केन्द्र सरकार की पिछले चार साल की उपलब्धि है
नरेन्द्र मोदी को ब्रांड के रूप में स्थापित करना. पिछले चार साल की सरकार यानी ‘मोदी सरकार.’ स्वतंत्रता के बाद की यह सबसे ज्यादा व्यक्ति-केन्द्रित सरकार है. विरोधी-एकता
के प्रवर्तक चुनाव-पूर्व औपचारिक गठबंधन करने से इसलिए कतरा रहे हैं, क्योंकि उनके
सामने एक नेता खड़ा करने की समस्या है. जो नेता हैं, वे आपस में लड़ेंगे, जिससे एकता
में खलल पड़ेगा, दूसरे उनके पास नरेन्द्र मोदी के मुकाबले का नेता नहीं है.
पिछले चार वर्षों को राजनीति, प्रशासन,
अर्थ-व्यवस्था, विदेश-नीति और संस्कृति-समाज के धरातल पर परखा जाना चाहिए. सरकार
की ज्यादातर उपलब्धियाँ सामाजिक कार्यक्रमों, प्रशासनिक फैसलों और विदेश-नीति से
और अधिकतर विफलताएं सांविधानिक-प्रशासनिक संस्थाओं को कमजोर करने और सामाजिक
ताने-बाने से जुड़ी हैं. गोहत्या के नाम पर निर्दोष नागरिकों की हत्याएं हुईं. दलितों
को पीटा गया वगैरह. सरकार पर असहिष्णुता बढ़ाने के आरोप लगे.
मोदी सरकार की ज्यादातर उपलब्धियाँ राजनीतिक
हैं. सन 2014 के बाद से हुए ज्यादातर चुनावों में बीजेपी को सफलता मिली है.
कर्नाटक में भी उसे सबसे बड़ी पार्टी बनने में सफलता मिली, पर सरकार
बनाने की जल्दबाजी में उसकी भद्द भी पिटी. इस मोड़ पर आकर विरोधी दलों ने एक नई
राजनीति की ओर कदम बढ़ाया है. यह राजनीति है ‘मोदी बनाम सब.’
नरेन्द्र मोदी के समर्थन और विरोध में लिखना जितना आसान है,
उससे कहीं ज्यादा मुश्किल है, उनका तटस्थ आकलन. महंगाई में कमी नहीं है. पेट्रोल की कीमतें आसमान पर हैं. नोटबंदी के
बाद से पैदा हुई दिक्कतें जारी हैं. पर मोदी समर्थकों को कोई गिला नहीं है. वे
मोदी की कठोर छवि के प्रशंसक हैं. पिछले डेढ़ साल में कश्मीर में हुई फौजी
कार्रवाई में 290 आतंकवादी मारे गए हैं. मोदी-विरोधी वहाँ के हालात को लेकर परेशान
हैं, उनके समर्थक नहीं.
मोदी की खासियत है कि वे फैसला करते हैं, तो वह
लागू भी होता है. उन्होंने बजट की तारीख पूरे एक महीने खींचकर पीछे कर दी. उन्होंने
यह साबित करने में सफलता हासिल की है कि मैं ‘बदलाव का वाहक’ हूँ, जबकि
मेरे विरोधी यथा-स्थिति के समर्थक हैं. वे मनमोहन सिंह की सरकार के बाद आए थे,
जिसकी छवि ‘पॉलिसी-पैरेलिसिस’ की थी.
मोदी सरकार के चार साल अत्यधिक सक्रियता के रहे
हैं. यह सक्रियता सबसे ज्यादा विदेश-नीति के मोर्चे पर रही है. भू-राजनीतिक
परिदृश्य में भारत की भूमिका बदल रही है. हमें तेज बदलाव के लिए भारी पूँजी निवेश
और उच्चस्तरीय तकनीक की जरूरत है. आर्थिक संवृद्धि की दर मनमोहन सरकार के दूसरे
कार्यकाल के मुकाबले कम रही है, पर इस सरकार का भाग्य अच्छा था कि पेट्रोलियम की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में कमी आने की वजह से राजकोषीय
घाटे और मुद्रास्फीति में कमी आई.
अनुमान है कि पिछले चार साल में जन-धन, सौभाग्य, उज्ज्वला, मुद्रा
और स्किल इंडिया जैसी योजनाओं से करीब 22 करोड़ परिवारों के जीवन में बदलाव आया है. बिजली
आपूर्ति, घरेलू गैस की उपलब्धता, सड़क संचार और खुले में शौच से मुक्ति जैसे
लक्ष्य सामान्य व्यक्ति को छूते हैं. सौर ऊर्जा के मामले में भारत ने जबर्दस्त
सफलता हासिल की है. रेलवे और राजमार्ग निर्माण पर भारी निवेश हुआ है.
मोदी सरकार जब जीतकर आई थी, तब उसने ‘अच्छे दिन’ लाने के लिए पाँच साल माँगे थे. पिछले
साल नरेन्द्र मोदी ने ‘संकल्प से सिद्धि’ कार्यक्रम की घोषणा की. उनके अनुसार
1942 की अगस्त क्रांति के दौरान भारत ने स्वतंत्रता का जो संकल्प लिया था, वह 15
अगस्त 1947 को पूरा हुआ. सन 2022 में भारतीय स्वतंत्रता के 75 साल पूरे हो रहे हैं
और मोदी सरकार ने देश की जनता को पाँच साल लंबा एक नया स्वप्न दिया है.
मोदी सरकार देश के मध्य वर्ग और ख़ासतौर से
नौजवानों के सपनों के सहारे जीतकर आई थी. जून 2014 में सोलहवीं लोकसभा के पहले
अभिभाषण में राष्ट्रपति ने जिन नए कार्यक्रमों की घोषणा की थी उनमें देश में 100
विश्वस्तरीय स्मार्ट शहरों को स्थापित करने का कार्यक्रम था. यह कार्यक्रम भी 2022
में पूरा होगा. सरकार कहना चाहती है कि केवल पाँच साल काफ़ी नहीं होते. डिजिटल
इंडिया, स्वच्छ भारत, मेक
इन इंडिया और बेटी बचाओ जैसे तमाम नए कार्यक्रम भविष्य के स्वप्न हैं.
यह सरकार भावनाओं की लहरों पर सवार होकर आई थी.
उसे उस मोड़ का इंतज़ार है, जहाँ से वह ‘अच्छे दिन’ दिखा
सके. सरकार की उपलब्धियों में शामिल है ई-नाम (इलेक्ट्रॉनिक नेशनल एग्रीकल्चरल
मार्केट), एफडीआई को खोलना, जीएसटी, बिजली के क्षेत्र में सुधार, दिवालिया
कानून बनाकर बैंकों के डूबे धन की वापसी की शुरुआत, व्यापार को आसान बनाना और छोटे
कारोबारियों के लिए पूँजी की व्यवस्था करना. केंद्रीय कर्मचारियों को वेतन आयोग
मिला और पूर्व सैनिकों को ‘वन रैंक, वन पेंशन.’
सन 2019 के चुनाव तक सरकार के पास एक साल और
है. चुनाव पहले हो गए, तो एक साल भी नहीं है. इस साल के बजट में घोषित 10 करोड़
गरीब परिवारों के लिए स्वास्थ्य सुरक्षा योजना बड़ा क्रांतिकारी कदम है. सरकार ने
इस योजना का विवरण जारी नहीं किया है, पर इसे 2 अक्तूबर से लागू करने की योजना है. यह
कार्यक्रम की बड़ी उपलब्धि बनेगा, बशर्ते ठीक से लागू हो.
कुछ छोटी-छोटी ऐसी बातें हैं. पिछले चार साल में
1,175 पुराने कानूनों को खत्म किया गया. तमाम कानून ऐसे थे जो अंग्रेजों के जमाने
से चले आ रहे थे. सन 2014 में सरकार ने फैसला किया कि दस्तावेजों को राजपत्रित
अधिकारियों से प्रमाणित कराने की जरूरत नहीं है. पासपोर्ट बनवाने की व्यवस्था सुधरी
है. आयकर रिटर्न फाइल करना आसान हुआ है. सन 2013-14 में जहां 3.79 करोड़ लोगों ने
आईटीआर फाइल किया था वहीं 17-18 में इनकी संख्या 6.84 करोड़ हो गई.
डिजिटल ट्रांजीशन बढ़ने से काले धन की
सम्भावनाएं कम हुईं हैं. ई-कारोबार भी पिछले चार साल की देन है. जीएसटी लागू होने
के बाद राजमार्गों की चुंगियों पर ट्रकों की कतार अब खत्म हो गई है. पर चौराहों पर
ट्रक ड्राइवरों से नोट लेते पुलिस वाले अब भी देखे जा सकते हैं. फिर भी आम लोगों
को लगता है कि मोदी काम कर रहे हैं.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन सामाजिक कार्यकर्ता - अरुणा रॉय और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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