इंचियॉन के एशिया खेलों में जब भारत की टीम जा रही थी तब
उम्मीद ज़ाहिर की गई थी कि सन 2010 के ग्वांगझो एशियाड के मुकाबले इस बार हमारे
खिलाड़ी बेहतर प्रदर्शन करेंगे। ग्वांगझो में हमें कुल 65 मेडल मिले थे। एशिया
खेलों में वह हमारा अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। इसके पहले सन 1982 के
दिल्ली एशियाड में हमें 57 मेडल मिले थे। पहले एशिया खेल सन 1951 में दिल्ली में
हुए थे। तब पदक तालिका में हम 51 मेडलों के साथ दूसरे स्थान पर रहे, जबकि 60
मेडलों के साथ जापान पहले स्थान पर रहा। 1982 में कुल 57 मेडलों के साथ हम पाँचवें
पर, 2010 में छठे पर और इस बार 57 मेडलों के साथ हम आठवें स्थान पर रहे। 342
मेडलों के साथ चीन का पहला नम्बर रहा।
Monday, October 6, 2014
Sunday, October 5, 2014
सामूहिक इच्छा होगी तो सब साफ हो जाएगा
महात्मा गांधी के चरखा यज्ञ की सामाजिक भूमिका पर कम लोगों
ने ध्यान दिया होगा। देशभर के लाखों लोग जब चरखा चलाते थे, तब कपड़ा बनाने के लिए
सूत तैयार होता था साथ ही करोड़ों लोगों की ऊर्जा एकाकार होकर राष्ट्रीय ऊर्जा में
तबदील होती थी। प्रतीकात्मक कार्यक्रमों का कुशलता से इस्तेमाल व्यावहारिक रूप से
बड़े परिणाम भी देता है। जैसे लाल बहादुर शास्त्री के ‘जय जवान, जय किसान’ के
नारे ने संकट के मौके पर देश को एक कर दिया। यह एकता केवल संकटों का सामना करने के
लिए ही नहीं चाहिए, बल्कि राष्ट्रीय निर्माण के लिए भी इसकी जरूरत है। भ्रष्टाचार
के खिलाफ अन्ना-आंदोलन या निर्भया मामले में जनता के रोष के पीछे भी यह राष्ट्रीय
एकता खड़ी थी। इस एकता या सर्वानुमति की अक्सर जरूरत होगी, क्योंकि हमारी व्यवस्था
इतनी प्रभावशाली नहीं है कि सारे काम हल करके दे दे। उसे प्रभावशाली बनाने के लिए
भी जनांदोलनों की जरूरत है।
Sunday, September 28, 2014
मोदी का ‘ग्लोबल कनेक्ट’
यह लेख नरेंद्र मोदी के संयुक्त राष्ट्र महासभा के भाषण के पहले लिखा गया था। महासभा के भाषणों का व्यावहारिक महत्व कोई खास नहीं होता। भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर को लेकर कहा-सुनी चलती है। भारत मानता है कि यह द्विपक्षीय प्रश्न है, इसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाया नहीं जाना चाहिए। पर सच है कि इसे भारत ही अंतरराष्ट्रीय मंच पर लेकर गया था। पाकिस्तान ने हमेशा इसका फायदा उठाया और पश्चिम के साथ अच्छे सम्पर्कों का उसे फायदा मिला। पश्चिमी देश भारत को मित्र मानते हैं पर सामरिक कारणों से पाकिस्तान को वे अपने गठबंधन का हिस्सा मानते हैं। सीटो और सेंटो का जब तक वजूद था, पाकिस्तान उनका गठबंधन सहयोगी था भी। आने वाले वर्षों में भारत को अपने आकार और प्रभावशाली अर्थ-व्यवस्था का लाभ मिलेगा। पर देश की आंतरिक राजनीति और हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था को प्रौढ़ होने में समय लग रहा है। हमारी विकास की गति धीमी है। फैसले करने में दिक्कतें हैं। बहरहाल नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत दुनिया से कुछ खरी बातें कहने की स्थिति में आ गया है। यह बात धीरे-धीरे ज्यादा साफ होती जाएगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका आने के ठीक पहले ‘वॉल स्ट्रीट जनरल’ के
लिए लेख लिखा है। इस लेख में उन्होंने अपने सपनों के भारत का खाका खींचा है साथ ही
अमेरिका समेत दुनिया को भारत में निवेश के लिए आमंत्रित किया है। उन्होंने लिखा
है, ‘कहते हैं ना काम को सही करना उतना ही महत्वपूर्ण है,
जितना सही काम करना।’ अमेरिका रवाना होने के ठीक पहले दिल्ली में और दुनिया के अनेक देशों में
एक साथ शुरू हुए ‘मेक इन इंडिया’
अभियान की शुरुआत की थी। इस अभियान के ठीक एक दिन पहले भारत के वैज्ञानिकों ने
मंगलयान अभियान के सफल होने की घोषणा की। संयोग है कि समूचा भारत पितृ-पक्ष के बाद
नव-रात्रि मना रहा है। त्योहारों और पर्वों का यह दौर अब अगले कई महीने तक चलेगा।
Saturday, September 27, 2014
न्यूक्लियर डील के पेचो-ख़म
पहले जापान, फिर चीन और अब अमेरिका के साथ बातचीत की बेला
में भारतीय विदेश नीति के अंतर्विरोध नज़र आने लगे हैं। सन 2005 के भारत-अमेरिका
सामरिक सहयोग के समझौते के बाद सन 2008 के न्यूक्लियर डील ने दोनों देशों को काफी करीब
कर दिया था। इसी डील ने दोनों के बीच खटास पैदा कर दी है। विवाद की जड़ में है सिविल
लायबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज एक्ट 2010 की वे व्यवस्थाएं जो परमाणु दुर्घटना की
स्थिति में मुआवजा देने की स्थिति में उपकरण सप्लाई करने वाली कम्पनी पर
जिम्मेदारी डालती हैं। खासतौर से इस कानून की धारा 17 से जुड़े मसले पर दोनों
देशों के बीच सहमति नहीं है। यह असहमति केवल अमेरिका के साथ ही नहीं है, दूसरे
देशों के साथ भी है। जापान के साथ तो हमारा कुछ बुनियादी बातों को लेकर समझौता ही नहीं
हो पा रहा है।
Thursday, September 25, 2014
मंगलयान माने रास्ता इधर से है
संयोग से मंगलयान की सफलता और 'मेक इन इंडिया' अभियान की खबरें एक साथ आ रहीं हैं. पिछले साल नवम्बर में जब मंगलयान अपनी यात्रा पर निकला था, तब काफी लोगों को उसकी सफलता पर संशय था. व्यावहारिक दिक्कतों के कारण भारत ने इस यान को पीएसएलवी के मार्फत छोड़ा था. इस वजह से इसने अमेरिकी यान के मुकाबले ज्यादा वक्त लगाया और अनेक जोखिमों का सामना किया. हालांकि यह बात कहने वाले आज भी काफी हैं कि भारत जैसे गरीब देश को इतने महंगे अंतरिक्ष अभियानों की जरूरत नहीं है, पर वे इस बात की अनदेखी कर रहे हैं कि अंतरिक्ष तकनीक के साथ स्वास्थ्य, शिक्षा और संचार की तमाम तकनीकें जुड़ी हैं, जो अंततः हमारे जन-जीवन को बेहतर बनाने में मददगार होंगी. फिलहाल सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत की अंतरिक्ष तकनीक के लिए विकासशील देशों का बहुत बड़ा बाज़ार तैयार है. हमारे पड़ोसी देश श्रीलंका, मालदीव, बांग्लादेश और नेपाल तक अपने उपग्रह भजना चाहते हैं. चूंकि उनके पास यह तकनीक नहीं है, इसलिए ज्यादातर देश चीन की ओर देख रहे हैं. मंगलयान की सफलता ने भारत की एक नई तकनीकी खिड़की खोली है.
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