Thursday, June 14, 2018

लम्बी चुप्पी के बाद ‘आप’ के तेवर तीखे क्यों?




एक अरसे की चुप्पी के बाद आम आदमी पार्टी ने अपनी राजनीति का रुख फिर से आंदोलन की दिशा में मोड़ा है. इस बार निशाने पर दिल्ली के उप-राज्यपाल अनिल बैजल हैं. वास्तव में यह केंद्र सरकार से मोर्चाबंदी है.
पार्टी की पुरानी राजनीति नई पैकिंग में नमूदार है. पार्टी को चुनाव की खुशबू आने लगा है और उसे लगता है कि पिछले एक साल की चुप्पी से उसकी प्रासंगिकता कम होने लगी है.
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत पार्टी के कुछ बड़े नेताओं के धरने के साथ ही सत्येंद्र जैन का आमरण अनशन शुरू हो चुका है. हो सकता है कि यह आंदोलन अगले कुछ दिनों में नई शक्ल है.
चुप्पी हानिकारक है
सन 2015 में जबरदस्त बहुमत से जीतकर आई आम आदमी सरकार और उसके नेता अरविंद केजरीवाल ने पहले दो साल नरेंद्र मोदी के खिलाफ जमकर मोर्चा खोला. फिर उन्होंने चुप्पी साध ली. शायद इस चुप्पी को पार्टी के लिए हानिकारक समझा जा रहा है.
आम आदमी पार्टी की रणनीति, राजनीति और विचारधारा के केंद्र में आंदोलन होता है. आंदोलन उसकी पहचान है. मुख्यमंत्री के रूप में केजरीवाल जनवरी 2014 में भी धरने पर बैठ चुके हैं. पिछले कुछ समय की खामोशी और माफी प्रकरण से लग रहा था कि उनकी रणनीति बदली है.
केंद्र की दमन नीति
इसमें दो राय नहीं कि केंद्र सरकार ने आप को प्रताड़ित करने का कोई मौका नहीं खोया. पार्टी के विधायकों की बात-बे-बात गिरफ्तारियों का सिलसिला चला. लाभ के पद को लेकर बीस विधायकों की सदस्यता खत्म होने में प्रकारांतर से केंद्र की भूमिका भी थी.

आप का आरोप है कि केंद्र सरकार सरकारी अफसरों में बगावत की भावना भड़का रही है. संभव है कि अफसरों के रोष का लाभ केंद्र सरकार उठाना चाहती हो, पर गत 19 फरवरी को मुख्य सचिव अंशु प्रकाश के साथ जो हुआ, उसे देखते हुए अफसरों की नाराजगी को गैर-वाजिब कैसे कहेंगे?

पूर्ण राज्य की माँग
लगता यह है कि आपने दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की माँग को फिर से उठाने का फैसला किया है. एलजी के निवास पर आंदोलन प्रतीकात्मक है. पार्टी का नया नारा है एलजी दिल्ली छोड़ो.
व्यावहारिक सच यह है कि दिल्ली केंद्र शासित क्षेत्र है और एलजी केंद्र के संविधानिक-प्रतिनिधि हैं. संविधान के अनुच्छेद 239क, 239कक तथा 239कख ऐसे प्रावधान हैं जो दिल्ली और पुदुच्चेरी को राज्य का स्वरूप प्रदान करते हैं.
इन प्रदेशों के लिए मुख्यमंत्री, मंत्रिमंडल तथा विधान सभा की व्यवस्था की है, लेकिन राज्यों के विपरीत इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं जिसके लिए वे उप-राज्यपाल को सहायता और सलाह देते हैं. ये राज्य भी हैं और कानूनन केंद्र शासित प्रदेश भी.
विसंगति दूर होनी चाहिए
इस विसंगति को दूर करने की जरूरत है, पर दिल्ली केवल राज्य नहीं है, देश की राजधानी भी है. यहाँ दो सरकारें हैं. केंद्रीय प्रशासन को राज्य व्यवस्था के अधीन रखना सम्भव नहीं. दिल्ली हाईकोर्ट ने एलजी के अधिकारों की पुष्टि की है. इस विषय में सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था का इंतजार करना चाहिए.
केजरीवाल सरकार का नई रणनीति के साथ आंदोलनकारी भूमिका में आना विस्मयकारी नहीं है. केजरीवाल का कहना है कि हमें पूर्ण राज्य दे दो, हम लोकसभा चुनाव में बीजेपी का समर्थन कर देंगे. इसका क्या मतलब है? आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच क्या केवल दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के सवाल पर मतभेद हैं?
टकराव बढ़ेगा
दोनों सरकारों के बीच फिर से तलवारों का खुलना अनायास नहीं है. इसलिए समाधान भी जल्द होने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए. किसी न किसी रूप में यह आंदोलन चुनाव तक चलेगा.
आम आदमी पार्टी जो माँगें कर रही है, उनमें आईएएस अधिकारियों की हड़ताल वापस कराने की माँग को पूरा कराने की जिम्मेदारी एलजी नहीं ले पाएंगे. राशन की डोर-स्टेप डिलीवरी, मोहल्ला क्लीनिक और सरकारी स्कूलों की पुताई वगैरह से जुड़े मसले सार्वजनिक हित से जुड़े हैं.
चुनाव की सुदूर गंध
इन सवालों के सहारे एलजी और प्रकारांतर से केंद्र सरकार की भूमिका पर सवाल उठाए जा सकते हैं, पर इसके पीछे की राजनीति साफ नजर आ रही है. आम आदमी पार्टी को चुनाव की खुशबू आने लगी है.
हाल में खबरें थीं कि वह कांग्रेस के साथ लोकसभा चुनाव में गठबंधन चाहती है. दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष अजय माकन ने इस संभावना को सिरे से नकारा है, पर आम आदमी पार्टी का इसरार जारी है. गठबंधन हो या न हो, पार्टी खुद को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए कुछ न कुछ करना चाहेगी. उसे लगता है कि पिछले एक साल की चुप्पी से उसे नुकसान हुआ है. 
इन सवालों के सहारे एलजी और प्रकारांतर से केंद्र सरकार की भूमिका पर सवाल उठाए जा सकते हैं, पर इसके पीछे की राजनीति साफ नजर आ रही है. आम आदमी पार्टी को चुनाव की खुशबू आने लगी है.

हाल में खबरें थीं कि वह कांग्रेस के साथ लोकसभा चुनाव में गठबंधन चाहती है. दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष अजय माकन ने इस संभावना को सिरे से नकारा है, पर आम आदमी पार्टी का इसरार जारी है. गठबंधन हो या न हो, पार्टी खुद को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए कुछ न कुछ करना चाहेगी. उसे लगता है कि पिछले एक साल की चुप्पी से उसे नुकसान हुआ है. 








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