यहाँ उन्होंने ‘चतुर बनिया’ विशेषण गांधी की तारीफ में ही इस्तेमाल
किया है, पर इसके पीछे छिपा तंज भी है. बहरहाल जो वे कहना चाहते थे, वही उन्होंने
कहा. फिर भला माफी क्यों माँगेंगे? देखना यह
चाहिए कि जनता ने इस बयान को किस रूप में लिया है. यह बयान अकेले अमित शाह का है भी
नहीं. यह बयान उन बातों की अनुगूँज है, जो नरेन्द्र मोदी पिछले कुछ साल से
सार्वजनिक सभाओं में बोल रहे हैं-‘कांग्रेस-मुक्त
भारत बनाओ.’
कांग्रेस को आजादी प्राप्त करने का एक ‘स्पेशल पर्पज वेहिकल’ बताना रूपकों से खेलने की मोदी-राजनीति
का महत्वपूर्ण हिस्सा है. इसी राजनीति ने फेंकू, लपकू, पप्पू और चप्पू जैसी शब्दावली को गढ़ा है,
जिसमें बड़ी-बड़ी संजीदा बातें मसखरी की शिकार हो गईं हैं. इसकी शुरुआत 2013 में 4
अप्रेल को राहुल गांधी के सीआईआई भाषण के बाद हो गई थी.
उस
रोज ट्विटर पर ‘पप्पूसीआईआई’ के नाम से हैंडल तैयार होकर आया था. इसके बाद 8
अप्रेल को नरेन्द्र मोदी की फिक्की वार्ता के बाद ‘फेंकूइंडिया’ नाम का जवाबी हैंडल बनकर आया. पप्पू और फेंकू
का संग्राम आज सोशल मीडिया के युद्ध क्षेत्र में चल रहा है. दोनों तरफ की सेनाएं
पूरी ताकत से इसमें भाग ले रहीं हैं. भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस के प्रतीकों
को मजाक और हिकारत का विषय बनाने में कसर नहीं छोड़ी है. उसने अभी तक गांधी को बचा
रखा था. अब उसे भी लपेट लिया. यह मोदी की प्रहार-प्रति-प्रहार नीति का हिस्सा है. संसद
के पिछले बजट सत्र में मोदी की मनमोहन सिंह के ‘रेनकोट-स्नान’ से जुड़ी टिप्पणी भी इसी की एक कड़ी थी.
यह कड़वाहट दोनों पार्टियों की गलाकाट प्रतियोगिता का
अनिवार्य अंग बन चुकी है, और इसमें कमी आने के आसार नहीं हैं. इधर कांग्रेसी
बयानों में भी आक्रामकता आई है, पर लगता है कि टीम-मोदी बेहतर कील-काँटों से लैस
है. मोदी जो बातें
कहते हैं उनसे हास्य से ज्यादा दूसरे के प्रति हिकारत पैदा होती है. वे व्यंग्य
करते हैं, पर मुस्कराते नहीं हैं.
कांग्रेस
और मोदी के बीच कड़वाहट सन 2007 में शुरू हुई, जब सोनिया गांधी ने पहली बार उन्हें ‘मौत का
सौदागर’ कहा था. पार्टी ने गुजरात के संदर्भ को कभी त्यागा नहीं. हाल में राज्यसभा
में कांग्रेस के एक नेता ने नोटबंदी के सिलसिले में भी मोदी का नाम लेते वक्त गद्दाफी, मुसोलिनी और हिटलर के नामों को जोड़ा
था.
प्रतिस्पर्धी
की ऐसी मजाक बनाना कि वह अपनी सारी संजीदगी खो दे. नरेन्द्र मोदी को इस रणनीति में
सफलता भी मिली. सन 2013 में प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित होने के पहले ही मोदी
ने अपने विरोधियों का मजाक बनाना शुरू कर दिया था. इसे मीडिया में जगह भी मिली. वे
खबरों में आए और प्रतिस्पर्धी की छवि बिगड़ी. राहुल गांधी के लिए ‘पप्पू’ शब्द मोदी की टीम ने चलाया, जो चलता ही चला गया.
राहुल
का मजाक उड़ाने का कोई मौका मोदी छोड़ते नहीं हैं. हाल में उत्तर प्रदेश विधानसभा
के चुनाव की एक सभा में उन्होंने राहुल गांधी की ‘नारियल के जूस’ को लेकर छीछालेदर की. हालांकि कांग्रेस का कहना था कि राहुल ने
अनन्नास के जूस की बात कही थी, पर बात निकल गई तो निकल गई.
गांधी
परिवार, राहुल और मनमोहन सिंह को कॉमेडी के एक फ्रेम में फिट कर दिया गया है. सन
2013 में दिल्ली में फिक्की के महिला सम्मेलन और उसके बाद कोलकाता में
उद्योगपतियों के कार्यक्रम के बाद से उनकी टिप्पणियों के टुकड़े सोशल मीडिया के
मार्फत फैसले हैं.
कोलकाता
में मोदी ने कहा कि कांग्रेस में मनमोहन सिंह को कोई अपना नेता ही नहीं मानता. फिर
सवाल पूछा, देश का नेता क्या रबर स्टाम्प जैसा होना चाहिए? शुरू
में यह सब प्रतिस्पर्धा की राजनीति में आम बात लगती थी, पर इसका बड़ा गहरा असर हुआ.
जैसे-जैसे राहुल ने अपने भाषणों में संजीदगी लाने की कोशिश की, उतना ही मोदी ने उन्हें
बचकाना साबित किया.
राहुल
गांधी के साथ भाषा की दिक्कतें भी हैं. वे ठीक हिन्दी बोलते हैं, पर उनका उन
मुहावरों और रूपकों से परिचय नहीं है, जो जनता को समझ में आते हैं. मनमोहन सिंह यों
भी सार्वजनिक सभाओं के अच्छे वक्ता नहीं हैं. वे सबसे भेद्य यानी ‘वलनरेबल’ बने.
प्रधानमंत्री
बनने के बाद नरेन्द्र मोदी ने एक से ज्यादा मौकों पर देश के बाहर जाकर कांग्रेस
पार्टी पर प्रत्यक्ष और परोक्ष टिप्पणियाँ कीं तो कांग्रेस ने इसका विरोध किया.
इसपर एक टीवी कार्यक्रम में निर्मला सीतारमन ने कांग्रेस से सवाल किया, ‘जब अमेरिका ने नरेन्द्र मोदी का वीजा रद्द किया था, तब क्या देश का
अपमान नहीं हुआ था? क्या आपने
विरोध किया?’
विडंबना है कि विचारों, नीतियों और विचारधारा को
सड़क-छाप ने पीछे छोड़ दिया है. मुख्यधारा का मीडिया सोशल मीडिया के पीछे-पीछे चलने
लगा है. उसे हर रोज कुछ न कुछ सनसनीखेज चाहिए. सनसनी की इस हवा में ‘महात्मा गांधी’ का ‘चतुर बनिया’ में रूपांतरण किसी को परेशान नहीं करता. और
यह सच है.
बीबीसी हिन्दी डॉट कॉम पर प्रकाशित आलेख का परिवर्धित रूप
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