Tuesday, May 11, 2021

एशिया में तेज गतिविधियाँ और भारतीय विदेश-नीति की चुनौतियाँ

 


पश्चिम एशिया, दक्षिण एशिया और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अचानक गतिविधियाँ तेज हो गई हैं। एक तरफ अमेरिकी सेना की अफगानिस्तान से वापसी शुरू हो गई है, वहीं अमेरिका के हटने के बाद की स्थितियों को लेकर आपसी विमर्श तेज हो गया है। अफगानिस्तान में हाल में हुए एक आतंकी हमले में 80 के आसपास लोगों की मृत्यु हुई है, जिनमें ज्यादातर स्कूली लड़कियाँ हैं। ये लड़कियाँ शिया मूल के हज़ारा समुदाय से ताल्लुक रखती हैं।

ऐसा माना जा रहा है कि यह हमला दाएश यानी इस्लामिक स्टेट ने किया है। इस हमले के बाद अमेरिका ने कहा है कि अफगान सरकार और तालिबान को मिलकर इस गिरोह से लड़ना चाहिए। दूसरी तरफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री सऊदी अरब का दौरा करके आए हैं। इस दौरे के पीछे भी असली वजह अमेरिका के पश्चिम एशिया से हटकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर जाना है।

सऊदी अरब का प्रयास है कि भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव खत्म हो, ताकि अफगानिस्तान में हालात पर काबू पाया जा सके, साथ ही इस इलाके में आर्थिक सहयोग का माहौल बने। इस बीच सऊदी अरब और ईरान के बीच भी सम्पर्क स्थापित हुआ है। जानकारों के अनुसार अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन का ईरान के साथ परमाणु समझौते को दोबारा बहाल करने की कोशिश करना और चीन का ईरान में 400 अरब डॉलर के निवेश के फ़ैसले के कारण सऊदी अरब के रुख़ में बदलाव नज़र आ रहा है।

अमेरिका की कोशिश भी ईरान से रिश्तों को सुधारने में है। इतना ही नहीं सऊदी और तुर्की रिश्तों में भी बदलाव आने वाला है। इस प्रक्रिया में भारत की नई भूमिका भी उभर कर आएगी। भारत ने प्रायः सभी देशों के साथ रिश्तों को सुधारा है। पाकिस्तान के कारण या किसी और वजह से तुर्की के साथ खलिश बढ़ी है, पर उसमें भी बदलाव आएगा।

इस गतिविधि के समांतर रूस-चीन गठजोड़ भी इस इलाके में बढ़ा है। खासतौर से अफगानिस्तान में दोनों देश अपनी भूमिका देख रहे हैं। उधर भारत और चीन के बीच बढ़ती तल्खी से भी परिस्थितियाँ बदल रही हैं। हाल में भारत ने अपने आसपास के देशों के साथ रिश्तों को सुधारा है, ताकि चीन का प्रभाव कम किया जा सके। यूरोपियन यूनियन और चीन के बीच पूँजी निवेश का समझौता टूट जाने के बाद भारत और ईयू के बीच मुक्त-व्यापार समझौते के आसार बढ़े हैं। इसके समांतर चीन ने भी पश्चिम, दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में अपनी गतिविधियाँ बढ़ाई हैं।

चीन की बांग्लादेश को धमकी

ताजा खबर यह है कि चीन ने बांग्लादेश को धमकी दी है कि यदि वह क्वॉड में शामिल हुआ, तो हमारे रिश्ते बिगड़ेंगे। अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत इन चार देशों ने रणनीतिक गठजोड़ क्वॉड का गठन किया है। चीन को लगता है कि इस टीम में बांग्लादेश को खींचने की कोशिश हो रही है। यही कारण है कि बीजिंग इस गठबंधन को अपना प्रतिद्वंद्वी मानता है। वह नहीं चाहता कि बांग्लादेश इस गठबंधन में शामिल हो।

गत सोमवार को, बांग्लादेश में चीनी राजदूत ली जिमिंग ने ढाका में कहा, बांग्लादेश किसी भी तरह से क्वॉड में शामिल हुआ, तो चीन के साथ द्विपक्षीय संबंध गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो जाएंगे। जिमिंग ने कहा, हम नहीं चाहते कि बांग्लादेश इस गठबंधन में भाग ले।

चीनी राजदूत ने कहा कि यह संदेश प्रधानमंत्री शेख हसीना को हाल में चीनी रक्षामंत्री ने भी दिया है, जो 27 अप्रेल को बांग्लादेश के दौरे पर आए थे। चीनी रक्षामंत्री के बाद, चीनी राजदूत के बयान को दोनों देशों के संबंधों में एक तरह की चेतावनी माना जा रहा है। क्योंकि, चिन को लगता है कि क्वॉड चीन विरोधी गतिविधियों में शामिल है।

क्या है क्वॉड?

समुद्री व्यापार मार्गों को निर्बाध बनाने के लिए क्वॉड बनाया गया है। इस गठबंधन की पहली बैठक गत 13 मार्च को हुई थी। इन चार शक्तिशाली राज्यों ने बिना नाम लिए चीन पर निशाना साधा है। बैठक में पूर्वी लद्दाख में चीनी आक्रमण पर भी विस्तार से चर्चा हुई थी। क्वॉड में अन्य तीन देशों ने इस मुद्दे पर भारत का समर्थन किया था।

चीन के राजदूत ली जिमिंग ने ढाका में मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि क्वॉड एक छोटे उद्देश्य के साथ बनाया गया भू-राजनीतिक गुट है, जो चीन के खिलाफ काम कर रहा है। बांग्लादेशी मीडिया की रिपोर्टों के मुताबिक, ली ने यह कहा कि भले ही यह कहा गया है कि क्वॉड आर्थिक और सुरक्षा के मकसद से बनाया गया है लेकिन यह सच नहीं। असल में चीन के खिलाफ काम करने के लिए क्वॉड बनाया गया है। उन्होंने आगे कहा, 'जापान और अमेरिका ने साफ कहा है कि वे क्वॉड का हिस्सा सिर्फ चीन की वजह से बन रहे हैं।' उन्होंने कहा कि इसका हिस्सा बनने पर बांग्लादेश को कोई फायदा नहीं होगा।

क्वॉड्रिलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग यानी क्वॉड जापान, ऑस्ट्रेलिया, भारत और अमेरिका के बीच एक बहुपक्षीय समझौता है। मूल तौर पर यह संगठन हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने को लेकर तैयार हुआ, ताकि समुद्री रास्तों से व्यापार आसान हो सके लेकिन अब ये व्यापार के साथ-साथ सैनिक बेस को मजबूती देने पर ज्यादा ध्यान दे रहा है ताकि शक्ति संतुलन बनाए रखा जा सके। चीन इस गुट से खासा परेशान रहता है।

चीन को लगता है कि भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान मिलकर उसके खिलाफ रणनीतिक साजिश रच रहे हैं। इसकी वजह यह है कि संगठन दूसरे मुद्दों के साथ समुद्र में चीन की बढ़ती दादागीरी पर भी लगाम कसने की तैयारी में है। चीन इसे 'एशियाई नाटो' के रूप में देख रहा है। चीन को लगता है कि क्वॉड देश चीन के आसपास के समुद्र में अपना वर्चस्व बढ़ाना चाहता है। इस गुट को चीन हमेशा से अमेरिका की साजिश मानता है। इससे भी ऊपर क्वॉड को चीन के बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव के विरोध के रूप में भी देखा जाता है।

अमेरिका की बदली रणनीति

काफी समय तक कहा जाता थी कि अमेरिका की दिलचस्पी पश्चिम एशिया में हमेशा रहेगी, क्योंकि उसकी ऊर्जा आवश्यकताएं यहाँ से पूरी होती हैं। पर अब लग रहा है कि अमेरिका की दिलचस्पी चीन की बढ़ती ताकत को काबू में रखने की है और वह पश्चिम एशिया से हटकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर अपना ध्यान केंद्रित करने वाला है। इस इलाके की सैकड़ों साल पुरानी अदावतों को वह अपने हाल पर छोड़कर हट रहा है, पर इससे स्थानीय देश भी परेशान हैं।

भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में भी अमेरिका की भूमिका रही है। अब अमेरिका के हटने के बाद वह भूमिका बदलेगी। अब क्षेत्रीय देशों को तनाव को दूर करने और अपने पड़ोसियों के साथ जीने की जरूरत है। इसी विश्वास के कारण यूएई, बहरीन, मोरक्को और सूडान ने इजरायल के साथ रिश्ते सुधारे हैं। इसी प्रक्रिया के भीतर से फलस्तीन की समस्या का समाधान भी निकलेगा।  

पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान तुर्की और मलेशिया के साथ मिलकर एक नए इस्लामिक ब्लॉक की सम्भावनाओं को लेकर सामने आए थे। उन्होंने सऊदी अरब की भूमिका पर ध्यान नहीं दिया था। पर अब लगता है कि पाकिस्तान नई परिस्थितियों को समझ रहा है। पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष जनरल कमर जावेद बाजवा इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, जिसके कारण इमरान खान का सऊदी दौरा सम्भव हो पाया। उधर इस्लामिक देशों के संगठन ने पाकिस्तान को इशारा कर दिया है कि कश्मीर को लेकर हमारे सांकेतिक समर्थन से ज्यादा और कुछ सम्भव नहीं है।

दिक्कत यह है कि पाकिस्तानी हुक्मरां ने अपने देश की जनता को इतना ज्यादा उकसा रखा है कि कदम वापस खींचना भी बहुत मुश्किल लग रहा है। पर जनता को शिक्षित बनाने की जिम्मेदारी भी उनकी ही है। यदि वे जनता को उकसाते रहे, तो हालात उनके खिलाफ बनते चले जाएंगे। अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी के बाद खतरा पाकिस्तान के लिए भी है। इस इलाके में इस्लामिक स्टेट भी सक्रिय है। हाल में मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नाशीद पर हुए हमले से यह बात प्रकट हुई है कि कट्टरपंथी ताकतें काफी गहराई तक सक्रिय हैं।

 

1 comment:

  1. ढेर सारी जानकारियों से भरा सार्थक लेख

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