जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ विपक्ष के महाभियोग प्रस्ताव के
नोटिस को उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने खारिज कर दिया है, पर यह विवाद जल्द ही खत्म नहीं होगा. पिछले हफ्ते के घटनाक्रम ने हमारी न्याय-व्यवस्था
को धक्का पहुँचाया है. कपिल सिब्बल ने रविवार को कहा था कि उप राष्ट्रपति इस नोटिस
को खारिज नहीं कर पाएंगे, क्योंकि इसका उन्हें अधिकार नहीं है. उनके अनुसार सदन के
सभापति को तीन सदस्यों वाली एक जाँच समिति बनानी चाहिए, जिसकी राय मिलने के बाद इस
प्रस्ताव पर विचार करने या उसे खारिज करने का फैसला होना चाहिए. यह बात उन्होंने राजनीतिक-पेशबंदी में कही थी, या विधिवेत्ता के रूप में, कहना मुश्किल है. विडंबना है कि दोनों के बीच विभाजक रेखा बहुत महीन रह गई है. यह बात दोनों राजनीतिक पक्षों के लिए कही जा सकती है.
बहरहाल उप राष्ट्रपति ने इस नोटिस को पहले चरण पर ही अस्वीकार
कर दिया है, इसलिए सम्बद्ध दूसरा पक्ष अब सुप्रीम कोर्ट जा सकता है. वह उप राष्ट्रपति
के अधिकार को चुनौती देगा. कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा है कि उप
राष्ट्रपति को इस प्रस्ताव पर फैसला करने का अधिकार नहीं है. ज़ाहिर है कि अब इस
प्रक्रिया में कुछ समय लगेगा. कुछ नए सवाल भी खड़े होंगे. जितनी तेजी से उप
राष्ट्रपति ने फैसला किया है, उससे लगता है कि सत्तारूढ़ दल ने पेशबंदी कर ली है.
यह भी साफ है कि अब यह सीधे कांग्रेस और बीजेपी के बीच टकराव का मामला बन गया है.
शुद्ध न्यायिक मसला नहीं रह गया, जिसका दावा कांग्रेस कर रही है.