Monday, June 17, 2013

अकेली पड़ती भाजपा

इधर जेडीयू ने भाजपा से नाता तोड़ा, उधर कांग्रेस ने चुनाव के लिए अपनी टीम में फेरबदल किया। कांग्रेस ने पिछले साल नवम्बर से चुनाव की तैयारियाँ शुरू कर दी थीं। राहुल गांधी को चुनाव अभियान का प्रमुख बनाया गया। पार्टी के कुशल कार्यकर्ता चुनाव के काम में लगाए जा रहे हैं। इनका चुनाव राहुल गांधी के साथ करीबी रिश्तों को देखकर किया गया है। उधर भाजपा की चुनाव तैयारी आपसी खींचतान के कारण अस्त-व्यस्त है। सबसे बड़ी परेशानी जेडीयू के साथ गठबंधन टूटने के कारण हुई है। इसमें दो राय नहीं कि वह अकेली पड़ती जा रही है।

भाजपा और जेडीयू गठबंधन टूटने के कारणों पर वक्त बर्वाद करने के बजाय अब यह देखने की ज़रूरत है कि इस फैसले का भारतीय राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ेगा। पिछले हफ्ते ही जेडीयू की ओर से कहा गया था कि मोदी के बारे में फैसला भाजपा का अंदरूनी मामला है। यानी इस बीच कुछ हुआ, जिसने जेडीयू के फैसले का आधार तैयार किया। बहरहाल अब राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक ध्रुवीकरण की प्रक्रिया तेज़ होगी। जेडीयू क्या कांग्रेस के साथ जाएगी? या ममता बनर्जी के संघीय मोर्चे के साथ? या अकेले मैदान में रहेगी? इन सवालों के फौरी जवाब शायद आज मिल जाएं, पर असल जवाब 2014 के परिणाम आने के बाद मिलेंगे। बहरहाल भानुमती का पिटारा खुल रहा है।

एक धारणा है कि नीतीश कुमार बिहार की राजनीति से बाहर निकल कर खुद को राष्ट्रीय धर्मनिरपेक्ष मोर्चे के नेता के रूप में पेश कर रहे हैं। वे सम्भावित तीसरे मोर्चे के नेता के रूप में सबसे आगे रहना चाहते हैं। नरेन्द्र मोदी के रूप में उन्हें एक सीढ़ी नज़र आती है, जिसके सहारे वे ऊपर आना चाहते हैं। अतीत का घटनाक्रम देखें तो उन्होंने सन 2002 से 2004 तक नरेन्द्र मोदी का कभी विरोध नहीं किया, बल्कि समर्थन किया। अब अचानक वे मोदी को टार्गेट कर रहे हैं। सवाल है कि क्या मुलायम सिंह यादव के रहते ऐसा सम्भव हो पाएगा?

राजनीति आखिरकार नम्बरों का खेल है। कांग्रेस और भाजपा दोनों की निगाहें इस वक्त नम्बरों पर हैं। महत्वपूर्ण यह है कि किसके पास बेहतर स्कोर करने की सामर्थ्य है। इस नम्बर के खेल में ही रिश्ते बनते और बिगड़ते हैं। हालांकि सबकी निगाहें भाजपा और जदयू के रिश्तों पर हैं, पर पृष्ठभूमि में तीन राजनीतिक गठबंधन हैं। एनडीए, जिसका एक महत्वपूर्ण और सबसे पुराने मित्रों में से एक टूट गया है। यूपीए, जिसने हाल में टीएमसी और डीएमके को खोया है। और तीसरा मोर्चा, जो है नहीं पर जिसके होने का आभास जन्म लेता है खत्म होता है और फिर जन्म लेता है।

एनडीए के टूटने के बाद सहज रूप से नए सवाल उठेंगे। अब केवल जेडीयू के भावी गठबंधन का सवाल नहीं है। सवाल और भी हैं। मसलन राजद की रणनीति अब क्या होगी? कांग्रेस क्या दो नावों की सवारी करेगी? मुसलमान क्या सहज भाव से नीतीश कुमार के साथ चले जाएंगे? तब कांग्रेस क्या करेगी? ममता बनर्जी जिस संघीय मोर्चे का प्रस्ताव कर रहीं हैं, क्या वह बनेगा? बनेगा तो क्या उसमें मुलायम सिंह की सपा या मायावती की बसपा भी शामिल होगी? नवीन पटनायक होंगे? ममता का मोर्चा है तो उसमें वाम मोर्चा होगा नहीं। क्या तेदेपा उसमें होगी? जयललिता किधर जाएंगी? एनसीपी भी क्या इसमें आ जाएगी?

अगला चुनाव क्या धर्मनिरपेक्षता और साम्प्रदायिकता के सवाल पर लड़ा जाएगा? नीतीश कुमार ने इसे बड़ा सवाल बनाया है। पर यह मामला व्यक्तिगत रूप से नरेन्द्र मोदी केन्द्रित लगता है। साम्प्रदायिकता का सवाल था तो क्या भाजपा को वे साम्प्रदायिक नहीं मानते हैं? भाजपा ने यदि नरेन्द्र मोदी को आगे किया है तो क्या मोदी के भीतर कोई करिश्मा है जो नम्बर गेम में भाजपा को फायदा दे सके? भाजपा शहरी मध्य वर्ग को आकर्षित करना चाहती है। इसके विपरीत कांग्रेस पार्टी ग्रामीण इलाकों में अपनी पकड़ बनाना चाहती है। पर इन दोनों पार्टियों में इतनी ताकत नहीं है कि अकेले दम पर सरकार बना सकें। और यह भी सम्भव नहीं कि इन दोनों की अनदेखी करके कोई सरकार बनेगी। इसलिए नए गठबंधन महत्वपूर्ण होंगे।
  
नीतीश कुमार ने भाजपा से रिश्ता तोड़ने के पहले ही तीसरे मोर्चे के बारे में बातें शुरू कर दीं। इससे लगता है कि उनके मन में भी प्रधानमंत्री बनने की इच्छा दबी हुई है। पर नीतीश की पार्टी के भीतर आम सहमति नहीं है। दिल्ली में नीतीश के जो समर्थक भाजपा से रिश्ते तोड़ने की प्रबल इच्छा व्यक्त कर रहे हैं, वे ज्यादातर राज्य सभा सदस्य हैं। लोकसभा सदस्यों में चुप्पी है। बिहार विधान सभा के सदस्य भी संशय में हैं। इसके अलावा शरद यादव और नीतीश कुमार की राष्ट्रीय राजनीति के सवाल पर पूर्ण सहमति नहीं है। व्यावहारिक राजनीति में शरद यादव भले ही नीतीश कुमार से पीछे रह गए हैं, पर उनकी राजनीतिक समझ कच्ची नहीं है। वे जेडीयू के अध्यक्ष ज़रूर हैं, पर पार्टी पर नीतीश कुमार का वर्चस्व ही है। फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि दोनों का टकराव होगा। पर नीतीश कुमार खुद संशय में हैं।

नीतीश कुमार एक ओर ममता बनर्जी के मोर्चे की ओर देख रहे हैं वहीं कांग्रेस के संकेतों का खंडन भी नहीं कर रहे हैं। कांग्रेस लगातार उनकी ओर चारा डाल रही है। खासतौर से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने का आभास देकर कुछ समय से उसने नीतीश कुमार को सामने एक विकल्प रखा है। पर शरद यादव और नीतीश कुमार गैर-कांग्रेसवाद का प्रतिनिधित्व करते हैं। भाजपा घोषित साम्प्रदायिक पार्टी है। नीतीश कुमार और शरद यादव ने भाजपा का साथ देने का फैसला उस वक्त किया था, जब उस पर साम्प्रदायिकता का साफ बिल्ला लगा हुआ था। बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुए ज्यादा समय बीता नहीं था।

सन 1996 के चुनाव में शिवसेना और हरियाणा विकास पार्टी के अलावा समता पार्टी का ही भाजपा के साथ तालमेल था। तब तक एनडीए बना भी नहीं था। शिरोमणि अकाली दल के जुड़ने के पहले से जॉर्ज-नीतीश जोड़ी भाजपा से जुड़ चुकी थी। बल्कि भाजपा को कट्टरपंथी छवि से मुक्त होने का सुझाव इनका ही था। जेडीयू दस साल पहले बना है, पर नीतीश कुमार और भाजपा का साथ 17 साल पुराना है। सन 1994 में जब जॉर्ज फर्नांडिस और नीतीश कुमार जनता दल से हटकर समता पार्टी बना रहे थे, तब उनकी धारणा थी कि जनता दल जातिवादी राह पर चला गया है। 1996 के लोकसभा चुनाव में समता पार्टी ने भाजपा के साथ सहयोग किया था। 30 अक्टूबर 2003 को जनता दल, लोकशक्ति पार्टी और समता पार्टी ने मिलकर जब जनता दल युनाइटेड बनाया तब वह मूलतः लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के विरोध में था।

कांग्रेस विरोध के अलावा राजद-विरोध भी जेडीयू की राजनीति का केन्द्रीय सिद्धांत है। राजद-एलजेपी को हराना अकेले नीतीश कुमार के बस की बात नहीं है। जेडीयू और एनडीए गठबंधन टूटने के बाद बिहार में राजनीतिक और सामाजिक ध्रुवीकरण तेजी से होगा। लालू यादव और रामविलास पासवान का आधार भी डोलेगा। बिहार में मोदी का प्रवेश फिर भी हो जाएगा। इससे केवल हिन्दू-मुसलमान ध्रुवीकरण नहीं करेगा, बल्कि ओबीसी राजनीति में भी बदलाव आएगा। नीतीश कुमार अब लोकप्रिय नहीं रहे। यह बात महाराजगंज चुनाव में उनकी पार्टी की हर से साबित हो चुकी है। सम्भव है मोदी के खिलाफ कड़ा रुख अपनाकर वे लोकप्रियता वापस लेने में कामयाब हों।

गठबंधन टूटने से बिहार सरकार की वर्तमान संरचना पर फर्क नहीं पड़ेगा। पर 91 सदस्यों वाली भाजपा विपक्ष में चली जाएगी। भाजपा की एक नेता ने हाल में कहा था, हम विपक्ष में सरकार के छक्के छुड़ा देंगे। वक्त आने दीजिए। सच यह है कि बिहार की राजनीति में मुद्दों के अलावा जाति और धर्म भी काम करता है। नीतीश की इतनी कोशिशों के बाद गारंटी नहीं है कि मुसलमानों का बहुमत उनके साथ आ जाएगा। जेडीयू और कांग्रेस गठबंधन यों तो मुश्किल है, पर राजनीति में कुछ भी सम्भव है। पर क्या पिछले विधान सभा चुनाव के मुकाबले अब कांग्रेस की ताकत बढ़ी है? मोदी के मामले में बहादुरी दिखाने के कारण सम्भव है कि जेडीयू को मुस्लिम वोटर इनाम दे, पर सवर्ण और सर्वाधिक पिछड़े वर्गों का आधार खिसकेगा। आरजेडी-लोजपा गठबंधन फिर उभरने की कोशिश करेगा। भाजपा भी बिहार में उभरने की कोशिश करेगी। मोदी के कारण उसके पास कुछ नया वोट होगा। यह वोट कहाँ से आएगा? हाल में जयराम रमेश ने मोदी को नई चुनौती बताया तो कांग्रेस के भीतर से उनकी आवाज़ दबा दी गई, पर मोदी कांग्रेस का ही वोट काटेंगे।

कांग्रेस प्रवक्ता भक्तचरण दास ने कहा है कि जेडीयू और कांग्रेस को समान विचारधारा वाली पार्टी बताया है। यदि जेडीयू ने कांग्रेस के साथ जाने का निश्चय किया तो यह कुछ नए समीकरणों के बनने-बिगड़ने की शुरूआत होगी। यकीन मानिए इनमें एक भी समीकरण सिद्धांतों के आधार पर नहीं होगा, भले ही हर समीकरण के पीछे सैकड़ों सिद्धांतों का नाम हो। 
सी एक्सप्रेस में प्रकाशित

इस प्रकरण पर अखबारों की राय
Indian Express
In Patna Modi
For Nitish, Modi's rise may even have presented an irresistible opportunity in the garb of a crisis. Throughout his tenure and despite his considerable successes and achievements, Nitish has been in search of a social alliance he could call his own. Read Full Edit

The Hindu
Writing on the wall
The fracturing of the NDA immediately on his promotion returns the BJP to that point in history when it was proud of its ‘splendid isolation’. Unfortunately for the party, the message might not go down well with its potential allies. Read Full Edit

The Telegraph
Shankarshan Thakur's Analysis
The JD(U), far too reliant on Nitish’s persona, is in dire need of structure and network. The drubbing in Maharajganj exposed gaping holes in the organisation; many JD(U) leaders paradropped into the campaign returned with feedback that the party “doesn’t exist” at the grassroots. “The organisation needs attention far more than ever before,” pleaded an office bearer. “We are on our own now, we have to quickly galvanise ourselves into action, the party will have to become as much a priority as the government.” Read Full article


Entire BJP has been buldozed in the name of cadre : Nitish
Exclusive Interview In Times of India
 Issues and ideology don't matter. A situation has been created where BJP people in Bihar are wary of praising the achievements of a government of which they were a part. They are scared that they would be seen as running down another "model" of development. People are scared of even talking of Bihar's asmita (pride). This is not good for democracy. Read Full interview


मंजुल का कार्टू

सतीश आचार्य का कार्टून

हिन्दू में केशव का कार्टून




3 comments:

  1. सिधान्त की राजनीती का समय तो भारतीय राजनीती से कब का ही विदा हो चूका.अब तो अवसरवादिता ही सिद्धांत बन गया है.तीसरा मोर्चा मात्र एक भ्रम और सत्ता से दूर रहे निराश लोगों की महत्वकांशी लोगों का जमावड़ा मात्र होगा.अब्बल तो बनेगा ही नहीं,बन गया तो जनता ही इन्हें नकार देगी.फिर भी ये प्रधान मंत्री पद के लिए लड़ेंगे.कुल मिला कर ये बड़ी पार्टीज के साथ मिलकर काम करने के लिए गठजोड़ करने की कोशिश करेंगे,ताकि उन्हें सत्तानशीं करने की कीमत वसूल करेंगे.और यही से कमजोर सरकार की पुन्र शुरुआत होगी.शायद फिर भारतीय राजनीती का एक दूषित चेरा सामने आएगा.ये क्षेत्रीय दल गन्दगी फ़ैलाने के अलावा कुछ नहीं करेंगे.

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  2. दूषित राजनीति तो शायद अब भारतीय राजनीति की पहचान बन गया...देखना यह है कि अगले लोकसभा चुनाव में जनता जनार्दन इसका जवाब कैसे देती है....


    http://socialissues.jagranjunction.com/2013/06/19/child-abuse-%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE-%E0%A4%89%E0%A4%B8%E0%A5%80-%E0%A4%97%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A4-%E0%A4%AE%E0%A5%87/

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  3. दूषित राजनीति तो जैसे भारतीय राजनीति की पहचान बन चुकी है...देखना यह है कि अगले लोकसभा चुनाव में जनता जनार्दन इसका जवाब कैसे देती है...

    http://socialissues.jagranjunction.com/2013/06/19/child-abuse-%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE-%E0%A4%89%E0%A4%B8%E0%A5%80-%E0%A4%97%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A4-%E0%A4%AE%E0%A5%87/

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