अफ्रीकी मूल के अमेरिकी नागरिक जॉर्ज फ़्लॉयड की पिछले साल हुई मौत के मामले में अमेरिका की एक अदालत में पूर्व पुलिस अधिकारी डेरेक शॉविन को हत्या का दोषी माने जाने के बाद राष्ट्रपति जो बाइडेन और उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस ने जॉर्ज फ़्लॉयड के परिवार से फोन पर बात की। बाइडेन ने टीवी पर राष्ट्र के नाम संदेश में कहा, कम से कम अब न्याय तो मिला, पर हमें अभी बहुत कुछ करना है। यह फ़ैसला सिस्टम में मौजूद वास्तविक नस्लवाद से निपटने का पहला क़दम साबित होने वाला है। सिस्टम में बैठा नस्लवाद देश के ज़मीर पर धब्बा है।
पुलिस-हिरासत में होने वाली मौतों के मामले में अमेरिकी अदालतें पुलिस अधिकारियों को बहुत कम दोषी ठहराती रही हैं। डेरेक शॉविन के इस मामले के बारे में कहा जा रहा है कि इससे पता लगेगा कि अमेरिका की विधि-व्यवस्था भविष्य में ऐसे मामलों से किस तरह से निपटेगी। इस फ़ैसले के बाद अदालत के बाहर उत्सव का माहौल था। लोग मुट्ठियां भींचकर ‘ब्लैक पावर! ब्लैक पावर!’ चिल्ला रहे थे।
पुलिस-व्यवस्था
में सुधार
लोगों का मानना है कि
इस फैसले के बाद अफ्रीकी मूल के नागरिकों पर पुलिस की ज्यादती पर लगाम लगेगी। यह
फैसला मील का पत्थर साबित होगा। उधर उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस ने सीनेट के सदस्यों
से पुलिस सुधार करने के लिए जॉर्ज फ़्लॉयड-बिल को पास करने का आग्रह किया है।
उन्होंने कहा, यह
काम काफ़ी समय से अटका पड़ा है। इस फैसले के साथ अमेरिका में हेट-क्राइम, पुलिस की भूमिका और मानवाधिकारों को
लेकर लम्बे अर्से से चली आ रही बहस में फिर से जान आ गई है।
पिछले साल जॉर्ज
फ़्लॉयड की हत्या के बाद अमेरिका पुलिस-व्यवस्था में सुधार के लिए मुहिम भी शुरू
हुई थी। डेमोक्रेटिक पार्टी ने इस साल फरवरी में हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में
‘जॉर्ज फ़्लॉयड जस्टिस इन पुलिसिंग एक्ट ऑफ 2021’ एक विधेयक भी पेश किया है। इसका
उद्देश्य पुलिस के दुर्व्यवहार को रोकना और उसके भीतर बैठे जातीय-पूर्वग्रहों को
खत्म करना है। यह विधेयक उस सदन से पास हो गया था, पर सीनेट से पास नहीं हुआ है। अभी इस
विधेयक के भविष्य को और यदि यह पास हो गया, तो उसके प्रभाव को देखना होगा। ये बातें
राजनीतिक-ध्रुवीकरण को बढ़ाती भी हैं। अब राजनीति की अगली परीक्षा 2022 के मध्यावधि चुनाव में होगी, पर उसके पहले इस मुकदमे की परिणति को देखना
होगा।
अदालती
लड़ाई
ज्यूरी के फैसले को
इससे ऊँची अदालत में चुनौती दी जाएगी। यह साबित करने की कोशिश भी होगी कि मीडिया
की कवरेज और आंदोलनों के कारण ज्यूरी ने यह फैसला किया है। डेमोक्रेट सांसद
मैक्सिन वॉटर्स की एक सार्वजनिक टिप्पणी भी अपील का आधार बनेगी। उन्होंने
प्रदर्शनकारियों से कहा था, ‘सड़कों
पर जमे रहें’ और डेरेक शॉविन को बरी किया गया तो ‘और जोर से टक्कर लेने’ के लिए
तैयार रहें। देश में पहले से चले आ रहे सामाजिक ध्रुवीकरण में इससे और तेजी आएगी
जो देश की राजनीति में दिखाई पड़ेगा।
फिलहाल तीन तरह के सवाल
हैं, जिनके उत्तर भविष्य
के गर्भ में छिपे हैं। पहला सवाल है कि इस मुकदमे में अब क्या होगा? ज़ाहिर है कि डेरेक शॉविन अगली अदालत
में अपील करेंगे। उस अदालत में क्या होगा? दूसरा सवाल अमेरिकी राजनीति से जुड़ा है। क्या इस मामले को
लेकर दोनों राजनीतिक दलों का दृष्टिकोण एक जैसा होगा या दोनों में अंतर होगा?
तीसरे कमला हैरिस जिस नए कानून की बात
कह रही हैं, वह क्या है और क्या
वह सीनेट से पास हो सकेगा? तीसरे
इस फैसले के बाद देश में बढ़ते जा रहे सामाजिक ध्रुवीकरण की दशा-दिशा क्या होगी?
डेरेक शॉविन के खिलाफ
हत्या के मामले के अलावा एक मुकदमा टैक्स-चोरी का भी चल रहा है। पर उससे पहले
देखना होगा कि उन्हें सजा क्या मिलती है। जिस अदालत ने उनका फैसला किया है,
उसके जज पीटर गाहिल ने कहा है कि अब आठ
हफ्ते बाद सजा सुनाई जाएगी। यानी कि जून के मध्य में सजा सुनाई जाएगी। अमेरिकी
अदालत की ज्यूरी ने शॉविन को हत्या (मैन स्लॉटर), दूसरी डिग्री की हत्या और तीसरी डिग्री
की हत्या का दोषी करार दिया है। सामान्यतः इन आरोपों की अधिकतम सजा करीब 40 साल की कैद होती है। पर, डेरेक शॉविन के साफ-सुथरे को देखते हुए,
मिनेसोटा राज्य के कानूनी दिशा-निर्देशों
के तहत उन्हें 15
साल तक की सजा हो सकती है, जबकि
अभियोजन पक्ष उन्हें ज्यादा लम्बी सजा देने का अनुरोध करेगा। सजा जो भी मिले डेरेक
शॉविन समय से पहले छूट जाएंगे, क्योंकि
मिनेसोटा में सजा पाने वाले ज्यादातर अपराधी दो तिहाई समय ही जेल में रहते हैं और
फिर वे बाकी समय निगरानी में बाहर बिताते हैं। यह एक तरह की पैरोल होती है।
बढ़ती
सामाजिक कटुता
अमेरिकी राष्ट्रपति
के पिछले चुनाव वहाँ बढ़ते सामाजिक ध्रुवीकरण का संदेश देकर गए हैं।
राजनीतिक-प्रक्रिया के साथ इस ध्रुवीकरण का जुड़ना भविष्य में कई तरह के खतरों का
दरवाजा खोल रहा है। दुर्भाग्य से यह केवल अमेरिका की समस्या नहीं है, बल्कि वैश्विक परिघटना है। एक तरफ
अलकायदा-आईएस के प्रभाव-क्षेत्र का विस्तार और दूसरी तरफ ह्वाइट सुप्रीमेसिस्टों
की गतिविधियाँ।
फ्रांस में जो हुआ,
वह हमने देखा। पिछले साल 15 मार्च को न्यूज़ीलैंड के क्राइस्टचर्च
शहर की दो मस्जिदों में हुए हत्याकांड ने गोरे आतंकवाद के नए खतरे की ओर दुनिया का
ध्यान खींचा था। यूरोप और अमेरिका में ह्वाइट सुप्रीमेसिस्टों और नव-नाजियों के
हमले बढ़े हैं। इटली और ऑस्ट्रिया में धुर दक्षिणपंथी सरकारें सत्ता में आईं।
फ्रांस में एक साल
बाद चुनाव होने वाले हैं और वहाँ की धुर दक्षिणपंथी पार्टी का सामना करने की
राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के सामने चुनौती है। चेक गणराज्य, डेनमार्क, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, यूनान, हंगरी, इटली, नीदरलैंड्स, स्वीडन और स्विट्जरलैंड में दक्षिणपंथी
पार्टियाँ सिर उठा रहीं हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि नई पीढ़ी इनमें शामिल हो रही
है।
ह्वाइट
सुप्रीमेसी
ध्रुवीकरण केवल
अफ्रीकी मूल के नागरिकों के खिलाफ नहीं है, बल्कि हर तरह के गैर-गोरों के खिलाफ है।
गत 16 मार्च को एटलांटा के
तीन स्पा में हुई शूटिंग में आठ व्यक्ति मारे गए, जिनमें एशियाई मूल की छह महिलाएं थीं।
अभी 15 अप्रेल को इंडियाना
राज्य में फैडेक्स फैसिलिटी में हुई गोलीबारी में चार सिखों सहित कम से कम आठ लोग
मारे गए। यहाँ जातीय-विद्वेष लम्बे अर्से से है, पर जॉर्ज फ़्लॉयड की हत्या के बाद चले
‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ आंदोलन ने भी कटुता को बढ़ाया। जैसी लूट उस दौरान हुई,
उसकी प्रतिक्रिया भी हुई। उसके जवाब में
‘ह्वाइट लाइव्स मैटर’ जैसी रैलियाँ भी हुईं। पिछले साल एफबीआई की सालाना रिपोर्ट
में बताया गया कि 2019
में अमेरिका में हेट क्राइम एक दशक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया।
अश्वेत-एक्टिविस्टों
का कहना है कि देश की न्याय-प्रक्रिया पूरी तरह नस्लवादी है। सच यह भी है कि
अमेरिका में पुलिस का काम बेहद मुश्किल है। प्रतिरोध-आंदोलन भी हिंसक होते हैं। हर
साल करीब 50 पुलिस वालों की
ड्यूटी के दौरान हत्याएं होती हैं। पिछले साल जॉर्ज फ़्लॉयड की हत्या के बाद हुए
उग्र प्रदर्शनों से माहौल में दोनों तरफ से कटुता बढ़ी है। अश्वेत नेताओं के बीच
एक तबका मानता है कि उग्र-प्रदर्शन और हिंसा उनके उद्देश्यों के खिलाफ जाते हैं,
पर कुल मिलाकर स्थितियाँ दोनों तरफ से
कटुतर होती जा रही हैं।
ये घटनाएं बढ़ती जा
रही हैं। अमेरिका की आंतरिक राजनीति में भी दक्षिणपंथी प्रतिक्रिया देखने को मिल
रही है। सन 2008
में बराक ओबामा के राष्ट्रपति बनने के बाद से गोरों की नफरतें और बढ़ीं। यूरोप के
दक्षिणपंथी खुद को अमेरिका के दक्षिणपंथियों के साथ जोड़कर देखते हैं। अमेरिका में
‘आइडेंटिटी एवरोपा’ नाम का संगठन तेजी से बढ़ रहा है। सेना के भीतर भी गोरों और
अश्वेतों के बीच तनाव की खबरें हैं।
ह्वाइट सुप्रीमेसी के
पक्ष में अक्सर नारे और बैनर-पोस्टर लगाए जाने की खबरें आती हैं। मूल रूप से
देहाती इलाकों में रहने वाले गोरे, हिस्पानी,
क्यूबाई और लैटिन अमेरिकी देशों के
यूरोपीय मूल के ज्यादातर लोग रिपब्लिकन पार्टी के साथ हैं और अश्वेत, एशियाई तथा अफ्रीकी मूल के नागरिक
डेमोक्रेट्स के साथ। इस ध्रुवीकरण के पीछे आर्थिक कारण भी हैं। गोरे लोग बेरोजगार
हो रहे हैं। उन्हें लगता है कि उनकी रोजी-रोटी बाहर वाले खा रहे हैं।
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