी ध्यान देना जरूरी होगा।

स्पेशल सेल के स्पेशल सीपी अरविंद दीप के मुताबिक राजधानी क्षेत्र में बहुत दिनों से कोई विस्फोट नहीं हुआ था इसलिए ये भीड़भाड़ वाले इलाके में ये विस्फोट करने वाले थे। समय से ये मॉड्यूल सामने न आता तो दिल्ली में कोई बड़ा धमाका होना पक्का था।  पकड़े गए 13 व्यक्तियों में से साजिद को दिल्ली के चांद बाग से, समीर को यूपी के लोनी से और शाकिर को देवबंद से गिरफ्तार किया गया। इन तीनों को पुलिस ने पटियाला हाउस कोर्ट में पेश किया गया जहां से इनको 10 दिन की पुलिस कस्टडी में भेज दिया गया।

पुलिस का दावा है कि साजिद इस स्लीपर सेल का मास्टरमाइंड साजिद है। वह दिल्ली का रहने वाला है। पुलिस का कहना है कि कुछ दिनों पहले घर के बेसमेंट में आईईडी बनाते वक्त धमाका हुआ था। इसमें साजिद के हाथ में चोट लगी थी। इसके बाद से ही वह जांच एजेंसी के रडार पर आ गया था।

पकड़े गए व्यक्तियों के परिवारों और स्थानीय लोगों ने पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाए हैं। परिवारवालों का कहना है कि उनके बच्चे बेकसूर हैं। वहीं, स्पेशल सेल का कहना है कि दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल आतंकियों के इस नेटवर्क पर करीब छह महीनों से नजर रख रही थी। इस ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए स्पेशल सेल की 12 टीमें लगाई गईं, जिनमें स्पेशल सेल के 20 टॉप अफसर शामिल हैं।

ज्यादातर अखबारों में यह खबर पुलिस सूत्रों के अनुसार है। कुछ अखबारों ने चांद बाग इलाके में जाकर पकड़े गए व्यक्तियों के परिवारों से भी बात की है। इंटरनेट पर कैचन्यूज ने 5 मई को इस इलाके के लोगों से बात करके भी खबर लगाई है। कैचन्यूज के संवाददाता ने लिखा हैः-

बुधवार की सुबह दिल्ली की तेज गर्मी में एक खबर ने लगभग आग लगा दी. दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने दावा किया है कि दिल्ली के गोकलपुरी, गाज़ियाबाद के लोनी और सहारनपुर के देवबंद इलाक़ों से तीन लड़को को गिरफ्तार किया है जिनके संबंध पाकिस्तान के आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद से हैं.

सेल ने कुल 13 लड़कों को अलग-अलग इलाकों से हिरासत में लिया था. इनमें छह लड़के गोकलपुरी के चांद बाग़ इलाके के रहने वाले हैं.

स्पेशल सेल का दावा है कि इन लड़कों का जैश से संबंध का पता एजेंसी को 18 अप्रैल को चला था. गिरफ्तारी के बाद स्पेशल सेल ने इनसे पूछताछ की है. इसके बाद सेल ने कहा है कि चांद बाग़ के मुहम्मद साजिद ने पूछताछ में जैश-ए मुहम्मद से अपने संबंध कुबूल कर लिए हैं. 

स्पेशल सेल साजिद को ही इस मॉड्यूल का मुखिया बता रही है. मुहम्मद साजिद से मिली जानकारी और उसके मोबाइल से मिले नंबरों के आधार पर सेल ने बाद में इलाके के पांच और लड़कों को मंगलवार की रात 11 बजे के आसपास चांद बाग़ इलाके से हिरासत में लिया था.
इस मामले को देख रहे वकील एमएस खान का कहना है कि पुलिस ने सिर्फ तीन युवकों को गिरफ्तार किया है. संभव है कि बाकियों को जल्द ही छोड़ दिया जायेगा.

कैच न्यूज़ ने इलाके का दौरा करके गिरफ्तार युवकों की असलियत जानने की कोशिश की. जिन छह लड़कों को चांद बाग़ से पुलिस ने उठाया है. वे सभी तब्लीगी जमात से जुड़े हुए हैं. सभी पांचों वक़्त की नमाज़ के पाबंद, दीन की शिक्षा फैलाना ही इनका काम था.

जमीयत उलमा-ए-हिंद प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने कैच न्यूज़ से विशेष बातचीत में कहा है कि वह देवबंद से उठाए गए शाकिर अंसारी और एक अन्य लड़के अजीम को व्यक्तिगत रूप से जानते हैं. पुलिस हमेशा से इसी तरह लड़कों को फ्रेम करती आई है और बाद में कोर्ट ने उन्हें छोड़ दिया. मदनी ने यह घोषणा भी की कि जमीयत गिरफ्तार सभी लड़कों को कानूनी मदद मुहैया करवाएगी.
स्पेशल सेल ने अभी तक सिर्फ चांद बाग़ के मुहम्मद साजिद, लोनी के समीर अहमद और देवबंद के शाकिर अंसारी की गिरफ्तारी दिखाई है. दिल्ली की सेशन कोर्ट ने इन तीनों से पूछताछ के लिए स्पेशल सेल को 10 दिन की रिमांड दे दी है.
इस खबर पर और ज्यादा पड़ताल करने की कोशिश अभी दिखाई नहीं पड़ी है। हाँ हिन्दी के अखबारों में नवोदय टाइम्स ने भी चाँदबाग इलाके में जाकर बात की है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की कवरेज में अभी तक आरोपियों के परिवारों का दृष्टिकोण दिखाई नहीं पड़ा है। हाल में मालेगाँव धमाकों के बाबत हुए फैसले के बाद से इस प्रकार के आरोप लगे हैं कि आतंकी गतिविधियों में मुसलमान नौजवानों को पकड़ा जाता है। इस मामले की तफतीश अभी शुरू ही हुई है, इसलिए मीडिया कवरेज पर ध्यान देना जरूरी होगा कि उसका संतुलन किस प्रकार का है।अभी तक की कवरेज में मीडिया की ओर से पुलिस से प्रति-प्रश्न नहीं किए गए है।



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Wednesday, May 4, 2016

कैसे होगा कांग्रेस का ‘बाउंसबैक?’

कितना कठिन है कांग्रेस की वापसी का रास्ता


सोनिया, राहुल गांधीImage copyrightReuters
बीजेपी की विजय के पिछले दो साल कांग्रेस की पराजय के साल भी रहे हैं. अगस्ता वेस्टलैंड मामले को लेकर बीजेपी ने कांग्रेस को अपनी पकड़ में ले रखा है. कांग्रेस पलटवार करती भी है, पर अभी तक उसकी वापसी के आसार नजर नहीं आते हैं.
लोकसभा चुनाव में हार के बाद कार्यसमिति की बैठक में कहा गया था कि पार्टी के सामने इससे पहले भी चुनौतियाँ आई हैं और उसका पुनरोदय हुआ है. वह ‘बाउंसबैक’ करेगी. पर कैसे और कब?
देखना चाहिए कि पार्टी ने पिछले दो साल में ऐसा क्या किया, जिससे लगे कि उसकी वापसी होगी. या अगले तीन साल में वह ऐसा क्या करेगी, जिससे उसका संकल्प पूरा होता नज़र आए.
इस महीने पांच विधानसभाओं के चुनाव परिणाम कांग्रेस की दशा और दिशा को जाहिर करेंगे. खासतौर से असम, बंगाल और केरल में उसकी बड़ी परीक्षा है. ये परिणाम भविष्य का संदेश देंगे.
सोनिया, राहुल गांधीImage copyrightReuters
कांग्रेस इतिहास के सबसे नाज़ुक दौर में है. दस से ज्यादा राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों से लोकसभा में उसका कोई प्रतिनिधि नहीं है. जनता से यह विलगाव कुछ साल और चला तो मुश्किल पैदा हो जाएगी.
तकरीबन आठ साल के बनवास के बाद कांग्रेस की 2004 में सत्ता में वापसी हुई थी. तभी वामपंथी दलों से उसके सहयोग का एक प्रयोग शुरू हुआ था, जो 2008 में टूट गया. उसके बनने और टूटने के पीछे कांग्रेस से ज्यादा सीपीएम के राजनीतिक चिंतन की भूमिका थी.
2004 में सीपीएम के महासचिव हरकिशन सिंह सुरजीत थे. अप्रैल 2005 में प्रकाश करात ने इस पद को संभाला और वे अप्रैल 2015 तक अपने पद पर रहे. उनके दौर में कांग्रेस और वामदलों के रिश्तों की गर्माहट कम हो गई थी.
कम्युनिस्ट पार्टियों में व्यक्तिगत नेतृत्व खास मायने नहीं रखता, लेकिन कांग्रेस को लेकर सीपीआई-सीपीएम नेतृत्व की भूमिका की अनदेखी भी नहीं की जा सकती. इस साल पहली बार कांग्रेस और वाम दल बंगाल में चुनाव-पूर्व गठबंधन के साथ उतरे हैं.
यह गठबंधन केरल में नहीं है, जो अंतर्विरोध को बताता है. लेकिन राजनीतिक धरातल पर कांग्रेस का झुकाव वामदलों की ओर है. बीजेपी की काट उसे वामपंथी नीतियों में दिखाई पड़ती है.