बिहार में
जंगलराज भले न हो, पर वहाँ मंगलराज भी नहीं है। सच बात है कि रोडरेज में दिल्ली
में जितनी हत्याएं होती है, उतनी बिहार में नहीं होतीं। पर दिल्ली, दिल्ली है।
यहाँ के हालात अलग हैं। बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने जिस अंदाज में यह
बात कही है, उससे अहंकार की बदबू आती है। किशोर आदित्य सचदेव के साथ यह अन्याय है।
कार को ओवरटेक करने पर हत्या करने वाले के अहंकार पर गौर करने की जरूरत है। इस
हत्या और उसके बाद सीवान में पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या से जाहिर यह हो रहा है
कि अपराधियों के मन में राज-व्यवस्था का खौफ नहीं है। विकास की दौड़ में पिछड़
चुके बिहार को आगे आना है तो इसके लिए ऐसा माहौल बनाना होगा, जिसमें निवेशक बगैर
डरे यहाँ प्रवेश करें।
पत्रकार की हत्या
के कारण व्यक्तिगत थे या पत्रकारिता से जुड़े थे, इसका पता तफतीश से लगेगा, पर
जितने दुस्साहस से हत्या की गई है, वह इस बात की ओर इशारा है कि अपराधी बेखौफ हैं। यह साहस क्या प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के कारण है? या यह सामान्य बात है? सीवान में हुई हत्या के ठीक पहले झारखंड
में भी एक पत्रकार की हत्या हुई है। पर खबरों में बिहार की हत्या छाई है। इसका
कारण क्या है? क्या केवल राजनीतिक
कारणों से ऐसा है?
हो सकता है, पर एक लम्बे अरसे तक इस राज्य में अराजकता का बोलबाला रहा है,
जिसकी वजह से अंदेशा पैदा होता कि स्थितियाँ फिर वैसी ही न हो जाएं। इससे न तो झारखंड में मंगलराज सबित होता है और न वहाँ भाजपा का सुशासन साबित होता है। अपराध दोनों जगह एक सा है। चूंकि बिहार की एक छवि बनी हुई है, इस वजह से यह अंदेशा पैदा होता है। उसे दूर करने का जो तरीका तेजस्वी ने अपनाया वह अटपटा है। उन्हें अपना रोष व्यक्त करने के पहले जनता के रोष की ओर भी ध्यान देना चाहिए।
बिहार में
अराजकता के सवाल उठाए जाने पर तेजस्वी ने जो लम्बा जवाब दिया है, वह इस मसले को
राजनीतिक रंग देता है। उन्होंने कहा-क्या देश में पाकिस्तान का झंडा फहराया जाना
जंगलराज नहीं है? पठानकोट में आतंकवादियों ने हमला किया, क्या वह जंगलराज नहीं है? तेजस्वी ने इसके साथ व्यापम घोटाले, जाट आंदोलन तक का जिक्र कर डाला। यानी इसे राष्ट्रीय
राजनीति का रंग दे दिया। पर यह सामान्य अपराधों की बात नहीं, सीनाजोरी की बात है।
आँकड़ों की भाषा
में बिहार में ‘जंगलराज’ भले साबित न होता हो, पर बिहार के सामंती समाज
की प्रवृत्तियों को आँकड़ों में दर्ज नहीं किया जाता। और हरियाणा की अराजकता का
उदाहरण देने से बिहार की अराजकता सही साबित नहीं हो जाती। हाल में बिहार पुलिस ने
दिसंबर 2015 तक के अपराध आंकड़े जारी किए हैं जिनके अनुसार 2014 में कुल 1,95,024
संज्ञेय अपराध हुए थे जो 2015 में 1,95,397 हो गए हैं, यानी 0.1 फीसदी (373 अपराध) की बेहद मामूली
वृद्धि हुई। वहीं 2014 में यह वृद्धि 5.44 फीसदी थी। राज्य में बीजेपी-जेडी(यू)
वाले गठजोड़ की सरकार वाले आखिरी साल यानी 2013 में यह वृद्धि 15.4 फीसदी थी। इसमें
दो राय नहीं कि राज्य में नीतीश कुमार की सरकार आने के बाद स्थितियाँ बेहतर हुईं
थी। पर आज डर इसी बात का है कि गाड़ी का पहिया कहीं उल्टा न चलने लगे।
सम्भव है तेजस्वी
के समर्थक उनके इस जवाब पर खुश हों, पर सवाल अपनी जगह है कि क्या बिहार में
अपराधियों के हौसले फिर से बुलंद हो रहे हैं? दूसरे राज्यों से
तुलना जरूर कीजिए, पर 1990 से 2005 के बिहार को भी याद कीजिए। यदि हम आज फिर से हो
रही घटनाओं की अनदेखी करेंगे तो वह दौर फिर से शुरू होने का खतरा पैदा हो जाएगा। तेजस्वी
ने इन सवालों का जवाब नहीं दिया है। बिहार में अराजकता की एक पृष्ठभूमि है। इस
राज्य के लिए ‘जंगलराज’ शब्द राजनेताओं ने नहीं गढ़ा है। भाजपा नेता सुशील
मोदी ने कहा कि ‘जंगलराज’ पटना हाईकोर्ट का दिया हुआ है। हमने नहीं कहा
था। उनके अनुसार 6 महीने में 12 विधायकों ने कानून-व्यवस्था को अपने हाथ में लिया
और उनके विरुद्ध कोई एक्शन नहीं हुआ तो इसे क्या समझें?
पिछले साल बिहार
विधानसभा के चुनाव परिणाम आने के बाद पहला सवाल किया गया था कि क्या जंगलराज की
वापसी हो रही है? संयोग से इस शब्द का
सबसे ज्यादा इस्तेमाल नीतीश कुमार ने किया था, जो इस वक्त लालू यादव के साथ हैं।
सन 1990 में जब लालू यादव पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने तब लगा था कि एक
सीधा-सादी देहाती व्यक्ति सत्ता के सिंहासन पर बैठा है। उस साल उन्होंने समस्तीपुर
में राम रथयात्रा को रोककर और लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार करके देश-विदेश में नाम
कमाया।
लालू समय से आगे चल रहे थे। जहाँ उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव ‘अंग्रेजी हटाओ’ का अभियान चला रहे थे, लालू ने
स्कूलों के पाठ्यक्रम में अंग्रेजी की वापसी कराई। उनकी आर्थिक नीतियों की विश्व
बैंक ने सराहना की। उस समय तक नरसिंह राव की सरकार की उदारीकरण नीतियाँ शुरू भी
नहीं हुईं थीं। पर उसके बाद क्या हुआ? लालू यादव ने कहा, बिहार में सड़कें नहीं हैं, इसलिए हमें कारें नहीं चाहिए।
गरीबों के घर में लालटेन जलती है, इसलिए हमें बिजली नहीं चाहिए। वे ‘विकास’ शब्द से भड़कते थे। उनके 15 साल के शासन को लोग ‘जंगलराज’ के नाम से भी जानते हैं। उस दौर में प्रदेश में अपहरण उद्योग के रूप में
विकसित हो गया था। क्या फिर वैसा ही होगा?
हाल में खबर थी कि रंगदारों ने शिवहर के जेडीयू विधायक शरफुद्दीन से रंगदारी
की मांग की है। इस मामले में पुलिस ने
सीतामढ़ी जेल में बंद एक रंगदार का नाम लिया। यह जानकारी पटना के एसएसपी ने दी। हाल
के दिनों में जेल के अंदर बंद अपराधियों के हरकत में आने की कुछ और खबरें भी मिली
हैं। यह खुली जानकारी है कि राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण में बिहार में रुकावटें
आईं थी, क्योंकि अपराधी खुलेआम पैसा वसूलते थे। निर्माण कार्य में लगी कम्पनियों
से वसूली की खबरें फिर सुनाई पड़ रहीं हैं।
इन बातों से ही निवेशक बिहार छोड़कर भागे थे। हाल में दरभंगा में सड़क निर्माण
करा रहे दो इंजीनियरों की दिन दहाड़े हत्या कर दी गई। इसके पहले शिवहर में विद्युतीकरण
से जुड़े एक सुपरवाइजर की हत्या हुई। ऐसे में बैंक कर्मी, व्यवसायी, निर्माण कार्य में लगी कम्पनियां
और आम लोग दहशत में हैं। निर्माण कार्य में लगी कम्पनियां भागने की बात करें उसके
पहले ही हालात पर काबू पाने की जरूरत है।
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