Thursday, April 28, 2011
Tuesday, April 26, 2011
महाप्रभुओं की जेल यात्रा
खलील खां के फाख्ते उड़ाने का दौर लम्बा नहीं चलेगा
रुख से नकाबों के हटने की घड़ी
रुख से नकाबों के हटने की घड़ी
जैसे महाभारत की लड़ाई के दौरान एक से बढ़कर एक हथियार छोड़े जा रहे थे, उसी तरह आज आकाश में कई तरह के इंद्रजाल बन और बिगड़ रहे हैं। सीडब्लूजी मामलों को उठे अभी साल पूरा नहीं हुआ है कि कहानी में सैकड़ों नए पात्र जुड़ गए हैं। इस सोप ऑपेरा के पात्र टीवी सीरियलों से ज्यादा नाटकीय, धूर्त और पेचीदा हैं। राजनीति, प्रशासन, बिजनेस और मीडिया के जाने-अनजाने कलाकारों की इस नौटंकी में कुछ मुख हैं और बाकी मुखौटे। ऐसे में कुछ बड़ी कम्पनियों के अधिकारियों के जेल जाने की खबर सिर्फ एक रोज की सुर्खी बनकर रह गई। बड़ा मुश्किल है यह बताना कि ये मुख हैं या मुखौटे। पर यह आगाज़ है। तिहाड़ की जनसंख्या अभी और बढ़ेगी।
Saturday, April 23, 2011
सुनो समय क्या कहता है
अन्ना हजारे के आंदोलन के बाद अचानक विवादों की झड़ी लग गई है। एक के बाद एक मामले सामने आ रहे हैं। व्यक्ति को पहले बदनाम करने और फिर उसे किनारे लगाने की रणनीति काम करती है। यह स्वाभाविक है। व्यवस्था के साथ तमाम लोगों के हित जुड़े हैं। वे आसानी से हार नहीं मानते। फिर हम जिन्हें अच्छा मानकर चल रहे हैं, उनके बारे में भी पूरी जानकारी मिले तो गलत क्या है। पर हम एक बदलाव को नहीं पकड़ पा रहे हैं। कम्युनिकेशन के नए रास्तों ने एक नया माहौल बनाया है। परम्परागत राजनीति भी इसे ठीक से पढ़ नहीं पाई है। सिविल सोसायटी होती है या नहीं? होती है तो कितनी प्रभावशाली होती है? ऐसे सवालों के जवाबों से हमें नई वास्तविकताओं का पता लगेगा।
Monday, April 18, 2011
एक अन्ना क्या करेगा
देश के सारे रोगों का वन शॉट इलाज सम्भव नहीं फिर भी
जन-भागीदारी है अमृतधारा
आयुर्वेदिक औषधि अमृतधारा एक साथ कई तकलीफों का इलाज करती है। सिर दर्द, पेट-दर्द, कमर दर्द, सर्दी-जुकाम, खारिश-खुजली जैसी तमाम परेशानियों का हल यह एक औषधि है। वास्तव में आपतकाल में यह काम आती है। दवाओं के लिए हमारे पास एक परम्परागत रूपक है रामबाण का। रामबाण यानी दवा लगी और तकलीफ सिरे से गायब। हमारा समाज चमत्कारों में यकीन करता है। हमें लगता है कि आस्था हो तो संतों के हाथ फेरने मात्र से रोग गायब हो जाते हैं। शरीर के रोगों के साथ यह बात सच हो पर जीवन, समाज, राजनीति और राज-काज में भी हमें किसी अमृतधारा की खोज रहती है, जो सारे रोगों का वन शॉट सॉल्यूशन हो। सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के अध्यक्ष प्रताप भानु मेहता ने हाल में लिखा है कि देश की सारे रोगों का ‘वन शॉट इलाज’ खोजना अपने आप में एक रोग है। हमें पहले समस्या के हर पहलू को समझना चाहिए। फिर यह देखना चाहिए कि हम चाहते क्या हैं। मर्ज क्या है, कहाँ है, लक्षण क्या हैं, रोग कहाँ है वगैरह।
Saturday, April 16, 2011
राजनीति और सुराज के द्वंद
अन्ना हजारे के समानांतर देश में दो और गतिविधियाँ चल रहीं हैं, जिनका हमारे लोकतंत्र से वास्ता है। एक है पाँच राज्यों में विधानसभा के चुनाव और दूसरे टू-जी, सीडब्ल्यूजी और आदर्श सोसायटी जैसे मामलों कर कानूनी कारवाई। देश में लोकतांत्रिक संसदीय व्यवस्था को लेकर कई कोणों से सवाल उठे हैं। अन्ना हजारे ने राजनैतिक प्रतिष्ठान पर हमला करके बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया है। अन्ना ने कहा कि लोग सौ के नोट, साड़ी और दारू की एक बोतल पर वोट देते हैं। मैं नहीं लड़ पाऊँगा चुनाव। इसपर दिग्विजय सिंह ने सवाल पूछा है कि क्या सारे वोटर बेईमान हैं? संयोग है कि विकीलीक्स के सौजन्य से इन्हीं दिनों संसदीय कैश फॉर वोट का मसला भी उठा है। तमिलनाडु के चुनाव में पार्टियों ने जनता को टीवी, मिक्सर-ग्राइंडर, वॉशिंग मशीन से लेकर मंगलसूत्र तक देने का वादा किया है। एक ओर सिविल सोसायटी बनाम राजनीति का शोर है, दूसरी ओर ‘सब भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे’ पुराण का अखंड पाठ चल रहा है, हम सब चोर हैं के सम्पुट के साथ। देश का मस्त-मीडिया विश्व कप क्रिकेट, मोमबत्तियाँ सुलगाती सिविल सोसायटी और आईपीएल को एक साथ निपटा रहा है।
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