अमेरिका की दो दवा कंपनियों ने एकसाथ कोरोना की दवाइयों की ईज़ाद का ऐलान करके कोविड-19 संक्रमण का सामना कर रही दुनिया को राहत दी है। ये दवाएं महंगी हैं, पर दुनिया को इनसे उम्मीद बँधी है। दोनों दवाएं गोलियों की शक्ल में हैं। इनमें से एक को ब्रिटेन की मेडिसंस एंड हैल्थकेयर प्रोडक्ट्स रेगुलेटरी एजेंसी (एमएचआरए) ने स्वीकृति दे दी है। दोनों को ही अमेरिकी फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) की मंज़ूरी भी मिलने की संभावना है। दावा किया गया है कि दोनों दवाएं वायरस को शरीर के भीतर बढ़ने से रोकती और उसके असर को खत्म करती हैं।
हालांकि इसके पहले भी कोविड-19 की दवाओं को
तैयार किए जाने का दावा किया गया है, पर यह पहली बार है कि किसी सरकारी संस्थान ने
दवा को मंजूरी दी है। इन दवाओं की प्रभावोत्पादकता पक्के तौर स्थापित हुई, तो
कोविड-19 के विरुद्ध वैश्विक प्रयासों को यकीनन बड़ी सफलता मिलेगी। वैक्सीन के साथ-साथ
अब ये दवाएं भी हमारे पास हैं।
गेम चेंजर
ब्रिटिश वायरोलॉजिस्ट
स्टीफन ग्रिफिन का कहना है कि इन दवाओं की सफलता से सार्स-कोव2 के संक्रमण के घातक
परिणामों को रोकने में काफी मदद मिलेगी। बीबीसी के
अनुसार ब्रिटेन के स्वास्थ्य मंत्री साजिद जावेद ने इसे 'गेमचेंजर'
बताया है। उन्होंने कहा, 'आज का दिन हमारे
देश के लिए ऐतिहासिक है, क्योंकि ऐसे एंटी वायरल को मंजूरी देने
वाला यूके विश्व का पहला देश बना गया है, जिसे घर पर लिया
जा सकता है।'
अभी तक कोरोना का सबसे बेहतर इलाज
सिंथेटिक-एंटीबॉडीज़ या मोनोक्लोनल एंटीबॉडी कॉकटेल के रूप में उपलब्ध था, जिसे
इंजेक्शन के सहारे दिया जाता था। अब जो दवाएं सामने आई हैं, उन्हें गोलियों के रूप
में लिया जा सकता है। दावा यह भी किया गया है कि इनके साइड इफेक्ट भी नहीं हैं। दवा
कंपनी मर्क ने बताया है कि उसकी दवाई मोलनुपिराविर को ब्रिटिश औषधि नियामक की
स्वीकृति मिल गई है और अब अमेरिकी एफडीए से स्वीकृति देने का अनुरोध किया गया है। यूरोपियन
मेडिसिन एजेंसी भी कुछ औषधियों को स्वीकृति देने पर विचार कर रही है।
जोखिम कम हुआ
मर्क की घोषणा के अगले ही दिन फायज़र ने भी
अपनी दवा पैक्सलोविड की सफलता की घोषणा की। दोनों ही एंटी-वायरल दवाएं हैं, जो
वायरस की शरीर के भीतर वृद्धि को रोकने की क्षमता रखती हैं। दोनों कंपनियों का
दावा है कि इनके सेवन से संक्रमित व्यक्ति को अस्पताल में भरती करने की जरूरत बहुत
कम रह जाएगी। दवा को ब्रिटिश-स्वीकृति मिलने के पहले ही मर्क और अमेरिकी सरकार के
बीच मोलनुपिराविर के 17 लाख कोर्सों की सप्लाई का सौदा हो चुका है। कोर्स यानी
पाँच दिन की पूरी दवाई।
फायज़र ने बताया कि पैक्सलोविड ब्रांड नाम की
इस गोली को मरीज को दिन में दो बार देना होता है। शर्त है कि उसे एफडीए की
स्वीकृति मिल जाए। कंपनी का कहना है कि साल के अंत तक हम दवाई के एक करोड़ कोर्स
तैयार कर लेंगे और 2022 में हमारा लक्ष्य दो करोड़ कोर्स तैयार करने का है। मर्क
ने इसे बनाने का लाइसेंस कुछ दूसरी कंपनियों को भी दिया है।
भारत में भी इसका ट्रायल चल रहा है और संभव है कि किसी कंपनी को इसके उत्पादन का लाइसेंस मिले। गेट्स फाउंडेशन के ग्लोबल हैल्थ कार्यक्रम के अध्यक्ष ट्रेवर मंडेल ने कहा है कि अपेक्षाकृत कम अमीर देशों में जेनरिक दवाएं बनाने वाली कई कंपनियाँ मोलनुपिराविर की माँग का इंतजार कर रही हैं, इसलिए फाउंडेशन ने 12 करोड़ डॉलर इस मद में रख दिए हैं, ताकि उत्पादन-व्यवस्था के लिए उनकी मदद की जा सके।
क्या गरीबों को मिलेगी?
ब्रिटेन ने मोलनुपिराविर के 4,80,000 कोर्स का
आदेश दिया है। वैक्सीन की तरह इस दवाई के मामले में भी अमीर और गरीब देशों का
विभाजन देखने को मिलेगा। फिलहाल अमेरिका और ब्रिटेन के अलावा ऑस्ट्रेलिया, जापान, थाईलैंड,
वियतनाम, फिलीपाइंस, इंडोनेशिया, न्यूज़ीलैंड, मलेशिया वगैरह-वगैरह भी कतार में
हैं। ज़ाहिर है कि माँग भी बढ़ेगी। इस दवा को फिलहाल उन्हें दिया जाएगा, जिन्हें
वैक्सीन नहीं लगी है।
अभी तक जो परिणाम सामने आए हैं, उनके अनुसार
मोलनुपिराविर लेने पर जोखिम 50 फीसदी कम हो जाता है। पिछले महीने इस दवाई के जो
प्रारंभिक परिणाम सामने आए थे, उनके अनुसार इसे लेने वालों में से 50 फीसदी की
अस्पताल में भरती होने की संभावना कम थी। उधर पैक्सलोविड के बारे में दावा किया
गया है कि उससे 90 फीसदी जोखिम कम होता है। दोनों के प्रभावों की तुलना संभव नहीं
है, क्योंकि दोनों के प्रोटोकॉल अलग-अलग हैं।
पूरी पड़ताल करें
दूसरी तरफ संक्रमण
रोगों की फ्रांसीसी विशेषज्ञ कैरीन लैकॉम्ब ने सितंबर में कहा था कि इस प्रकार की
घोषणाओं को सोच-समझ कर स्वीकार करना चाहिए और तभी स्वीकार किया जाना चाहिए, जब
उससे जुड़ी स्टडीज़ की पूरी पड़ताल हो जाए। उधर विशेषज्ञ यह भी कह रहे हैं कि मर्क
और फायज़र की घोषणाएं फर्जी नहीं हैं। इन दवाओं की जहाँ अमेरिकी औषधि नियामक जाँच
कर रहे हैं वहीं शेयर बाजार में इन कंपनियों के शेयरों की कीमत आसमान में चढ़ गईं
हैं और अमेरिका में ही मर्क की दवा मोलनुपिराविर की 17 लाख कोर्सों
के आदेश चुके हैं। इस दवा के पाँच दिन के कोर्स की कीमत 700 डॉलर यानी करीब 50,000
रुपये है। फायज़र ने अपनी दवा की कीमत अभी नहीं बताई है, पर कहा है कि वह किफायती
होगी।
गुरुवार 4 नवंबर को ब्रिटिश नियामक संस्था
एमएचआरए ने मोलनुपिराविर को स्वीकृति देते हुए कहा कि हल्के और अधिक संक्रमण के
उपचार के लिए इसे मरीजों को दिया जा सकता है। इस प्रकार इस दवा को मान्यता देने
वाला दुनिया का पहला देश ब्रिटेन बन गया। अमेरिका की मर्क और रिजबैक बायोथिरैप्टिक्स
ने संयुक्त रूप से इसका विकास किया है। इस घोषणा के एक दिन बाद ही अमेरिकी कंपनी
फायज़र ने कहा कि हमारी एंटीवायरल दवा पैक्सलोविड अस्पताल में भरती होने और मौत के
जोखिम को 90 फीसदी तक कम कर सकती है। फायज़र का यह भी दावा है कि हमारी गोली मर्क
की तुलना में ज्यादा प्रभावी है।
जटिल प्रक्रिया
किसी भी रोग की औषधि खोजने की प्रक्रिया काफी
जटिल और समय खाने वाली होती है। सामान्यतः एक नए कंपाउंड (यौगिक) की खोज करने में
पाँच साल तक का समय लग जाता है। कोरोना के मामले में ज्यादातर देशों की नियामक
एजेंसियों ने क्लिनिकल परीक्षणों की प्रक्रिया को जल्द से जल्द स्वीकृति दी थी। इस
साल जून आते-आते दर्जनों दवाओं की पेशकश हो गई थी। इनमें तमाम दवाएं परीक्षणों के
अंतिम दौर में हैं।
दुनिया में महामारी की शुरुआत होने के बाद
मार्च 2020 से ही विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूरोपियन मेडिसिन एजेंसी (ईएमए), अमेरिकी
फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) और चीन सरकार ने अकादमीशियनों और औषधि कंपनियों
के समन्वय से इलाज खोजने का काम शुरू कर दिया था। डब्लूएचओ के अंतरराष्ट्रीय
क्लिनिकल रजिस्ट्री प्लेटफॉर्म ने कोविड-19 के उत्तर-संक्रमण चिकित्सा की 536
क्लिनिकल स्टडीज़ दर्ज की हैं। मार्च 2000 में ही डब्लूएचओ ने दस देशों में हजारों
संक्रमित व्यक्तियों के ‘सॉलिडैरिटी ट्रायल’ किए थे, ताकि
वर्तमान एंटी-वायरल औषधियों के प्रभावों का पता लग सके।
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