Tuesday, May 22, 2018

कर्नाटक से बना विपक्षी एकता का माहौल


कर्नाटक के चुनाव ने 2019 के लोकसभा चुनाव के नगाड़े बजा दिए हैं. बुधवार को बेंगलुरु के कांतिवीरा स्टेडियम में होने वाला समारोह एक प्रकार से बीजेपी-विरोधी मोर्चे का उद्घाटन समारोह होगा. एचडी कुमारस्वामी ने समारोह में राहुल गांधी, सोनिया गांधी, ममता बनर्जी, शरद पवार, नवीन पटनायक, चंद्रबाबू नायडू, के चंद्रशेखर राव, मायावती, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, एमके स्टालिन, अजित सिंह जैसे तमाम राजनेताओं को बुलावा भेजा है. इसमें शायद शिवसेना भी शामिल होगी, जो औपचारिक रूप से एनडीए के साथ है. समारोह में शिरकत मात्र से गठबंधन नहीं बनेगा, पर मूमेंटम जरूर बनेगा. 


मार्च में दिल्ली में सोनिया गांधी ने विरोधी दलों की बैठक बुलाई थी. यह समारोह उसी की कड़ी है. अब तीन बड़े सवाल उठेंगे. क्या विरोधी-एकता अनौपचारिक रहेगी? चुनाव-पूर्व गठबंधन होगा या नहीं? कांग्रेस इसके केन्द्र में होगी या परिधि में? जेडीएस से दुगनी सीटों के बावजूद कांग्रेस ने कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनाया. क्या वह इस महाजोट में मामूली दल बनकर रहेगी? तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण सवाल है कि बीजेपी का क्या होगा? सन 1996 में बीजेपी अछूत पार्टी बन गई थी, पर आज उसके नेतृत्व में एनडीए बड़ी ताकत है. खासतौर से पूर्वोत्तर में एनडीए ने विस्तार किया है. यों आंध्र में तेदेपा के हटने और महाराष्ट्र में शिवसेना की धमकियों ने उसे भी परेशान किया है.  

कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन पर जिन दो महत्वपूर्ण विरोधी दलों की सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं आई, वे हैं ओडिशा का बीजू जनता दल और आंध्र की वाईएसआर कांग्रेस. नवीन पटनायक खामोश हैं. कुमारस्वामी को बधाई देने वालों में उनका नाम नहीं है. हालांकि उन्हें भी निमंत्रण गया है. देखना होगा कि वे आते हैं या नहीं. लम्बे अरसे से वे कांग्रेस और बीजेपी के साथ समान दूरी बरत रहे हैं. उनकी सरकार के भी चार साल पूरे हो गए हैं और सन 2019 के लोकसभा चुनाव के साथ ओडिशा में भी चुनाव होंगे. अलबत्ता कर्नाटक में येदियुरप्पा सरकार बनाने के तौर-तरीकों की बीजद ने आलोचना की है.

इस तरह विरोधी दलों के बीच तीन किस्म के दल हैं. एक जो कांग्रेस और बीजेपी दोनों के विरोधी हैं. दूसरे केवल बीजेपी के विरोधी और तीसरे केवल कांग्रेस के विरोधी. बीजद मूलतः कांग्रेस-विरोधी दल हुआ करता था. कर्नाटक का जेडीएस भी कांग्रेस-विरोधी दल रहा है. नवीन पटनायक और एचडी देवेगौडा के मधुर सम्बंध हैं. इस साल जनवरी में बीजू पटनायक पर एक ग्रंथ के विमोचन-समारोह में जो पाँच प्रतिष्ठित मेहमान बुलाए गए थे, उनमें देवेगौडा भी थे. मीठे रिश्ते होने के बावजूद नवीन पटनायक की खामोशी का मतलब राजनीतिक है, व्यक्तिगत नहीं.

कर्नाटक चुनाव के ठीक पहले एचडी कुमारस्वामी ने दिल्ली के एक अख़बार को दिए इंटरव्यू में कहा था, बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस ज्यादा खतरनाक पार्टी है. हम अगर बीजेपी के साथ खड़े हो जाएं तो कर्नाटक में कांग्रेस का पता भी न चले. कर्नाटक कांग्रेस के डीके शिवकुमार का कहना है कि हम जेडीएस के साथ समझौते को ठीक नहीं मानते, पर हाईकमान ने तय कर दिया है, तो ठीक है. कांग्रेस की दृष्टि लोकसभा चुनाव पर है. इसलिए जेडीएस के साथ उसके अंतर्विरोध ढके रहेंगे. उसकी कोशिश होगी कि 2019 के चुनाव तक कोई अनहोनी न हो. यह कोशिश ममता बनर्जी की भी है.

सवाल है कि बीजेपी सबसे बड़ा खतरा है, तो उसके विरोधी दल मिलकर एक महागठबंधन क्यों नहीं बनाते? क्यों नहीं चुनाव-पूर्व गठबंधन बनाकर एक आर्थिक-सामाजिक कार्यक्रम की घोषणा करते हैं? केवल बीजेपी को रोकना क्या सार्थक-राजनीतिक ध्येय है? वस्तुतः चुनाव-पूर्व गठबंधन में कई तरह के खतरे हैं. क्षेत्रीय दलों के कार्यक्रम स्थानीय जमीन पर होते हैं. ज्यादा बड़ी दिक्कत राष्ट्रीय नेतृत्व को लेकर है. इस महागठबंधन का राष्ट्रीय नेता उभरेगा तो उसका नरेन्द्र मोदी से सीधा मुकाबला होगा. विरोधी दल ऐसा नहीं चाहते. नेता घोषित करने की कोशिश से उनके भीतर आपसी टकराव पैदा होगा.

गठबंधन की राजनीति अंततः मजबूरी होती है. बीजेपी के हों या कांग्रेस के या दूसरे दलों के. हरेक गठबंधन के पीछे अवसरवादिता होती है. राजनीति का मतलब मौके का फायदा उठाना भी है. विचारधाराओं का इस्तेमाल इस मौका-परस्ती की धार को तेज करने के लिए किया जाता है. एचडी कुमारस्वामी के मुख्यमंत्री बन जाने के बाद भाजपा-विरोधी ताकतों के मन में दिल्ली की कुर्सी को लेकर उम्मीदों के दरवाजे खुले हैं. सन 2019 में किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला तो, कुछ भी संभव है. एचडी देवेगौडा, ममता बनर्जी, शरद पवार, मायावती, नवीन पटनायक, के चन्द्रशेखर राव और नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षाओं में प्रधानमंत्री का पद भी शामिल है. राहुल गांधी अपनी इच्छा की घोषणा कर ही चुके हैं.

कर्नाटक का आंध्र, तेलंगाना और तमिलनाडु की राजनीति पर भी असर होगा. ममता बनर्जी और केसीआर ने संघीय मोर्चा बनाने की घोषणा की है. देखना होगा कि तेदेपा इस मोर्चे में शामिल होगी या नहीं. यह भी कि क्या डीएमके इसमें आएगी? अन्ना द्रमुक किसके साथ रहेगी? रजनीकांत और कमलहासन किसके साथ जाएंगे?  आंध्र में तेदेपा के साथ बीजेपी का गठबंधन खत्म होने के बाद खबरें हैं कि वाईएसआर कांग्रेस उसकी जगह लेगी. शायद उस गठबंधन में इस इलाके की एक और पार्टी शामिल होगी. सिने कलाकार पवन कल्याण ने जन सेना के नाम से एक नई पार्टी बनाई है.

कापू जाति के पवन कल्याण कापू आरक्षण की माँग को लेकर आंदोलन चला रहे हैं. कापू इस इलाके की प्रभावशाली जाति है. उत्तर प्रदेश के यादवों, महाराष्ट्र के मराठों और गुजरात के पाटीदारों की तरह यह संगठित और समृद्ध भी है. चंद्रबाबू नायडू कापू हैं, पर अब उन्हें चुनौती देने वाला एक नया नेता मैदान में है. वाईएसआर कांग्रेस के नेता जगनमोहन रेड्डी और जन सेना के पवन कल्याण आंध्र में यात्राओं पर निकले हुए हैं. दोनों एक-दूसरे के आलोचक हैं, पर दोनों ही चंद्रबाबू के विरोधी हैं. इन पार्टियों के सूत्रों से जो खबरें मिल रहीं हैं, उनके अनुसार उनकी हमदर्दी कर्नाटक में बीजेपी के साथ थी. बीजेपी की पराजय से उन्हें निराशा हुई है, पर दोनों बीजेपी के सम्पर्क में हैं. दक्षिण को ही नहीं, बुधवार का शपथ ग्रहण देशभर की राजनीति को प्रभावित करने वाला है. देखते रहिए.










1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (23-05-2018) को "वृद्ध पिता मजबूर" (चर्चा अंक-2979) पर भी होगी।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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