Sunday, November 20, 2016

नोटबंदी साध्य नहीं, साधन है

नरेन्द्र मोदी ने 8 नवम्बर के संदेश और उसके बाद के भाषणों में इस बात को कहा है कि सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार के खिलाफ मैं बड़ी लड़ाई लड़ना चाहता हूँ। बहुत से लोगों को उनकी बात पर यकीन नहीं है, पर जिन्हें यकीन है उनकी तादाद भी कम नहीं है। मोदी ने कहा है कि मुझे कम से कम 50 दिन दो। भारतीय जनता के मूड को देखें तो वह उन्हें पचास दिन नहीं पाँच साल देने को तैयार है, बशर्ते उस काम को पूरा करें, जिसका वादा है। सन 1971 और 1977 में देश की जनता ने सत्ताधारियों को ताकत देने में देर नहीं लगाई थी।
नोटबंदी की घोषणा होने के बाद से कांग्रेस सहित ज्यादातर विरोधी दलों ने आंदोलन का रुख अख्तियार किया है। वे जनता की दिक्कतों को रेखांकित कर रहे हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले अरविन्द केजरीवाल भी इस फैसले के खिलाफ हैं। उनका कहना है कि यह फैसला खुद में बड़ा स्कैम है। कहा यह भी जा रहा है कि बीजेपी ने नोटबंदी की चाल अपने राजनीतिक प्रतिस्पर्धियों को यूपी में मात देने के लिए चली है। बीजेपी ने अपना इंतजाम करने के बाद विरोधियों को चौपट कर दिया है।
शायद यह बात सच हो। हो सकता है कि इसकी वजह से 2017 में उत्तर प्रदेश के चुनाव में भाजपा को फायदा मिले। पर क्या मोदी का सोच यूपी तक सीमित है? क्या वे 2019 के चुनाव के बारे में नहीं सोचते हैं? केवल विरोधियों के काले धन को बर्बाद करने की योजना थी तो यह मुहिम नोटबंदी के बाद बंद हो जानी चाहिए। पर अब बेनामी जमीन-जायदाद, बैंक खातों, सोने-चाँदी के संग्रह और हवाला तथा आतंकी धन पर छापों की तैयारी हो रही है। यह बात इस अभियान को अपनी तार्किक परिणति की ओर ले जाती है।
केवल नकदी पर फिल्टर लगाने से काम पूरा नहीं होगा। इस द्वार को पार करना काले धन के कलाकारों को खूब आता है। पिछले डेढ़-दो हफ्ते में करेंसी बदलने के दो नम्बर के नए धंधे ने जन्म ले लिया है। मोबाइल आईडी बिक रहीं हैं ताकि बैंक अकाउंट ऑपरेट हो सकें। काला धन जमीन-जायदाद में, घरों में सोने-चांदी-हीरे-जेवरात की शक्ल में है। रियल एस्टेट में काफी निवेश काले धन में है। नकदी को नियंत्रित करना पहला कदम है। पर घरों में रखी सोने–चांदी की घोषणा कराने, उसका सोर्स पूछने को भी अनिवार्य बनाना चाहिए। बैंकों के लॉकरों तक पहुँचना चाहिए। रियल एस्टेट में बेनामी निवेश पर शिकंजा कसा जाना चाहिए। फ्लैट्स, जमीन-जायदाद को जब्त करने का अभियान चलाना चाहिए। इससे ही जनता को संतोष होगा।
समस्या केवल काला धन नहीं है। अफसरों की अपरिभाषित विवेकाधीन शक्तियों, संस्थाओं की गैर-जवाबदेही, कानूनों की अपारदर्शिता और उन्हें जानबूझकर भ्रामक बनाए जाने, इंस्पेक्टर राज, धीमी और ढीली न्याय-व्यवस्था के कारण हमारा सिस्टम भ्रष्ट है। इन सबसे ऊपर है राजनीति और काले धन का सीधा रिश्ता। काला धन कितनी सतह पर है और कितने तरह का है, इसे लेकर भारी-भारी ग्रंथ लिखे जा सकते हैं। क्या आपके सामने ऐसे मौके नहीं आए जब किसी जेवर विक्रेता ने आपसे कहा हो कि रसीद लेने पर इस अँगूठी की कीमत इतनी होगी और रसीद न लेने पर इतनी होगी? क्या आपने चौराहों पर ट्रैफिक कांस्टेबल खुलेआम घूस लेते नहीं देखे हैं? क्या मकानों की खरीद-फरोख्त में काफी बड़ी रकम काले धन के रूप में नहीं होती है?
हम निवेश के रूप सोना खरीदना पसंद करते हैं, जो प्रायः नकद और बगैर पक्की रसीद के खरीदा-बेचा जाता है। क्या यह सच नहीं है कि लगभग सारे के सारे राजनीतिक दल कॉरपोरेट हाउसों से चंदा नकदी में लेते हैं? सारी घूसखोरी इसी नकदी से होती है। चुनाव के वक्त लगभग सभी राजनीतिक दलों का ज्यादातर खर्च काले पैसे से होता है? आतंकवाद इसी काले धन की मदद से चलता है। अपहरण-फिरौती, गुंडा-टैक्स और डाकाजनी सब इसमें शामिल हैं। इसमें वह नकली करेंसी भी शामिल है, जो पाकिस्तान के सिक्योरिटी प्रेस में तैयार होती है।
काला धन व्यवस्था की अकुशलता का परिचायक है। अर्थ-व्यवस्था का काफी बड़ा हिस्सा बैंकिग प्रणाली के बाहर है। नरेन्द्र मोदी की असली परीक्षा 50 दिन के बाद होगी। क्योंकि यह लड़ाई नोटों के विमुद्रीकरण से आगे जाएगी। नोटबंदी हो या टैक्स माफी, जब तक काले धन के पुनर्जन्म की कहानी का अंत नहीं होगा, समस्या बनी रहेगी। अलबत्ता बैंकिग व्यवस्था का विस्तार और डिजिटाइज़ेशन इसे एक हद तक रोक सकते हैं।
नोटबंदी के बाद माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स का कहना है कि भारत में वित्तीय व्यवस्था का डिजिटाइज़ेशन क्रांतिकारी साबित होगा। इस देश का आकार इतना बड़ा है कि यहाँ का डिजिटाइज़ेशन दुनिया को बदल कर रख देगा। यह कहना सही नहीं है कि भारत में तकनीकी बदलाव बड़े स्तर पर सम्भव नहीं। मोबाइल फोन क्रांति ने सारी बातें गलत साबित कर दीं। समय कैसे बदलता है, इसे भी समझना चाहिए। आज अमेरिका में 2 फीसदी लोग खेती करते हैं। किसी जमाने में 90 फीसदी लोग खेती से जुड़े थे। तब उनसे कहा जाता कि एक समय आएगा जब 2 फीसदी लोग ही खेती करेंगे तो वे स्वीकार नहीं करते।
खबरें हैं कि आयकर विभाग ने देशभर में बिल्डरों का सर्वे कराया है। कई टीमें बनाई गईं हैं, जो बेनामी सम्पत्तियों की जाँच करेंगी। माना जाता है कि 100 करोड़ की परियोजना में 15-20 करोड़ रुपए नकदी के रूप में होते हैं। ज्यादातर यह रकम काली कमाई की होती है। इस काले धन की मदद से बिल्डरों ने सम्पत्ति की कीमतों को कृत्रिम रूप से आसमान पर बनाकर भी रखा था। नोटबंदी के बाद सोने का भाव 60,000 रुपए तोला तक पहुँच गया। बिल्डरों के बाद अगला निशाना सर्राफा बाजार है। काले धन का इससे भी बड़ा केन्द्र हवाला बाजार है। तमाम उत्पादक एक्साइज के घोटाले करते हैं। खरीद और बिक्री के कच्चे-पक्के कागजों की परम्परा है।
देशभर में जीएसटी लागू होने वाला है, जिसकी वजह से कर-चोरी पर भी रोक लगेगी। व्यापारी वर्ग भाजपा का राजनीतिक आधार है। नोटबंदी से सबसे ज्यादा नाराज यही वर्ग है। क्या नरेन्द्र मोदी अब ज्यादा बड़े वर्ग की राजनीति करना चाहते हैं? उन्होंने 2014 का चुनाव विकास और युवा आकांक्षाओं और मध्यवर्ग के सपनों के सहारे जीता था। शायद वे आम आदमी पार्टी के हाथों से उसका हथियार छीनने जा रहे हैं। ऐसा है तो राजनीतिक चंदे को पारदर्शी बनाने की जरूरत होगी। इस खेल में उनकी पार्टी को भी धक्का लगेगा। उन्होंने व्यापारियों को नाराज करके अपने राजनीतिक आधार को धक्का पहुँचाया है। पर उन्हें नया जनाधार मिल भी सकता है। क्या वे इसके लिए तैयार हैं?
हरिभूमि में प्रकाशित

3 comments:

  1. मन वही..धड़कन वही...पर नई धुन सुनने की जिद...साज तो बदलो...उम्दा आलेख..

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  2. जय मां हाटेशवरी...
    अनेक रचनाएं पढ़ी...
    पर आप की रचना पसंद आयी...
    हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 22/11/2016 को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की गयी है...
    इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

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  3. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ..... very nice ... Thanks for sharing this!! :) :)

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