Wednesday, November 9, 2016

काले धन पर सरकार का ‘सर्जिकल स्ट्राइक’

2014 के चुनाव के पहले भारतीय जनता पार्टी ने कहा था कि विदेश में 400 से 500 अरब डॉलर का भारतीय कालाधन विदेशों में जमा है. विदेश में जमा काला धन अंतरराष्ट्रीय कानूनों के मकड़जाल में फंस कर रह गया. इस वजह से मोदी सरकार को जवाब देते नहीं बनता है. काले धन का मसला राजनीति और गवर्नेंस दोनों से जुड़ा है. हाल में भारत सरकार ने अघोषित आय को घोषित करने की जो योजना 1 जून 2016 से लेकर 30 सितंबर 2016 तक के लिए चलाई थी वह काफी सफल रही.

योजना की समाप्ति के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बताया कि अघोषित आय घोषणा योजना के माध्यम से 64,275 लोगों ने 65 हजार 250 करोड़ रुपए की संपत्ति घोषित की. सवाल है कि क्या 64 हजार लोगों के पास ही अघोषित आय है? फिर भी ये अब तक की सबसे बड़ी अघोषित आय थी. पर अनुमान है कि इससे कहीं बड़ी राशि अभी अघोषित है. नोटों को बदलने की योजना आजादी के बाद काले धन को बाहर निकालने की शायद सबसे बड़ी कोशिश है. इसके मोटे निहितार्थ इस प्रकार हैं-
- एक अनुमान है कि देश में करीब सवा सौ लाख करोड़ रुपए में से लगभग 80 फीसदी राशि 500 और 1000 रुपए के नोटों में है. नकद राशि के रूप में काला धन इन्हीं नोटों में है. काले धन की कई और शक्लें हैं, पर यह सबसे आसानी से नजर आने वाली शक्ल है.

- मोदी सरकार को राजनीतिक रूप से घेरने की तैयारियां हो रही हैं. अगले साल हिमाचल, गुजरात, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और गोवा विधानसभाओं के चुनाव होंगे. संसद का सत्र भी सामने है. एलओसी पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ ने सरकार को सहारा दिया है. नोटों को बदलने का असर शायद इससे भी बड़ा हो और दीर्घकालीन भी. जिस तरह इंदिरा गांधी ने बैंकों के राष्ट्रीयकरण और प्रीवी पर्स की समाप्ति को राजनीतिक रूप से भुनाया था, शायद यह भी उसी तरह का फैसला साबित हो. मोदी सरकार के लिए यह तुरुप का पत्ता है.

- कहना मुश्किल है कि बीजेपी की तैयारी क्या है, पर हमारे यहां चुनाव सबसे बड़ा आधार काला धन है. सभी पार्टियों के पास काला धन जमा है, जो चुनाव के वक्त निकलता है. भारतीय चुनाव को दुनिया में काले पैसे से चलने वाली सबसे बड़ी गतिविधि माना जाता है. क्या मोदी ने विरोधी दलों की अटैचियों में बंद रकम को रद्दी कागजों में तो नहीं बदल दिया है?

- जिस वक्त नरेन्द्र मोदी के राष्ट्र के नाम संदेश की जानकारी मिली, सबसे बड़ा सवाल यही था कि मसला क्या है? हालांकि प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में लोगों को सलाह दी है कि पैनिक न फैलाएं. पर डर अफरा-तफरी का ही है. खासतौर से छोटे लोगों की छोटी रकम का. और उन लोगों का जो नेट बैंकिग से नहीं जुड़े हैं.

सरकार को प्रशासनिक स्तर पर ऐसी व्यवस्था करनी होगी कि इससे सामान्य लोगों को दिक्कत न हो और नोट परिवर्तन आसानी से हो जाए. देश के साढ़े छह लाख से ज्यादा गांवों तक इस फैसले का असर होगा.

- 500 रुपए का नोट अब सामान्य व्यक्ति की जेब में होता है. जिसके पास छोटे नोट नहीं होंगे, वह अगले दो दिन कैसे खरीदारी करेगा? 9 नवम्बर को बैंक बंद हैं. कहीं अफरा-तफरी तो नहीं होगी? क्या सरकार ने अपना होमवर्क ठीक से कर लिया है?

काला धन पिछले चुनाव का बड़ा मुद्दा था. पिछले पांच साल से बीजेपी ने इस मसले को जोरदार तरीके से उठाया. स्वाभाविक रूप से उस पर दबाव है, पर मामला केवल विदेशी बैंकों में रखे काले धन का नहीं है, बल्कि देश के भीतर बढ़ती जा रही समांतर अर्थव्यवस्था का है. सीबीआई के एक पूर्व निदेशक ने विदेशी बैंकों में 500 अरब डॉलर के काले धन का अनुमान लगाया था. बीजेपी ने 2011 की एक रिपोर्ट में 500 अरब से 1400 अरब डॉलर के बीच का अनुमान था. वॉशिंगटन स्थित गैरलाभकारी शोध संस्था और एडवोकेसी संगठन ‘ग्लोबल फाइनेंशियल इंटीग्रिटी’ का अनुमान है कि 1948 से 2008 के बीच भारत से 462 अरब डॉलर के आसपास पूंजी गैरकानूनी तरीके से बाहर गई.

मेरिल लिंच की 2014 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि स्विस बैंकों में भारतीयों की जमा राशि दो अरब डॉलर से 2000 अरब डॉलर के बीच हो सकती है. एक मोटा अनुमान है कि देश को तकरीबन 100 अरब डॉलर के आसपास काले धन का पता लग जाए और इस पर 30-35 फीसदी की दर से टैक्स लगाया जाए तो इससे देश के राजस्व में 30-35 अरब डॉलर का इज़ाफा होगा. सवाल है कि क्या ऐसा सम्भव है?

ज्यादा बड़ा सवाल देश के भीतर बैठे काले धन का है. सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक जीडीपी का करीब 71 फीसदी तक कालाधन है. यानी हिसाब से करीब 2000 अरब डॉलर से ज्यादा की भारतीय अर्थव्यवस्था के समानांतर 1400 अरब डॉलर का कालेधन का कारोबार है. इससे एक ओर सरकारी राजस्व को घाटा होता है दूसरे मुद्रास्फीति बढ़ती है. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फाइनेंशियल मैनेजमेंट, और नेशनल काउंसिल ऑफ अप्लाएड इकोनॉमिक रिसर्च को देश में मौजूद काले धन के बारे में अनुमान लगाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. 

तीनों ने अलग-अलग आकलन दिए. अलबत्ता विश्व बैंक के शोध समूह के मुताबिक भारत में काले धन का जाल दूसरे विकासशील देशों के मुकाबले कम खतरनाक है.स्विसअर्थशास्त्री फ्रेडरिक श्नाइडर के नेतृत्व में किए गए अध्ययन ‘शैडो इकोनॉमीज ऑल ओवर द वर्ल्ड : न्यू एस्टीमेट फॉर 162 कंट्रीज फ्रॉम 1999 टू 2007’ के अनुसार भारत में काले कारोबार का औसत सकल उत्पाद का 23 से 26 फीसदी है जबकि पूरे एशिया में यह 28 से 30 फीसदी है. अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में यह 41-44 फीसदी है.

बीजेपी ने काले धन को चुनाव का मसला बनाया था. इसीलिए बार-बार यह सवाल किया जाता है कि सरकार कितना काला धन निकाल कर लाई. अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद इसी काले धन की मदद से चलता है. अपहरण-फिरौती, गुंडा-टैक्स और डाकाजनी का सीधा रिश्ता इससे है. काला धन व्यवस्था की अकुशलता का परिचायक है.

नोटों को बंद करने के फैसले के दो प्रभाव होंगे. पहला फौरी प्रभाव. और दूसरा दीर्घकालीन. काला धन निकालने के लिए यह देश की अब तक की सबसे बड़ी एक्सरसाइज है. इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि भ्रष्टाचार और काले धन पर रोक लगाने के तहत ये कदम उठाया गया है. अब जो नोट आपके पास हैं, उन्हें 30 दिसंबर 2016 तक बैंक खातों में जमा कराया जा सकता है.

उन्होंने बताया कि जिन लोगों के पास एक हजार और पांच सौ रुपए के नोट हैं, वह 30 दिसंबर तक इन्हें जमा करा जा सकते हैं. प्रधानमंत्री ने कहा कि लोगों को अफरातफरी करने की जरूरत नहीं है. इन्हें बैंकों और डाकघरों में जमा कराया जा सकता है.

2 comments:

  1. mujhe sirf 2000 ke note par thodi aashanka hai... baki toh yeh ek lajabab kadam hain

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  2. बढ़ि‍या कदम है सरकार का..

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