पिछले शनिवार को चार गैर-भाजपा राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने दिल्ली के मुख्यमंत्री और उनकी कैबिनेट के सदस्यों के धरने का समर्थन करके कांग्रेस पार्टी के नाम बड़ा संदेश देने की कोशिश की थी। इस कोशिश ने विरोधी-एकता के अंतर्विरोधों को भी खोला है। नीति आयोग की बैठक में शामिल होने आए, इन चार मुख्यमंत्रियों में केवल एचडी कुमारस्वामी का कांग्रेस के साथ गठबंधन है। ममता बनर्जी, पिनाराई विजयन और चंद्रबाबू नायडू अपने-अपने राज्यों में कांग्रेस के प्रतिस्पर्धी हैं। इतना ही नहीं, पिनाराई विजयन की पार्टी बंगाल में ममता बनर्जी की मुख्य प्रतिस्पर्धी है। सवाल है कि क्या इन पार्टियों ने अपने परस्पर टकरावों पर ध्यान क्यों नहीं दिया? क्या उन्हें यकीन है कि वे इन अंतर्विरोधों को सुलझा लेंगे?
हालांकि इस तरफ किसी ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया है, पर वस्तुतः इन चारों ने दिल्ली में कांग्रेस की प्रतिस्पर्धी पार्टी का समर्थन करके बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया है। विरोधी दलों की एकता के दो आयाम हैं। एक, कांग्रेस-केंद्रित एकता और दूसरी क्षेत्रीय क्षत्रप-केंद्रित एकता। दिल्ली में आम आदमी पार्टी खुद को गैर-भाजपा विपक्ष की महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में स्थापित कर रही है, वहीं कांग्रेस उसे बीजेपी की ‘बी’ टीम मानती है। दोनों बातों में टकराव है।
हालांकि इस तरफ किसी ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया है, पर वस्तुतः इन चारों ने दिल्ली में कांग्रेस की प्रतिस्पर्धी पार्टी का समर्थन करके बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया है। विरोधी दलों की एकता के दो आयाम हैं। एक, कांग्रेस-केंद्रित एकता और दूसरी क्षेत्रीय क्षत्रप-केंद्रित एकता। दिल्ली में आम आदमी पार्टी खुद को गैर-भाजपा विपक्ष की महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में स्थापित कर रही है, वहीं कांग्रेस उसे बीजेपी की ‘बी’ टीम मानती है। दोनों बातों में टकराव है।