Sunday, April 26, 2020

कोरोना-दौर में मीडिया की भूमिका


कोरोना का संक्रमण जितनी तेजी से फैला है, शायद अतीत में किसी दूसरी बीमारी का नहीं फैला। इसी दौरान दुनिया में सच्ची-झूठी सूचनाओं का जैसा प्रसार हुआ है, उसकी मिसाल भी अतीत में नहीं मिलती। इस दौरान ऐसी गलतफहमियाँ सामने आई है, जिन्हें सायास पैदा किया और फैलाया गया। कुछ बेहद लाभ के लिए, कुछ राजनीतिक कारणों से, कुछ सामाजिक विद्वेष को भड़काने के इरादे से और कुछ शुद्ध कारोबारी लाभ या प्रतिद्वंद्विता के कारण। उदाहरण के लिए कोरोना संकट से लड़ने के लिए पीएम-केयर्स नाम से एक कोष बनाया गया, जिसमें पैसा जमा करने के लिए एक यूपीआई इंटरफेस जारी किया गया। देखते ही देखते सायबर ठग सक्रिय हो गए और उन्होंने उस यूपीआई इंटरफेस से मिलते-जुलते कम से कम 41 इंटरफेस बना लिए और पैसा हड़पने की योजनाएं तैयार कर लीं। लोग दान करना चाहते हैं, तो उस पर भी लुटेरों की निगाहें हैं।

Monday, April 20, 2020

कैसा होगा उत्तर-कोरोना तकनीकी विश्व?


कोरोना की बाढ़ का पानी उतर जाने के बाद दुनिया को कई तरह के प्रश्नों पर विचार करना होगा। इनमें ही एक सवाल यह भी है कि दुनिया का तकनीकी विकास क्या केवल बाजार के सहारे होगा या राज्य की इसमें कोई भूमिका होगी? इन दो के अलावा विश्व संस्थाओं की भी कोई भूमिका होगी? तकनीक के सामाजिक प्रभावों-दुष्प्रभावों पर विचार करने वाली कोई वैश्विक व्यवस्था बनेगी क्या? इससे जुड़ी जिम्मेदारियाँ कौन लेने वाला है?
इस हफ्ते की खबर है कि मोबाइल फोन बनाने वाली कम्पनी एपल और गूगल ने नोवेल कोरोनावायरस के विस्तार को ट्रैक करने के लिए आपसी सहयोग से स्मार्टफोन प्लेटफॉर्म विकसित करने का फैसला किया है। ये दोनों कंपनियां मिलकर एक ट्रैकिंग टूल बनाएंगी, जो सभी स्मार्टफोनों में मिलेगा। यह टूल कोरोना वायरस की रोकथाम में सरकार, हैल्थ सेक्टर और आम प्रयोक्ता की मदद करेगा। यह टूल आईओएस और एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम में कॉण्टैक्ट ट्रेसिंग का काम करेगा। यह काम तभी सम्भव है, जब दुनिया के सारे स्मार्टफोन यूजर्स एक ही ग्रिड या ऐप पर हों।

Sunday, April 19, 2020

‘कोरोना-दौर’ की खामोश राजनीति


कोरोना संकट के कारण देश की राजनीति में अचानक ब्रेक लग गए हैं या राजनीतिक दलों को समझ में नहीं आ रहा है कि उन्हें करना क्या है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार अपनी स्थिति मजबूत करती जा रही है, पर विरोधी दलों की स्थिति स्पष्ट नहीं है। वे लॉकडाउन का समर्थन करें या विरोध? लॉकडाउन के बाद जब हालात सामान्य होंगे, तब इसका राजनीतिक लाभ किसे मिलेगा? बेशक अलग-अलग राज्य सरकारों की भूमिका इस दौरान महत्वपूर्ण हुई है। साथ ही केंद्र-राज्य समन्वय के मौके भी पैदा हुए हैं।
हाल में दिल्ली की राजनीति में भारी बदलाव आया है और वह ‘कोरोना-दौर’ में भी दिखाई पड़ रहा है। केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा ने अपनी कार्यकुशलता को व्यक्त करने की पूरी कोशिश की है, साथ ही केंद्र के साथ समन्वय भी किया है। पश्चिम बंगाल और एक सीमा तक महाराष्ट्र की रणनीतियों में अकड़ और ऐंठ है। पर ज्यादातर राज्यों की राजनीति क्षेत्रीय है, जिनका बीजेपी के साथ सीधी टकराव नहीं है। महत्वपूर्ण हैं कांग्रेस शासित पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के अनुभव।

Monday, April 13, 2020

चीन के राजनीतिक नेतृत्व की ‘बड़ी परीक्षा’


बीसवीं सदी के तीसरे दशक की शुरुआत कोरोना वायरस जैसी दुखद घटना के साथ हुई है। जिस देश से इसकी शुरुआत हुई थी, उसने हालांकि बहुत जल्दी इससे छुटकारा पा लिया, पर उसके सामने दो परीक्षाएं हैं। पहली महामारी के आर्थिक परिणामों से जुड़ी है और दूसरी है राजनीतिक नेतृत्व की। राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने इस वायरस को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की बड़ी परीक्षा बताया है। वहाँ उद्योग-व्यापार फिर से चालू हो गए हैं, पर दुनिया की अर्थव्यवस्था पर संकट छाया हुआ है, जिसपर चीनी अर्थव्यवस्था टिकी है। सवाल है कि चीनी माल की वैश्विक माँग क्या अब भी वैसी ही रहेगी, जैसी इस संकट के पहले थी?

Sunday, April 12, 2020

‘विश्व-बंधु’ भारत


वेदवाक्य है, ‘यत्र विश्वं भवत्येक नीडम। ’यह हमारी विश्व-दृष्टि है। 'एक विश्व' की अवधारणा, जो आधुनिक ग्लोबलाइजेशन या ग्लोबल विलेजजैसे रूपकों से कहीं व्यापक है। अथर्ववेद के भूमि सूक्त या पृथ्वी सूक्तसे पता लगता है कि हमारी विश्व-दृष्टि कितनी विषद और विस्तृत है। आज पृथ्वी कोरोना संकट से घिरी है। ऐसे में एक तरफ वैश्विक नेतृत्व और सहयोग की परीक्षा है। यह घड़ी भारतीय जन-मन और उसके नेतृत्व के धैर्य, संतुलन और विश्व बंधुत्व से आबद्ध हमारे सनातन मूल्यों की परीक्षा भी है। हम वसुधैव कुटुंबकम्के प्रवर्तक और समर्थ हैं। यह बात कोरोना के विरुद्ध वैश्विक संघर्ष से सिद्ध हो रही है।
हमारे पास संसाधन सीमित हैं, पर आत्मबल असीमित है, जो किसी भी युद्ध में विजय पाने की अनिवार्य शर्त है। पिछले कुछ समय ने भारत ने एक के बाद एक अनेक अवसरों पर पहल करके अपनी मनोभावना को व्यक्त किया है। कोरोना पर विजय के लिए अलग-अलग मोर्चे हैं। एक मोर्चा है निवारण या निषेध का। अर्थात वायरस के लपेटे में आने से लोगों को बचाना। दूसरा मोर्चा है चिकित्सा का, तीसरा मोर्चा है उपयुक्त औषधि तथा उपकरणों की खोज का और इस त्रासदी के कारण आर्थिक रूप से संकट में फँसे बड़ी संख्या में लोगों को संरक्षण देने का चौथा मोर्चा है। इनके अलावा भी अनेक मोर्चों पर हमें इस युद्ध को लड़ना है। इसपर विजय के बाद वैश्विक पुनर्वास की अगली लड़ाई शुरू होगी। उसमें भी हमारी बड़ी भूमिका होगी।
एक परीक्षा, एक अवसर
यह भारत की परीक्षा है, साथ ही अपनी सामर्थ्य दिखाने का एक अवसर भी। गत 13 मार्च को जब नरेंद्र मोदी ने कोरोना से लड़ाई के लिए दक्षेस देशों को सम्मेलन का आह्वान किया था, तबतक विश्व के किसी भी नेता के दिमाग में यह बात नहीं थी इस सिलसिले में क्षेत्रीय या वैश्विक सहयोग भी सम्भव है। ज्यादातर देश इसे अपने देश की लड़ाई मानकर चल रहे थे। इस हफ्ते प्रतिष्ठित पत्रिका फॉरेन पॉलिसी में माइकल कुगलमैन ने अपने आलेख में इस बात को रेखांकित किया है कि नरेंद्र मोदी एक तरफ अपने देश में इस लड़ाई को जीतने में अग्रणी साबित होना चाहते हैं, साथ ही भारत को एक नई ऊँचाई पर स्थापित करना चाहते हैं।