Tuesday, July 27, 2021

राजनीतिक-जासूसी का रहस्यलोक

संसद के मॉनसून-सत्र के पहले हफ्ते की कार्यवाही को देखते हुए अंदेशा होता है कि कहीं यह स्पाईवेयर पेगासस की भेंट न चढ़ जाए। पेरिस की मीडिया संस्था फॉरबिडेन स्टोरीज और एमनेस्टी इंटरनेशनल को विभिन्न देशों के ऐसे 50,000 फोन नम्बरों की सूची मिली, जिनके बारे में संदेह है कि उनकी हैकिंग कराई गई। इन नम्बरों में भारत के कुछ पत्रकारों सहित केंद्रीय मंत्रियों, विपक्ष के नेताओं, सुरक्षा संगठनों के मौजूदा और पूर्व प्रमुखों, वैज्ञानिकों आदि के भी शामिल होने की बात कही जा रही है।

यह सिर्फ संयोग नहीं है कि भारत में यह जासूसी तब हुई थी, जब भारत में लोकसभा चुनाव चल रहे थे। उसके पहले यूपीए सरकार के तत्कालीन वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी के दफ़्तर में और सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह के यहां भी जासूसी होने की शिकायतें थीं। कौन था उनके पीछे? इन सवालों के बीच नागरिकों की स्वतंत्रता और उनके निजी जीवन में राज्य के हस्तक्षेप का सवाल भी है। सबसे बड़ा सवाल है कि तकनीकी जानकारी के सदुपयोग या दुरुपयोग की सीमाएं क्या हैं? इस मामले के भारतीय और अंतरराष्ट्रीय संदर्भ अलग-अलग हैं, इसलिए कोई बड़ी तस्वीर उभर कर नहीं आ रही है।

जटिल सवाल

इसराइली कंपनी एनएसओ के पेगासस स्पाईवेयर से जुड़ा यह विवाद 2019 में भी उठा था। यह बहुत जटिल मामला है। सरकार का कहना है कि हम इसके पीछे नहीं हैं, पर तमाम सवालों के जवाब नहीं मिल रहे हैं। ऐसे में केवल एक बयान से बात बनती नहीं। विरोधी-पक्ष को भी पता है कि इस रास्ते पर सिर्फ अंधेरा है, पर उसे भी अपनी राजनीतिक-मंजिलों की तलाश है। हमारा डर यह है कि इस आपाधापी में जरूरी संसदीय-कर्म को नुकसान न हो जाए। यह मामला पीआईएल की शक्ल में सुप्रीम कोर्ट में पहुँचा है।

Tuesday, July 20, 2021

कृपया तीसरी और चौथी लहरों को मत बुलाइए!


हमें लगता है कि कोरोना की दूसरी लहर उतार पर है, पर दूसरे देशों की तस्वीर अच्छी नहीं है। कहीं दूसरी लहर चल रही है और कहीं तीसरी। कुछ देश चौथी का इंतजार कर रहे हैं। नए संक्रमितों की संख्या चार हफ्तों से बढ़ रही है। अमेरिका सबसे ज्यादा संक्रमित देश है, पर तेज टीकाकरण के कारण वहाँ की स्थिति बेहतर हुई है, पर तमाम देशों में प्रतिबंधों के बावजूद संक्रमण में गिरावट नहीं हो रही है। हमारे लिए सबक है कि लापरवाही का मतलब है तबाही को दावत देना।

ऑस्ट्रेलिया, यूरोप, इंडोनेशिया, क्यूबा, ब्रिटेन, रूस और दक्षिण कोरिया में स्थिति बिगड़ रही है। बुधवार 7 जुलाई को दुनिया में कोविड-19 से हुई मौतों की संख्या 40 लाख से ऊपर चली गई थी। जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के डैशबोर्ड के अनुसार 13 जुलाई की सुबह मरने वालों की संख्या 40 लाख 36 हजार से ऊपर हो गई। वैश्विक कोरोना के कुल मामले 18 करोड़ 71 लाख से ऊपर हैं।

लैटिन अमेरिका में हाहाकार

रोजाना मौतों की संख्या में गिरावट है, फिर भी 6 से 8 हजार मौतें रोज हो रही हैं। अमेरिका में छह लाख, ब्राजील में पाँच लाख और भारत में चार लाख से ऊपर यह संख्या हो गई है। ब्राजील और मैक्सिको में मृत्यु दर बहुत ज्यादा है। कुछ महीनों से पेरू, कोलम्बिया और अर्जेंटाइना में मृत्यु दर बढ़ी है। पेरू में प्रति दस लाख आबादी पर 6,000 मौतों का औसत है, जबकि वैश्विक औसत 51 है। इससे फर्क पता लगता है। भारत में यह औसत 300 और अमेरिका में 1800 है। ब्राजील और कोलम्बिया में 2000 के ऊपर है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुखिया टेड्रॉस गैब्रेसस ने जिनीवा से प्रसारित वर्चुअल प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि वायरस के डेल्टा वेरिएंट का खतरनाक प्रसार हो रहा है। जिन देशों में टीकाकरण का दायरा सीमित है, वहाँ खासतौर से दशा बहुत ख़राब है। डेल्टा वेरिएंट 104 से ज़्यादा देशों में मौजूद है और यह जल्द ही दूसरे देशों में फैल जाएगा। जिन देशों ने शुरुआती दौर में, वायरस की लहर पर क़ाबू पाने में कामयाबी हासिल की थी, वहाँ भी नई लहर का विनाशकारी रूप देखने को मिल रहा है।

Sunday, July 18, 2021

राजद्रोह बनाम कानूनी-अराजकता

लोकतंत्र के कुछ बुनियादी आधारों को लेकर देश में कुछ समय से जो बहस चल रही है, उससे जुड़े दो मामले पिछले हफ्ते अदालत में उठे। सोमवार को उच्चतम न्यायालय ने हैरत जताई कि अब भी आईटी कानून की धारा 66ए के तहत लोगों पर मुकदमे चलाए जा रहे हैं, जबकि इसे सुप्रीम कोर्ट ने 24 मार्च, 2015 को असंवैधानिक घोषित किया था। पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ अदालत में यह मामला लेकर गई थी। दो साल पहले इस संस्था ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि इस कानून के रद्द होने के बाद कम से कम 22 लोगों पर इसके तहत मुकदमे चलाए गए हैं। अदालत की हैरानी के बाद अब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कहा है कि वे थानों को 66ए के तहत मामले दर्ज न करने के निर्देश दें। अनुमान लगाया जा सकता है कि देश में कानूनों के अनुपालन के नाम पर कैसी अराजकता है।

राजद्रोह कानून

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ा दूसरा मामला राजद्रोह कानून का है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राजद्रोह कानून का इस्तेमाल अंग्रेजों ने स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए किया था, तो क्या आजादी के 75 साल बाद भी इसे जारी रखने की जरूरत है? अदालत में एक रिटायर मेजर जनरल ने धारा-124ए(राजद्रोह) कानून के वैधानिकता को चुनौती दी है। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अगुवाई वाले पीठ ने इस याचिका के परीक्षण का फैसला किया है। अदालत ने कहा कि सरकार कई कानूनों को खत्म कर चुकी है। इसे क्यों नहीं देखा गया? अदालत ने यह भी कहा कि यह फैसला नहीं है, हमने जो सोचा है उसका संकेत है।

पिछले दो महीनों में राजद्रोह कानून को लेकर जो बहस शुरू हुई है उसे तार्किक परिणति तक पहुँचना चाहिए। मसला कानून को खत्म करने से ज्यादा इसके दुरुपयोग से जुड़ा है। धारा66ए निरस्त है, फिर भी अधिकारी उसका इस्तेमाल करते हैं। लोगों को गिरफ्तार किया जाता है। कोई जवाबदेही नहीं। कोई पुलिस ऑफिसर गांवों के दूर दराज इलाकों में किसी शख्स के खिलाफ राजद्रोह कानून का आसानी से इस्तेमाल कर सकता है। जुआरियों पर राजद्रोह का आरोप।

इसी दौरान अदालत में एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की ओर से अलग से अर्जी दाखिल की गई है, जिसमें राजद्रोह कानून के प्रावधान को चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस अर्जी पर भी सुनवाई के लिए सहमति दे दी। अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की दूसरी बेंच में भी राजद्रोह कानून को चुनौती वाली याचिका विचाराधीन है। दो पत्रकारों की उस याचिका पर 27 जुलाई को सुनवाई होनी है।

राजद्रोह और देशद्रोह

इस विषय को व्यावहारिकता की रोशनी में देखना चाहिए। राजद्रोह और देशद्रोह के अंतर को भी समझने की जरूरत है। सरकार या सरकारी नीतियों के प्रति असंतोष व्यक्त करने की सीमा-रेखा भी तय होनी चाहिए। इस साल 26 जनवरी को लालकिले पर जो हुआ, क्या उसे स्वस्थ लोकतांत्रिक-विरोध के दायरे में रखा जाएगा? वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ राजद्रोह के एक मामले को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने 3 जून को कहा था कि पत्रकारों को राजद्रोह के दंडात्मक प्रावधानों से तबतक सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए, जबतक कि उनकी खबर से हिंसा भड़कना या सार्वजनिक शांति भंग होना साबित न हुआ हो।

पंजाब के मसले से कांग्रेस की संगठनात्मक संरचना के सवाल उठेंगे


हालांकि पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू को पार्टी अध्यक्ष बनाए जाने की आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है, पर अब यह साफ है कि वे बनेंगे। बाकी क्या होगा, उसे लेकर जो कयास हैं, वे भी शायद सही साबित हों। इन बातों से कांग्रेस को फायदा होगा या नुकसान? इस सवाल का फौरन जवाब देने की स्थिति में कोई नहीं है। दूसरे यह भी समझ में नहीं आ रहा है कि चुनाव के ठीक पहले यह फैसला किया क्यों गया है। क्या पार्टी ने भविष्य की कोई रूपरेखा तैयार की है? क्या हाईकमान को डर है कि कैप्टेन अमरिंदर सिंह का कद कुछ ज्यादा ही बड़ा होता जा रहा है, उसे छाँटने की जरूरत है? क्या सिद्धू के भीतर पार्टी को चला पाने की क्षमता है? अंततः सारे सवाल कांग्रेस की राजनीति पर जाकर रुकते हैं।

शनिवार की सुबह पंजाब के कांग्रेस-प्रभारी हरीश रावत दिल्ली से चंडीगढ़ पहुंचे और कैप्टन अमरिंदर से मुलाकात की तो वहीं नवजोत सिंह सिद्धू पटियाला से चंडीगढ़ पहुंचे और राज्य के कई नेताओं, विधायकों और कैबिनेट मंत्रियों से मुलाकात की। खासतौर से पार्टी अध्यक्ष सुनील जाखड़ के साथ झप्पियों की उनकी तस्वीर चैनलों पर काफी दिखाई गई। बहरहाल हरीश रावत ने मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से उनके आवास पर मुलाक़ात की जिसके बाद उन्होंने कहा कि अमरिंदर सिंह ने कहा है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का जो निर्णय होगा, वे उसे मानेंगे। सिद्धू को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और दूसरी तरफ विजय इंदर सिंगला और संतोष चौधरी को उनके साथ कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने की बात चल रही है। विजय इंदर सिंगला अमरिंदर सिंह के भरोसेमंद माने जाते हैं। संतोष चौधरी पंजाब में बड़ा दलित चेहरा हैं जिनका चुनाव में कांग्रेस को फायदा मिल सकता है।

नाराज कैप्टेन

बताते हैं कि अमरिंदर सिंह ने हरीश रावत के साथ शनिवार की मुलाकात में यह भी कहा कि हाईकमान ने जिस तरीके से पंजाब में कांग्रेस अध्यक्ष पद का फैसला किया है, उससे मैं प्रसन्न नहीं हूँ। बीच में कई तरह की घोषणाएं होती रहीं। खबरें लीक होती रहीं। उन्होंने मल्लिकार्जुन खड़गे समिति को बनाए जाने और नेताओं की बयानबाज़ी को लेकर भी नाराजगी व्यक्त की है। सवाल है कि हाईकमान को क्या ये बातें समझ में आएंगी? हरीश रावत ने कोशिश की कि कैप्टेन की सिद्धू से मुलाकात हो जाए, पर वे माने नहीं। अमरिंदर सिंह ने कहा है कि जब तक सिद्धू अपमानजनक ट्वीट और बयानों के लिए माफी नहीं माँगेंगे, मैं उनसे मुलाकात नहीं करूँगा। बताया जाता है कि हाईकमान ने सिद्धू को अपने बड़बोलेपन पर रोक लगाने का निर्देश दिया है। पर अमरिंदर की नाराजगी कांग्रेस के लिए अशुभ लक्षण है अब आगे क्या होगा, अनुमान लगाया जा सकता है।

Friday, July 16, 2021

जो निडर हैं, वे आएं हमारे साथ: राहुल गांधी का पार्टी कार्यकर्ताओं से संवाद


कांग्रेस पार्टी में बड़े बदलावों को लेकर चल रही अटकलों के बीच राहुल गांधी कहा है कि हमें निडर लोगों की जरूरत है, डरपोकों की नहीं। पार्टी को लेकर कुछ खबरें और हैं। पंजाब के नेता नवजोत सिंह सिद्धू की आज पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात हुई है। इस दौरान राहुल गांधी और पंजाब कांग्रेस के प्रभारी हरीश रावत भी मौजूद थे। इस मुलाकात में क्या बात हुई यह अभी साफ नहीं है।

माना जा रहा है कि उन्हें पंजाब में पार्टी का अध्यक्ष बनाया जाएगा। उनके साथ एक हिंदू और एक दलित वर्किंग प्रेसीडेंट की भी बात हो रही है। इस खबर के साथ पंजाब की कलह सुलझने के बजाय उलझती नजर आ रही है। पंजाब से मिल रही खबरों के मुताबिक कैप्टेन अमरिंदर सिंह किसी भी कीमत पर सिद्धू को अध्यक्ष के पद पर नहीं देखना चाहते हैं। सूत्र बता रहे हैं कि कैप्टन अड़ गए हैं। कैप्टन ने कहा है कि चुनाव उनकी अगुवाई में लड़ा जाएगा और इसबार भी हम पिछली बार से कम सीटें नहीं जीतेंगे। दूसरी तरफ सिद्धू-खेमा कह रहा है कि वे चुनाव प्रचार समिति का प्रमुख या कार्यकारी समिति का सदस्य बनने को तैयार नहीं।  

अटकलें ही अटकलें

इसके पहले राहुल, प्रियंका और केसी वेणुगोपाल की उपस्थिति में चुनाव-योजना प्रबंधक प्रशांत की सोनिया गांधी के साथ हुई मुलाकात के बाद से पार्टी के कदमों को लेकर कई तरह की अटकलें हैं। एक दिन पहले एक खबर और हवा में उड़ी है कि मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को पार्टी का कार्यवाहक राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जा रहा है। साथ ही सम्भवतः पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी स्थायी अध्यक्ष बन जाएंगी। इस व्यवस्था के राजनीतिक निहितार्थ क्या होंगे, इसे लेकर अटकलें भी शुरू हो गईं है।

मई 2019 में लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद से पार्टी के भीतर और बाहर संशय की स्थिति है। पार्टी कार्यसमिति की बैठक में राहुल गांधी ने अपने इस्तीफे की पेशकश की, पर बाहर इसकी खबर आने नहीं दी गई। फिर यह खबर तब पुष्ट हो गई, जब राहुल गांधी का एक लम्बा पत्र सामने आया। पहली नजर में किसी के समझ में नहीं आया कि राहुल गांधी की योजना क्या है। वे और अधिकार सम्पन्न होना चाहते हैं? या आंतरिक लोकतंत्र की किसी व्यवस्था की स्थापना करना चाहते हैं? सवाल यह भी था क्या पार्टी गांधी-नेहरू परिवार के बगैर काम चला सकती है? बहरहाल राहुल गांधी ने युवा कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ पदाधिकारियों से मुलाकात की और उनसे कहा कि मैं अपने इस्तीफे पर कायम हूँ।

उसके बाद से पार्टी की अंतरिम अध्यक्षता सोनिया गांधी के पास है। पिछले साल अगस्त में पार्टी के 23 वरिष्ठ नेताओं की चिट्ठी उजागर होने के बाद से संशय और बढ़ा है। असंतुष्टों की माँग पार्टी के भीतर के लोकतंत्र से जुड़ी है। राहुल गांधी के इस्तीफे को दो साल से ज्यादा समय हो गया है, नए अध्यक्ष ने कमान संभाली नहीं है। इस दौरान ज्योतिरादित्य और जितिन प्रसाद ने पार्टी छोड़ी है। सचिन पायलट एक पैर बाहर लटका कर बैठे हैं। यह बात लगातार हवा में है कि कुछ और नेता पार्टी छोड़ेंगे।

डरने वाले जाएं

इस पृष्ठभूमि में राहुल गांधी ने कहा है कि जो डरते हैं, वे पार्टी छोड़ दें। इतना ही नहीं उन्होंने कांग्रेस छोड़कर जाने वालों को आरएसएस का आदमी भी करार दिया है। शुक्रवार 16 जुलाई को पार्टी की सोशल मीडिया यूनिट की वर्चुअल बैठक में उन्होंने कहा कि कांग्रेस को निडर लोगों की जरूरत है, कमजोर लोगों की नहीं। जो संघ की विचारधारा में विश्वास रखते हैं, ऐसे लोगों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जाना चाहिए।