सेकंडों में सुपर स्टार बनाने वाला जादू
लुधियाना के रविन्दर रवि साधारण पेंटर थे। घरों में पेंटिंग करके कमाई करते थे। खाली वक्त में गाना उसका शौक था। 17 अगस्त 2004 को सुबह साढ़े दस बजे लुधियाना से दिल्ली आने वाली बस का टिकट खरीदने के लिए उन्हें 300 रु उधार लेने पड़े थे। दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में इंडियन आयडल का ऑडीशन था। रविन्दर को इंडियन आयडल में जगह मिली। जब यह शो शुरू हुआ तब उनकी कहानी सुनने के बाद जनता की हमदर्दी ने इस प्रतियोगिता में काफी दूर तक पहुँचा दिया। अब वे प्रतिष्ठित गायक हैं।
मध्य प्रदेश के पन्ना जिले की अजयगढ़ तहसील के महेन्द्र सिंह राठौर साधारण परिवार से आते हैं। वे जब बोलते हैं तो कभी-कभी हकला जाते हैं। यह कंठ-दोष उनकी निराशा का कारण बन गया। नौकरी की लिखित प्रतियोगिताओं में बार-बार सफल होने के बावज़ूद उन्हें इंटरव्यू में बाहर कर दिया जाता। आखिर उन्हें कांट्रैक्ट टीचर की नौकरी मिली। वह भी इसलिए कि उसमे लिखित परीक्षा थी, इंटरव्यू नहीं। ‘कौन बनेगा करोड़पति’ के ताज़ा दौर में इसी 3 नवम्बर को जैसे ही फास्टेस्ट फिंगर फर्स्ट में नाम घोषित हुआ उन्होंने हवा में उसी तरह मुक्का घुमाया जैसे खेल-चैम्पियन घुमाते हैं। दौड़ते हुए उन्होंने अमिताभ बच्चन को गोदी में उठा लिया, ‘सर जी बहुत इंतज़ार कराया आपने।‘ महेन्द्र सिंह ने बताया कि ज़िन्दगी के हर मोड़ पर मैं हारता आया हूँ। पिछले ग्यारह साल से वे इस कार्यक्रम में शामिल होने की कोशिश कर रहे हैं। इधर तो अपने मोबाइल फोन को हर रोज एक हजार रुपए से रिचार्ज करा रहे थे, वह भी उधारी पर। उनका दावा है कि आपके पास इतनी कॉल कहीं से नहीं आई होंगी। महेन्द्र सिंह के साथ सैट पर मौज़ूद तमाम लोगों की आँखों में आँसू थे।
बिहार के मोतीहारी के सुशील कुमार ने जिस कार्यक्रम में पाँच करोड़ रुपए जीते उसे शुरू करते हुए अमिताभ बच्चन ने कहा, “मैने इस कार्यक्रम में एक नया हिन्दुस्तान महसूस किया। हँसता-मुस्कराता हिन्दुस्तान। यह हिन्दुस्तान अपना पक्का घर बनाना चाहता है, लेकिन उसके कच्चे घर ने उसके इरादों को कच्चा नहीं होने दिया। यह हिन्दुस्तान लाखों कमाना चाहता है। 135 रु रोज कमाकर भी करोड़ों रुपए कमाने के बराबर खुश रहना चाहता है। यह हिन्दुस्तान कपड़े सीता है, ट्यूशन करता है। दुकान पर सब्जियाँ तोलता है। अनाज मंडी में बोलियाँ लगाता है। इसके बावजूद वह अपनी कीमत जानता है। उसका मनोबल ऊँचा और लगन बुलंद है। हम सब इस नए हिन्दुस्तान को सलाम करते हैं।“
जयपुर के किशनपोल स्थित राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट के द्वितीय वर्ष के छात्र संजय ढाका चित्रकारी छोड़कर हर रोज 6 घंटे डांस का अभ्यास करते हैं। उनके हौसले बुलंद हैं। एक दिन होंगे कामयाब। वे ‘इंडिया हैज़ गॉट टेलेंट’ के सेमीफाइनल राउंड तक पहुंचने में कामयाब हो चुके हैं। वे जस्ट डांस में भी टॉप 38 के पायदान तक पहुंच चुके हैं। उड़ीसा के बहरामपुर की नृत्य मंडली ‘द प्रिंस’ ने ‘इंडिया गॉट टेलेंट’ के ग्रांड फिनाले में जीत दर्ज की और यह बात साबित की कि छोटे से कस्बे में काम करने वाले मज़दूरों के बीच कितनी प्रतिभाएं छिपी हुई हैं। उस टीम के ज्यादातर सदस्य मजदूर थे। इस साल जीतने वाले मुम्बई के सुरेश और वर्न ग्रुप के काफी कलाकार वसई और विरार के उपनगरीय इलाकों के मामूली लोग हैं। जयपुर के 10 वर्षीय नन्हें कलाकार अजमत हुसेन इस साल जीटीवी के रियलिटी शो सारेगामापा लिलिट चैंप के विजेता बने हैं। ग्रैंड फिनाले में उन्होंने हरियाणा के सलमान अली और हिमाचल प्रदेश के नितिन को पछाड़ा।
यह सूची बहुत लम्बी है। लखनऊ की पंकज भदौरिया जब स्कूल टीचर की नौकरी छोड़कर मास्टर शैफ इंडिया में शामिल हुईं तब उन्होंने सोचा नहीं था कि वे न सिर्फ चैम्पियन बनेंगी, बल्कि मास्टर शैफ के रूप में शो होस्ट करेंगी। गोरखपुर की हीरा अग्रवाल, जालंधर की जसप्रीत चीमा, गुड़गाँव की विजयलक्ष्मी और नोएडा की अंकिता चक्रवर्ती समेत अनेक अनजाने ज़ायकेबाज़ चेहरे इस साल मास्टर शैफ की दौड़ में हैं। सुनिधि चौहान, श्रेया घोषाल, अभिजित सावंत, अमित साना, संदीप आचार्य, क़ाज़ी तौक़ीर, प्रशांत तमंग, मेयोंग चैंग, अमित पोल, एमोन चटर्ची, अंतरा मित्रा, हर्षित सक्सेना, राहुल वैद्य, सौरभी देववर्मा वगैरह इस देश के अलग-अलग और छोटे इलाकों से आए कलाकार हैं जिन्होंने राष्ट्रीय पहचान बना ली है। लुधियाना शहर अपने इस्मीत को नहीं भूलता। बरेली, बारांबंकी, शिवपुरी, भोपाल, जयपुर, भागलपुर और तिरुअनंतपुरम के अपने-अपने नायक हैं। ऐसा भी हुआ जब कलाकारों की प्रतिभा पर क्षेत्रीय भावनाएं हावी हो गईं। पर इसके सकल प्रभाव के रूप में हाजिर है एक नई संस्कृति, जिसके साथ जुड़े हैं करोड़ों लोगों के सपने।
कॉमेडी शो के माध्यम से पिछले कुछ साल में राजू श्रीवास्तव, एहसान कुरैशी, राजू पाल, जस्सी कोचर, खयाली, भारती सिंह, सुरेश अलबेला, कुलदीप दुबे और बाल कलाकार सलोनी उर्फ गंगूबाई जैसी प्रतिभाएं सामने आईं, जो पहले अपने इलाकों तक सीमित थीं। सीरियलों के ज्यादातर कलाकार छोटे कस्बों से हैं। प्रतिभा का यह विस्फोट तमिल, तेलगु, कन्नड़, मलयालम, बांग्ला, गुजराती, उड़िया, पंजाबी समेत हर भाषा में है। छोटे-छोटे शहरों में ऑडीशन हो रहे हैं। बड़े चैनलों की छोड़िए अब शहरों के अपने सितारों की खोज चलने लगी है। बाराबंकी से लेकर बरेली तक कोई शहर अछूता नहीं जहाँ गाने और नाचने के चैम्पियनों की तलाश न हो रही हो। अमिताभ बच्चन के शो में जाकर करोड़पति बनने की चाहत जिस शिद्दत से गाँवों और कस्बों में है, उतनी महानगरों में नहीं है। इसमें टेस्ट ऑफ इंडिया है और टेलेंट ऑफ इंडिया भी।
लगातार बढ़ती यह सूची किस बात की ओर इशारा करती है? क्या बहुरंगी भारतीय प्रतिभा का यह उदयकाल है? बदलाव को बेचैन असली भारत का आगमन? संस्कृति का सहज प्रवाह? या सपनों की तिज़ारत और रियलिटी टीवी की ताकत? या कल्चर-इंडस्ट्री का ग्लोबलाइलेज़न? संस्कृति के इस बाज़ार में यह सब बातें शामिल हैं। और इसके अनेक आयाम हैं। न्यूक्लियर फ्यूज़न की तरह ऊर्जा के सतत प्रवाह का सिलसिला। इसमें सांस्कृतिक विरासत और रचनाशीलता का संलयन और विखंडन दोनों मौजूद हैं।
बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर
सन 1993 से 2001 तक चला दूरदर्शन का सीरियल ‘सुरभि’ अपने कलेवर में संज़ीदा था और ज्ञानवर्धक भी। वह हमें हमारी जानकारी देता था। ऐसा ही सीरियल था ज़ीटीवी का अंताक्षरी, जो शुद्ध देशी परम्परा का मनोरंजन था। मेरी आवाज़ सुनो और सारेगामापा जैसे टेलीविज़न शो इस पॉपुलर कल्चर के ध्वजवाहक थे। नई पैकेजिंग, रंगीनी और टेक्नॉलजी ने अचानक मनोरंजन उद्योग में पंख लगा दिए। इस देश की धड़कनों में संगीत बसा है। हमारा फिल्म उद्योग इसका प्रमाण है। संगीत हॉलीवुड में भी है। पर गीत-संगीत का जैसा इस्तेमाल हमारे सिनेमा ने किया है उसकी मिसाल नहीं मिलती। हमारे सिनेमा ने फिल्म के तमाम पहलुओं की तरह पश्चिमी संगीत की नकल करने में कसर नहीं छोड़ी, पर जब-जब देश के लोक-गीतों और लोक संगीत को अपनाया तब-तब वह लोकप्रिय हुआ। इसी गीत-संगीत में हमारा आह्लाद, उल्लास और विषाद बसता है। और इसीलिए घर से हजारों मील दूर जब कोई भारतीय नौजवान अमेरिका या यूरोप में जाकर बसता है तो आई-पॉड पर अपना संगीत डाउनलोड करना नहीं भूलता। और यही संगीत और नृत्य टीवी के रियलिटी शो की जान है।
संस्कृति की सर्जना जटिल मामला है। यह टेक्नॉलजी सापेक्ष है। और वैश्विक भी। इसका प्रमाण है हमारे ज्यादातर टीवी शो किसी लोकप्रिय विदेशी शो की नकल हैं। फिर भी संस्कृति जिस सभ्यता से जुड़ी है उसे छोड़कर नहीं भागती। मैक्डॉनल्ड के ईटिंग जॉइंट्स को भी आलू मैकबर्गर और नवरात्रि स्पेशल बर्गर बनाना होता है। पर नई टेक्नॉलजी ने प्रसिद्धि के जो मौके पैदा किए हैं उनमें नयापन है। एक ज़माने तक किसी को नायक या महानायक बनने के लिए लम्बी दौड़ लगानी पड़ती थी। पर अब कोई खास क्षण व्यक्ति को महत्वपूर्ण बना सकता है। या धूल में मिला सकता है। किसी नए क्रिकेट खिलाड़ी का सिर्फ एक शानदार छक्का उसके पूरे जीवन का हुलिया बदल सकता है। कोई एक जोक पूरे देश को लोट-पोट कर सकता है या कोई एक आँसू पूरे देश को रुला सकता है।
दुनिया को नितांत स्थानीय से वैश्विक बनाने में सबसे बड़ी भूमिका है टेक्नॉलजी की। टेक्नॉलजी को अक्सर लोग विज्ञान से जोड़ते हैं, जबकि विज्ञान उसका एक आंशिक तत्व है। महत्वपूर्ण है उसका समाज सापेक्ष होना। हमारी ज़रूरतों को मुहैया कराना। कुछ साल पहले तक रात में सब्जी खरीदने में दिक्कत होती थी। मिट्टी की ढिबरी से रोशन सब्जी के ठेले पर खरीदारी करते वक्त समझ में नहीं आता था कि क्या सड़ा है और क्या अच्छा। चुंदी आँखों वाले दुकानदार को खोटे सिक्के थमाने का मौका भी तभी मिलता था। पहले हाइट्रोजन लैम्प आए, फिर गैस की लालटेन। एक रोज बैटरी के सहारे साठ वॉट का बल्ब लगा नज़र आया तो लगा कि क्रांति हो गई। हाल में सब्जी बाजार में देखा कि कतार से सीएफएल बल्ब जगमगा रहे हैं। बेहद छोटे इनवर्टरों का आविष्कार किसी ने कर दिया। दिन में चार्ज करो शाम को चलाओ। अगर ठेले वाले के पास बिजली की लाइन है तो क्या कहने। मोबाइल फोन ने इस क्रांति का रंग ही बदल दिया। तमिलनाडु, आंध्र, मणिपुर, सिक्किम, मिजोरम या बिहार के सुदूर गाँव से रोजगार के लिए दिल्ली आई बालिका या बालक हर शाम अपने अक्का, अब्बा, ईजा, जाई, आई या अइया से बात कर सकते हैं। इसी मोबाइल फोन ने महेन्द्र सिंह राठौर को करोड़पति की हॉट सीट पर बैठा दिया। और इसी के एसएमएस पोल ने रविन्दर रवि के प्रति दर्शकों की हमदर्दी को ठोस धरातल पर पहुँचा दिया। टेक्नॉलजी जब अमीर आदमी के लिए बनती है तो उसकी छीजन गरीब के काम आती है और वह दुगने बेग से सक्रिय होता है।
पर्सनल ब्रैंडिंग और फिफ्टीन मिनट फेम
सन 1968 में अमेरिकी चित्रकार, लेखक एंडी वॉरहॉल ने कहा था,’आने वाले वक्त में इंसान पन्द्रह मिनट में विश्व प्रसिद्ध हो जाएगा।’ अब पाँच सेकंड में प्रसिद्धि मिलती है। टेक्नॉलजी ने गरीब माँ-बेटे को ही नहीं जोड़ा। उसे दूसरे करोड़ों लोगों से भी जोड़ा है। करोड़ों दर्शकों, श्रोताओं और पाठकों से जो कनेक्ट टेक्नॉलजी ने दिया है वह अद्भुत है। और यह वैश्विक है। अमेरिका, इंग्लैंड से लेकर नाइजीरिया, मलेशिया, थाईलैंड, फिलीपींस, पाकिस्तान से लेकर नेपाल तक सांस्कृतिक उमड़-घुमड़ चल रही है।
सन 2009 में ब्रिटेन के रियलिटी शो ‘ब्रिटेन गॉट टेलेंट’ में स्कॉटलैंड की 47 वर्षीय सूज़न बॉयल ने ऑडीशन दिया। पहले दिन के पहले शो से उसकी प्रतिभा का पता लग गया। पर वह 47 साल की थी ग्लैमरस नहीं थी। वह व्यावसायिक गायिका नहीं थी। पूरा जीवन उसने अपनी माँ की सेवा में लगा दिया। चर्च में या आसपास के किसी कार्यक्रम में गाती थी। उसके बेहतर प्रदर्शन के बावज़ूद दर्शकों का समर्थन नहीं मिला। ग्लैमरस प्रस्तोता दर्शकों पर हावी थे। पर सुधी गुण-ग्राहक भी हैं। सूज़न बॉयल को मीडिया सपोर्ट मिला। बेहद सादा, सरल, सहज और बच्चों जैसे चेहरे वाली इस गायिका ने जब फाइनल में ‘आय ड्रैम्ड अ ड्रीम’ गाया तो सिर्फ सेट पर ही नहीं, इस कार्यक्रम को देख रहे एक करोड़ से ज्यादा दर्शकों में खामोशी छा गई। तमाम लोगों की आँखों में आँसू थे। जैसे ही उसका गाना खत्म हुआ तालियों का समां बँध गया। कुछ मिनटों के भीतर वह सुपर स्टार बन गई। आप हर रोज देख सकते हैं एक साधारण व्यक्ति को सेकंडों में सुपरस्टार बनते।
हारते लोगों के सपने
‘आय ड्रैम्ड अ ड्रीम’ हारते लोगों का सपना है। वैसा ही जैसे महेन्द्र सिंह राठौर के दुःस्वप्न थे। यह करोड़ों लोगों का दुःस्वप्न है, जो हृदयविदारक होते हुए भी हमें भाता है। करोड़पति, लिल चैम्प्स, इंडिया गॉट टेलेंट, जस्ट डांस वगैरह-वगैरह की लम्बी कतार है। देशभर के चैनलों को गिनेंगे तो सैकड़ों शो सामने आ चुके हैं और सामने आने वाले हैं। यह एक कारोबार है। इसमें शामिल होने की तिकड़में हैं। प्रसिद्ध होने के टोटके हैं। राहुल महाजन, राखी सावंत के स्वयंवर के बाद पाकिस्तानी कलाकार मीरा का कार्यक्रम ’कौन बनेगा मीरा पति’ बना तो सब जानते थे कि यह सिर्फ प्रचार है। यह सपनों की तिज़ारत है। आम आदमी सपने देखना चाहता है। क्या वह सपनों में ही डूबा रहेगा? बाहर नहीं आएगा?
फेसबुक पर नाइजीरिया के किसी टेलेंट हंट कांटेस्ट का पेज है। उसका सूत्र वाक्य है,’आय थिंक आय कैन’। एक सामान्य व्यक्ति को यह बताना कि तुम नाकाबिल नहीं हो। उसकी हीन भावना को निकाल कर फेंकने के लिए उसके बीच से निकल कर ही किसी को रोल मॉडल बनना होगा। फेस बुक पर नाइजीरिया के ज़ो चिनाका ने वॉल पर लिखा है, ‘हाई ऑल प्लीज़ गो टु www.pepsiidol.com एंड वोट फॉर मी एज़ फैन्स आयडल’। यह अपील दुनियाभर में हो रही है और करोड़ों एसएमएस लिखे जा रहे हैं। यह एक कारोबार है। पर यह एक सामाजिक अंतर्क्रिया है। धक्का तब लगता है जब लगे कि हम ठगे गए। यह कहानी अभी जारी है। छोटे-छोटे गाँवों और कस्बों के छोटे-छोटे लोगों की उम्मीदों, सपनों और दुश्वारियों की किताबें खुल रहीं हैं। ड्राइंग रूमों से लेकर सड़क किनारे पड़ी मचिया के पास रखे टीवी सेट पर टकटकी लगाए करोड़ों लोग इसमें शामिल हैं। भारत के तकरीबन सवा सौ करोड़ सपनों को अमिताभ बच्चन का संदेश है,‘हम आपके चेहरे पर हँसी देखना चाहते हैं।’ यह बहुत बड़ा सपना है, पर सबका अपना है।
दैनिक भास्कर के रविवारी परिशिष्ट रसरंग में परिवर्धित रूप में प्रकाशित कवर स्टोरी
लुधियाना के रविन्दर रवि साधारण पेंटर थे। घरों में पेंटिंग करके कमाई करते थे। खाली वक्त में गाना उसका शौक था। 17 अगस्त 2004 को सुबह साढ़े दस बजे लुधियाना से दिल्ली आने वाली बस का टिकट खरीदने के लिए उन्हें 300 रु उधार लेने पड़े थे। दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में इंडियन आयडल का ऑडीशन था। रविन्दर को इंडियन आयडल में जगह मिली। जब यह शो शुरू हुआ तब उनकी कहानी सुनने के बाद जनता की हमदर्दी ने इस प्रतियोगिता में काफी दूर तक पहुँचा दिया। अब वे प्रतिष्ठित गायक हैं।
मध्य प्रदेश के पन्ना जिले की अजयगढ़ तहसील के महेन्द्र सिंह राठौर साधारण परिवार से आते हैं। वे जब बोलते हैं तो कभी-कभी हकला जाते हैं। यह कंठ-दोष उनकी निराशा का कारण बन गया। नौकरी की लिखित प्रतियोगिताओं में बार-बार सफल होने के बावज़ूद उन्हें इंटरव्यू में बाहर कर दिया जाता। आखिर उन्हें कांट्रैक्ट टीचर की नौकरी मिली। वह भी इसलिए कि उसमे लिखित परीक्षा थी, इंटरव्यू नहीं। ‘कौन बनेगा करोड़पति’ के ताज़ा दौर में इसी 3 नवम्बर को जैसे ही फास्टेस्ट फिंगर फर्स्ट में नाम घोषित हुआ उन्होंने हवा में उसी तरह मुक्का घुमाया जैसे खेल-चैम्पियन घुमाते हैं। दौड़ते हुए उन्होंने अमिताभ बच्चन को गोदी में उठा लिया, ‘सर जी बहुत इंतज़ार कराया आपने।‘ महेन्द्र सिंह ने बताया कि ज़िन्दगी के हर मोड़ पर मैं हारता आया हूँ। पिछले ग्यारह साल से वे इस कार्यक्रम में शामिल होने की कोशिश कर रहे हैं। इधर तो अपने मोबाइल फोन को हर रोज एक हजार रुपए से रिचार्ज करा रहे थे, वह भी उधारी पर। उनका दावा है कि आपके पास इतनी कॉल कहीं से नहीं आई होंगी। महेन्द्र सिंह के साथ सैट पर मौज़ूद तमाम लोगों की आँखों में आँसू थे।
बिहार के मोतीहारी के सुशील कुमार ने जिस कार्यक्रम में पाँच करोड़ रुपए जीते उसे शुरू करते हुए अमिताभ बच्चन ने कहा, “मैने इस कार्यक्रम में एक नया हिन्दुस्तान महसूस किया। हँसता-मुस्कराता हिन्दुस्तान। यह हिन्दुस्तान अपना पक्का घर बनाना चाहता है, लेकिन उसके कच्चे घर ने उसके इरादों को कच्चा नहीं होने दिया। यह हिन्दुस्तान लाखों कमाना चाहता है। 135 रु रोज कमाकर भी करोड़ों रुपए कमाने के बराबर खुश रहना चाहता है। यह हिन्दुस्तान कपड़े सीता है, ट्यूशन करता है। दुकान पर सब्जियाँ तोलता है। अनाज मंडी में बोलियाँ लगाता है। इसके बावजूद वह अपनी कीमत जानता है। उसका मनोबल ऊँचा और लगन बुलंद है। हम सब इस नए हिन्दुस्तान को सलाम करते हैं।“
जयपुर के किशनपोल स्थित राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट के द्वितीय वर्ष के छात्र संजय ढाका चित्रकारी छोड़कर हर रोज 6 घंटे डांस का अभ्यास करते हैं। उनके हौसले बुलंद हैं। एक दिन होंगे कामयाब। वे ‘इंडिया हैज़ गॉट टेलेंट’ के सेमीफाइनल राउंड तक पहुंचने में कामयाब हो चुके हैं। वे जस्ट डांस में भी टॉप 38 के पायदान तक पहुंच चुके हैं। उड़ीसा के बहरामपुर की नृत्य मंडली ‘द प्रिंस’ ने ‘इंडिया गॉट टेलेंट’ के ग्रांड फिनाले में जीत दर्ज की और यह बात साबित की कि छोटे से कस्बे में काम करने वाले मज़दूरों के बीच कितनी प्रतिभाएं छिपी हुई हैं। उस टीम के ज्यादातर सदस्य मजदूर थे। इस साल जीतने वाले मुम्बई के सुरेश और वर्न ग्रुप के काफी कलाकार वसई और विरार के उपनगरीय इलाकों के मामूली लोग हैं। जयपुर के 10 वर्षीय नन्हें कलाकार अजमत हुसेन इस साल जीटीवी के रियलिटी शो सारेगामापा लिलिट चैंप के विजेता बने हैं। ग्रैंड फिनाले में उन्होंने हरियाणा के सलमान अली और हिमाचल प्रदेश के नितिन को पछाड़ा।
यह सूची बहुत लम्बी है। लखनऊ की पंकज भदौरिया जब स्कूल टीचर की नौकरी छोड़कर मास्टर शैफ इंडिया में शामिल हुईं तब उन्होंने सोचा नहीं था कि वे न सिर्फ चैम्पियन बनेंगी, बल्कि मास्टर शैफ के रूप में शो होस्ट करेंगी। गोरखपुर की हीरा अग्रवाल, जालंधर की जसप्रीत चीमा, गुड़गाँव की विजयलक्ष्मी और नोएडा की अंकिता चक्रवर्ती समेत अनेक अनजाने ज़ायकेबाज़ चेहरे इस साल मास्टर शैफ की दौड़ में हैं। सुनिधि चौहान, श्रेया घोषाल, अभिजित सावंत, अमित साना, संदीप आचार्य, क़ाज़ी तौक़ीर, प्रशांत तमंग, मेयोंग चैंग, अमित पोल, एमोन चटर्ची, अंतरा मित्रा, हर्षित सक्सेना, राहुल वैद्य, सौरभी देववर्मा वगैरह इस देश के अलग-अलग और छोटे इलाकों से आए कलाकार हैं जिन्होंने राष्ट्रीय पहचान बना ली है। लुधियाना शहर अपने इस्मीत को नहीं भूलता। बरेली, बारांबंकी, शिवपुरी, भोपाल, जयपुर, भागलपुर और तिरुअनंतपुरम के अपने-अपने नायक हैं। ऐसा भी हुआ जब कलाकारों की प्रतिभा पर क्षेत्रीय भावनाएं हावी हो गईं। पर इसके सकल प्रभाव के रूप में हाजिर है एक नई संस्कृति, जिसके साथ जुड़े हैं करोड़ों लोगों के सपने।
कॉमेडी शो के माध्यम से पिछले कुछ साल में राजू श्रीवास्तव, एहसान कुरैशी, राजू पाल, जस्सी कोचर, खयाली, भारती सिंह, सुरेश अलबेला, कुलदीप दुबे और बाल कलाकार सलोनी उर्फ गंगूबाई जैसी प्रतिभाएं सामने आईं, जो पहले अपने इलाकों तक सीमित थीं। सीरियलों के ज्यादातर कलाकार छोटे कस्बों से हैं। प्रतिभा का यह विस्फोट तमिल, तेलगु, कन्नड़, मलयालम, बांग्ला, गुजराती, उड़िया, पंजाबी समेत हर भाषा में है। छोटे-छोटे शहरों में ऑडीशन हो रहे हैं। बड़े चैनलों की छोड़िए अब शहरों के अपने सितारों की खोज चलने लगी है। बाराबंकी से लेकर बरेली तक कोई शहर अछूता नहीं जहाँ गाने और नाचने के चैम्पियनों की तलाश न हो रही हो। अमिताभ बच्चन के शो में जाकर करोड़पति बनने की चाहत जिस शिद्दत से गाँवों और कस्बों में है, उतनी महानगरों में नहीं है। इसमें टेस्ट ऑफ इंडिया है और टेलेंट ऑफ इंडिया भी।
लगातार बढ़ती यह सूची किस बात की ओर इशारा करती है? क्या बहुरंगी भारतीय प्रतिभा का यह उदयकाल है? बदलाव को बेचैन असली भारत का आगमन? संस्कृति का सहज प्रवाह? या सपनों की तिज़ारत और रियलिटी टीवी की ताकत? या कल्चर-इंडस्ट्री का ग्लोबलाइलेज़न? संस्कृति के इस बाज़ार में यह सब बातें शामिल हैं। और इसके अनेक आयाम हैं। न्यूक्लियर फ्यूज़न की तरह ऊर्जा के सतत प्रवाह का सिलसिला। इसमें सांस्कृतिक विरासत और रचनाशीलता का संलयन और विखंडन दोनों मौजूद हैं।
बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर
सन 1993 से 2001 तक चला दूरदर्शन का सीरियल ‘सुरभि’ अपने कलेवर में संज़ीदा था और ज्ञानवर्धक भी। वह हमें हमारी जानकारी देता था। ऐसा ही सीरियल था ज़ीटीवी का अंताक्षरी, जो शुद्ध देशी परम्परा का मनोरंजन था। मेरी आवाज़ सुनो और सारेगामापा जैसे टेलीविज़न शो इस पॉपुलर कल्चर के ध्वजवाहक थे। नई पैकेजिंग, रंगीनी और टेक्नॉलजी ने अचानक मनोरंजन उद्योग में पंख लगा दिए। इस देश की धड़कनों में संगीत बसा है। हमारा फिल्म उद्योग इसका प्रमाण है। संगीत हॉलीवुड में भी है। पर गीत-संगीत का जैसा इस्तेमाल हमारे सिनेमा ने किया है उसकी मिसाल नहीं मिलती। हमारे सिनेमा ने फिल्म के तमाम पहलुओं की तरह पश्चिमी संगीत की नकल करने में कसर नहीं छोड़ी, पर जब-जब देश के लोक-गीतों और लोक संगीत को अपनाया तब-तब वह लोकप्रिय हुआ। इसी गीत-संगीत में हमारा आह्लाद, उल्लास और विषाद बसता है। और इसीलिए घर से हजारों मील दूर जब कोई भारतीय नौजवान अमेरिका या यूरोप में जाकर बसता है तो आई-पॉड पर अपना संगीत डाउनलोड करना नहीं भूलता। और यही संगीत और नृत्य टीवी के रियलिटी शो की जान है।
संस्कृति की सर्जना जटिल मामला है। यह टेक्नॉलजी सापेक्ष है। और वैश्विक भी। इसका प्रमाण है हमारे ज्यादातर टीवी शो किसी लोकप्रिय विदेशी शो की नकल हैं। फिर भी संस्कृति जिस सभ्यता से जुड़ी है उसे छोड़कर नहीं भागती। मैक्डॉनल्ड के ईटिंग जॉइंट्स को भी आलू मैकबर्गर और नवरात्रि स्पेशल बर्गर बनाना होता है। पर नई टेक्नॉलजी ने प्रसिद्धि के जो मौके पैदा किए हैं उनमें नयापन है। एक ज़माने तक किसी को नायक या महानायक बनने के लिए लम्बी दौड़ लगानी पड़ती थी। पर अब कोई खास क्षण व्यक्ति को महत्वपूर्ण बना सकता है। या धूल में मिला सकता है। किसी नए क्रिकेट खिलाड़ी का सिर्फ एक शानदार छक्का उसके पूरे जीवन का हुलिया बदल सकता है। कोई एक जोक पूरे देश को लोट-पोट कर सकता है या कोई एक आँसू पूरे देश को रुला सकता है।
दुनिया को नितांत स्थानीय से वैश्विक बनाने में सबसे बड़ी भूमिका है टेक्नॉलजी की। टेक्नॉलजी को अक्सर लोग विज्ञान से जोड़ते हैं, जबकि विज्ञान उसका एक आंशिक तत्व है। महत्वपूर्ण है उसका समाज सापेक्ष होना। हमारी ज़रूरतों को मुहैया कराना। कुछ साल पहले तक रात में सब्जी खरीदने में दिक्कत होती थी। मिट्टी की ढिबरी से रोशन सब्जी के ठेले पर खरीदारी करते वक्त समझ में नहीं आता था कि क्या सड़ा है और क्या अच्छा। चुंदी आँखों वाले दुकानदार को खोटे सिक्के थमाने का मौका भी तभी मिलता था। पहले हाइट्रोजन लैम्प आए, फिर गैस की लालटेन। एक रोज बैटरी के सहारे साठ वॉट का बल्ब लगा नज़र आया तो लगा कि क्रांति हो गई। हाल में सब्जी बाजार में देखा कि कतार से सीएफएल बल्ब जगमगा रहे हैं। बेहद छोटे इनवर्टरों का आविष्कार किसी ने कर दिया। दिन में चार्ज करो शाम को चलाओ। अगर ठेले वाले के पास बिजली की लाइन है तो क्या कहने। मोबाइल फोन ने इस क्रांति का रंग ही बदल दिया। तमिलनाडु, आंध्र, मणिपुर, सिक्किम, मिजोरम या बिहार के सुदूर गाँव से रोजगार के लिए दिल्ली आई बालिका या बालक हर शाम अपने अक्का, अब्बा, ईजा, जाई, आई या अइया से बात कर सकते हैं। इसी मोबाइल फोन ने महेन्द्र सिंह राठौर को करोड़पति की हॉट सीट पर बैठा दिया। और इसी के एसएमएस पोल ने रविन्दर रवि के प्रति दर्शकों की हमदर्दी को ठोस धरातल पर पहुँचा दिया। टेक्नॉलजी जब अमीर आदमी के लिए बनती है तो उसकी छीजन गरीब के काम आती है और वह दुगने बेग से सक्रिय होता है।
पर्सनल ब्रैंडिंग और फिफ्टीन मिनट फेम
सन 1968 में अमेरिकी चित्रकार, लेखक एंडी वॉरहॉल ने कहा था,’आने वाले वक्त में इंसान पन्द्रह मिनट में विश्व प्रसिद्ध हो जाएगा।’ अब पाँच सेकंड में प्रसिद्धि मिलती है। टेक्नॉलजी ने गरीब माँ-बेटे को ही नहीं जोड़ा। उसे दूसरे करोड़ों लोगों से भी जोड़ा है। करोड़ों दर्शकों, श्रोताओं और पाठकों से जो कनेक्ट टेक्नॉलजी ने दिया है वह अद्भुत है। और यह वैश्विक है। अमेरिका, इंग्लैंड से लेकर नाइजीरिया, मलेशिया, थाईलैंड, फिलीपींस, पाकिस्तान से लेकर नेपाल तक सांस्कृतिक उमड़-घुमड़ चल रही है।
सन 2009 में ब्रिटेन के रियलिटी शो ‘ब्रिटेन गॉट टेलेंट’ में स्कॉटलैंड की 47 वर्षीय सूज़न बॉयल ने ऑडीशन दिया। पहले दिन के पहले शो से उसकी प्रतिभा का पता लग गया। पर वह 47 साल की थी ग्लैमरस नहीं थी। वह व्यावसायिक गायिका नहीं थी। पूरा जीवन उसने अपनी माँ की सेवा में लगा दिया। चर्च में या आसपास के किसी कार्यक्रम में गाती थी। उसके बेहतर प्रदर्शन के बावज़ूद दर्शकों का समर्थन नहीं मिला। ग्लैमरस प्रस्तोता दर्शकों पर हावी थे। पर सुधी गुण-ग्राहक भी हैं। सूज़न बॉयल को मीडिया सपोर्ट मिला। बेहद सादा, सरल, सहज और बच्चों जैसे चेहरे वाली इस गायिका ने जब फाइनल में ‘आय ड्रैम्ड अ ड्रीम’ गाया तो सिर्फ सेट पर ही नहीं, इस कार्यक्रम को देख रहे एक करोड़ से ज्यादा दर्शकों में खामोशी छा गई। तमाम लोगों की आँखों में आँसू थे। जैसे ही उसका गाना खत्म हुआ तालियों का समां बँध गया। कुछ मिनटों के भीतर वह सुपर स्टार बन गई। आप हर रोज देख सकते हैं एक साधारण व्यक्ति को सेकंडों में सुपरस्टार बनते।
हारते लोगों के सपने
‘आय ड्रैम्ड अ ड्रीम’ हारते लोगों का सपना है। वैसा ही जैसे महेन्द्र सिंह राठौर के दुःस्वप्न थे। यह करोड़ों लोगों का दुःस्वप्न है, जो हृदयविदारक होते हुए भी हमें भाता है। करोड़पति, लिल चैम्प्स, इंडिया गॉट टेलेंट, जस्ट डांस वगैरह-वगैरह की लम्बी कतार है। देशभर के चैनलों को गिनेंगे तो सैकड़ों शो सामने आ चुके हैं और सामने आने वाले हैं। यह एक कारोबार है। इसमें शामिल होने की तिकड़में हैं। प्रसिद्ध होने के टोटके हैं। राहुल महाजन, राखी सावंत के स्वयंवर के बाद पाकिस्तानी कलाकार मीरा का कार्यक्रम ’कौन बनेगा मीरा पति’ बना तो सब जानते थे कि यह सिर्फ प्रचार है। यह सपनों की तिज़ारत है। आम आदमी सपने देखना चाहता है। क्या वह सपनों में ही डूबा रहेगा? बाहर नहीं आएगा?
फेसबुक पर नाइजीरिया के किसी टेलेंट हंट कांटेस्ट का पेज है। उसका सूत्र वाक्य है,’आय थिंक आय कैन’। एक सामान्य व्यक्ति को यह बताना कि तुम नाकाबिल नहीं हो। उसकी हीन भावना को निकाल कर फेंकने के लिए उसके बीच से निकल कर ही किसी को रोल मॉडल बनना होगा। फेस बुक पर नाइजीरिया के ज़ो चिनाका ने वॉल पर लिखा है, ‘हाई ऑल प्लीज़ गो टु www.pepsiidol.com एंड वोट फॉर मी एज़ फैन्स आयडल’। यह अपील दुनियाभर में हो रही है और करोड़ों एसएमएस लिखे जा रहे हैं। यह एक कारोबार है। पर यह एक सामाजिक अंतर्क्रिया है। धक्का तब लगता है जब लगे कि हम ठगे गए। यह कहानी अभी जारी है। छोटे-छोटे गाँवों और कस्बों के छोटे-छोटे लोगों की उम्मीदों, सपनों और दुश्वारियों की किताबें खुल रहीं हैं। ड्राइंग रूमों से लेकर सड़क किनारे पड़ी मचिया के पास रखे टीवी सेट पर टकटकी लगाए करोड़ों लोग इसमें शामिल हैं। भारत के तकरीबन सवा सौ करोड़ सपनों को अमिताभ बच्चन का संदेश है,‘हम आपके चेहरे पर हँसी देखना चाहते हैं।’ यह बहुत बड़ा सपना है, पर सबका अपना है।
दैनिक भास्कर के रविवारी परिशिष्ट रसरंग में परिवर्धित रूप में प्रकाशित कवर स्टोरी
आपने तो सभी बड़ी और अच्छी खबरों को यहाँ एक साथ प्रस्तुत करदिया...समय मिले कभी तो आयेगा ज़रूर मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है। http://mhare-anubhav.blogspot.com/
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