Thursday, September 11, 2014

आपका विचार, हमारा कारोबार

सोशल मीडिया पर इन दिनों किताब पर चर्चा है. किताब माने किताब. इसे कुछ लोग मेरी पसंदीदा दस किताबेंशीर्षक देकर अपनी राय दे रहे हैं या ले रहे हैं. अगस्त के आखिरी दो हफ्तों में फेसबुक ने अपनी ओर से एक सर्वे किया था, जिसमें एक लाख 30 हजार सैम्पल अपडेटों की मदद से यह जानने की कोशिश की थी कि लोगों की दस सबसे पसंदीदा किताबें कौन सी हैं. इसके सहारे फेसबुक ने सौ किताबों की सूची तैयार की. इस सूची को बनाने के पहले उसने जवाब देने वालों से कहा कि ज्यादा देर सोचे बगैर और ज्यादा गहराई में जाए बगैर तुरत-फुरत जवाब दो. उद्देश्य यह जानना था कि लोगों के मन में कौन सी किताब बैठी है. जरूरी नहीं कि वह महान साहित्यिक रचना हो या कोई महत्वपूर्ण दार्शनिक ग्रंथ हो. इस सर्वे में शामिल सबसे ज्यादा लोग अमेरिकी थे 63.7 फीसदी, दूसरे नम्बर पर भारतीय थे 9.3 फीसदी और तीसरे नम्बर पर यूके के थे 6.3 फीसदी. प्रतिभागियों की औसत उम्र 37 थी.

फेसबुक डेटा साइंस पेज पर हाल में इस सर्वे का परिणाम प्रकाशित किया गया है. सबसे ऊपर है हैरी पॉटर सीरीज़, दूसरे नम्बर पर है हार्पर ली की टु किल अ मॉकिंग बर्ड, तीसरे नम्बर पर जेआर टॉल्कीन की द लॉर्ड ऑफ द रिंग्स, चौथे पर द हॉबिट, पाँचवें पर प्राइड एंड प्रिज्युडिस और छठे पर पवित्र बाइबिल और सातवें पर लोकप्रिय कॉमेडी शो पर आधारित द हिच हाइकर्स गाइड टु द गैलेक्सी है. भारत के खासतौर से हिंदी के पाठकों की दिलचस्पी इस सूची में नहीं होगी. अलबत्ता इतना जानना रोचक होगा कि सौ की सूची में चेतन भगत का नाम नहीं है. भारत से इसमें शामिल ज्यादातर लोग शायद अंग्रेजी पढ़ने वाले ही थे. पर लगता है कि पसंद बताते वक्त वे भी अमेरिकी पाठकों की समझ पर चलते हैं.

बहरहाल इस सर्वे के बहाने दो बातों पर बात की जा सकती है. पहली बात किताबों के बाबत और दूसरी बात राय बनाने से जुड़ी है. फेसबुक लगातार अपने आप को विज्ञापन का महत्वपूर्ण प्लेटफॉर्म बनाने की दिशा में काम कर रहा है. वह इसके लिए कई तरह के सर्वे कर रहा है. यह जानने की कोशिश कर रहा है कि लोग क्या स्टेटस अपडेट के सहारे किसी राय के व्यावसायिक दोहन में मददगार हो सकते हैं या नहीं. मददगार हो सकते हैं तो किस तरीके से. पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान भारत की कुछ कम्पनियों ने सोशल मीडिया के मार्फत राजनीतिक राय बनाने का काम किया. यह बात समझ में आती उसके पहले ही राय बनने लगी.

इन दिनों एक शब्द प्रचलित हो रहा है मीम (Meme). यह एक अवधारणा है व्यक्तियों के मार्फत किसी समुदाय, संस्कृति और समाज में राय कायम करना, सबके मन में किसी बात को बैठाना. सौ किताबें, पाँच फोन, दस टीवी, बीस फिल्में ऐसा कुछ भी हो सकता है. आपके पास एक पोस्ट कार्ड आता है कि फलां बाबा के आशीर्वाद से फलां को इतना फायदा हुआ। फिर पत्र में नीचे लिखा होगा कि इसकी पचास प्रतियाँ अपने पचास दोस्तों के पास भेजिए. दो दिन के भीतर आपको खुशखबरी सुनाई पड़ेगी. कुछ पत्र-लेखक आपके भय का दोहन करने के लिए यह भी लिख देते हैं कि फलां ने प्रतियाँ नहीं भेजे तो किस तरह रसातल में पहुँच गए. आधुनिक संदर्भों में मीम शब्द का इस्तेमाल 1976 में रिचर्ड डॉकिंस ने अपनी किताब द सेल्फिश जीन में किया था. डॉकिंस ने लिखा कि जैविक उद्विकास (इवॉल्यूशन) किसी खास रसायन की उपस्थिति के कारण न होकर अपनी प्रतियाँ तैयार करने और उनके संचरण की सामर्थ्य के कारण हुआ. किसी धारणा की प्रतियाँ तैयार करते जाइए उसका अस्तित्व बना रहेगा, बल्कि विकास होता जाएगा. वैचारिक प्रतियाँ तैयार करने की इस प्रक्रिया के कारण सैकड़ों नए विचार तैयार हो रहे हैं. आपने कभी सोचा है कि वह पहला पोस्ट-कार्ड कब लिखा गया होगा?

हम जानना चाहते हैं इसी लिए जानते हैं. प्राचीन ग्रीक शब्द मीमीमा से बना मीम अब इंटरनेट की सवारी से कुछ और नए मतलब तैयार कर रहा है. इसे इंटरनेट-मीम कहा जा रहा है. तस्वीरों, हाइपर लिंकों, वीडियो फिल्मों, हैशटैग वगैरह के मार्फत किसी वस्तु, अवधारणा को लेकर राय कायम की जा रही है. अपने दीर्घ अर्थ में विवेचन पीछे जा रहा है, क्योंकि हमारे पास विवेचन के लिए समय नहीं बचा. हम कम से कम वक्त राय बनाना या बिगाड़ना चाहते हैं. राय बिगाड़ना भी एक प्रकार की राय बनाना है. मसलन किसी वस्तु, उत्पाद, व्यक्ति या संस्था की छवि बिगाड़ना भी राय बनाने वाला काम है। फेसबुक पर पसंदीदा फोटो के शेयर पर गौर करें. सुबह आपने जो फोटो लगाया था, सम्भव है शाम तक उसे लाखों लोग शेयर कर चुके हों. जब आप अपनी पसंद की पुस्तक की सूची बनाते हैं तब अपने मित्रों को टैग भी करते हैं. इससे मित्रों की राय भी बनती है. संभव है वे दो-एक किताबें और जोड़ते हों. तमाम ऐसी किताबें याद आती हैं, जो किसी को याद नहीं. कई स्टेट पर आप लिखा पाते हैं कि इसे शेयर करने पर फेसबुक की और से फलां को एक डॉलर दिया जाएगा। आप खुद दान करने के बजाय फेसबुक को दान की मुद्रा में पाते हैं तो उस स्टेटस पर कृपा कर देते हैं.

बहरहाल किताबों पर वापस आएं. दिल्ली के पुस्तक मेले में जाएं तो सबसे ज्यादा भीड़ खान-पान की जगह पर मिलेगी. पुस्तक मेले के साथ फूड-कोर्ट न हो तो शायद आधी भीड़ भी न आए. हॉल में सबसे ज्यादा भीड़ जहाँ उमड़ी दिखाई दे वहाँ समझ लीजिए कि या तो नए किस्म की सस्ती स्टेशनरी है या कोई मैजिक शो। फेसबुक ने कहा, जल्दी से जो याद आए उसका नाम लिख दो. सबसे ज्यादा लोगों को हैरी पॉटर का नाम याद आया. हैरी पॉटर जब शुरू में आया था, तब उसे कुछ समय लगा. पर अब उसे लोकप्रिय बनाने वाली चेन कायम हो चुकी है. फेसबुक पर  बुक बकेट चैलेंज बाकी काम पूरा कर रहा है. हमें इब्ने सफी बीए, प्रेम प्रकाश, प्यारे लाल आवारा, सुरेन्द्र मोहन पाठक, रानू, शेखर, कर्नल रंजीत, ओम प्रकाश शर्मा, चेतन भगत, अमीश त्रिपाठी, अश्विन संघवी, शोभा डे चम्पक, चन्दामामा, मनमोहन, बालक से लेकर राजा भैया तक याद आ रहे हैं.

आपकी इन यादों की घटाओं को बरसने का मौका तब मिलता है जब वे फेसबुक जैसे पहाड़ों से टकराती हैं. आपकी याददाश्त, आपकी शिकायतें, आपकी पसंद, आपकी नापसंद सबका मतलब है. आप सिर्फ व्यक्त करते रहिए. उसे सजाने-संवारने, पैक करने और सप्लाई करने वाला कारोबार बाकी काम करेगा. आपके दस पसंदीदा फिल्मी गीत कौन से हैं? याद है तो लिख दीजिए और दस दोस्तों के नाम टैग कर दीजिए. 

प्रभात खबर में प्रकाशित

1 comment:

  1. बहुत बढ़िया विचारोत्तेजक प्रस्तुति ..आभार

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