देश के सारे रोगों का वन शॉट इलाज सम्भव नहीं फिर भी
जन-भागीदारी है अमृतधारा
आयुर्वेदिक औषधि अमृतधारा एक साथ कई तकलीफों का इलाज करती है। सिर दर्द, पेट-दर्द, कमर दर्द, सर्दी-जुकाम, खारिश-खुजली जैसी तमाम परेशानियों का हल यह एक औषधि है। वास्तव में आपतकाल में यह काम आती है। दवाओं के लिए हमारे पास एक परम्परागत रूपक है रामबाण का। रामबाण यानी दवा लगी और तकलीफ सिरे से गायब। हमारा समाज चमत्कारों में यकीन करता है। हमें लगता है कि आस्था हो तो संतों के हाथ फेरने मात्र से रोग गायब हो जाते हैं। शरीर के रोगों के साथ यह बात सच हो पर जीवन, समाज, राजनीति और राज-काज में भी हमें किसी अमृतधारा की खोज रहती है, जो सारे रोगों का वन शॉट सॉल्यूशन हो। सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के अध्यक्ष प्रताप भानु मेहता ने हाल में लिखा है कि देश की सारे रोगों का ‘वन शॉट इलाज’ खोजना अपने आप में एक रोग है। हमें पहले समस्या के हर पहलू को समझना चाहिए। फिर यह देखना चाहिए कि हम चाहते क्या हैं। मर्ज क्या है, कहाँ है, लक्षण क्या हैं, रोग कहाँ है वगैरह।
अन्ना हजारे के आंदोलन से एक बात साफ हुई कि जनता इन दिनों सामने आ रहे घोटालों से परेशान है। उसके पास फिलहाल आंदोलन और विरोध का रास्ता है। राजनैतिक दलों के आंदोलन में जनता कै बड़े हिस्से की भागीदारी नहीं होती। पार्टियाँ स्वतः स्फूर्त भीड़ जमा नहीं कर सकतीं। अन्ना हजारे अपेक्षाकृत साफ-सुथरे नज़र आए। भीड़ उस तरफ चल दी। पर भीड़ या आंदोलन समस्याओं के समाधान नहीं हैं। अन्ना की माँग को मान लिए जाने का मतलब यह नहीं है कि अन्ना-मंडली के पास देश की सारी समस्याओं का इलाज है। हमें सबसे पहले मानना चाहिए कि यह रोग या उसका इलाज हम हैं। केवल एक बार जंतर-मंतर जाकर या मोमबत्तियाँ जलाकर सारी समस्याओं का समाधान नहीं किया जा सकता।
जय प्रकाश नारायण के आंदोलन के मुकाबले यह आंदोलन छोटा था और काफी छोटी अवधि तक चला। इसका लक्ष्य भी काफी छोटा है। कहना मुश्किल है कि जन-लोकपाल या लोकपाल की नियुक्ति हो पाएगी या नहीं। होगी भी तो किस रूप में होगी। हुई भी तो यह सिस्टम में एक बदलाव होगा। इस तरीके के बदलावों के तमाम पैबंद लगाने के बाद भी कोई गारंटी नहीं कि वाजिब परिणाम हम हासिल कर सकेंगे। हमारी सारी समस्याएं राज्य से जुड़ी नहीं हैं। तकरीबन पाँच दशक से लेकर एक सदी तक चले राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान सामाजिक सुधार या बदलाव के स्वर गायब हो गए।
जय प्रकाश नारायण अपने आंदोलन के दौरान राज-सत्ता में बदलाव के समानांतर सम्पूर्ण क्रांति पर जोर देते थे। वे उदाहरण देते थे कि दहेज जैसी समस्या का समाधान हम कानून में बदलाव करके हासिल करना चाहते हैं। यह कैसे हो सकता है? इसके लिए जीवन के हर क्षेत्र में बदलाव की ज़रूरत है। ये बदलाव राजनैतिक-प्रशासनिक ढाँचे के साथ-साथ सामाजिक जीवन में भी होने चाहिए। धर्म-निरपेक्षता राजनैतिक नहीं सामाजिक कर्म है। भ्रष्टाचार केवल एक स्तर पर ही नहीं है। कितने लोग कह सकते हैं कि उन्होंने घूस देकर कभी काम नहीं कराया? अक्सर रात में रेलगाड़ी में एक बर्थ हासिल करने के लिए लोग अपनी तरफ से कंडक्टर को पैसा देने को आतुर रहते हैं। ट्रैफिक कानूनों के उल्लंघन, नगरपालिका के काम, अस्पतालों में सुविधा हासिल करने की कोशिश में हमें जब भी गलत रास्ते पर जाने का मौका मिलता है देर नहीं लगाते। लड़कियों की शिक्षा, स्त्री-भ्रूण की हत्या, जातीय भेदभाव या सामान्य भाई-भतीजावाद आप कहीं भी देख सकते हैं।
जनांदोलनों के सहारे प्रशासनिक-व्यवस्था में बदलाव नहीं आते। आंदोलन अंततः नकारात्मक गतिविधि साबित होते हैं। उनका अर्थ है किसी बात का विरोध। सत्याग्रह का एक अर्थ अपने में सुधार करना भी तो है। हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं का दायरा बढ़ा है। ग्राम सभा से लेकर संसद तक हमने अपने प्रतिनिधियों को भेजना शुरू किया है, पर आपसी संवाद बढ़ने के बजाय घटा है। नीचे से ऊपर तक जनता की राय पहुँचाने की व्यवस्था को और अधिक व्यवस्थित-सुगठित और कारगर बनाने की ज़रूरत होगी। हमारी व्यवस्था आज भी ऊपर से नीचे की ओर चलती है। यानी मनन-चिंतन का काम ऊपर होता है, उसे लागू करने वाली व्यवस्था नीचे है। ऐसी ही राजनैतिक दलों की संरचना है।
अन्ना हजारे के आंदोलन के वक्त एक बात को कहा गया कि यदि जन-लोकपाल का एजेंडा है तो क्यों नहीं चुनाव में उतरते? बात अपनी जगह ठीक है, पर उसके पहले वोटर को अपने वोट की ताकत, उसके इस्तेमाल और वोट देने के पहले और उसके बाद की अपनी भूमिका को भी समझना होगा। राजनैतिक पहल-कदमी पूरे देश में एक जैसी नहीं है। दक्षिणी राज्यों में सामाजिक-कल्याण की क्रांति पहले हुई, राजनैतिक-सुधार बाद में हुए। हिन्दी क्षेत्रों में दोनों काम समानांतर हो रहे हैं। इन दिनों चल रहे विधान-सभा चुनावों पर नज़र डालें। तमिलनाडु में 75 फीसदी से ज्यादा, पुदुच्चेरी में 85 से ज्यादा और केरल में तकरीबन 75 फीसदी मतदान हुआ है। केरल की राजनीति शेष दक्षिण से क्या देश के देश भाग से एकदम अलग है। यहाँ बहुत कम पैसे से भी कोई चुनाव लड़ सकता है। चुनाव अभियान विचार और नीति पर केन्द्रित होता है। बगैर किसी सांगठनिक आधार के चुनाव नहीं लड़ा जा सकता। मुद्दों और सवालों की आँधियाँ कभी-कभार चलतीं हैं। फिर भी चुनाव और राजनीति हमारे तमाम रोगों की एक अमृतधारा है। इसमें सुधार बदलाव और जनता की भागीदारी काफी रोगों का इलाज कर सकती है।
जन संदेश टाइम्स में प्रकाशित
आपकी रचना यहां भ्रमण पर है आप भी घूमते हुए आइये स्वागत है.........http://tetalaa.blogspot.com/
ReplyDeleteबहुत अच्छी है ये पोस्ट. सुधार जरुरी हैं, सम्पूर्ण क्रांति जरूरी है.
ReplyDeleteयदि आप मेरे ब्लॉग पर आयें तो मैं खुद को धन्य समझूंगा.
मीडिया की दशा और दिशा पर आंसू बहाएं
भले को भला कहना भी पाप
विचारणीय पोस्ट , आन्दोलन को राजनीतीसे दूर रखा जाये ,
ReplyDeleteAnna Hazare ji ka ye aandolen >> Mujhe Lagta h>> din-parti din shadyantro m uljha diya jayega>>> Bahut muskil se.....safed Topi per vishwas zam-aa thha>>>>>> wo Lagta h... ab kho jayega !!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteसवाल अकेले अन्ना का नहीं है यह बात बिल्कुल सच है लेकिन अन्ना अकेले नहीं हैं यह भी सच है उनके साथ पूरा देश है फिर ऐसे बयान कि संसद का फैसला हमें मंजूर होगा नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है| जनलोकपाल पर अटकलें तो आंदोलन के पहले से ही सामने आ रही थी लेकिन जिस तरह आंदोलन को आम जनता का समर्थन मिला, एक उम्मीद ज़रूर जगी थी कि शायद भ्रष्टाचार से मुक्ति का एक रास्ता मिले| हालाँकि कानून इस समस्या का समाधान नहीं था इसे समझने वाले चिल्ला चिल्ला कर कह रहे थे लेकिन दरअसल सवाल उस जनता का था जो अनायास ही भ्रष्टाचार के खिलाफ़ उठ खड़ी हुई थी और चूँकि वो अन्ना हजारे के साथ खड़ी थी इसलिए इसपर सवाल उठाना उचित नहीं था| आज यह बात भी साफ़ हो गयी|
ReplyDeleteपिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम ने सिविल सोसायटी के लोगों पर प्रश्नचिन्ह लगाने पर मजबूर किया है| क्या ऐसा नहीं लगता कि अन्ना हजारे के इस कथन ने कि संसद का फैसला मंजूर होगा उस घटना की याद ताज़ा कर दी जब अंग्रेजों को भगाने का संकल्प लेने वाले भारतीयों ने गाँधी जी के आह्वान पर असहयोग आंदोलन शुरू किया था और एकाएक एक घटना(चौरी -चौरा) के बाद उसे वापस ले लिया गया? देश के युवाओं में उस समय भी असंतोष की लहर दौडी थी और भगत सिंह जैसे कुछ युवकों ने इस लड़ाई को ही सिरे से नकार दिया था और स्पष्ट कहा था इस लड़ाई का अंजाम समझौतों पर आकर खत्म हो जायेगा और ऐसा ही हुआ| आज स्थिति कुछ ऐसी ही नजर आ रही है|
एक और बात, जयप्रकाश नारायण ने सम्पूर्ण क्रांति की बात तो ज़रूर की थी लेकिन उसे परिभाषित करने में नाकाम रहे थे इसलिए इस लड़ाई का हश्र बहुत कुछ परिवर्तन नहीं कर सका यहाँ हालात कुछ ऐसे ही नजर आ रहे हैं| आंदोलन की शुरुआत हालाँकि व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई नही थी लेकिन लोगों ने पहली बार संसदीय व्यवस्था को नकारा था, इसे समझना होगा|
बड़ा मुश्किल है एक तरफ लोकतंत्र कठघरे में खड़ा दिखाई देता है दूसरी तरफ़ लड़ाई सिर्फ़ एक कानून बनाने को लेकर लड़ी जाती है और वह भी अंजाम तक पहुँचने के पहले दम तोडती दिखाई दे रही है| सवाल है क्यों?
इस आंदोलन से एक बात स्पष्ट हुई कि भ्रष्टाचार से सभी बहुत त्रस्त हैं और इसके विरोध में इकट्ठे भी हो सकते हैं ।
ReplyDeleteकेवल एक बार जंतर-मंतर जाकर या मोमबत्तियाँ जलाकर सारी समस्याओं का समाधान नहीं किया जा सकता।
ReplyDeleteसही कहा है आपने कुद उठाना होगा तभी अन्ना की दवाई काम करेगी
जनता को गुमराह करने मुद्दों से भटकाने और सरकार को बचाने के लिए अन्ना आंदोलन चलाया गया है इससे किसी का भला नहीं होगा.भ्रष्टाचार की जड़ें मंदिर में प्रशाद एवं मजार पर चादर चढाने में छिपी हुयी हैं.
ReplyDeleteसर सही कहा, हम मान्यताओं में निदान खोजते हैं। हमारा समाज भी धीरे-धीरे विकसित होगा।
ReplyDeleteanna ke andolan me kaun 2 the?
ReplyDeletekitne garib, banchit, dalit, deprived, pwople the? not a single. then kaun 2 the? dhanpashu, midle class ke chore, english school ke mafia, khate pite ghar ke manchale ladke, barkati , parkat mahilayen thi. kya ye log kisi systwm ke dwara elected the? NO. to inko kaun right de diya ki sahar me gali2 utpat machao corruption ke nam pe?
ham mante hai ki corru[tion hai to kya ye anna ya ramdev ke disahin andolan se khatm ho jayega? kya sabhi chune huye log chore , aur murkh hi hai? ye desh ek democratic system ke dwara chal raha hai ? agar usme koi badlav lana hai to system ko sansad ke kariye badaliye. 123 karore janta hai. anna ya ramdev ke sath kitne hai? 10 - 20 hazar , lakh 2 lakh, karore 2 karoe ? kaise aap measure karenge? koi to system ho/ aap apradhiyon ki taraf sansad , dilli ko pangu karenge? to jinko janta ne mendate diya hai wo kya aapka paon dhoyenge ki ramdev ki tarah salwar kurta me bhagna hoga. jahilo ki tarah aaj ki nayii pidhi ko kewal naukari chahiye. natikta, sanskar, samapt ho gaya hai, jisko dekho wo imandar ban raha hai jaise uske alava sabhi corrupt hai? jo rato rat amir banana chah rahe hai unko loktntra khtre me dikhi de raha hai. ab ye baba bubi hi lok tntra bachayeng?
bas bahut ho gaya , in baba babuo se bache? anna ka samman hai but system ko nast na kare? emergency ki bat karne walon se kah raha hu sab uchakke mil kar congress hataye fir kya hua ? ye log 27 mahine bhi sath nahi rahe. aaj bhi kuch aise hi halat hai? bjp ke log RAM ke bad AB ramdev KE SAHARE SATTA PANA CHAH RAHE HAI. JO AB ISS JIVAN ME SAMBHAV NAHI ?
DRBNSINGH BHU VNSI
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