यह लेख नरेंद्र मोदी के संयुक्त राष्ट्र महासभा के भाषण के पहले लिखा गया था। महासभा के भाषणों का व्यावहारिक महत्व कोई खास नहीं होता। भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर को लेकर कहा-सुनी चलती है। भारत मानता है कि यह द्विपक्षीय प्रश्न है, इसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाया नहीं जाना चाहिए। पर सच है कि इसे भारत ही अंतरराष्ट्रीय मंच पर लेकर गया था। पाकिस्तान ने हमेशा इसका फायदा उठाया और पश्चिम के साथ अच्छे सम्पर्कों का उसे फायदा मिला। पश्चिमी देश भारत को मित्र मानते हैं पर सामरिक कारणों से पाकिस्तान को वे अपने गठबंधन का हिस्सा मानते हैं। सीटो और सेंटो का जब तक वजूद था, पाकिस्तान उनका गठबंधन सहयोगी था भी। आने वाले वर्षों में भारत को अपने आकार और प्रभावशाली अर्थ-व्यवस्था का लाभ मिलेगा। पर देश की आंतरिक राजनीति और हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था को प्रौढ़ होने में समय लग रहा है। हमारी विकास की गति धीमी है। फैसले करने में दिक्कतें हैं। बहरहाल नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत दुनिया से कुछ खरी बातें कहने की स्थिति में आ गया है। यह बात धीरे-धीरे ज्यादा साफ होती जाएगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका आने के ठीक पहले ‘वॉल स्ट्रीट जनरल’ के
लिए लेख लिखा है। इस लेख में उन्होंने अपने सपनों के भारत का खाका खींचा है साथ ही
अमेरिका समेत दुनिया को भारत में निवेश के लिए आमंत्रित किया है। उन्होंने लिखा
है, ‘कहते हैं ना काम को सही करना उतना ही महत्वपूर्ण है,
जितना सही काम करना।’ अमेरिका रवाना होने के ठीक पहले दिल्ली में और दुनिया के अनेक देशों में
एक साथ शुरू हुए ‘मेक इन इंडिया’
अभियान की शुरुआत की थी। इस अभियान के ठीक एक दिन पहले भारत के वैज्ञानिकों ने
मंगलयान अभियान के सफल होने की घोषणा की। संयोग है कि समूचा भारत पितृ-पक्ष के बाद
नव-रात्रि मना रहा है। त्योहारों और पर्वों का यह दौर अब अगले कई महीने तक चलेगा।
सितम्बर का पूरा महीना नरेंद्र मोदी के जीवन में ‘ग्लोबल कनेक्ट’ के
लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण रहा। पहले जापान, फिर चीन और उसके बाद अमेरिकी सरकार से
रूबरू होकर उन्होंने ‘वैश्विक मंच पर नए भारत के आगमन’ की घोषणा की है। संयोग है कि देश में मुद्रास्फीति की दर गिरने लगी है,
औद्योगिक उत्पाद बढ़ने लगा है, रुपए की कीमत सुधरने लगी है। इन संकेतकों का परिचय
देने वाली ग्लोबल रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पअर्स ने भारत का गिरा हुआ दर्जा
फिर से उठाने की घोषणा की है। इस संस्था ने दो साल पहले हमारी रेटिंग गिरा दी थी। कुल
मिलाकर देखें तो माहौल में सरगर्मी है।
नरेंद्र मोदी की यह अमेरिका यात्रा संयुक्त राष्ट्र महासभा
के सालाना अधिवेशन से जुड़ी है, जिसमें सभी सदस्य देशों के शासनाध्यक्ष अपनी बात
कहते हैं। इसलिए अपनी यात्रा के पहले चरण में मोदी अभी न्यूयॉर्क में हैं।
अमेरिका में रहने वाले भारतवंशियों ने उनका जिस तरीके से
स्वागत किया है, वह अभूतपूर्व है। आज तक किसी भारतीय प्रधानमंत्री का अमेरिका में
इस शान से स्वागत नहीं हुआ। पूरा अमेरिका अब यह महसूस कर रहा है कि भारत एक
महत्वपूर्ण देश है। मोदी के मुहावरे अब सारी दुनिया की जुबान पर हैं। उन्होंने एफडीआई
की नई परिभाषा दी है, ‘फर्स्ट
डेवलप इंडिया।’ उनके ‘मेक इन इंडिया’ नारे से चीनी राजनेता इतने प्रभावित हुए हैं कि उन्होंने ‘मेड इन चाइना’ का नारा अपनाने का फैसला किया है।
मोदी की अमेरिका यात्रा यों तो मूलतः आर्थिक प्रश्नों के
इर्द-गिर्द है, पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में
कश्मीर का सवाल उठाकर इसे भारत-पाकिस्तान रिश्तों पर भी केंद्रित कर दिया है। यह
भी संयोग है कि इसी हफ्ते भारत और चीन ने लद्दाख में पिछले कुछ समय से जारी सीमा
विवाद पर फौरी तौर पर ठंडा पानी डाल दिया है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को नरेंद्र
मोदी परम्परागत भारतीय नीति के अनुरूप है कि आतंक के साए में दोस्ती की बातें नहीं
हो सकतीं।
न्यूयॉर्क के बाद उनकी वॉशिंगटन यात्रा शुरू होगी, जिसमें
भारत-अमेरिका रिश्ते और व्यापारिक सौदों की बहार होगी। बराक ओबामा के साथ उनकी
औपचारिक वार्ता 30 सितंबर को होगी। इसके पहले मोदी सरकार के कार्यभार संभालने के
बाद से अमेरिका के विदेश मंत्री जॉन कैरी समेत पांच मंत्रियों के दौरे हो चुके
हैं। ओबामा भारत और अमेरिका के रिश्तों को '21वीं सदी के निर्धारक साझेदारों में से एक'
करार दे चुके हैं। चीन और जापान भारत में 55 अरब डॉलर के
निवेश का वचन दे चुके हैं। क्या अमेरिका में भी उन्हें इस प्रकार के आश्वासन
मिलेंगे? मोदी 17 कॉरपोरेट प्रमुखों से मुलाकात
करेंगे जिनमें गूगल, आईबीएम, जीई,
गोल्डमैन सैक्स और बोइंग शामिल हैं। वैश्विक व्यापार
कंसल्टेंसी फर्म बैन एंड कम्पनी ने इस साल फरवरी में जारी अपनी रिपोर्ट में कहा था
कि सन 2017 में दुनिया का इंफ्रास्ट्रक्चर पर निवेश चार ट्रिलियन (यानी चार हजार)
डॉलर होगा। हमारी 2012 से 2017 की बारहवीं पंचवर्षीय योजना में एक इंफ्रास्ट्रक्चर
पर हजार डॉलर के निवेश का अनुमान है। कहना मुश्किल है कि इतना निवेश हो पाएगा या
नहीं,
पर भारत निर्माण की तेज गतिविधियों के दरवाजे पर खड़ा है।
वैसा ही निर्माण जैसा चीन ने अस्सी-नब्बे के दशक में देखा था। इन गतिविधियों में
अमेरिकी कम्पनियाँ भी शामिल होना चाहेंगी।
दूसरी ओर भारत और अमेरिका के बीच विश्व व्यापार संगठन में
अनेक विवाद हैं। इनमें सबसे बड़ा विवाद हाल में ट्रेड फेसिलिटेशन एग्रीमेंट को
लेकर खड़ा हुआ। भारत ने अपने खाद्य सुरक्षा कानून के मद्दे नज़र इस समझौते पर
दस्तखत करने से इनकार कर दिया। सन 2005 के भारत-अमेरिका सामरिक सहयोग के समझौते के
बाद सन 2008 के न्यूक्लियर डील ने दोनों देशों को काफी करीब कर दिया था। इसी डील
ने दोनों के बीच खटास पैदा कर दी है। विवाद की जड़ में है सिविल लायबिलिटी फॉर
न्यूक्लियर डैमेज एक्ट 2010 की वे व्यवस्थाएं जो परमाणु दुर्घटना की स्थिति में
मुआवजा देने की स्थिति में उपकरण सप्लाई करने वाली कम्पनी पर जिम्मेदारी डालती
हैं।
भारत के साथ जब अमेरिका का न्यूक्लियर डील हुआ था तब
अमेरिकी कम्पनियों को उम्मीद थी कि तकरीबन 140 अरब डॉलर के रिएक्टरों और अन्य
उपकरणों के सौदे भारत के साथ होंगे। अमेरिका को अफसोस इस बात का है कि परमाणु
अप्रसार लॉबी के भारी विरोध के बावजूद भारत का समर्थन किया,
पर बदले में कुछ मिला नहीं। गुजरात के मिठीविरदी में
नाभिकीय संयंत्र के लिए अमेरिकी कंपनी वेस्टिंगहाउस से एक करोड़ 51 लाख 60 हजार
डॉलर में 1000 मैगावाट के छह रिएक्टर खरीदे जाने हैं। लेकिन इस पर अंतिम समझौता
करने से पहले वेस्टिंगहाउस कंपनी चाहती थी कि भारतीय संसद में पारित परमाणु
दायित्व कानून उस पर नहीं थोपा जाए। यूपीए सरकार ने इस कानून को ढीला करने की काफी
कोशिश की और अब यह कोशिश भाजपा सरकार भी करेगी।
अमेरिका का अंतरराष्ट्रीय व्यापार आयोग स्पेशल 301 के तहत
भारत के साथ रिश्तों की समीक्षा कर रहा है। भारत दुनिया में जेनेरिक दवाओं का सबसे
बड़ा उत्पादक है। भारतीय कम्पनियों को लेकर अमेरिका में शिकायतें हैं। इसे लेकर भी
दोनों देशों के बीच तल्खी है। भारत सरकार अमेरिका की वीज़ा नीति में छूट चाहती है
ताकि भारतीय सॉफ्टवेयर इंजीनियरों को अमेरिका में काम मिले। मोदी की इस यात्रा में
ये मसले जरूर उठेंगे। शायद कुछ सहमति पत्र भी तैयार हों। मोदी ने 100 नए स्मार्ट
सिटी बनाने की घोषणा की है। इसमें अमेरिकी कम्पनियों की भूमिका होगी। वैश्विक
संदर्भों में भी अमेरिका के साथ बहुत सी जरूरी बातें होनी हैं। इन तमाम बातों को
देखते हुए यह यात्रा और सितम्बर का यह महीना भारत के लिए युगांतरकारी साबित होगा।
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