रविवार, 31 अक्टूबर, को स्कॉटलैंड के ग्लासगो शहर में संयुक्त राष्ट्र के कांफ्रेंस ऑफ द पार्टीज़ (कॉप26) की शुरुआत हुई। 12 नवम्बर तक चलने वाले इस सम्मेलन में सभी मोर्चों पर महत्वाकांक्षा बढ़ाने और सन 2015 के पेरिस जलवायु समझौते को कारगर ढंग से लागू करने के लिए दिशा-निर्देशों को अंतिम रूप देने पर चर्चा होगी। सम्मेलन में ब्रिटेन की 95 वर्षीय महारानी एलिज़ाबेथ के आगमन की संभावना थी, पर शारीरिक असमर्थता के कारण वे नहीं आ पाईं। उनके स्थान पर सोमवार को राजकुमार चार्ल्स आने वाले हैं।
सम्मेलन से ठीक पहले अनेक रिपोर्टें और अध्ययन
जारी किए गए हैं, जिनके निष्कर्षों में मौजूदा जलवायु
कार्रवाई को अपर्याप्त क़रार दिया गया है। इन अध्ययनों में, पेरिस
जलवायु समझौते के तहत वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 1।5 डिग्री सेल्सियस के
लक्ष्य तक सीमित रखने के लिये महत्वाकांक्षी जलवायु संकल्पों की अहमियत को
रेखांकित किया गया है।
कार्यकारी सचिव पैट्रीशिया ऐस्पिनोसा ने
सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध लड़ाई में,
दुनिया एक अहम पड़ाव पर खड़ी है। उन्होंने कॉप26 में सफलता को पूर्ण
रूप से सम्भव बताते हुए अपने आशावादी रुख़ की वजह बताई। उन्होंने कहा, मेरे विचार
में हम जो समझ व देख रहे हैं, हम जानते हैं कि यह रूपांतरकारी बदलाव
हो सकता है। यहाँ औज़ार हैं, यहाँ उपकरण हैं, यहाँ
समाधान हैं। भिन्नताएँ हैं, पर यह बात भरोसा दिलाती है कि
उद्देश्यों को लेकर एकता है।
‘अस्तित्व पर संकट’
यूएन महासभा के अध्यक्ष अब्दुल्ला शाहिद ने उद्घाटन कार्यक्रम के दौरान कहा कि मानवता के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। हमारे पास इस संकट को हल करने के लिए क्षमता और संसाधन मौजूद हैं, पर हम पर्याप्त क़दम नहीं उठा रहे हैं। उन्होंने पुख़्ता जलवायु कार्रवाई के लिये अक्षय ऊर्जा टेक्नोलॉजी और नवाचारों को सभी देशों तक पहुँचाने के प्रयासों में तेज़ी लाने, निजी सेक्टर द्वारा नेट-शून्य उत्सर्जन संकल्पों को प्राथमिकता देने, उन्हें स्पष्ट व ज़्यादा असरदार बनाने का आग्रह किया।
अधूरी आशाएँ
यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश जी20 की बैठक
में हिस्सा लेने के लिए इटली की राजधानी रोम में थे, जहाँ
से वे रविवार को ग्लासगो सम्मेलन के लिए रवाना हुए थे। उन्होंने अपने एक ट्वीट में
कहा कि रोम से वह अपनी अधूरी उम्मीदों के साथ जा रहे हैं, पर
उनकी आशाएँ दफ़न नहीं हुई हैं।
यूएन प्रमुख के अनुसार, कॉप26
के दौरान उनका लक्ष्य वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक
सीमित करने के लक्ष्य को जीवित रखना और आमजन व पृथ्वी के लिए वित्त पोषण व अनुकूलन
के वादों को पूरा करना होगा। वैश्विक तापमान-वृद्धि के लक्ष्य को सीमित रखने के
लिये महत्वाकांक्षी जलवायु कार्रवाई की आवश्यकता है।
इसके पहले उन्होंने ने जी20 समूह के एक सत्र
में ध्यान दिलाया कि वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक
सीमित रखना, सभी नेताओं का दायित्व है। विशेष रूप से इसलिए,
क्योंकि इस समूह के सदस्य वैश्विक उत्सर्जन के 80 प्रतिशत के लिए ज़िम्मेदार हैं।
यूएन प्रमुख के मुताबिक़, ग्लासगो में हो रही बैठक, जलवायु परिवर्तन से मुक़ाबले में एक नया मोड़ साबित हो सकती है,
पर इसके लिए कार्रवाई की आवश्यकता होगी।
भारतीय लक्ष्य
भारत ने, जो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा
उत्सर्जक देश है, अभी तक नेट जीरो उत्सर्जन के अपने लक्ष्य को घोषित नहीं किया है,
जबकि चीन, अमेरिका और यूरोपियन यूनियन ने अपने लक्ष्य घोषित कर दिए हैं। भारत के
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ग्लासगो में हैं और संभवतः इस विषय पर कोई घोषणा
करेंगे। भारत के सामने कई प्रकार की दिक्कतें हैं। देश के सामने आर्थिक विकास के
लक्ष्य हैं। इसके अलावा कोयले का विकल्प भी अभी उपलब्ध नहीं है। भारत का कहना है
कि हमें न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप में शामिल होने दिया गया होता, तो हम नाभिकीय
ऊर्जा के विकल्प को अपना सकते थे। भारत ने इस सिलसिले में अपना
डेटाबेस तैयार किया है, जिसमें बताया गया है कि दिक्कतें क्या हैं।
जी-20 का शिखर सम्मेलन
कॉप26 के उद्घाटन के पहले दुनिया की बड़ी
अर्थव्यवस्था वाले देशों के समूह जी-20
के शिखर
सम्मेलन के आखिरी दिन रविवार को नेताओं ने कहा
भारत सहित जी-20 देश जलवायु परिवर्तन के तत्काल खतरे से निपटने के लिए प्रतिबद्ध
हैं। इटली में हुए सम्मेलन में जी-20 नेताओं ने कहा कि वे जलवायु परिवर्तन के
प्रभाव को कम करने, जलवायु अनुकूलन और वित्त पोषण को
बढ़ाएंगे, पर इस सिलसिले में कोई प्रतिबद्धता
घोषित नहीं की। सम्मेलन में जी-20 देशों ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए
गरीब देशों की मदद करने को लेकर सालाना 100 अरब डॉलर जुटाने के अमीर देशों के
पुराने वादों को दोहराया और उन्हें जलवायु अनुकूलन में मदद के लिए वित्त बढ़ाने का
वादा किया। सम्मेलन में सदी के तकरीबन मध्य तक 'नेट
जीरो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन' या 'कार्बन
न्यूट्रैलिटी' की प्रासंगिकता को स्वीकार किया गया
है।
सम्मेलन में महामारी के खिलाफ वैक्सीन को सबसे
महत्वपूर्ण बताया और कहा गया कि इस वैश्विक महामारी से निपटने के लिए टीकाकरण ही
एकमात्र उपाय है। सम्मेलन में जी-20 देशों ने 2021 के अंत तक कम से कम 40 फीसदी और
2022 के मध्य तक 70 फीसदी आबादी के टीकाकरण के वैश्विक लक्ष्यों को प्राप्त करने
के प्रयासों पर सहमति जताई। यह भी घोषणा की गई कि जी-20 राष्ट्र सभी के लिए खाद्य
सुरक्षा और पर्याप्त पोषण प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसके अलावा सुरक्षित
और व्यवस्थित तरीके से अंतरराष्ट्रीय यात्राओं को फिर से शुरू करने के प्रयासों पर
सहमति जताई। जी-20 के नेताओं ने घोषणा की कि हम 2022 में इंडोनेशिया, 2023 में भारत और 2024 में ब्राजील में फिर से मिलने के लिए उत्सुक
हैं।
कार्बन उत्सर्जन के बढ़ते खतरों के बीच विश्व
की बड़ी अर्थव्यवस्था वाले जी 20 देशों के नेताओं ने ग्लोबल वॉर्मिंग की वृद्धि को
1.5 डिग्री सेल्सियस तक नियंत्रित रखने के लिए ‘सार्थक और प्रभावी’ कदम उठाने पर
सहमति जताई।
जी 20 सम्मेलन का मेजबान इटली कार्बन उत्सर्जन
को कम करने के लिए कोई ठोस लक्ष्य तय होते हुए देखना चाहता था, लेकिन सम्मेलन में इसके
लिए निश्चित समय सीमा नहीं बताई गई। जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के लिए तैयार अंतिम
मसौदे में कहा गया है कि कार्बन उत्सर्जन नियंत्रण के लिए यदि जरूरी हो तो मौजूदा
राष्ट्रीय योजनाओं को मजबूत किया जाए। शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने
के लिए 2050 की तारीख का कोई खास संदर्भ नहीं दिया गया है।
इन नेताओं का कहना है कि नेट-शून्य कार्बन उत्सर्जन
का लक्ष्य इस शताब्दी के मध्य तक हासिल कर लिया जाएगा। दुनिया का सबसे बड़े कार्बन
उत्सर्जक चीन ने इस पर पूरी तरह नियंत्रण पाने के लिए 2060 का लक्ष्य रखा है। रूस
और सऊदी अरब ने भी 2060 का लक्ष्य तय किया है। बताया जाता है जी 20 में शामिल
ब्राजील, जर्मनी, भारत
और अमेरिका जैसे देश 80 फीसदी से ज्यादा ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन करते हैं।
इन्हें भी देखें
नेट-शून्य उत्सर्जन भारत के लिए दिक्कत-तलब क्यों है?
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