Sunday, September 27, 2015

वैश्विक मंच पर भारत की बदलती भूमिका

ग्रुप ऑफ 4 की शिखर बैठक में भारत, जर्मनी, ब्राजील और जापान के राष्ट्राध्यक्षों ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की संरचना में सुधार की माँग पर जोर देकर दूसरे विश्व युद्ध के बाद के वैश्विक यथार्थ की ओर सबका ध्यान खींचा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा संयुक्त राष्ट्र महासभा के एजेंडा-2030 सत्र के कारण और दुनिया के बदलते शक्ति संतुलन के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है। संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वक्तव्य का औपचारिक महत्व ही होता है, पर उससे राष्ट्रीय चिंतन की दिशा का पता जरूर लगता है। साथ ही वैश्विक मंच पर भारत की भावी भूमिका का संकेत भी उससे मिलता है। इस साल महासभा का यह सम्मेलन दुनिया के सतत विकास का एजेंडा-2030 जारी कर रहा है। इसके लिए विशेष सत्र बुलाया गया है। सन 2000 में सन 2015 तक मानव विकास के आठ लक्ष्य संयुक्त राष्ट्र ने घोषित किए थे, जो पूरे नहीं हो पाए। दुनिया के सामने चुनौती है कि अगले पन्द्रह साल में उन खामियों को दूर किया जाए, जिनके कारण लक्ष्य पूरे नहीं हुए। गरीबी, सार्वजनिक स्वास्थ्य, आवास और मौसम में बदलाव जैसी चुनौतियाँ दुनिया के सामने हैं। वहीं वैश्विक आतंकवाद सिर उठा रहा है। इन विसंगतियों के बीच हमें आने वाले समय में भारत की भूमिका को परिभाषित करना होगा।
नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार का मुद्दा उठाते हुए स्पष्ट किया कि भविष्य में भारत महत्वपूर्ण भूमिका निभाना चाहेगा। शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र में सतत विकास पर आयोजित बैठक को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि सुरक्षा परिषद समेत संयुक्त राष्ट्र के तमाम अंगों में बदलाव की जरूरत है। पर अभी हमें कुछ और घटनाक्रमों पर नजर रखनी है। रविवार को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के भाषण का। इसके बाद संयुक्त महासभा की सामान्य चर्चा 30 सितम्बर को है, जिसमें दोनों देशों के नेताओं के भाषण महत्वपूर्ण होंगे।

सामान्य चर्चा में सम्भवतः नवाज शरीफ कश्मीर का सवाल उठाएंगे। भारत ने पहले से ही कहा है कि यदि पाकिस्तान उसका सवाल उठाएगा तो उसे माकूल जवाब दिया जाएगा। अभी तक नरेंद्र मोदी ने सीमा पार से चल रही आतंकवादी गतिविधियों के बारे में कुछ कहा नहीं है। पर इतना साफ है कि भारत ने अब पाकिस्तान की उपेक्षा करने का फैसला किया है। महासभा के हाशिए पर नवाज शरीफ के साथ बातचीत का कार्यक्रम नहीं रखा गया, जबकि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री के साथ उन्होंने मुलाकात की। मोदी ने फ्रांस, जॉर्डन, भूटान, मैक्सिको, गुयाना, साइप्रस, स्वीडन, कतर और फलस्तीन समेत कई देशों के नेताओं के साथ बैठक की है। सबसे महत्वपूर्ण है बराक ओबामा के साथ उनकी शिखर वार्ता।  
अमेरिका के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बेन रोड्स के अनुसार बराक ओबामा के साथ मुलाकात बहुत अहम होगी। पिछले साल मई में मोदी के सत्ता में आने के बाद से यह दोनों नेताओं की आमने-सामने की तीसरी बैठक है। इस दौरान मोदी की अमेरिका की फॉर्च्यून 500 कम्पनियों के सीईओ के साथ मुलाकात पूँजी निवेश के लिहाज से महत्वपूर्ण थी। अमेरिकी कम्पनियों की शिकायत है कि भारत के आर्थिक सुधारों में तेजी नहीं आ रही है। इसका कारण स्थानीय राजनीति भी है। दस-दस साल पुराने विधेयक संसद में पास होने के लिए पड़े हैं। साथ ही देश के टैक्स कानूनों में अफसरों की भूमिका बहुत ज्यादा है।
इस बीच जिस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए था वह है विदेश मंत्री सुषमा स्वराज एवं अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन कैरी के बीच पहली भारत-अमेरिका सामरिक और वाणिज्यिक वार्ता और उसके बाद जारी संयुक्त वक्तव्य। इस वक्तव्य में अमेरिका ने स्पष्ट किया है कि वह भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता दिलाने के लिए पूरा समर्थन देगा। पिछले पाँच साल से अमेरिका की यह सुस्पष्ट नीति है। नवम्बर 2010 में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भारत यात्रा के दौरान पहली बार यह बात कही थी। इनके अलावा वह भारत को चार अंतरराष्ट्रीय समूहों में प्रवेश दिलाने का प्रयास कर रहा है। ये हैं न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप, मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रेजीम, 41 देशों का वासेनार अरेंजमेंट और चौथा ऑस्ट्रेलिया ग्रुप। ये चारों समूह सामरिक-तकनीकी विशेषज्ञता के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं।
दोनों देशों ने सचिव स्तर की वार्ता को जापान के मंत्री स्तर के साथ त्रिपक्षीय स्तर पर ले जाने का भी फैसला किया है। संयुक्त राष्ट्र महासभा की  बैठक के दौरान कैरी और सुषमा स्वराज के साथ जापानी मंत्री की बैठक भी होगी। इस बात के अलावा अमेरिका ने पाकिस्तान पर इस बात के लिए दबाव बनाया है कि वह मुम्बई हमले के साजिशकारों पर कार्रवाई करे। भारतीय विदेश नीति में यह बहुत बड़े बदलाव का संकेत है, जिसके निहितार्थ हमें आर्थिक मोर्चे पर भी देखने को मिलेंगे।
भारत की पहली प्राथमिकता आर्थिक विकास की गति को बढ़ाना है। शुक्रवार को मोदी ने सं.रा. महासभा में कहा कि न्यायपूर्ण व्यवस्था और सतत विकास के लिए दुनिया भर से गरीबी हटाना ज़रूरी है। भारत ने विकास का जो रास्ता चुना है उसमें और संयुक्त राष्ट्र के मार्ग में समानता है। गरीबी को हटाना, महिलाओं को अधिकृत करना और जलवायु परिवर्तन से निपटना सभी देशों का सर्वोच्च लक्ष्य होना चाहिए।
आज दुनिया तमाम मसलों को एक जगह पर देख रही है। इसे वैश्वीकरण कहते हैं। यह केवल पूँजी का वैश्वीकरण नहीं है, बल्कि समस्याओं के समाधान का वैश्वीकरण भी है। 1945 में अंतरराष्ट्रीय व्यापार संगठन की स्थापना में सफलता न मिल पाने के बाद 1949 में जनरल एग्रीमेंट ऑन ट्रेड एंड टैरिफ (गैट) तक दुनिया पहुँची। उसके बाद 1993 तक जिनीवा से उरुग्वाय चक्र तक की आठ वार्ताओं के चक्र चले। और 1995 में विश्व व्यापार संगठन बना। पन्द्रह साल में तमाम नए सवाल उठे हैं। दोहा चक्र की बातचीत अभी जारी है। दुनिया के पर्यावरण पर बातचीत जारी है। संयुक्त राष्ट्र ने जो मिलेनियम डेवलपमेंट गोल 2015 के लिए तय किए हैं वे पूरे नहीं हुए। और अब संयुक्त राष्ट्र महासभा एजेंडा-2030 पर बात कर रही है।  
संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्तर साल पहले जब एक भयानक विश्व युद्ध का अंत हुआ था, तब इस संगठन के रूप में एक नई आशा ने जन्म लिया था। इस मौके पर मोदी ने कहा कि एजेंडा 2030 का विज़न महत्वाकांक्षी है और उद्देश्य उतने ही व्यापक हैं। हम सब गरीबी से मुक्त विश्व का सपना देख रहे हैं। हमारे निर्धारित लक्ष्यों में गरीबी उन्मूलन सब से ऊपर है। पर्यावरणीय लक्ष्य भी इनमें शामिल हैं। मोदी ने वैदिक ऋचाओं को उधृत करते हुए बताया कि भारत की परम्पराएं समावेशी विकास की आधुनिक अवधारणाओं से मेल खाती हैं।

जैसे-जैसे हमारी वैश्विक भूमिका बढ़ेगी वैसे-वैसे चुनौतियाँ भी बढ़ेंगी। संयुक्त राष्ट्र ने सन 2007 में मिलेनियम डेवलपमेंट के लक्ष्यों में रहने वाली कमी के अध्ययन के लिए एक दल बनाया था, जिसने इस साल उसकी रिपोर्ट जारी की है। मानव विकास के लक्ष्य सीधे भारत की गरीबी से जुड़े हैं। इसलिए महासभा का यह सत्र हमारे लिए महत्वपूर्ण है। 
हरिभूमि में प्रकाशित

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