Sunday, November 9, 2014

मोदी का गाँवों की जनता से संवाद

नरेंद्र मोदी की बातों को गाँवों और कस्बों में रहने वाले लोग बड़े गौर से सुन रह हैं। हाल में उन्होंने रेडियो को मार्फत जनता से जो संवाद किया उसकी अहमियत शहरों में भले न रही हो, पर गाँवों में थी। गाँवों में बिजली नहीं आती। रेडियो आज भी वहाँ का महत्वपूर्ण माध्यम है। नरेंद्र मोदी ने उसके महत्व को समझा और गाँवों से सीधे सम्पर्क का उसे ज़रिया बनाया। शुक्रवार को वाराणसी में उनके कार्यक्रमों में जयापुर गाँव का कार्यक्रम गाँव के लोगों को छूता था। यह केवल एक गाँव का मसला नहीं है बल्कि देशभर के गाँवों की नजर इस कार्यक्रम पर थी।


जयापुर में मोदी ने जो कहा, वह उनके उनके पन्द्रह अगस्त के संदेश की कड़ी में था। उनका कहना है कि केवल राज-व्यवस्था माने नहीं रखती। उसे सामाजिक व्यवस्था से जुड़ना चाहिए। सामाजिक व्यवस्था चाहेगी तो राज-व्यवस्था ठीक से संचालित होगी। पन्द्रह अगस्त को उन्होंने कहा था कि हर काम अपने लिए नहीं होता। कुछ देश के लिए भी होता है। हमें राष्ट्रीय चरित्र को निखारना होगा। हालांकि मोदी परम्परागत समाज के पक्षधर हैं, पर वे बेटियों की बात उठाना कहीं नहीं भूलते। मोदी के समर्थकों में महिलाओं की संख्या कहीं ज्यादा है। बदलाव का उनका संदेश महिलाओं के मन को सीधे-सीधे छूता है, क्योंकि सबसे बड़ा बदलाव महिलाओं में है।

मोदी के संदेश के कथ्य से ज्यादा महत्वपूर्ण है उनकी शैली और मंच-कला।  उन्हें माहौल बनाना आता है। जनता की भाषा में बोलते हैं। वह भी ऐसी जो समझ में आती है। सामाजिक ऊर्जा को दोहन के तरीकों को वे बेहतर जानते हैं। यह बात लोकसभा चुनाव में हमने देखी। जयापुर में उन्होंने कहा, मैं छोटी-छोटी बातों को महत्व देता हूँ। साथ ही उन्होंने कहा, 'मैंने इस गांव को गोद नहीं लिया है, बल्कि इस गांव ने मुझे गोद लिया है। गांवों से जो सीखने को मिलता है वह कहीं और नहीं मिलता।' फिर उन्होंने जनता के मन की बात कही, 'इतने पैसे खर्च हो रहे हैं, इतनी योजनाएं चल रही हैं, फिर भी गांवों का विकास नहीं हो पा रहा, आखिर क्यों? मैंने सरकारी अधिकारियों से कहा है कि वे गांवों में जाकर वहां की हालत को पता लगाएं कि जब वे जूनियर थे, तब में अब की स्थिति में क्या अंतर आया है। आप का स्तर तो बढ़ गया, पर गाँव जहाँ के तहाँ हैं।

जनता के मन की बात उन्होंने फिर कही, 'टीवी पर देख रहा हूं कि कई दिनों से जयापुर गांव चमक रहा है, सरकारी अधिकारी आ रहे हैं। गांव वासी भी खुशी जता रहे हैं कि गांव साफ-सुथरा हो गया।' जो सबसे महत्वपूर्ण संदेश उनका था कि केवल सरकारी पैसे से गाँव का विकास नहीं हो सकता। उन्होंने गांव के लोगों से ही सवालिया अंदाज में पूछा कि क्या यह सफाई हम खुद नहीं कर सकते? उनका संदेश साफ था कि आप अपनी भूमिका को बढ़ाएं। सफाई ही नहीं हर तरह की समस्याओं का समाधान खोजें। उन्होंने माना कि इलाके की पानी की समस्या का समाधान खोजने के लिए सरकार मदद देगी, पर क्या हम वॉटर हार्वेस्टिंग नहीं कर सकते? वस्तुतः सरकारी पैसा भी जनता का पैसा है। पर जनता और सरकार के बीच दूरी है। जनता को जब सरकारी साधन भी अपने लगेंगे तब उनका इस्तेमाल भी सही होगा। पर उसके पहले जनता को अपना गाँव भी अपना लगना चाहिए।

मोदी ने कुछ छोटी-छोटी बातों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि अगर मैं सवाल करूं कि यहां सबसे पुराना वृक्ष कौन-सा है तो कितनों को पता होगा? गांव का जन्मदिन मनाने का सुझाव लोगों को सामूहिक रूप से सोचने के लिए प्रेरित करता है। वस्तुतः वे सामाजिक एकता पर जोर दे रहे हैं। गाँव और समुदाय के कार्यों में सबकी भूमिका होनी चाहिए। मसलन टीकाकरण की जिम्मेदारी केवल सरकार पर छोड़कर बैठ जाने के बजाय गाँव के नौजवानों को वह जिम्मेदारी निभानी चाहिए। उन्होंने बेटियों के जन्म को उत्सव की तरह मनाने को कहा। इसी तरह उन्होंने लोगों को बिना हाथ धोए कुछ नहीं खाने का संकल्प लेने को भी कहा। ये बातें बेहद छोटी हैं और उन्हें लोग याद भी नहीं रखते। पर यदि वे इस प्रकार के सामूहिक संकल्प करें तो बदलाव आपने आप आने लगेंगे।

अब इस बात के ज्यादा बड़े पहलू पर गौर करें। सांसदों के गाँव गोद लेने मात्र से बदलाव आने वाला नहीं है। गाँवों में आ रहा बदलाव एक ज्यादा बड़े सामाजिक-आर्थिक बदलाव का हिस्सा है। गाँव का अर्थ है सुविधाओं से वंचित क्षेत्र। इसलिए गाँवों की आबादी कम हो रही है। नौजवान रोजगार की तलाश में बाहर जा रहे हैं। पलायन एक वैश्विक परिघटना है। सारी दुनिया में पलायन हो रहा है। स्वास्थ्य, परिवहन, शिक्षा और जीवन से जुड़े ज्यादातर मामलों में गाँव पिछड़े हुए हैं। इन बातों का समाधान ढूँढने के लिए हमारी दृष्टि वैश्विक होनी चाहिए। साथ ही हमारी जानकारी का धार विस्तृत होना चाहिए। हमारे मीडिया ने जयापुर गाँव को गोद लेने के राजनीतिक पहलुओं पर काफी गहराई से विचार किया है, पर गाँवों के बदलते स्वरूप पर गौर नहीं किया है।

मोदी की बातों के राजनीतिक पहलू भी हैं। जनता के बीच जाना और संवाद बढ़ाना उनकी राजनीति है। व्यावहारिक राजनीति के लिए संवाद जरूरी है। मोदी का यह भी कहना है कि मेरी बातों को हमेशा राजनीति के तराजू में न तोला जाए। बहरहाल चुनाव जीतने की राजनीति और बदलाव की राजनीति एक नहीं होती। व्यवस्थागत बदलावों के लिए प्रशासनिक पहल के साथ-साथ जनता की पहल भी चाहिए। मोदी की बातों को जनता गौर से सुन रही है। इसका सकारात्मक लाभ लेने की कोशिश करनी चाहिए। गाँव का मतलब है हमारे आस-पास का जीवन। उसमें हम अपनी भूमिका खोजेंगे तो वह अपने आप बेहतर हो जाएगा। ऐसा आदर्श गाँव एक नहीं होगा बल्कि हजारों-लाखों गाँवों को बदल देगा।   


हरिभूमि में प्रकाशित

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