Thursday, June 25, 2020

इमरान खान की नजर में शहीद हैं ओसामा बिन लादेन


आतंकी हमलों को अंजाम देने वाले अल-कायदा सरगना ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने 'शहीद' करार दिया है। उन्होंने गुरुवार 25 जून को यह बात तब कही, जब एक दिन पहले ही अमेरिका सरकार की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान ने आतंकवाद के खिलाफ कदम उठाने में कोताही की है। इमरान खान ने लादेन को शहीद साबित करने वाला बयान देश की संसद में दिया है। खान ने यह भी कहा कि पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ जंग में अमेरिका का साथ नहीं देना चाहिए था। उन्होंने कहा कि अमेरिकी फ़ोर्सेज़ ने पाकिस्तान में घुसकर लादेन को 'शहीद' कर दिया और पाकिस्तान को बताया भी नहीं। इसके बाद पूरी दुनिया पाकिस्तान की ही बेइज्जती करने लगी। इमरान के इस बयान की उनके ही देश में निंदा हो रही है।

खान ने कहा कि पाकिस्तान ने अमेरिका की आतंकवाद के खिलाफ जंग में अपने 70 हजार लोगों को खो दिया। जो पाकिस्तान देश से बाहर थे, इस घटना की वजह से उन्हें जिल्लत का सामना करना पड़ा। 2010 के बाद पाकिस्तान में ड्रोन अटैक हुए और सरकार ने सिर्फ निंदा की। उन्होंने कहा कि जब अमेरिका के एडमिरल मलन से पूछा गया कि पाकिस्तान पर ड्रोन हमले क्यों किए जा रहे हैं, तो उन्होंने कहा कि सरकार की इजाजत से यह कार्रवाई की जा रही है।

Tuesday, June 23, 2020

अफगान शांति-वार्ता और भारतीय डिप्लोमेसी की परीक्षा

कोरोना महामारी, अमेरिका में चल रहे अश्वेत-प्रदर्शनों और भारत-चीन टकराव के बीच एक अच्छी खबर है कि अफग़ानिस्तान में शांति स्थापना के लिए सरकार और तालिबान के बीच बातचीत का रास्ता साफ हो गया है। पहली बार दोनों पक्ष दोहा में आमने-सामने हैं। केवल कैदियों की रिहाई की पुष्टि होनी है, जो चल रही है। क़तर के विदेश मंत्रालय के विशेष दूत मुश्ताक़ अल-क़ाहतानी ने अफ़ग़ान राष्ट्रपति अशरफ ग़नी से काबुल में मुलाकात के बाद इस आशय की घोषणा की।

पिछले कुछ हफ्तों में सबसे पहले अफ़ग़ानिस्तान सरकार के सत्ता संघर्ष में अशरफ ग़नी और अब्दुल्ला अब्दुल्ला के धड़ों के बीच युद्धविराम हुआ, फिर सभी पक्षों ने समझौते की दिशा में सोचना शुरू किया। गत 23 मई को तालिबान ने ईद के मौके पर तीन दिन के युद्धविराम की घोषणा की। हालांकि हिंसक घटनाएं उसके बाद भी हुई हैं, पर कहना मुश्किल है कि उनके पीछे तालिबान, इस्लामिक स्टेट या अल कायदा किसका हाथ है।

संदेह फिर भी कायम

अमेरिकी सेना ने भी कम से कम दो जगहों, पश्चिमी फराह और दक्षिणी कंधार क्षेत्र में हवाई हमलों की घोषणा की है। चूंकि अमेरिकी निगहबानी खत्म होने जा रही है, इसलिए सवाल यह भी है कि क्या अफीम की खेती का कारोबार फिर से शुरू होगा, जो कभी तालिबानी कमाई का एक जरिया था। इन सब बातों के अलावा तालिबान की सामाजिक समझ, आधुनिक शिक्षा और स्त्रियों के प्रति उनके दृष्टिकोण को लेकर भी संदेह हैं।

Sunday, June 21, 2020

चीनी दुराभिमान टूटना चाहिए


चीन की स्थिति ‘प्यादे से फर्जी’ वाली है। उसे महानता का इलहाम हो गया है। ऐसी गलतफहमी नाजी जर्मनी को भी थी। लद्दाख में उसने धोखे से घुसपैठ करके न केवल भारत का बल्कि पूरी दुनिया का भरोसा खोया है। ऐसा संभव नहीं कि वैश्विक जनमत को धता बताकर वह अपने मंसूबे पूरे कर लेगा। भारत के 20 सैनिकों ने वीर गति प्राप्त करके उसकी धौंसपट्टी को मिट्टी में मिला दिया है। यह घटना इतिहास के पन्नों में इसलिए याद रखी जाएगी, क्योंकि इसके बाद न केवल भारत-चीन रिश्तों में बड़ा मोड़ आएगा, बल्कि विश्व मंच पर चीन की किरकिरी होगी। उसकी कुव्वत इतनी नहीं कि वैश्विक जनमत की अनदेखी कर सके।

वैश्विक मंच के बाद हमें अपनी एकता पर भी एक नजर डालनी चाहिए। भारत-चीन मसले को आंतरिक राजनीति से अलग रखना चाहिए। शुक्रवार को हुई सर्वदलीय बैठक में हालांकि प्रकट रूप में एकता थी, पर कुछेक स्वरों में राजनीतिक पुट भी था। बैठक में प्रधानमंत्री के एक बयान को तोड़-मरोड़कर पढ़ने की कोशिशें भी हुई हैं। प्रधानमंत्री का आशय केवल इतना था, ‘न कोई हमारी सीमा में घुसा हुआ है, न ही हमारी कोई पोस्ट किसी के कब्जे में है।’ बात कहने के तरीके से ज्यादा महत्वपूर्ण उनका आशय है। हमारा लोकतंत्र अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है, पर इस स्वतंत्रता का उद्देश्य भारतीय राष्ट्र राज्य की रक्षा है। उसे बचाकर रखना चाहिए।

Saturday, June 20, 2020

कुछ ज्यादा ही जोश में है चीनी पहलवान


यह मध्यांतर है, अंत नहीं। भारत-चीन टकराव का फौरी तौर पर समाधान निकल भी जाए, पर यह पूरा समाधान नहीं होगा। यह दो प्राचीन सभ्यताओं की प्रतिस्पर्धा है, जिसकी बुनियाद में हजारों साल पुराने प्रसंग हैं। दूर से इसमें पाकिस्तान हमें दिखाई नहीं पड़ रहा है, पर वह है। वह भी हमारे ही अंतर्विरोधों की देन है। साजिश में नेपाल भी शामिल है। गलवान में जो हुआ, उसके पीछे चीन की हांगकांग, ताइवान, वियतनाम और जापान से जुड़ी प्रतिस्पर्धा भी काम कर रही है। लगता है कि चीनी पहलवान कुछ ज्यादा ही जोश में है और सारी दुनिया के सामने ताल ठोक रहा है। यह जोश उसे भारी पड़ेगा।

गलवान टकराव पर 6 जून की बातचीत शुरू होने के ठीक पहले चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने अपनी पश्चिमी थिएटर कमांड के प्रमुख के रूप में लेफ्टिनेंट जनरल शु छीलिंग को भेजा था, जो उनके सबसे विश्वस्त अधिकारी है। पता नहीं वे टकराव को टालना चाहते थे या बढ़ाना, पर टकराव के बाद दोनों देशों जो प्रतिक्रिया है, उसे देखते हुए लगता है कि फिलहाल लड़ना नहीं चाहते।

टकराव होगा, पर कहाँ?

दोनों की इस झिझक के बावजूद ऐसे विशेषज्ञों की कमी नहीं, जो मानते हैं कि भारत-चीन के बीच एक बार जबर्दस्त लड़ाई होगी, जरूर होगी। युद्ध हुआ, तो न हमारे लिए अच्छा होगा और न चीन के लिए। चीन के पास साधन ज्यादा हैं, पर हम इतने कमजोर नहीं कि चुप होकर बैठ जाएं। हमारी फौजी ताकत इतनी है कि उसे गहरा नुकसान पहुँचा दे। हमारा जो होगा, सो होगा। जरूरी नहीं कि टकराव अभी हो और यह भी जरूरी नहीं कि हिमालय में हो।

Wednesday, June 17, 2020

आज के अखबार

भारत-चीन सीमा पर टकराव का ऐसा मौका करीब 45 साल बाद आया है. इस टकराव के राजनीतिक और सामरिक निहितार्थ हैं, पर हमारे अखबारों ने इस खबर को किस प्रकार प्रकाशित किया है, यह देखना उपयोगी होगा. एक और ध्यान देने वाली बात है कि भारत के सभी महत्वपूर्ण अखबारों में यह खबर पहले सफे पर लीड के रूप में है, जबकि चीन के अखबारों में पहले पेज पर भी नहीं है. चीन के सबसे बड़े अखबार 'रन मन रिपाओ' (पीपुल्स डेली) में यह खबर है ही नहीं, जबकि ग्लोबल टाइम्स के चीनी संस्करण में पेज 16 पर एक कोने में है. भारतीय अखबारों में सबसे अलग किस्म की कवरेज कोलकाता के टेलीग्राफ में है, जिसने सरकार पर कटाक्ष किय़ा है. टेलीग्राफ अब अपने कटाक्षों के लिए इतना प्रसिद्ध हो चुका है कि उसपर ज्यादा ध्यान नहीं जाता. अलबत्ता यह विचार का विषय जरूर है. किसी दूसरे अवसर पर मैं इस बारे में अपना विचार जरूर लिखूँगा. यों आज ज्यादातर अखबारों ने तथ्यों को ही पेश किया है और शीर्षक में अपनी टिप्पणी से बचे हैं. केवल भास्कर में 'पीठ पर वार' जैसी अभिव्यक्ति है. बहरहाल अखबारों पर नजर डालें. 








Sunday, June 14, 2020

राजनीति का आभासी दौर!

कोविड-19 के वैश्विक हमले के कारण एक अरसे की अराजकता के बाद रथ का पहिया वापस चलने लगा है। आवागमन शुरू हो गया है, दफ्तर खुलने लगे हैं और कारखानों की चिमनियों से धुआँ निकलने लगा है। कोरोना ने जो भय पैदा किया था, वह खत्म नहीं हुआ है। पर दुनिया का कहना है कि सब कुछ बंद नहीं होगा। गति बदलेगी, चाल नहीं। उत्तर कोरोना परिदृश्य के तमाम पहलू हमारे जीवन की दशा और दिशा को बदलेंगे। रहन-सहन, खान-पान, सामाजिक सम्पर्क और सांस्कृतिक जीवन सब कुछ बदलेगा। सिनेमाघरों, रंगमंचों और खेल के मैदानों का रंग-रूप भी। खेल बदलेंगे, खिलाड़ी बदलेंगे। सवाल है क्या राजनीति भी बदलेगी?

जनवरी-फरवरी के बाद के वैश्विक परिदृश्य पर नजर डालें, तो पहली नजर में लगता है कि बीमारी ने राजनीति को पृष्ठभूमि में धकेल दिया। हम एक नई दुनिया में प्रवेश करने जा रहे हैं, जहाँ मनुष्य के हित सर्वोपरि होंगे, स्वार्थों के टकराव खत्म होंगे, जो राजनीति की कुटिलता के साथ रूढ़ हो गए हैं। वास्तव में ऐसा हुआ नहीं, बल्कि पृष्ठभूमि में राजनीति चलती रही। दुनिया की बात छोड़िए, हमारे देश में लॉकडाउन की घोषणा के ठीक पहले मध्य प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुआ। उस दौरान दोनों तरफ से खुलकर राजनीति हुई। कोरोना के बावजूद विधानसभा की बैठक हुई। नई सरकार आई। संसद के सत्र को लेकर बयानबाज़ी हुई, प्रवासी मजदूरों के प्रसंग के पीछे प्रत्यक्ष राजनीति थी। लॉकडाउन की घोषणा भी। 

लोकतांत्रिक महा-दुर्घटना के मुहाने पर अमेरिका


अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक तरफ कोरोना वायरस की मार से पीड़ित हैं कि जॉर्ज फ़्लॉयड के प्रकरण ने उन्हें बुरी तरह घेर लिया है। आंदोलन से उनकी नींद हराम है। क्या वे इस साल के चुनाव में सफल हो पाएंगे? चुनाव-पूर्व ओपीनियन पोल खतरे की घंटी बजा रहे हैं। ऐसे में गत 26 मई को ट्रंप ने एक ऐसा ट्वीट किया, जिसे पढ़कर वह अंदेशा पुख्ता हो रहा है कि चुनाव हारे तो वे राष्ट्रपति की कुर्सी नहीं छोड़ेंगे। यानी नतीजों को आसानी से स्वीकार नहीं करेंगे। और इससे अमेरिका में सांविधानिक संकट पैदा हो जाएगा। 

Saturday, June 13, 2020

चीन का मुकाबला कैसे करें?


भारत और चीन के बीच लद्दाख में चल रहा टकराव टल भी जाए, यह सवाल अपनी जगह रहेगा कि चीन से हमारे रिश्तों की दिशा क्या होगी? क्या हम उसकी बराबरी कर पाएंगे? या हम उसकी धौंस में आएंगे? पर पहले वर्तमान विवाद के पीछे चीनी मंशा का पता लगाने को कोशिश करनी होगी। तीन बड़े कारण गिनाए जा रहे हैं। भारत ने वास्तविक नियंत्रण के पास सड़कों और हवाई पट्टियों का जाल बिछाना शुरू कर दिया है। हालांकि तिब्बत में चीन यह काम काफी पहले कर चुका है, पर वह भारत के साथ हुई कुछ सहमतियों का हवाला देकर कहता है कि ये निर्माण नहीं होने चाहिए।
दूसरा कारण है दक्षिण चीन सागर और हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारतीय नौसेना की भूमिका। हम कमोबेश चतुष्कोणीय सुरक्षा व्यवस्था यानी ‘क्वाड’ में शामिल हैं। यों हम औपचारिक रूप से कहते हैं कि यह चीन के खिलाफ नहीं है। इसी 4 जून को भारत और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्रियों ने एक महत्वपूर्ण रक्षा समझौते पर दस्तखत किए हैं, जिसपर चीनी मुखपत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। अखबार ने चीनी विशेषज्ञ सु हाओ के हवाले से कहा है कि भारत अपनी डिप्लोमैटिक स्वतंत्रता का दावा करता रहा है, पर देखना होगा कि वह कितना स्वतंत्र है।  

Monday, June 8, 2020

लपटों से घिरा ट्रंप का अमेरिका


लम्बे अरसे से साम्यवादी कहते रहे हैं, पूँजीवाद हमें वह रस्सी बनाकर बेचेगा, जिसके सहारे हम उसे लटकाकर फाँसी देंगे। इस उद्धरण का श्रेय मार्क्स, लेनिन, स्टैलिन और माओ जे दुंग तक को दिया जाता है और इसे कई तरह से पेश किया जाता है। आशय यह कि पूँजीवाद की समाप्ति के उपकरण उसके भीतर ही मौजूद हैं। पिछली सदी के मध्यकाल में मरणासन्न पूँजीवाद और अंत का प्रारम्भ जैसे वाक्यांश वामपंथी खेमे से उछलते रहे। हुआ इसके विपरीत। नब्बे के दशक में सोवियत संघ के विघटन के बाद दुनिया को लगा कि अंत तो कम्युनिज्म का हो गया।

उस परिघटना के तीन दशक बाद पूँजीवाद का संकट सिर उठा रहा है। अमेरिका में इन दिनों जो हो रहा है, उसे पूँजीवाद के अंत का प्रारम्भ कहना सही न भी हो, पश्चिमी उदारवाद के अंतर्विरोधों का प्रस्फुटन जरूर है। डोनाल्ड ट्रंप का उदय इस अंतर्विरोध का प्रतीक था और अब उनकी रीति-नीति के विरोध में अफ्रीकी मूल के अमेरिकी नागरिकों का आंदोलन उन अंतर्विरोधों को रेखांकित कर रहा है। पश्चिमी लोकतंत्र के सबसे पुराने गढ़ में उसके सिद्धांतों और व्यवहार की परीक्षा हो रही है।

Sunday, June 7, 2020

हथनी की मौत पर राजनीति


केरल में एक गर्भवती हथनी की दर्दनाक मौत की जहाँ देशभर ने भर्त्सना की है, वहीं इस मामले के राजनीतिकरण ने हमारा ध्यान बुनियादी सवालों से हटा दिया है। केरल पुलिस ने इस सिलसिले में एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया है। तीन संदिग्धों से पूछताछ की जा रही है और दो अन्य की तलाश की जा रही है। जो व्यक्ति पकड़ा गया है, वह शायद पटाखों की आपूर्ति करता है। दूसरे आरोपी बटाई पर केले की खेती करने वाले छोटे किसान हैं। क्या पुलिस की जाँच सही दिशा में है? केरल की राजनीति इन दिनों ध्रुवीकरण का शिकार हो रही है। राज्य विधानसभा चुनाव के लिए अब एक साल से भी कम समय बचा है, इसलिए यह परिघटना राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हो गई है।

राजनीति के कारण यह परिघटना विवाद का विषय बनी, पर इसके कारण हम मूल मुद्दे से भटक गए हैं। एलीफैंट टास्क फोर्स के चेयरमैन प्रोफेसर महेश रंगराजन ने हाल में एक चैनल से बातचीत में इससे जुड़े कुछ पहलुओं को उठाया है। उन्होंने कहा कि हर साल 100 हाथियों की हत्या कर दी जाती है। हाथी सबसे सीधा जानवर होता है और वह खुद भी इंसानों से दूरी रखता है। लेकिन कभी-कभी भूख प्यास के कारण ये बस्तियों में चले जाते हैं। उनपर सबसे बड़ा खतरा हाथी दांत के तस्करों का है। ये तस्कर हाथियों को मारकर उनके दांतों की तस्करी करते हैं।

भविष्य का मीडिया

MBA diary: The future of media | Which MBA? | The Economist

अखबारों का रूपांतरण किस तरह किया जा सकता है, इसे देखने के लिए दुनिया के अखबारों की गतिविधियों पर नजर रखनी चाहिए. एक बात तय है कि कागज के बजाय अब सूचनाएं वैब पर आ रही हैं. भविष्य के माध्यम क्या होंगे, यह बताना मुश्किल है, पर उसकी दिशा देखी जा सकती है. दूसरे सूचना के माध्यमों में अब प्रिंट, टीवी और रेडियो यानी लिखित-पठित और दृश्य-श्रव्य दोनों का समावेश होगा. यही वैब की ताकत है. अब ज्यादातर अखबार वैब पर आ गए हैं और वे वीडियो, वैबकास्ट और लिखित तीनों तरह की सामग्रियाँ पेश कर रहे हैं. तीनों के अलग-अलग प्रभाव हैं और यही समग्रता मीडिया की विशेषता बनेगी. जहाँ तक साख का सवाल है, यह मीडिया संस्थान पर निर्भर करेगा कि उसकी दिलचस्पी किस बात में है. मैं इस पोस्ट के साथ हिन्दू की एक क्लिप शेयर कर रहा हूँ, जिसमें भारत-चीन सीमा विवाद की पृष्ठभूमि है. ऐसी छोटी क्लिप से लेकर घंटे-दो घंटे की बहसें आने वाले वक्त में अखबारों की वैबसाइटों में मिलेंगी.

https://www.thehindu.com/news/national/india-china-border-standoff/article31755218.ece?homepage=true&fbclid=IwAR2jK-rNsCbxUQ1Nad1BMLgJ38T5T-FYdu-XVaSskm857Fjxib_0VkZ0_qY

Sunday, May 31, 2020

चीन पर कसती वैश्विक नकेल


भारत और चीन के रिश्तों में आई तल्खी को केवल वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चल रही गतिविधियों तक सीमित करने से हम सही निष्कर्षों पर नहीं पहुँच पाएंगे। इसके लिए हमें पृष्ठभूमि में चल रही दूसरी गतिविधियों पर भी नजर डालनी होगी। पिछले दिनों जब भारत और नेपाल के बीच सीमा को लेकर विवाद खड़ा हुआ, उसके साथ ही लद्दाख और सिक्किम में चीन की सीमा पर भी हरकतें हुईं। यह सब कुछ अनायास नहीं हुआ है। ये बातें जुड़ी हुई हैं।

सूत्र बता रहे हैं कि लद्दाख क्षेत्र में चीनी सैनिक गलवान घाटी के दक्षिण पूर्व में, भारतीय सीमा के भीतर तक आ गए थे। वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के उस पार भी चीन ने अपने सैनिकों की संख्या बढ़ा दी है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार सैटेलाइट चित्रों से इस बात की पुष्टि हुई है कि टैंक, तोपें और बख्तरबंद गाड़ियाँ चीनी सीमा के भीतर भारतीय ठिकानों के काफी करीब तैनात की गई हैं। सामरिक दृष्टि से पिछले साल ही तैयार हुआ भारत का दरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्दी मार्ग सीधे-सीधे चीनी निशाने पर आ गया है।

Saturday, May 30, 2020

भारत-चीन टकराव भावी शीतयुद्ध का संकेत


पिछले हफ्ते जब भारत और नेपाल के बीच सीमा को लेकर विवाद खड़ा हुआ, उसके ठीक पहले भारत-चीन सीमा पर कुछ ऐसी घटनाएं हुईं हैं, जिनसे लगता है सब कुछ अनायास नहीं हुआ है। मई के पहले हफ्ते में दोनों देशों की सेनाओं के बीच पैंगांग त्सो के इलाके में झड़पें हुईं थीं। उसके बाद दोनों देशों की सेनाओं के स्थानीय कमांडरों के बीच बातचीत के कई दौर हो चुके हैं, पर लगता है कि तनाव खत्म नहीं हो पाया है। सूत्र बता रहे हैं कि लद्दाख क्षेत्र में चीनी सैनिक गलवान घाटी के दक्षिण पूर्व में, भारतीय सीमा के तीन किलोमीटर भीतर तक आ गए हैं। इतना ही नहीं चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के उस पार भी अपने सैनिकों की संख्या बढ़ा दी है। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार सैटेलाइट चित्रों से इस बात की पुष्टि हुई है कि टैंक, तोपें और बख्तरबंद गाड़ियाँ चीनी सीमा के भीतर भारतीय ठिकानों के काफी करीब तैनात की गई हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि पिछले साल ही तैयार हुआ दरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्दी मार्ग सीधे-सीधे चीनी निशाने पर आ गया है। 
गलवान क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा और चीनी दावे की रेखा में कोई बड़ा अंतर नहीं है। मोटे तौर पर यह जमावड़ा चीनी सीमा के भीतर है। पर खबरें हैं कि चीनी सैनिक एलएसी के तीन किलोमीटर भीतर तक आ गए थे। चाइनीज क्लेम लाइन (सीसीएल) को पार करने के पीछे चीन की क्या योजना हो सकती है? शायद चीन को भारतीय सीमा के भीतर हो रहे निर्माण कार्यों पर आपत्ति है। यह भी सच है कि इस क्षेत्र में ज्यादातर टकराव इन्हीं दिनों में होता है, क्योंकि गर्मियाँ शुरू होने के बाद सैनिकों की गतिविधियाँ तेज होती हैं। गलतफहमी में भी गश्ती दल रास्ते से भटक जाते हैं, पर निश्चित रूप से चीन के आक्रामक राजनय का यह समय है। इसलिए सवाल पैदा हो रहा है कि आने वाले समय में कोई बड़ा टकराव होगा? क्या यह एक नए शीतयुद्ध की शुरुआत है?

Friday, May 29, 2020

उफ भारत माता!

प्रवासी मजदूरों की बदहाली से जुड़ा एक वीडियो इन दिनों वायरल हुआ है, जिसमें एक स्त्री की लाश के पास उसकी छोटी सी बच्ची चादर खींच रही है. यह हृदय विदारक वीडियो किसी के भी मन को विह्वल कर जाएगा. ट्विटर पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं आईं.  ज्यादातर प्रतिक्रियाएं दया और करुणा से भरी हैं. पर यह मामला करुणा से ज्यादा हमारे विवेक को झकझोरने वाला होना चाहिए. ऐसा कैसे हो गया? क्या इनके आासपास लोग नहीं थे? क्या उस महिला को पीने का पानी देने वाला भी कोई नहीं था? 


दया और करुणा से भरी प्रतिक्रियाओं से ज्यादा महत्वपूर्ण प्रतिक्रियाएं  राजनीतिक नेताओं की हैं. किसी ने बच्चों की मदद की पेशकश की. उन्हें पालने-पोसने की जिम्मेदारी ली. अच्छी बात है, पर सवाल अपनी जगह है. इस मदद को पाने के लिए एक माँ को बदहाली में मरना होता है. क्या आपकी राजनीति इस परिस्थिति के लिए जिम्मेदार नहीं है? ऐसी मदद का दशमांश भी सामान्य समय में मिल गया होता, तो शायद उसकी मौत नहीं होती. ऐसी परिस्थितियाँ क्यों पैदा हुईं? परिस्थितियों का लाभ उठाने वाले तमाम हाथ हैं, पर बुनियादी सवाल का जवाब देने कोई आगे नहीं आता. क्यों? जो जवाब आएंगे भी वे ज्यादातर राजनीतिक हैं. शायद यही वजह है कि आज तमाम कहानियाँ हमारे सामने हैं, जिनमें ज्योति की कहानी भी एक है, जो पीपली लाइव की याद दिला रही है. हमारी करुणा और दया प्रचार चाहती है. हम बुनियादी सवालों पर जाना ही नहीं चाहते. 

Wednesday, May 27, 2020

संदेहों के घेरे में सच!


केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इसी हफ्ते एक वेबिनार में बताया कि वकील प्रशांत भूषण ने अहमदाबाद के एक अस्पताल में हिंदू और मुस्लिम मरीज़ों की अलग पहचान करने तथा एक महिला के साथ अन्याय को लेकर दो ट्वीट किए थे। जाँच में दोनों तथ्य ग़लत पाए गए,लेकिन वकील साहब ने ना माफ़ी माँगी ना ट्वीट हटाया। इस वेबिनार में नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स इंडिया ने फ़ेकन्यूज़ पर केंद्रित एक रिपोर्ट को भी जारी किया। रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना संक्रमण के इस कालखंड में कई तरह से फर्जी खबरें जारी की जा रही हैं। बिना पंजीकरण के हजारों की संख्या में न्यूज वेबसाइट का संचालन किया जा रहा है। स्वतंत्रता की यह अद्भुत मिसाल है। क्या मान लें कि पत्रकारिता की मर्यादाओं की इतिश्री हो चुकी है?
हिन्दी भाषा और व्याकरण की शिक्षा के दौरान संदेह अलंकार का उदाहरण दिया जाता है, सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है/ सारी ही की नारी है कि नारी ही की सारी है। समझ में नहीं आता कि सच क्या है। यह सब ऐसे दौर में हो रहा है, जब हम कई तरह के सामाजिक संदेहों से घिरे हैं। जब हम कोरोना से लड़ने में व्यस्त हैं उसी वक्त कश्मीर में घुसपैठ चल रही है। उस घुसपैठ के समांतर साइबर स्पेस में भी जबरदस्त घुसपैठ है। एक तरफ देश के दुश्मनों की घुसपैठ है और दूसरी तरफ देश के भीतर बैठे न्यस्त स्वार्थों की।
संदेहों की भरमार
अजब समय है। तकनीक का विस्तार हो रहा है। दूसरी तरफ सूचना और अभिव्यक्ति की नैतिकता और मर्यादाओं को नए सिरे से परिभाषित करने और उन्हें लागू करने के उपकरणों का विकास नहीं हो पाया है। सवाल है कि फ़ेकन्यूज़ होती ही क्यों हैं? उनका फायदा किसे मिलता है और क्यों? सूचनाएं चाहे वे सांस्कृतिक हों या आर्थिक, खेल की हों या राजनीति की उनके पीछे किसी के हित जुड़े होते हैं। इन हितों की पहचान जरूरी है। पत्रकारिता का उद्देश्य सच को सामने लाना था। यह झूठ फैलाने वाली पत्रकारिता कहाँ से आ गई? पर सवाल है कि सच है क्या? आज के वैश्विक परिदृश्य पर नजर डालें, तो रोचक परिणाम सामने आएंगे।

Monday, May 25, 2020

नेपाल के साथ ‘कालापानी विवाद’ के चीनी निहितार्थ


जिस समय देश कोरोना वायरस से लड़ाई लड़ रहा है, उसके सामने आर्थिक मंदी और दूसरी तरफ राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति से जुड़े कुछ बड़े सवाल खड़े हो रहे हैं। अगले कुछ महीनों में भारत-अमेरिका और चीन के सम्बंधों को लेकर कुछ और विवाद सामने आएं तो विस्मय नहीं होना चाहिए। विश्व स्वास्थ्य संगठन और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन की भूमिका को लेकर कुछ झगड़े खड़े हो ही चुके हैं। इनके समांतर अफगानिस्तान में तालिबान के साथ हुए समझौते के निहितार्थ भी सामने आएंगे। इसमें भी चीन और रूस की भूमिका है, जो अभी नजर नहीं आ रही है। भारत के संदर्भ में कश्मीर की स्थिति को देखते हुए यह समझौता बेहद महत्वपूर्ण है।

इसी रोशनी में हमें नेपाल के साथ कालापानी को लेकर खड़े हुए झगड़े को भी देखना चाहिए। यह बात इन दिनों नेपाल की राजनीति में जबर्दस्त ऊँचाइयों को छू रही है। भारत की विदेश नीति के लिहाज से मोदी सरकार की नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी के लिए यह गम्भीर चुनौती है। सन 2015 के बाद से भारत के नेपाल के साथ रिश्ते लगातार डगमग डोल हैं। कोविड-19 की परिघटना ने वैश्विक मंच पर जो धक्का पहुँचाया है, उसके कारण चीन ने हाल में अपनी गतिविधियों को बढ़ा दिया है।

Sunday, May 24, 2020

प्रवासी कामगारों की चुनौती


मई के पहले-दूसरे सप्ताह तक जो लड़ाई निर्णायक रूप से जीती हुई लगती थी, उसे लेकर पिछले दस दिनों से अचानक चिंताजनक खबरें आ रही हैं। गत 1 मई को महाराष्ट्र में संक्रमण के 11 हजार से कुछ ऊपर मामले थे, जो 22 मई को 44 हजार से ऊपर हो गए। दिल्ली में साढ़े तीन हजार मामले करीब साढ़े 12 हजार हो गए, तमिलनाडु में ढाई हजार मामले पन्द्रह हजार को छूने लगे, मध्य प्रदेश में 2715 से बढ़कर 6170 और पश्चिम बंगाल में 795 से बढ़कर 3332 हो गए। एक मई को 24 घंटे में पूरे देश में 2396 नए केस दर्ज हुए थे, जबकि 22 मई को 24 घंटे के भीतर 6,088 नए मामले आए।

इस कहानी का यह एक पहलू है। इसका दूसरा पक्ष भी है। सरकार का कहना है कि राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के कारण कम से कम 14-29 लाख नए केस, 37,000-71,000 मौतें बचा ली गईं। यह संख्या विभिन्न स्वतंत्र एजेंसियों द्वारा तैयार किए गए गणितीय मॉडल पर आधारित हैं। नीति आयोग में स्वास्थ्य मामलों के सदस्य डॉ वीके पॉल का कहना है कि भारत ने जो रणनीति अपनाई है, वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक मॉडल के रूप में काम कर रही है। सच यह भी है कि कुल संक्रमितों की संख्या के लगभग आधे का ही इलाज चल रहा है। आधे से कुछ कम ठीक भी हुए हैं।  

Friday, May 22, 2020

अखबार के अंत का प्रारम्भ


पिछले साल मैंने फेसबुक पर अपनी एक पोस्ट में लिखा था कि इस साल मैंने अखबारों के कूपन खरीद लिए हैं, पर अगले साल से मैं अखबार लेना बंद कर दूँगा. इन दिनों कोरोना के कारण हमारी सोसायटी में अखबार बंद हुए, तो बंद हो ही गए. शायद मैं अब फिर से अखबारों के कूपन नहीं खरीदूँगा. चूंकि हमें कागज का अखबार पढ़ने की पुरानी आदत है, इसलिए वह काफी सुविधाजनक लगता है. काफी हद तक वह सुविधाजनक है भी.
बहरहाल पिछले एक साल में मैंने इंडियन एक्सप्रेस, बिजनेस स्टैंडर्ड, वॉलस्ट्रीट जरनल, स्क्रॉल, लाइव लॉ, ईटी प्राइम, दैनिक भास्कर ई-पेपर, हिंदू, बिजनेस लाइन, फ्रंटलाइन और स्पोर्ट्स्टार का कम्बाइंड सब्स्क्रिप्शन लिया है. ईपीडब्लू का मैं काफी पहले से ग्राहक हूँ. अब लगता है कि ज्यादातर अखबार अब अपने ई-पेपर का शुल्क लेना शुरू करेंगे. शुल्क से उन्हें कोई बड़ा आर्थिक लाभ नहीं होगा, पर वे इसके सहारे पाठक वर्ग तैयार करेंगे. इसके सहारे वे विज्ञापन बटोरेंगे.
सूखती स्याही
हाल में मीडिया विशेषज्ञ सेवंती नायनन ने कोलकाता के अखबार टेलीग्राफ में एक लेख लिखा था, जिसका आशय कोरोना काल में अचानक आए भारतीय अखबारों के उतार के निहितार्थ का विश्लेषण करना था. सेवंती नायनन का कहना था कि न्यूयॉर्क टाइम्स, फाइनेंशियल टाइम्स, वॉशिंगटन पोस्ट और द गार्डियन जैसे अखबारों ने ऑनलाइन सब्स्क्रिप्शन का अच्छा आधार बना लिया है, जो भारतीय अखबार नहीं बना पाए हैं. सेवंती नायनन का कहना है कि भारतीय समाचार उद्योग पहले से ही दिक्कत में चल रहा था, ऐसे में यह नई आपदा परेशानियाँ पैदा कर रही है.

Tuesday, May 19, 2020

सुनो समय क्या कहता है


एक मोटा अनुमान है कि देश में करीब 12 करोड़ प्रवासी मजदूर काम करते हैं. ये सारे मजदूर किसी रोज तय करें कि उन्हें अपने घर वापस जाना चाहिए, तो अनुमान लगाएं कि उन्हें कितना समय लगेगा. हाल में जो रेलगाड़ियाँ चलाई गई हैं, उनमें एकबार में 1200 लोग जाते हैं. ऐसी एक हजार गाड़ियाँ हर रोज चलें, तो इन सबको पहुँचाने में सौ से सवा सौ दिन लगेंगे. ऐसा भी तब होगा, जब एक पॉइंट से चली गाड़ी सीधे मजदूर के घर तक पहुँचाए.

रास्तों और स्टेशनों का व्यापक जाल देशभर में फैला हुआ है. इतने बड़े स्तर पर आबादी का स्थानांतरण आसान काम नहीं है. यह प्रवासन एक ऐतिहासिक प्रक्रिया है और दुनियाभर में चल रही है. भारत के बाहर काम कर रहे लोगों के बारे में तो अभी हमने ज्यादा विचार किया ही नहीं है. कोरोना-दौर में केवल लोगों के परिवहन की बात ही नहीं है. उनके दैहिक अलगाव, स्वास्थ्य और स्वच्छता सम्बद्ध मानकों का पालन भी महत्वपूर्ण है. इस अफरातफरी के कारण संक्रमण बढ़ रहा है.

Monday, May 18, 2020

कमजोर विकेट पर खड़े इमरान खान


जिस वक्त हम कोरोना वायरस के वैश्विक हमले को लेकर परेशान हैं, दुनिया में कई तरह की गतिविधियाँ और चल रही हैं, जिनका असर आने वाले वक्त में दिखाई पड़ेगा। अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था, डॉलर को पदच्युत करने की चीनी कोशिशों और दूसरी तरफ चीन पर बढ़ते अमेरिकी हमलों वगैरह के निहितार्थ हमें कुछ दिन बाद सुनाई और दिखाई पड़ेंगे। उधर अफगानिस्तान में अंतिम रूप से शांति समझौते की कोशिशें तेज हो गई हैं। अमेरिका के विशेष दूत ज़लमय खलीलज़ाद दोहा से दिल्ली होते हुए इस्लामाबाद का एक और दौरा करके गए हैं। अमेरिका ने पहली बार औपचारिक रूप से कहा है कि भारत को अब तालिबान से सीधी बात करनी चाहिए और अपनी चिंताओं से उन्हें अवगत कराना चाहिए।

मई के दूसरे हफ्ते में एक और बात हुई। भारतीय मौसम विभाग ने अपने मौसम बुलेटिन में पहली बार पाक अधिकृत कश्मीर को शामिल किया। मौसम विभाग ने मौसम सम्बद्ध अपनी सूचनाओं में गिलगित, बल्तिस्तान और मुजफ्फराबाद की सूचनाएं भी शामिल कर लीं। इसके बाद जवाब में रविवार 10 मई से पाकिस्तान के सरकारी चैनलों ने जम्मू-कश्मीर के मौसम का हाल सुनाना शुरू कर दिया है। भारत के मौसम दफ्तर के इस कदम के पहले पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने गिलगित और बल्तिस्तान में चुनाव कराने की घोषणा की थी, जिसपर भारत सरकार ने कड़ा विरोध जाहिर किया था।

कश्मीर में मुठभेड़ें
कश्मीर में आतंकवादियों के साथ सुरक्षाबलों की मुठभेड़ें बढ़ गई हैं, क्योंकि यह समय घुसपैठ का होता है। उधर हिज्बुल मुज़ाहिदीन के कमांडर रियाज़ नायकू की मुठभेड़ के बाद हुई मौत से भी इस इलाके में खलबली है। इसबार सुरक्षाबलों ने नायकू का शव उनके परिवार को नहीं सौंपा। इसके पीछे कोरोना का कारण बताया गया, पर इसका साफ संदेश है कि सरकार अंतिम संस्कार के भारी भीड़ नहीं चाहती। बहरहाल खबरें हैं कि कश्मीर को लेकर पाकिस्तान अपनी रणनीति में बदलाव कर रहा है। हाल में पाकिस्तानी सेना की ग्रीन बुक से लीक होकर जो जानकारियाँ बाहर आईं हैं, उनके मुताबिक पाकिस्तानी सेना अब छाया युद्ध में सूचना तकनीक और सोशल मीडिया का इस्तेमाल और ज्यादा करेगी।

Sunday, May 17, 2020

हम जरूर होंगे कामयाब


पिछले मंगलवार को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक पुरानी बहस को एक नए नाम से फिर से शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा कि कोविड-19 संकट ने हमें स्थानीय उत्पादन और सप्लाई चेन के महत्व से परिचित कराया है। अब समय आ गया है कि हम आत्मनिर्भरता के महत्व को स्वीकार करें। उनका नया नारा है वोकल फॉर लोकल। प्रधानमंत्री ने अपने इस संदेश में बीस लाख करोड़ रुपये के एक पैकेज की घोषणा की, जिसका विवरण वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने चार दिनों में दिया।

क्या यह पैकेज पर्याप्त है, उपयोगी है और क्या हम इसके सहारे डांवांडोल नैया को मँझधार से निकाल पाएंगे? ऐसे तमाम सवाल हैं, पर बुनियादी सवाल है कि क्या हम इस आपदा की घड़ी को अवसर में बदल पाएंगे, जैसाकि प्रधानमंत्री कह रहे हैं? क्या वैश्विक मंच पर भारत के उदय का समय आ गया है? दुनिया एक बड़े बदलाव के चौराहे पर खड़ी है। चीन की आर्थिक प्रगति का रथ अब ढलान पर है। कुछ लोग पूँजीवादी व्यवस्था का ही मृत्यु लेख लिख रहे हैं। अमेरिकी अर्थव्यवस्था का भी ह्रास हो रहा है। इस बीच जापान ने घोषणा की है कि बड़ी संख्या में उसकी कम्पनियाँ चीन में अपना निवेश खत्म करेंगी। चीन में सबसे ज्यादा जापानी कम्पनियों की सहायक इकाइयाँ लगी हैं। अमेरिकी कम्पनियाँ भी चीन से हटना चाहती हैं। सवाल है कि क्या यह निवेश भारत आएगा? जिस तरह सत्तर के दशक में चीन ने दुनिया की पूँजी को अपने यहाँ निमंत्रण दिया, क्या वैसा ही भारत के साथ अब होगा?

Tuesday, May 12, 2020

बदलता पेट्रो-डॉलर परिदृश्य


पिछले महीने सोमवार 20 अप्रेल को अमेरिकी बेंचमार्क क्रूड वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआई) में खनिज तेल की कीमतें -40.32 डॉलर के नकारात्मक स्तर पर पहुँच गईं। कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय वायदा बाजार में यह अजब घटना थी। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि कोरोना वायरस के कारण अमेरिका सहित बड़ी संख्या में देशों में लॉकडाउन है। तेल की माँग लगातार घटती जा रही है। दूसरी तरफ उत्पादन जारी रहने के कारण भविष्य के खरीद सौदे शून्य होने के बाद नकारात्मक स्थिति आ गई। हालांकि यह स्थिति बाद में सुधर गई, फिर भी पेट्रोलियम के भावी कारोबार को लेकर उम्मीदें टूटने लगी हैं। उधर ओपेक देशों और रूस ने येन-केन प्रकारेण अपने उत्पादन को कम करने का फैसला करके भावी कीमतों को और गिरने से रोकने की कोशिश जरूर की है, पर इस कारोबार की तबाही के लक्षण नजर आने लगे हैं। सब जानते हैं कि एक दिन पेट्रोलियम का वर्चस्व खत्म होगा, पर क्या वह समय इतनी जल्दी आ गया है? क्या कोरोना ने उसकी शुरुआत कर दी है?  

कोरोना वायरस ने मनुष्य जाति के अस्तित्व को चुनौती देने का काम किया है।  आधुनिक विज्ञान और तकनीक को इस बात का श्रेय दिया जा सकता है कि उसने एकदम नए किस्म की इस बीमारी की पहचान करने और उसके इलाज के रास्ते खोजने की दिशा में तेजी से काम शुरू कर दिया है। इसकी पहचान करने वाले किट, रोकने वाली वैक्सीन और इलाज करने वाली दवाएं विकसित करने का काम तेजी से चल निकला है। करीब साढ़े तीन महीने पुरानी इस बीमारी को रोकने वाली वैक्सीन की पाँच-छह किस्मों का मनुष्यों पर परीक्षण चल रहा है। आशा है कि अगले एक वर्ष में इसपर पूरी तरह विजय पाई जा सकेगी, पर यह बीमारी विश्व-व्यवस्था के सामने कुछ सवाल लेकर आई है।

नई विश्व व्यवस्था
ये सवाल कम से कम तीन वर्गों में विभाजित किए जा सकते हैं। पहला सवाल पेट्रोलियम से ही जुड़ा है। क्या ऊर्जा के परम्परागत स्रोतों का युग समाप्त होने जा रहा है? विश्व-व्यवस्था और शक्ति-संतुलन में पेट्रोलियम की महत्वपूर्ण भूमिका है। पेट्रोलियम की भूमिका समाप्त होगी, तो उससे जुड़ी शक्ति-श्रृंखलाएं भी कमजोर होंगी। उनका स्थान कोई और व्यवस्था लेगी। हम मोटे तौर पर पेट्रो डॉलर कहते हैं, वह ध्वस्त होगा तो उसका स्थान कौन लेगा?  यह परिवर्तन नई वैश्विक-व्यवस्था को जन्म देगा। क्या पूँजीवाद और समाजवाद जैसे सवालों का भी अंत होगा?  क्या अमेरिका का महाशक्ति रूप ध्वस्त हो जाएगा? क्या भारत का महाशक्ति के रूप में उदय होगा? कोरोना से लड़ाई में राज्य को सामने आना पड़ा। क्या बाजार का अंत होगा? नब्बे के दशक से वैश्वीकरण को जो लहर चली थी, उसका क्या होगा? उत्पादन, व्यापार और पूँजी निवेश तथा बौद्धिक सम्पदा से जुड़े प्रश्नों को अब दुनिया किन निगाहों से देखेगी? इनके साथ ही वैश्विक-सुरक्षा के सवाल भी जुड़े हैं। वैश्विक-सुरक्षा की परिभाषा में जलवायु परिवर्तन और संक्रामक बीमारियाँ भी शामिल होने जा रही हैं, जो राजनीतिक सीमाओं की परवाह नहीं करती हैं। 

Monday, May 11, 2020

कोरोना की अफरातफरी में करोड़ों शिशु खतरे में


हाल में एक छोटी सी खबर पढ़ने को मिली कि कोविड-19 को देखते हुए 25 मार्च से माताओं और दो साल तक के बच्चों की ठप पड़ी टीकाकरण स्कीम फिर से शुरू हो गई है। पूरे देश में अभी सामान्य व्यवस्था कायम हुई नहीं है, इसलिए कहना मुश्किल है कि देशभर का क्या हाल हैं, पर इतना जाहिर है कि कोरोना वायरस के कारण छोटे बच्चों का टीकाकरण प्रभावित हुआ है। इस दौरान अप्रेल के अंतिम सप्ताह में हमने वैश्विक टीकाकरण सप्ताह भी मनाया, पर टीकाकरण की गाड़ी ठप पड़ी रही। कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में भारत का सकारात्मक पहलू है हमारा अनिवार्य टीकाकरण कार्यक्रम। माना जा रहा कि भारत के लोगों में कई प्रकार के रोगों की प्रतिरोधक शक्ति है। कम से कम 20 ऐसे रोग हैं, जिन्हें टीके की मदद से रोका जा सकता है।
इन दिनों हम कोरोना के खिलाफ जिन आंगनबाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं की भूमिका की प्रशंसा कर रहे हैं, वे हमारे मातृ एवं शिशु कार्यक्रम की ध्वजवाहक हैं। उनकी तारीफ के साथ यह बताना भी जरूरी है कि कोविड-19 की अफरातफरी ने टीकाकरण कार्यक्रम को धक्का पहुँचाया है। केवल टीकाकरण की बात ही नहीं है। कोरोना के खिलाफ लड़ाई के इस दौर में जल्दबाजी, असावधानी या प्राथमिकताओं के निर्धारण में बरती गई नासमझी में सामान्य स्वास्थ्य की जो अनदेखी हुई है, अब उसकी तरफ भी ध्यान दिया जाना चाहिए।
स्वास्थ्य सेवाओं पर लॉकडाउन
लॉकडाउन के साथ-साथ अचानक दूसरी स्वास्थ्य सेवाओं की तरफ से हमारा ध्यान हट गया। ऐसे में कैंसर, हृदय, लिवर और किडनी और दूसरी बीमारियों से परेशान रोगियों के लिए आवश्यक सुविधाओं में कमी आ गई। कोविड-19 लिए विशेष अस्पतालों की व्यवस्थाओं को स्थापित करने के कारण अस्पतालों की ओपीडी सेवाएं बंद हो गईं। डायलिसिस और कीमोथिरैपी जैसी जरूरी चिकित्सा सुविधाएं भी प्रभावित हुईं। केवल स्वास्थ्य सुविधाएं ही नहीं दुनियाभर के बच्चों की पढ़ाई को नुकसान पहुँचा है। इन दिनों बच्चे और किशोर किस मनोदशा से गुजर रहे हैं, इसका अनुमान लगाना काफी मुश्किल है।

Sunday, May 10, 2020

शराब की मारामारी क्यों?


कोरोना संकट और लॉकडाउन के बीच कई राज्यों में शराब की बिक्री शुरू होने से एक नया संकट पैदा हो गया। हजारों-लाखों की संख्या में लोग शराब खरीदने के लिए निकल पड़े। चालीस दिन के लॉकआउट के बाद बिक्री शुरू होने और भविष्य के अनिश्चय को देखते हुए इस भीड़ का निकलना अस्वाभाविक नहीं था। लगभग ऐसी ही स्थिति लॉकडाउन शुरू होने के ठीक पहले जरूरी वस्तुओं के बाजारों की थी। मार्च के अंतिम सप्ताह में दिल्ली में प्रवासी मजदूरों के बाहर निकल आने से भी ऐसी ही स्थिति पैदा हुई थी। अनिश्चय और भ्रामक सूचनाओं के कारण ऐसी अफरातफरी जन्म लेती है। प्रवासी मजदूरों की परेशानी और सामान्य उपभोक्ताओं की घरेलू सामान की खरीदारी समझ में आती है, शराबियों की अफरातफरी का मतलब क्या है?

Monday, May 4, 2020

कब बनेगी सामाजिक बीमारियों की वैक्सीन?


इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक के अंत और तीसरे दशक की शुरुआत में ऐसे दौर में कोरोना वायरस ने दस्तक दी है, जब दुनिया अपनी तकनीकी उपलब्धियों पर इतरा रही है। इतराना शब्द ज्यादा कठोर लगता हो, तो कहा जा सकता है कि वह अपने ऐशो-आराम के चक्कर में प्रकृति की उपेक्षा कर रही है। कोरोना प्रसंग ने मनुष्य जाति के विकास और प्रकृति के साथ उसके अंतर्विरोधों को एकबारगी उघाड़ा है। इस घटनाक्रम में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार के संदेश छिपे हैं।
कोरोना के अचानक हुए आक्रमण के करीब साढ़े तीन महीने के भीतर दुनिया के वैज्ञानिकों ने मनुष्य जाति की रक्षा के उपकरणों को खोजना शुरू कर दिया है। इसमें उन्हें सफलता भी मिली है, वहीं वैश्विक सुरक्षाकी एक नई अवधारणा सामने आ रही है, जिसका संदेश है कि इनसान की सुरक्षा के लिए एटम बमों और मिसाइलों से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं वैक्सीन और औषधियाँ। और उससे भी ज्यादा जरूरी है प्रकृति के साथ तादात्म्य बनाकर जीने की शैली, जिसे हम भूलते जा रहे हैं।

Sunday, May 3, 2020

कोरोना-युद्ध के सबक


लॉकडाउन दो हफ्ते के लिए बढ़ा दिया गया। या आप कह सकते हैं कि हटा लिया गया, पर कोरोना वायरस के कारण देश के अलग-अलग इलाकों में प्रतिबंध लगाए गए हैं। सिर्फ समझने की बात है कि गिलास आधा भरा है या आधा खाली है। कोरोना के खिलाफ वैश्विक लड़ाई को देखें, तो वहाँ भी यही बात लागू होती है। सवाल है कि क्या हम हालात से निराश हैं? कत्तई नहीं। यह एक नई चुनौती है, जिसपर हमें जीत हासिल करनी है। हमारे पास आशा या निराशा के विकल्प नहीं हैं। सकारात्मक सोच अकेला एक विकल्प है।
वैश्विक दृष्टि से हटकर देखें, तो भारत से संदर्भ में हमारे पास संतोष के अनेक कारण हैं। चीन को अलग कर दें, तो शेष विश्व में करीब 34 लाख लोग कोरोना के शिकार हुए हैं। इनमें से दो लाख 40 हजार के आसपास लोगों की मौत हुई है। इस दौरान भारत में करीब 37 हजार लोगो कोरोना के शिकार हुए हैं और 1200 के आसपास लोगों की इसके कारण मृत्यु हुई है। एक भी व्यक्ति की मौत दुखदायी है, पर तुलना करें। भारत की आबादी करीब एक अरब 30 करोड़ है, जिसमें 37 हजार को यह बीमारी लगी है। समूचे यूरोप और अमेरिका की आबादी भारत से कम ही होगी, पर बीमार होने वालों और मरने वालों की संख्या का अंतर आप देख सकते हैं।

इस अंतर के अनेक कारण हैं। कुछ लोग कहते हैं कि अमेरिका और यूरोप में टेस्ट ज्यादा होते हैं। भारत में कम होते हैं। हो सकता है कि बीमारों की संख्या ज्यादा हो। यह तर्क भी पक्का नहीं है। यह तर्क तीन-चार हफ्ते पहले उछाला गया था। तब भारत में प्रति 10 लाख (मिलियन) लोगों में करीब सवा सौ टेस्ट हो रहे थे। शनिवार को यह औसत 708 था। यह सम्पूर्ण भारत का औसत है, दिल्ली में तो यह 2400 के आसपास है। हम जब औसत निकालते हैं, तो समूचे भारत की जनसंख्या के आधार पर निकालते हैं, जबकि देश के एक बड़े इलाके में वायरस का प्रभाव है ही नहीं। 

Monday, April 27, 2020

पेट्रो-डॉलर सिस्टम को ध्वस्त करने पर उतारू कोरोना


कोरोना वायरस अभी उभार पर है। शायद इसका उभार रोकने में हम जल्द कामयाब हो जाएं। पर उसके बाद क्या होगा? इस असर का जायजा लेने के लिए कुछ देर के लिए तेल बाजार की ओर चलें। सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री प्रिंस अब्दुल अज़ीज़ बिन सलमान ने गत 13 अप्रेल को कहा कि काफी विचार-विमर्श के बाद तेल उत्पादन और उपभोग करने वाले देशों ने प्रति दिन करीब 97 लाख बैरल प्रतिदिन की तेल आपूर्ति कम करने का फैसला किया है।
इस फैसले के बाद हालांकि ब्रेंट क्रूड बाजार में तेल की गिरती कीमतें कुछ देर के लिए सुधरीं, पर  वैश्विक स्तर पर असमंजस कायम है। दो हफ्ते पहले ये कीमतें 22 डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे पहुँच गई थीं। इस गिरावट को रूस ने अपना उत्पादन और बढ़ाकर तेजी दी। इस प्रतियोगिता से तेल बाजार में वस्तुतः आग लग गई। इन पंक्तियों के लिखे जाते समय ब्रेंट क्रूड की कीमत 28 डॉलर के आसपास थी और अमेरिकी बाजारों में तेल 15 डॉलर के आसपास आने की खबरें थीं। इस कीमत पर इस उद्योग की तबाही निश्चित है। इस खेल में वेनेजुएला जैसे देश तबाह हो चुके हैं, जो पेट्रोलियम-सम्पदा के लिहाज से खासे समृद्ध थे।

Sunday, April 26, 2020

कोरोना-दौर में मीडिया की भूमिका


कोरोना का संक्रमण जितनी तेजी से फैला है, शायद अतीत में किसी दूसरी बीमारी का नहीं फैला। इसी दौरान दुनिया में सच्ची-झूठी सूचनाओं का जैसा प्रसार हुआ है, उसकी मिसाल भी अतीत में नहीं मिलती। इस दौरान ऐसी गलतफहमियाँ सामने आई है, जिन्हें सायास पैदा किया और फैलाया गया। कुछ बेहद लाभ के लिए, कुछ राजनीतिक कारणों से, कुछ सामाजिक विद्वेष को भड़काने के इरादे से और कुछ शुद्ध कारोबारी लाभ या प्रतिद्वंद्विता के कारण। उदाहरण के लिए कोरोना संकट से लड़ने के लिए पीएम-केयर्स नाम से एक कोष बनाया गया, जिसमें पैसा जमा करने के लिए एक यूपीआई इंटरफेस जारी किया गया। देखते ही देखते सायबर ठग सक्रिय हो गए और उन्होंने उस यूपीआई इंटरफेस से मिलते-जुलते कम से कम 41 इंटरफेस बना लिए और पैसा हड़पने की योजनाएं तैयार कर लीं। लोग दान करना चाहते हैं, तो उस पर भी लुटेरों की निगाहें हैं।

Monday, April 20, 2020

कैसा होगा उत्तर-कोरोना तकनीकी विश्व?


कोरोना की बाढ़ का पानी उतर जाने के बाद दुनिया को कई तरह के प्रश्नों पर विचार करना होगा। इनमें ही एक सवाल यह भी है कि दुनिया का तकनीकी विकास क्या केवल बाजार के सहारे होगा या राज्य की इसमें कोई भूमिका होगी? इन दो के अलावा विश्व संस्थाओं की भी कोई भूमिका होगी? तकनीक के सामाजिक प्रभावों-दुष्प्रभावों पर विचार करने वाली कोई वैश्विक व्यवस्था बनेगी क्या? इससे जुड़ी जिम्मेदारियाँ कौन लेने वाला है?
इस हफ्ते की खबर है कि मोबाइल फोन बनाने वाली कम्पनी एपल और गूगल ने नोवेल कोरोनावायरस के विस्तार को ट्रैक करने के लिए आपसी सहयोग से स्मार्टफोन प्लेटफॉर्म विकसित करने का फैसला किया है। ये दोनों कंपनियां मिलकर एक ट्रैकिंग टूल बनाएंगी, जो सभी स्मार्टफोनों में मिलेगा। यह टूल कोरोना वायरस की रोकथाम में सरकार, हैल्थ सेक्टर और आम प्रयोक्ता की मदद करेगा। यह टूल आईओएस और एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम में कॉण्टैक्ट ट्रेसिंग का काम करेगा। यह काम तभी सम्भव है, जब दुनिया के सारे स्मार्टफोन यूजर्स एक ही ग्रिड या ऐप पर हों।