Wednesday, November 10, 2021

अफगानिस्तान को लेकर भारत और पाकिस्तान की समांतर बैठकों का औचित्य

 

अफगानिस्तान पर दिल्ली में बैठक

अफगानिस्तान को लेकर भारत और पाकिस्तान में दो अलग-अलग बैठकें हो रही हैं। एक बैठक आज 10 नवंबर को भारत में और दूसरी कल पाकिस्तान में। इन बैठकों से भारत और पाकिस्तान के दो नजरियों की पुष्टि हो रही है, साथ ही यह बात भी स्पष्ट हो रही है कि अफगानिस्तान की समस्या के हल के लिए भारत और पाकिस्तान दोनों से बात करनी होगी। पाकिस्तान को महत्व इसलिए मिला है, क्योंकि तालिबान के साथ उसके रिश्तों को अब दुनिया जान चुकी है। भारत की जरूरत इसलिए है, क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान की विकास-योजनाओं में भारत की भूमिका है। इसके अलावा अफ़ग़ानिस्तान के काफी गैर-पश्तून कबीले भारत के करीब हैं।

भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने दिल्ली में क्षेत्रीय सुरक्षा संवाद नाम से जो बैठक बुलाई है, उसमें रूस, ईरान और मध्य एशिया के पाँच देशों, ताजिकिस्तान, कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और किर्गिस्तान के सुरक्षा सलाहकार या मुख्य सुरक्षा अधिकारी भाग ले रहे हैं। एक दिन की इस बैठक में एक संयुक्त घोषणापत्र भी जारी हुआ है, जिसमें दो बातें महत्वपूर्ण हैं। एक, अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों में नहीं होना चाहिए और दूसरे, वहाँ सभी समुदायों के मेल से समावेशी सरकार का गठन होना चाहिए।

भारत में हुई इस बैठक का फॉर्मेट सितंबर 2018 और दिसंबर 2019 में ईरान में हुई बैठकों में तय हुआ था। इसका उद्देश्य तालिबान के बारे में एक सामान्य राय बनाना है। हालांकि इन देशों ने तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है, पर इन्होंने तालिबान से संपर्क बनाकर रखा है। हालांकि भारत अशरफ गनी की चुनी हुई सरकार को अपदस्थ करने के तरीकों से असहमत है, फिर भी वह तालिबान के साथ संपर्क बनाए रखना चाहता है। इस बैठक का एक उद्देश्य यह भी है कि भारत यह बताना चाहता है कि अफ़ग़ानिस्तान में हालात को सुधारने के काम में भारत को भी साथ में रखना पड़ेगा।

इस बैठक में भाग लेने के लिए पाकिस्तान और चीन को भी निमंत्रण दिया गया था। पाकिस्तान ने इसमें भाग लेने से साफ इनकार कर दिया और कहा, इसके जरिए अफ़ग़ानिस्तान में अपनी ‘घातक भूमिका’ से ध्यान हटाने का भारत का यह असफल प्रयास है। पाकिस्तानी एनएसए मोईद युसुफ ने मंगलवार को वार्ता में भागीदारी से इनकार किया और कहा, ‘मैं नहीं जाऊंगा, एक बिगाड़ने वाला शांतिदूत नहीं हो सकता।’ चीन ने अपने कार्यक्रमों की व्यस्तता को देखते हुए इसमें शामिल होने से इनकार किया है, पर यह भी कहा है कि हम द्विपक्षीय राजनयिक चैनलों के माध्यम से संपर्क और चर्चा बनाए रखने के लिए तैयार हैं।

दूसरी तरफ पाकिस्तान की बैठक में ट्रॉयका-प्लस (रूस, चीन, अमेरिका और पाकिस्तान) के अलावा अफ़ग़ानिस्तान की तालिबान सरकार के विदेशमंत्री अमीर खान मुत्तकी शामिल हुए हैं। यह पहला मौका है, जब ट्रॉयका-प्लस की बैठक में तालिबान सरकार का कोई प्रतिनिधि शामिल हो रहा है। अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की सरकार बनने के बाद से ट्रॉयका की यह पहली बैठक है। इसके पहले एक बैठक 11 अगस्त को दोहा में हुई थी। उसके बाद 19 अक्तूबर को एक और बैठक मॉस्को में हुई, जिसमें अमेरिका ने भाग नहीं लिया।

इस दौरान अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान के लिए अपने विशेष दूत जलमय खलीलज़ाद को हटाकर उनकी जगह टॉम वेस्ट को दूत के पद पर नियुक्त किया। अब नई बात यह भी है कि इसमें तालिबान-विदेशमंत्री शामिल होने के लिए पाकिस्तान गए हैं, जिसका सांकेतिक महत्व है। अमेरिका के नव-नियुक्त दूत टॉम वेस्ट भी इस बैठक में शामिल होने के लिए आए हैं। अमेरिका देखना चाहता है कि स्त्रियों और मानवाधिकार के मामलों को लेकर तालिबान के रुख में कितना बदलाव आया है।

हालांकि पाकिस्तान ने तालिबान सरकार को मान्यता नहीं ही है, पर व्यवहार में दोनों देशों के रिश्ते करीब-करीब वैसे ही हैं, जैसे मान्यता प्राप्त देशों के बीच होते हैं। काबुल में चीन, रूस और चीन के अलावा पाकिस्तान का दूतावास बाकायदा काम कर रहा है। पाकिस्तान के विदेशमंत्री शाह महमूद कुरैशी वहाँ की यात्रा करके आए हैं।

रूस ने भारत की बैठक में अपने सुरक्षा प्रमुख जनरल निकोलाई पी पात्रुशेव को भेजा है, जो इसके पहले भी दिल्ली आ चुके हैं। रूस के विशेष दूत ज़मीर कबुलोव इस्लामाबाद जाएंगे। इस इलाके में आतंकवाद, नशे के कारोबार के खिलाफ कार्रवाइयों और कुछ अन्य कारणों से भारत की भूमिका अहम है। और रूस की दिलचस्पी भारत के साथ संपर्कों को बनाए रखने की है। बैठक में शामिल सभी देशों के साथ भारत के अच्छे रिश्ते हैं। अजित डोभाल के साथ बैठक में रॉ के प्रमुख सामंत गोयल, विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला और अन्य राजनयिक-अधिकारी हैं, जो हाल के महीनों में अफ़ग़ानिस्तान से जुड़ी पहलों में शामिल रहे हैं।

बुधवार को इस बैठक की अध्यक्षता करते हुए अजित डोभाल ने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान में हाल के घटनाक्रम के न केवल उस देश के लोगों के लिए बल्कि उसके पड़ोसियों और क्षेत्र के लिए भी महत्वपूर्ण निहितार्थ हैं। अफ़ग़ानिस्तान और उसके आसपास के इलाके की सुरक्षा के लिए क्षेत्रीय देशों के बीच करीबी विचार-विमर्श, अधिक सहयोग और समन्वय की जरूरत है। ईरान की पहल पर 2018 में शुरू की गई प्रक्रिया की यह तीसरी बैठक है। वहाँ दूसरी बैठक भी हुई थी, जिसके लिए हम ईरान के आभारी हैं।

बैठक में रूसी प्रतिनिधि जन. पात्रुशेव ने विभिन्न संवाद-प्रक्रियाओं की तारीफ करते हुए कहा कि मॉस्को-वार्ता में व्यापक प्रतिनिधित्व है। साथ में यह भी कहा कि क्षेत्रीय-संवाद के मिकैनिज्म से तालिबान-नियंत्रित अफ़ग़ानिस्तान में स्थितियाँ बिगड़नी नहीं चाहिए। बैठक में ईरान की सुप्रीम नेशनल सिक्योरिटी कौंसिल के सचिव रियर एडमिरल अली शमखानी ने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान में समावेशी-सरकार बनाने की जरूरत है। अफ़ग़ानिस्तान में समस्याओं का समाधान तभी होगा, जब वहाँ सभी सामुदायिक समूहों को सरकार में प्रतिनिधित्व मिलेगा। यह बैठक उस ताकत पर फोकस कर सकती है, जो इस काम को अंजाम दे सके।

कजाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के चेयरमैन करीम मासिमोव ने उन दिक्कतों का उल्लेख किया, जो अफ़ग़ानिस्तान में प्रभावशाली सरकार बनाने के रास्ते में बाधा बन रही हैं। हम अफगानिस्तान में मध्य एशिया के लड़ाकों की उपस्थिति को लेकर चिंतित हैं। किर्गीज़ प्रतिनिधि मारत इमानकुलोव ने अफगानिस्तान की जमीन से पैदा होने वाले आतंकवाद की संभावनाओं को लेकर सवाल उठाए।

 

 

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