दिल्ली सचिवालय की इमारत में एक बड़ा सा बैनर लहरा रहा है, ‘यहाँ कोई हड़ताल नहीं है, दिल्ली के लोग ड्यूटी पर हैं,
दिल्ली का सीएम छुट्टी पर है।’
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का कहना है कि बीजेपी ने सचिवालय पर कब्जा कर लिया
है। उप-राज्यपाल के दफ्तर में दिल्ली की कैबिनेट यानी पूरी सरकार धरने पर बैठी है।
उधर मुख्यमंत्री के दफ्तर पर बीजेपी का धरना चल रहा है। आम आदमी पार्टी ने
प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से मिलने का समय माँगा है। उत्तर प्रदेश के पूर्व
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, तमिलनाडु के फिल्म कलाकार कमलहासन, आरजेडी के तेजस्वी
यादव, सीपीएम के सीताराम येचुरी और इतिहास लेखक रामचंद्र गुहा ‘आप’ के
समर्थन में आगे आए हैं। दोनों तरफ से युद्ध के नगाड़े बज रहे हैं।
दिल्ली शहर तेज गर्मी की वजह से पीने के पानी और बिजली-संकट
का सामना कर रहा है। पिछले कई दिनों से राजस्थान की तरफ से चल रही तेज हवाओं ने
शहर को धूल-धूसरित कर रखा है। उधर आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच ‘धरना मैच’ चल
रहा है। इसका अंत कहाँ होगा, समझ में नहीं आ रहा। जनवरी 2014 के बाद यह दूसरा मौका
है, जब केजरीवाल सरकार धरने पर बैठी है। इस दौरान सड़क और विधानसभा में
धरना-प्रदर्शन के दौर चलते रहे हैं।
कूड़े
के ढेर और प्रदूषण
हाल के
वर्षों में दिल्ली शहर ने सफाई कर्मचारियों के आंदोलन भी देखे, जिसमें सड़कों पर कूड़े के ढेर लगा दिए गए। वायु और
ध्वनि प्रदूषण से बुरी तरह परेशान यह शहर पिछले कुछ वर्षों में बार-बार संकटों से
घिरने लगा है। दिल्ली सरकार कहती है कि केंद्र हमें काम करने नहीं देता और केंद्र
कहता है आम आदमी पार्टी राजनीति खेल रही है। जिस राजनीति पर समस्याओं के समाधान खोजने
की जिम्मेदारी है, वह समस्या बनकर तलवारें भाँज रही है। दोनों पार्टियाँ एक-दूसरे
को कोस रही है और कांग्रेस दोनों को। अराजकता का बोलबाला है।
सांविधानिक व्यवस्था के अनुसार दिल्ली के प्रशासन की
जिम्मेदारी एलजी और मुख्यमंत्री दोनों की है। दोनों में इस समय कुट्टी चल रही है। एक
अरसे की चुप्पी के बाद आम आदमी पार्टी ने अपनी राजनीति का रुख फिर से आंदोलन की
दिशा में मोड़ा है। इस बार निशाने पर दिल्ली के उप-राज्यपाल अनिल बैजल हैं। वास्तव
में यह केंद्र सरकार से मोर्चाबंदी है।
ड्रामे की राजनीति
आम आदमी पार्टी की रणनीति, राजनीति और विचारधारा के केंद्र में आंदोलन होता है। आंदोलन
उसकी पहचान है। मुख्यमंत्री के रूप में केजरीवाल जनवरी 2014 में भी धरने पर बैठ
चुके हैं। तब वे सड़क पर रज़ाई ओढ़कर लेटे थे और वहीं से सरकारी फाइलों का
निस्तारण करते थे। यह हास्यास्पद ड्रामा था। ड्रामा उनकी राजनीति है। पिछले कुछ
समय की खामोशी और ‘माफी प्रकरण’ से लग रहा था कि उनकी रणनीति बदली है। एलजी के निवास पर आंदोलन
प्रतीकात्मक है।
पार्टी का नया नारा है ‘एलजी दिल्ली छोड़ो।’
दिल्ली केंद्र शासित क्षेत्र है और एलजी केंद्र के संविधानिक-प्रतिनिधि हैं। संविधान
के अनुच्छेद 239क, 239कक तथा 239कख ऐसे प्रावधान हैं जो दिल्ली
और पुदुच्चेरी को राज्य का स्वरूप प्रदान करते हैं। ‘पूर्ण राज्य बनाम आंशिक राज्य’ समस्या बेशक
संविधान की देन है, पर विवाद के पीछे राजनीति की भूमिका है।
दिल्ली की विशेष स्थिति
दिल्ली
केवल राज्य नहीं है, देश की राजधानी भी है। वॉशिंगटन, लंदन और पेरिस की तरह दिल्ली भी राष्ट्रीय
राजधानी है। उसके लिए विशेष व्यवस्था करनी ही होगी। केंद्रीय
प्रशासन को राज्य व्यवस्था के अधीन रखना सम्भव नहीं। दिल्ली हाईकोर्ट ने एलजी के
अधिकारों की पुष्टि की है। इस विषय में सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था का इंतजार करना
चाहिए।
जबतक दिल्ली में शीला दीक्षित की कांग्रेस सरकार थी, यह
समस्या कभी नहीं उठी, क्योंकि केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी की सरकार थी। अटल
बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार के सामने भी ऐसी समस्या नहीं उठी। हाँ, मुख्यमंत्री
और एलजी के बीच रिश्ते तनावपूर्ण रहते थे। इसकी वजह यह है कि एलजी की प्रशासन में
सक्रिय भूमिका है। वह केवल रबर स्टाम्प नहीं है। इस व्यवस्था को बेहतर बनाने के
लिए या तो संसद को नियम बनाने होंगे या सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करना
होगा।
चुनाव
की सुदूर गंध
करीब एक साल की चुप्पी के बाद आम आदमी पार्टी को चुनाव की
खुशबू आने लगी है। सन 2015 में जबरदस्त बहुमत से जीतकर आई सरकार और उसके नेता
अरविंद केजरीवाल ने पहले दो साल नरेंद्र मोदी के खिलाफ जमकर मोर्चा खोला। फिर
उन्होंने चुप्पी साध ली। पिछले चार साल में पार्टी के तमाम बड़े नेता साथ छोड़कर
चले गए। इनमें योगेन्द्र यादव भी हैं, जिनकी स्वराज इंडिया अब आम आदमी पार्टी की
प्रतिस्पर्धी है।
स्वराज इंडिया ने इन धरनों को तमाशा बताया है और 16 जून से
‘जल स्वराज मुहिम’ का ऐलान किया है। यानी कि आम आदमी पार्टी को अब तीन-तरफ़ा हमले
का सामना करना है। स्वराज इंडिया का कहना है कि लोकपाल कानून और दिल्लीवासियों को
पानी देने के लिए राज्य के विशेष दर्जे की जरूरत नहीं है। पूर्ण राज्य का दर्जा पाए बगैर भी दिल्ली सरकार काफी
कुछ कर सकती है।
इसे केवल दिल्ली की समस्या के रूप में देखना भी कुछ बातों
की अनदेखी करना है। आम आदमी पार्टी की नजर राष्ट्रीय राजनीति पर है। कोई वजह थी
तभी तो अरविंद केजरीवाल वाराणसी चुनाव लड़ने गए। राजनीतिक नजरिए के अलावा नौकरशाही
के साथ रिश्ते बनाने में भी पार्टी से चूक हुई है। गत 19 फरवरी को दिल्ली के मुख्य
सचिव अंशु प्रकाश के साथ हुए दुर्व्यवहार को लेकर पार्टी का रवैया समझ में आने
वाला नहीं है। इस मामले में पुलिस जाँच में हो रही देरी से स्थिति बिगड़ी है।
केंद्र तथा एलजी की भूमिका भी हालात को बिगाड़ रही है। ये
सब बातें राजनीति की ओर इशारा कर रहीं हैं। केंद्र सरकार ने ‘आप’ को प्रताड़ित करने का कोई मौका नहीं खोया है। पिछले कुछ
वर्षों में पार्टी के विधायकों की बात-बे-बात गिरफ्तारियों का सिलसिला चला। लाभ के
पद को लेकर बीस विधायकों की सदस्यता खत्म होने में प्रकारांतर से केंद्र की भूमिका
भी थी। अब ‘आप’ का आरोप है कि केंद्र सरकार सरकारी अफसरों में बगावत की भावना भड़का रही
है। संभव है कि अफसरों के रोष का लाभ केंद्र सरकार उठाना चाहती हो, पर यह केवल भड़काने की वजह से ही नहीं है।
टकराव
बढ़ेगा
केजरीवाल
सरकार का नई रणनीति के साथ आंदोलनकारी भूमिका में आना विस्मयकारी नहीं है। केजरीवाल
का कहना है कि हमें पूर्ण राज्य दे दो, हम
लोकसभा चुनाव में बीजेपी का समर्थन कर देंगे। इसका क्या मतलब है? आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच क्या केवल दिल्ली को पूर्ण
राज्य का दर्जा देने के सवाल पर मतभेद हैं? दोनों के बीच तलवारों का खुलना अनायास नहीं है। इसलिए समाधान भी जल्द होने
की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। किसी न किसी रूप में यह आंदोलन बढ़ेगा और चुनाव तक टकराव
चलेगा।
हाल में खबरें थीं कि वह कांग्रेस के साथ लोकसभा चुनाव में
गठबंधन चाहती है। दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष अजय माकन ने इस संभावना को सिरे से
नकारा है, पर आम आदमी पार्टी
का इसरार जारी है। गठबंधन हो या न हो, पार्टी खुद को
प्रासंगिक बनाए रखने के लिए कुछ न कुछ करना चाहेगी।
बॉक्स
भारत का सबसे लम्बा धरना
आंदोलन के लिए धरना दुनिया को भारत की सौगात है। कोई दिन
ऐसा नहीं होता, जब देश के किसी न किसी इलाके में बड़ा धरना चल न रहा हो। इसका
इस्तेमाल स्वतंत्रता से पहले महात्मा गांधी के सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान हुआ
था। भारत के अलावा पाकिस्तान में भी धरने पर बैठा जाता है। भारत के ज्ञात धरनों
में सबसे लम्बा धरना आज भी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर कलेक्टरेट में चल रहा है। पिछले
22 साल से भू-माफियाओं के खिलाफ धरने पर बैठे मास्टर विजय सिंह का माँग है कि शामली
जिले के गांव चौसाना में 4578 बीघा सरकारी जमीन को मुक्त कराया जाए। यह धरना उन्होंने
26 फरवरी 1996 को शुरू किया था और आज भी जारी है। तबसे अबतक उनका गाँव मुजफ्फरनगर
से शामली जिले में आ चुका है, पर उनका धरना वहीं जारी है, जहाँ से शुरू हुआ था। लिम्का
बुक ऑफ रिकॉर्ड्स ने 2013 में उनके धरने को देश का सबसे लम्बा धरना घोषित किया था।
एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स और इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स ने भी उनके धरने को दर्ज किया
है। सन 2007 में विजय सिंह 600 किलोमीटर पैदल चलकर लखनऊ गए थे, ताकि वहाँ सुनवाई
हो सके, पर कुछ हुआ नहीं।
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