Sunday, November 28, 2021

विभाजन को लेकर मोहन भागवत के बयान का मतलब क्या है?

 


राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि विभाजन की पीड़ा का समाधान, विभाजन को निरस्त करने में है। इस बात का अर्थ क्या है, इसे उन्होंने स्पष्ट नहीं किया है, पर कम से कम दो अर्थ निकाले जा सकते हैं। पहला और सीधा अर्थ यही है कि विभाजन के सिद्धांत को निरस्त करते हुए भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश फिर से एक राजनीतिक इकाई के रूप में जुड़ जाएं।

दूसरा अर्थ यह है कि 1947 में स्वतंत्र हुआ भारत एक और विभाजन से बचने की कोशिश करे। शायद उन्होंने दूसरे अर्थ में यह बात भारत के मुसलमानों से कही है। आशय यह भी है कि एक और विभाजनकारी धारणा पनप रही है। उन्होंने कहा है कि हमारा अस्तित्व दुभंग यानी दो हिस्से होकर नहीं चल सकता।

कृष्णानंद सागर की किताब, 'विभाजन कालीन भारत के साक्षी' के विमोचन के दौरान मोहन भागवत ने नोएडा में हुए एक समारोह में यह बात कही है। उन्होंने कहा कि यह 2021 का भारत है, 1947 का नहीं। विभाजन एक बार हुआ था, दोबारा नहीं होगा। जो ऐसा सोचते हैं उनको खुद विभाजन झेलना पड़ेगा। भागवत ने सबको इतिहास पढ़ने और उसे मान लेने की भी हिदायत दी। उन्होंने कहा, विभाजन का दर्द तब तक नहीं मिटेगा जब तक यह रद्द नहीं होगा।'

विभाजन का खतरा

भागवत ने यह भी कहा कि हम लोगों को स्वतंत्रता मिली है संपूर्ण दुनिया को कुछ देने के लिए और संपूर्ण दुनिया को कुछ देने लायक हम तब हो जाएंगे जब अपने इतिहास के इस दुराध्याय को उलटकर हम अपने परम वैभव का मार्ग चलने लगेंगे। विभाजन के पीछे कुछ परिस्थितियां जरूर थीं, लेकिन इसका सबसे बड़ा कारण इस्लाम और ब्रिटिश आक्रमण ही था। इस विभाजन से कोई भी खुश नहीं है और न ही ये किसी संकट का उपाय था।

संघ प्रमुख ने कहा कि भारत का विभाजन किसी तरह का राजनीतिक प्रश्न नहीं है बल्कि यह एक अस्तित्व का प्रश्न है. उन्होंने कहा कि उस समय इस विभाजन को इसलिए स्वीकार करना पड़ा था ताकि देश में किसी का खून न बहे, लेकिन यह दुर्भाग्य है कि इसके उल्टा हुआ और तब से अब तक न जाने कितना खून बह चुका है। भारत के प्रधानमंत्री संविधान के साथ चलना पड़ता है लेकिन नरेंद्र मोदी को भी 14 अगस्त को कहना पड़ता है कि इस विभाजन को भूलना नहीं चाहिए। इसलिए जो खंडित हुआ उसे अखंड बनाना होगा।

घर वापसी

संघ प्रमुख ने घर वापसी का संकेत देते हुए कहा कि आपको लगता है कि पूर्वजों के घर में वापस आना है तो आइए, हम स्वागत करेंगे लेकिन अगर नहीं लगता है तो अपनी पूजा में पक्के रहिए, लेकिन मातृभूमि का सम्मान ज़रूरी है। पूरे समाज की भारत माता है। उसका सम्मान होना चाहिए। विभाजन के इस दर्दनाक इतिहास की पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए, अगर लड़ना पड़े तो लड़ेंगे।

उन्होंने कहा, यदि हम चाहते हैं कि मजबूत राष्ट्र बनें और विश्व-कल्याण में योगदान करें, तब हिंदू समाज को समर्थ बनना होगा। भारतीय विचारधारा सबको साथ लेकर चलने की है। इसमें ऐसी बात नहीं है कि हम ही सही हैं और दूसरे गलत। इसके विपरीत इस्लामिक विचार-प्रक्रिया यह है दूसरे गलत हैं और हम ही सही हैं। अतीत में टकरावों की असल वजह यही रही है।

पाकिस्तान का विरोध

मोहन भागवत के बयान को पाकिस्तान सरकार ने इतना महत्वपूर्ण माना कि वहाँ के विदेश विभाग ने इस सिलसिले में बाकायदा बयान जारी करके उनके बयान की भर्त्सना की।

पाकिस्तान ने इस बयान का मतलब यह भी लगाया है कि मोहन भागवत विभाजन को अस्वीकार करके दोनों देशों को एक करने की माँग कर रहे हैं। पाकिस्तानी बयान में कहा गया है कि भारत का सत्तासीन आरएसएस-बीजेपी प्रतिष्ठान हिंदू राष्ट्र और विस्तारवादी विदेश-नीति (अखंड भारत) की राह पर चल रहा है। यह खतरनाक है और भारत के अल्पसंख्यकों को हाशिए पर डालने की कोशिश और दक्षिण एशिया के पड़ोसी देशों के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा करने की कोशिश है।

अंग्रेजों का इतिहास

इस कार्यक्रम के अलावा मोहन भागवत ने शनिवार 27 नवंबर को ग्वालियर में हुए एक कार्यक्रम में कहा कि अंग्रेज़ों ने भारत का इतिहास फिर से लिखा, लिहाज़ा हमें देश का असल इतिहास फिर से वापस लौटाने की ज़रूरत है। उन्होंने यह भी कहा कि मज़बूत समाज के लिए हमें हिंदुत्व को मज़बूत बनाने की ज़रूरत है।

अंग्रेज़ी दैनिक हिंदुस्तान टाइम्स ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के इस बयान को प्रकाशित किया है। वे शनिवार को ग्वालियर में एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। उस कार्यक्रम में उन्होंने कहा, "हमें 'हिंदू ही भारत है और भारत हिंदू है', इस तथ्य को मज़बूत बनाने की ज़रूरत है, क्योंकि अंग्रेजों ने हमारे इतिहास को फिर से लिखकर हमारी मूल पहचान ही बदल दी। जिन घुमक्कड़ों को अंग्रेज़ों ने अपराधी कहा और आज़ादी के बाद हमने जिन्हें नोटिफाई किया, वे संत और सिद्ध-पुरुषों के आदमी थे।"

मोहन भागवत ने आगे कहा, ''वे लोग समाज को गौरव देने के अभियान का हिस्सा थे। हिंदुत्व को भारत से और भारत को हिंदुत्व से अलग नहीं किया जा सकता। इस सोच ने हमें ख़ास बनाया लेकिन अंग्रेज़ों ने यहां आकर भारत के इतिहास को फिर से लिखा। अंग्रेजों ने लिखा कि हमारे पूर्वज 15 पीढ़ी पहले नहीं थे, क्योंकि इतिहास में कोई हिंदू नहीं, यानी भारत नहीं है। इससे अखंड भारत टूट गया।"

उन्होंने कहा, ''अखंड भारत वहाँ बँटा, जहाँ हिंदू कमज़ोर हैं। फिर भी यदि हम भारत में उन जगहों को देखें जहां के लोग परेशान हैं, और जहां देश की अखंडता ख़तरे में है, तो पाएंगे उस जगह के हिंदू और हिंदुत्व के विचार कमज़ोर हैं। हमें अपनी आत्मा को ज़िंदा रखना है, इसीलिए मोहम्मद इक़बाल ने कहा कि कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।''

इसके पहले अप्रैल 2010 में भारत के पूर्व विदेशमंत्री जसवंत सिंह ने अपनी पाकिस्तान-यात्रा के दौरान इस्लामाबाद हिंदू की संवाददाता अनिता जोशुआ से कहा था, हम विभाजन को तो बदल नहीं सकते, पर उसके दुष्परिणामों को दूर कर सकते हैं। सवाल है कि मोहन भागवत क्या वही बात कह रहे हैं?

भारत-पाकिस्तान और बांग्लादेश एक देश बन जाएं, तो? पाकिस्तानी पत्रकार वुसअतुल्ला खां का वीडियो-ब्लॉग

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