Sunday, November 13, 2016

काले धन पर वार तो यह है

काफी लोगों को समझ में नहीं आ रहा है कि नोटों को बदल देने से काला धन कैसे बाहर आ जाएगा। अक्सर हम काले धन का मतलब भी नहीं जानते हैं। कुछ लोगों को लगता है कि बड़ी मात्रा में  किसी के पास कैश हो तो वह काला धन है। कैश का मतलब हमेशा काला धन नहीं है। पर प्रायः कैश के रूप में काला धन होता है। यदि नकदी का विवरण किसी के पास है और वह व्यक्ति उसमें से उपयुक्त राशि टैक्स वगैरह के रूप में जमा करता है तो वह काला धन नहीं है। 
फिलहाल दुनिया में समझ यह बन रही है कि लेन-देन को नकदी के बजाय औपचारिक रिकॉर्डेड तरीके से करना सम्भव हो तो 'काले धन' का बनना कम हो जाएगा। इनफॉर्मेशन तकनीक ने इसे सम्भव बना दिया है। भारत में गरीबी, अशिक्षा और तकनीकी नेटवर्क के अधूरे विस्तार के कारण दिक्कतें हैं। उन्हें दूर करने की कोशिश तो करनी ही होगी। 

सीधे होने वाला लेन-देन सरकारी विवरण में नहीं आता, इसलिए उसमें से उपयुक्त राशि टैक्स के रूप में जमा नहीं हो पाती है। इससे कल्याणकारी कार्यक्रमों पर असर पड़ता है। चूंकि यह व्यवस्था जनता के पैसे से चलती है इसलिए काले धन का एक मतलब है ईमानदारी से टैक्स अदा करने वालों का उत्पीड़न। भारी मात्रा में नकदी का चलन मुद्रास्फीति यानी महंगाई को भी बढ़ाता है। यह एक्सरसाइज़ एक साथ कई तरह के काम करेगी।
तमाम तरह की आपराधिक गतिविधियाँ काले धन के सहारे चलती हैं। चोरी-डाके का पैसा बैंकों में जमा नहीं होता और अपहरणों से की गई उगाही बैंकों में नहीं जाती। और आज के संदर्भों में आतंकवादियों के स्रोत-साधन भी इसी काले धन से जुड़े हैं। यूरोपीय संघ अपने 500 यूरो के नोट को बंद करने पर विचार कर रहा है। इस नोट को 'बिन लादेन नोट' कहा जा रहा है, क्योंकि इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल आतंकी समूह करते हैं।
औपचारिक बैंकिंग के समानांतर हवाला, हुंडी और आंगड़िया जैसी अनौपचारिक व्यवस्थाएं चलती हैं। आईआईएम बेंगलुरु के प्रोफेसर आर वैद्यनाथन का अनुमान है कि पिछले छह दशक में भारत में तकरीबन 1.5 ट्रिलियन (1500 अरब) डॉलर की राशि टैक्स नेट में शामिल नहीं हो पाई। इसमें से 40 फीसदी रकम हवाला के नेटवर्क में है। व्यवस्था अपने उद्देश्य तभी पूरे कर पाएगी, जब इसमें सबका सहयोग होगा। तब उन लोगों पर बोझ भी कम होगा, जिनपर आज है।
ऐतिहासिक कारणों से देश का छोटा सा हिस्सा ही औपचारिक बैंकिंग से जुड़ा है। भवन निर्माण का काफी काम, सर्राफा बाजार का तीन चौथाई से ज्यादा काम और 80 फीसदी तक रिटेल बाजार नकदी पर चलते हैं। कम्प्यूटर और तकनीकी विकास ने विनिमय बाजार को बैंकिंग से जोड़ने में बड़ी भूमिका अदा की है, पर देश की परिस्थितियों को देखते हुए यह काम अपना समय लेगा। इतना तय है कि हमें विकास के रास्ते पर बढ़ना है तो काले धन को बाहर निकालना होगा। 
यह वित्तीय वर्ष शुरू होते समय देश में 16.50 लाख करोड़ रुपए की करेंसी प्रचलन में थी। यह राशि इसके एक साल पहले की राशि से 15.32 प्रतिशत ज्यादा थी। इसकी एक वजह शायद यह भी थी कि उन्हीं दिनों पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए थे। हमारे यहाँ चुनाव में नकदी चलती है और इसमें कापी काला धन होता है। हाल के वर्षों में बैंकिग प्रणाली में सख्ती आने से नकदी को सफेद करने का काम धीमा होता जा रहा है। अब 50,000 रुपए से ज्यादा के नकद जमा पर पैन विवरण देना जरूरी है। इससे बैंकों में प्रवेश करने वाली नकदी कम हो गई है।
अभी तक सहकारी बैंकों को सावधि जमा राशि पर टीडीएस काटने से छूट मिली हुई थी। अब यह छूट खत्म हो गई है। इससे सहकारी बैंकों का काले धन का संग्रहालय बनने की प्रवृत्ति रुकी है। इस वक्त काले धन के निवेश के लिए दो रास्ते ज्यादा इस्तेमाल हो रहे हैं। एक रियल एस्टेट और दूसरा सोना। सरकार ने सोने के आयात पर 10 फीसदी आयात शुल्क लगाकर इसे रोकने की कोशिश की है, इस वजह से तस्करी बढ़ी है।
तस्करी के कारोबार में पैसा हवाला के मार्फत जाता है। बहरहाल नकदी का प्रचलन लगातार बढ़ने से औपचारिक बैंकिग का विकास अपेक्षित गति से नहीं हो पा रहा है। 500 और 1000 के नोट बंद होने से एक तो काला धन सामने आएगा, दूसरे बैंकिंग व्यवस्था का काम बढ़ेगा। जिनके पास काला धन जमा है वे अपनी मुद्दा को कन्वर्ट कराने के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बैंकों में आएंगे। भविष्य में बड़े नोटों का प्रचलन और कम करना होगा। यह भारत की ही नहीं सारी दुनिया की समझ में आ रहा है। आतंकी गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए भी यह कदम जरूरी है।
हाल में भारत सरकार ने अघोषित आय को घोषित करने की जो योजना 1 जून 2016 से लेकर 30 सितंबर 2016 तक के लिए चलाई थी वह काफी सफल रही। योजना की समाप्ति के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बताया कि अघोषित आय घोषणा योजना के माध्यम से 64,275 लोगों ने 65 हजार 250 करोड़ रुपए की संपत्ति घोषित की। सवाल है कि क्या 64 हजार लोगों के पास ही अघोषित आय है? अलबत्ता वह अब तक की सबसे बड़ी अघोषित आय थी। अनुमान है कि इससे कहीं बड़ी राशि अभी अघोषित है।
मोटा अनुमान है कि देश में 16.5 लाख करोड़ रुपए में से लगभग 80 फीसदी राशि 500 और 1000 रुपए के नोटों में है। नकद राशि के रूप में काला धन इन्हीं नोटों में है। काले धन की कई और शक्लें हैं, पर यह सबसे आसानी से नजर आने वाली शक्ल है। एक मोटा अनुमान है कि देश को तकरीबन 100 अरब डॉलर के आसपास काले धन का पता लग जाए और इसपर 30-35 फीसदी की दर से टैक्स लगाया जाए तो इससे देश के राजस्व में 30-35 अरब डॉलर का इज़ाफा होगा।
बावजूद तमाम आरोपों के भारत में काला धन वैश्विक प्रवृत्ति के मुकाबले कम है। पर अर्थ-व्यवस्था में नकदी का प्रचलन ज्यादा है। उसपर रोक लगाने की जरूरत है। स्विस अर्थशास्त्री फ्रेडरिक श्नाइडर के नेतृत्व  में किए गए अध्ययन ‘शैडो इकोनॉमीज ऑल ओवर द वर्ल्ड : न्यू एस्टीमेट फॉर 162 कंट्रीज फ्रॉम 1999 टू 2007’ के अनुसार भारत में काले कारोबार का औसत सकल उत्पाद का 23 से 26 फीसदी है जबकि पूरे एशिया में यह 28 से 30 फीसदी है। अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में यह 41-44 फीसदी है। नोट बदलने की एक्सरसाइज़ छलनी का काम करेगी। काला धन पूरी तरह भले न रुके, पर रुकेगा। दिक्कतों को कुछ दिन के लिए सहन करें। फायदा आपका ही है।   

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