हाल में बेंगलुरु में आईएस के ट्वीट हैंडलर मेहदी विश्वास की गिरफ्तारी के बाद यह बहस आगे बढ़ी है कि इंटरनेट पर विचारों और सूचना के आदान-प्रदान की आजादी किस हद तक होनी चाहिए। इस बात की जानकारी मिल रही है कि इराक में बाकायदा लड़ाई लड़ रहा आईएस सोशल मीडिया का भरपूर इस्कतेमाल कर रहा है। एक ओर लोकतांत्रिक आजादी का सवाल है और दूसरी ओर आतंकवादी और यहाँ तक कि समुद्री डाकू भी इसका सहारा ले रहे हैं।
भारत में तीन साल पहले जब भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन चल रहा था। सन 2011 की जनवरी में ट्यूनीशिया और मिस्र में आंदोलन खड़े हुए थे, जो मूलतः अन्याय के खिलाफ थे। उन्ही दिनों अमेरिका में ‘ऑक्यूपाई द वॉल स्ट्रीट' आंदोलन शुरू हुआ। आंदोलन के मूल में यह गहरी धारणा है कि राजनीति और पैसे वालों के गठजोड़ से सामान्य नागरिक का जीना हराम है। राजनीतिक व्यवस्था अमीरों के हित में काम कर रही है। सरकार में भारी भ्रष्टाचार है। बड़े कॉरपोरेट हाउस सरकार चला रहे हैं। उसी दौरान दिसम्बर 2012 में दिल्ली में निर्भया कांड हुआ। उन्हीं दिनों बर्मा और असम के साम्प्रदायिक दंगों की तस्वीरों का दुरुपयोग हुआ। सोशल मीडिया पर आप अब हर रोज कुछ न कुछ नया होता हुआ देख रहे हैं। इस मीडिया के सदुपयोग और दुरुपयोग दोनों की कोशिशें हैं। चीन जैसी साम्यवादी व्यवस्था अपने तरीके से अमेरिका की लोकतांत्रिक व्यवस्था अपने तरीके से इस पर रोक लगाने की कोशिश करती है।
इस महीने खबर आई कि इंटरनेट और इसकी सामग्री के इस्तेमाल पर लगी बंदिशों में राहत के जरिए भारत ने इस साल इंटरनेट आजादी की दिशा में सर्वाधिक सुधार किया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के अन्य देशों की तुलना में यह भारत की बड़ी उपलब्धि है। "फ्रीडम ऑन द नेट 2014" रिपोर्ट के अनुसार बहुत कम देशों में पिछले साल की तुलना में इंटरनेट आजादी में वृद्धि देखने को मिली। रिपोर्ट के मुताबिक, "सर्वाधिक सुधार भारत में देखा गया है। 2013 में पूर्वोत्तर में दंगों की स्थिति पर नियंत्रण के उद्देश्य से इंटरनेट के उपयोग पर लगी बंदिशों में अधिकारियों ने इस साल राहत दी है।" जबकि वैश्विक स्तर पर लगातार चौथे साल इंटरनेट आजादी में गिरावट आई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इंटरनेट पर सेंसरशिप लगाने और इसके इस्तेमाल को नियंत्रित करने वाले देशों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। स्वतंत्र संस्था फ्रीडम हाउस ने विभिन्न देशों में इंटरनेट आजादी में हुई बढ़ोतरी और गिरावट पर यह रिपोर्ट तैयार की है। रिपोर्ट में 65 देशों को शामिल किया गया। इंटरनेट आजादी में देशों को शून्य से सौ के बीच अंक दिए गए। शून्य का अर्थ सर्वाधिक आजादी और सौ का अर्थ सबसे कम आजादी। इस सूची में भारत को पिछली साल के 47 के मुकाबले इस साल 42 अंक मिले हैं।
हाल में बारत के सुप्रीम कोर्ट ने देश के इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी अधिनियम की धारा 66ए की वैधानिकता को लेकर विचार शुरू किया है। यह बहस अभी जारी रहेगी, क्योंकि इस मीडिया का और ज्यादा विस्तार होगा।
Internet freedom in India improves slightly
India is only “partly free” with a rank of 30 out of 65 countries in Internet freedom but as of May this year, it has improved its score, a new report says.
The improvement in India’s score, from 47 out of 100 in 2012-13 to 42 out of 100 in 2013-14, is the largest by any country. Among BRICS and South Asian nations, Brazil and South Africa rank better.
In its ‘Freedom on the Net 2014’ report released on Thursday, Freedom House, an independent US-based watchdog group, ranked the countries on 21 categories under three broad heads — obstacles to access, limits on content and violations of individuals’ rights.
“India improved because of the reduced number of incidents in which ICT (Information Communications Technology) connectivity and access was restricted, the relative transparency in allocation of spectrum; less content blocking and reduced known incidents of physical attacks on internet users for content posted online,” the report’s lead authors for India — Chinmayi Arun and Sarvjeet Singh of the Centre for Communication Governance (CCG) at the National Law University, Delhi — told The Hindu.
Key Internet controls that existed in India between May 2013 and May 2014 included political, social, and/or religious content being blocked, localised or nationwide shutting down of information communication technology, pro-government commentators manipulating online discussions and Internet or phone users being arrested for political or social writings.
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