अस्सी
के दशक में जब राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री थे, उन्हें एक रोज एक अपरिचित
व्यक्ति का पत्र मिला. वह व्यक्ति अमेरिका की किसी संस्था में वैज्ञानिक था और
उसके पास भारत के आधुनिकीकरण की एक योजना थी. राजीव गांधी ने उसे अपने पास बात के
लिए बुलाया और अपना महत्वपूर्ण सलाहकार बना लिया. सत्यनारायण गंगा राम पांचाल उर्फ
सैम पित्रोदा किस प्रकार एक सामान्य परिवार से वास्ता रखते थे और फिर किस तरह वे
देश की तकनीकी क्रांति के सूत्रधार बने, यह अलग कहानी है, पर उसका एक सबक यह है कि
उत्साही और नवोन्मेषी व्यक्तियों के लिए रास्ते बनाए जाने चाहिए.
हाल
में भारत सरकार ने अखबारों में इश्तहार दिया है कि उसे दस ऐसे उत्कृष्ट व्यक्तियों
की तलाश है, जिन्हें राजस्व, वित्तीय सेवाओं, आर्थिक विषयों, कृषि, सहकारिता एवं कृषक कल्याण, सड़क परिवहन और राजमार्ग, नौवहन, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन, नवीन एवं अक्षय ऊर्जा, नागरिक विमानन और वाणिज्य के क्षेत्रों
में महारत हो, भले
वे निजी क्षेत्र से क्यों न हों. इन्हें सरकार के संयुक्त सचिव के समतुल्य पद पर
नियुक्त किया जाएगा. यह एक प्रयोग है, जिसे लेकर दो तरह की प्रतिक्रियाएं सामने
आईं हैं.
कुछ
लोगों को लगता है कि सत्तारूढ़ दल अब अपने लोगों को सरकारी सेवाओं में भी जगह देना
चाहता है, ताकि उसकी पैठ बढ़े. हाँ, यह बात सभी मानते हैं कि कुशलता और विशेषज्ञता
को बढ़ाना है, तो नए रास्ते खोजने होंगे. ये नियुक्तियाँ दस पदों पर हैं, पर इनकी
संख्या भविष्य में बढ़ भी सकती है और उसके स्तर भी बदल सकते हैं. अखिल भारतीय
प्रशासनिक सेवाओं पर भरती एक मुश्किल और लम्बी प्रक्रिया से होती है. एक जमाने में
देश की सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाएं इसमें शामिल होती थीं, पर धीरे-धीरे प्रतिभाशाली
नौजवानों की दिलचस्पी निजी क्षेत्र में बढ़ गई.
सरकार
का इरादा इस प्रवृत्ति को मोड़ने का है. भारत में ही नहीं, दुनिया के ज्यादातर
देशों में सरकारी सेवाओं के बजाय निजी क्षेत्र में जाने वालों की संख्या ज्यादा
होती है. निजी क्षेत्र में सेवा शर्तें लचीली होती हैं, जिससे अत्यधिक मेधावी
व्यक्तियों को आगे बढ़ने का मौका जल्दी मिलता है. इसके विपरीत सरकारी सेवाओं में
प्रतिभावान व्यक्तियों को मौका नहीं मिल पाता.
सरकारी
प्रस्ताव के अनुसार यह नियुक्ति अनुबंध के आधार पर तान साल के लिए होगी. प्रत्याशी
के प्रदर्शन के आधार पर अनुबंध पाँच साल तक बढ़ सकता है. सरकार इसके लिए जो वेतन
देने की पेशकश कर रही है, वह ऐसा आकर्षक नहीं है कि निजी क्षेत्र से प्रतिभावान
व्यक्ति अपनी नौकरी छोड़कर आएंगे. यह योजना सरकार ऐसे वक्त में ला रही है, जब उसका
कार्यकाल पूरा होने वाला है, इसलिए बहुत से लोगों के मन में यह बात भी होगी कि पता
नहीं सत्तारूढ़ दल की वापसी होगी या नहीं. पता नहीं, यह कार्यक्रम चलेगा या नहीं.
देखना
होगा कि इसके लिए कितने लोग सामने आते हैं. इसके लिए आवेदन पत्र 30 जुलाई तक माँगे
गए हैं. भारत जैसे देश में अभ्यर्थियों की संख्या को लेकर संदेह नहीं है, पर कितने
काबिल लोग इनमें होंगे, इसे लेकर संदेह है. कुछ दूसरे संदेह भी हैं. इनका चयन संघ
लोकसेवा आयोग के माध्यम से नहीं होगा. यह नियुक्ति इंटरव्यू के आधार पर होगी. इस
वजह से अंदेशा है कि इसके माध्यम से अपने लोगों को सरकार में शामिल किया जा सकता
है.
सरकार
का घोषित उद्देश्य विशेषज्ञता और कौशल को बढ़ाने का है. भारत सरकार में संयुक्त
सचिव का पद सीनियर मैनेजमेंट का होता है. नीति निर्माण और क्रियान्वयन दोनों में
उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है. सरकार ने इसके लिए ऐसे व्यक्तियों के आवेदन माँगे
हैं, जो किसी राज्य, केंद्रशासित प्रदेश, सार्वजनिक उपक्रम, स्वायत्त निकाय, वैधानिक संगठनों, विश्वविद्यालयों, मान्यता प्राप्त शोध संगठनों में काम करते हों.
निजी क्षेत्र की कंपनियों, परामर्शदाता संगठनों, अंतरराष्ट्रीय या मल्टीनेशनल कम्पनियों में काम
करने वाले और ऐसे ही स्तर पर कम से कम 15 साल का अनुभव रखने वाले व्यक्ति आवेदन कर सकते
हैं.
नरेंद्र
मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से नौकरशाही के कामकाज में बड़े बदलाव हुए हैं. मंत्रालयों
में महत्वपूर्ण पदों पर दूसरी सेवाओं के अधिकारियों को नियुक्त किया जा रहा है. आईएएस
अधिकारियों के लिए सुरक्षित पदों पर गैर-आईएएस अधिकारी लाए गए हैं. हाल में प्रधानमंत्री
कार्यालय की पेशकश थी कि अखिल भारतीय सेवाओं के लिए चुने गए अभ्यर्थियों का काडर
उनकी रैंकिंग के आधार पर तय नहीं होगा, बल्कि तीन महीने के फाउंडेशन कोर्स के बाद उनके
मूल्यांकन के आधार पर होगा. इस पर अभी विमर्श चल ही रहा है.
सरकार
अपनी नौकरशाही के चरित्र को बदलना चाहती है, यह बात समझ में आती है. पर दस
अधिकारियों की नियुक्ति से यह काम पूरा नहीं होगा. हाँ, दस की नियुक्ति के साथ इस
प्रयोग की शुरुआत हो सकती है, पर इसके लिए नियुक्ति प्रक्रिया को अच्छी तरह से
परिभाषित करने की जरूरत है, साथ ही प्रशासनिक तंत्र में भी बदलाव की जरूरत होगी. सरकार
जो वेतन देना चाहती है, वह निजी क्षेत्र के प्रोफेशनलों के अनुरूप नहीं है.
हमारे
यहाँ सरकारी नौकरियाँ रसूख बढ़ाती हैं. उनकी कार्य-पद्धति अकर्मण्यता को बढ़ावा
देती है और निर्णय प्रक्रिया मसलों को कानूनी पेचों में लटकाने में यकीन रखती है. यह
एक प्रकार का चक्रव्यूह है, जिसमें एक ईमानदार और कार्यकुशल व्यक्ति प्रवेश करने
के बाद भागना चाहता है. जब तक उसमें बदलाव नहीं आएगा, ऐसा प्रयोग बहुत कारगर होगा
नहीं.
स्वाभाविक
है कि आईएएस अधिकारियों पर केन्द्रित व्यवस्था इसे आसानी से स्वीकार नहीं करेगी। संयुक्त
सचिवों की संख्या सैकड़ों में हैं. उनमें दस के शामिल हो जाने से बड़ा बदलाव नहीं
आने वाला. ये दस भी मल्टीनेशनल कम्पनियाँ छोड़कर नहीं आएंगे. आ भी गए तो रुकेंगे
नहीं. खासतौर से ऐसे वक्त में जब चुनाव आने वाले हैं. राज्य-सेवाओं और सार्वजनिक उपक्रमों
से लोग इसमें आ सकते हैं. बेशक हमारे बीच उत्साही और कुशल लोगों की कमी नहीं है,
पर उनकी पहचान करने के लिए भी योग्यता की जरूरत है.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (18-06-2018) को "पूज्य पिता जी आपका, वन्दन शत्-शत् बार" (चर्चा अंक-3004) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी