इस साल के शुरू में लगता था कि तृणमूल पार्टी तो गई। पश्चिम बंगाल के चुनाव में उसकी पराजय का मतलब था उसके समूचे राजनीतिक आधार का सफाया। पर अब लगता है कि यह पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर खड़ी हो रही है और बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस का विकल्प भी बनने को उत्सुक है। हालांकि त्रिपुरा के स्थानीय निकाय चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को भारी विजय मिली है, पर तृणमूल कांग्रेस दूसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरी है। यानी त्रिपुरा में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, अब दूसरे नंबर की पार्टी भी नहीं रही, जबकि पश्चिम बंगाल की तरह त्रिपुरा भी उसका गढ़ था।
विरोधी दलों के साझा बयान में तृणमूल का नाम नहीं |
इन सांसदों को निलंबित करने के मामले में विपक्षी दलों ने संयुक्त बयान जारी किया है। हालांकि टीएमसी के सांसदों का निलंबन भी हुआ है, पर विपक्षी दलों की ओर से जारी संयुक्त बयान में टीएमसी शामिल नहीं है। बयान में 12 सांसदों के निलंबन के फैसले की निंदा की गई है और इसे अलोकतांत्रिक निलंबन करार दिया है। निलंबन के बाद कई सांसदों ने इस फैसले पर आपत्ति जताई है। विरोधी दलों ने कल यानी 30 नवंबर को कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के दफ्तर में बैठक बुलाई है।
विपक्ष के इस साझा बयान में टीएमसी का नाम शामिल नहीं है, जबकि 12 में से दो सांसद टीएमसी के भी निलंबित किए गए हैं। संसद का यह शीतकालीन सत्र 29 नवंबर से 23 दिसंबर तक प्रस्तावित है।
निलंबित सांसद
संसद के बीते मॉनसून सत्र में हंगामा करने के लिए निलंबित हुए सांसदों में छह कांग्रेस पार्टी के हैं, दो-दो सांसद शिवसेना तथा तृणमूल कांग्रेस तथा एक सांसद मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और एक भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का है। उनके नाम एल्मारम करीम (माकपा), फुलो देवी नेताम (कांग्रेस), छाया वर्मा (कांग्रेस), रिपुन बोरा (कांग्रेस), बिनोय विस्वाम (भाकपा), राजमणि पटेल (कांग्रेस), डोला सेन (तृणमूल कांग्रेस), शांत छेत्री (तृणमूल कांग्रेस), सैयद नासिर हुसैन (कांग्रेस), प्रियंका चतुर्वेदी (शिवसेना), अनिल देसाई (शिवसेना) और अखिलेश प्रसाद सिंह (कांग्रेस) हैं। उपसभापति हरिवंश की अनुमति से संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने इस सिलसिले में एक प्रस्ताव रखा, जिसे विपक्षी दलों के हंगामे के बीच सदन ने मंजूरी दे दी।
कांग्रेस से दूरी बनाई
तृणमूल की भावी राजनीति
का अंदाजा सोमवार से शुरू हुए संसद-सत्र से भी लगने लगा है। वह यह कि अब यह पार्टी
कांग्रेस के नेतृत्व में विरोधी-एकता की पक्षधर नहीं है, बल्कि अपना नेतृत्व चाहती
है। ताजा खबर यह है कि संसद के शीतकालीन सत्र में केंद्र सरकार को घेरने के लिए
विपक्ष को एकजुट करने की कांग्रेस की कोशिशों को तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), शिवसेना व एनसीपी ने तगड़ा झटका दे दिया है।
राज्यसभा में नेता
प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की सोमवार 29 नवंबर को बुलाई बैठक में न तो टीएमसी
शामिल हुई और न ही शिवसेना और एनसीपी के सदस्य पहुंचे। इनके अलावा वाईएसआर
कांग्रेस, बीजद, टीआरएस भी
बैठक में शामिल नहीं हुए। टीएमसी की गैरमौजूदगी को कांग्रेस से बिगड़ते रिश्तों के
रूप में देखा जा रहा हैं,
कांग्रेस के कई नेताओं
के टीएमसी में शामिल होने के बाद पार्टी की ओर से ममता बनर्जी और टीएमसी पर सीधा
निशाना साधा गया है। वहीं ममता बनर्जी ने इस बार दिल्ली प्रवास के दौरान कांग्रेस
अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात भी नहीं की।
कांग्रेस ने कहा कि यह
तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को फैसला करना है कि वह संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान
उठाए जाने वाले महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करने के लिए उसकी ओर से बुलाई विरोधी
दलों के नेताओं की बैठक में शामिल होना चाहती है या नहीं।
लोकसभा में कांग्रेस
के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि यह पार्टी की परंपरा है कि हर सत्र से पहले
विपक्ष का नेता सबको बुलाता है। बहरहाल, अब अगर किसी को लगता है कि कांग्रेस से हाथ मिलाने पर उन्हें सरकार के विरोधी
के तौर पर देखा जाएगा तो उन्हें ऐसा करने की जरूरत नहीं है।
बयान में
तृणमूल का नाम नहीं
एक दिन पहले तृणमूल
कांग्रेस ने कहा था कि राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा
शीतकालीन सत्र के पहले दिन सोमवार की सुबह बुलाई गई बैठक में उसके ‘शामिल होने की
संभावना नहीं है।’ खड़गे ने सत्र के दौरान विपक्षी दलों के बीच एकता और सामंजस्य
सुनिश्चित करने के लिए बैठक बुलाई थी।
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