Wednesday, November 9, 2011

भारत-पाक कारोबारी रिश्तों के दाँव-पेच

भारत-पाकिस्तान रिश्तों में किस हद तक संशय रहते हैं, इसका पता पिछले हफ्ते भारत को मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा देने की घोषणा के बाद लगा। पाकिस्तान की सूचना प्रसारण मंत्री ने बाकायदा इसकी घोषणा की, पर बाद में पता लगा कि फैसला हो ज़रूर गया है पर घोषणा में कोई पेच था। घोषणा सही थी या गलत, भारत का दर्जा बदल गया है या बदल जाएगा। तरज़ीही देश या एमएफएन शब्द भ्रामक है। इसका अर्थ वही नहीं है, जो समझ में आता है। इसका अर्थ यह है कि पाकिस्तान अब हमें उन एक सौ से ज्यादा देशों के बराबर रखेगा जिन्हें एमएफएन का दर्जा दिया गया है। मतलब जिन देशों से व्यापार किया जाता है उन्हें बराबरी की सुविधाएं देना। उनमें भेदभाव नहीं करना।



नवम्बर के तीसरे हफ्ते में भारत और पाकिस्तान के वाणिज्य सचिवों की बैठक होगी, जिसमें तमाम पेचीदगियों पर बात की जाएगी। भारत की ओर से अभी तमाम नॉन टैरिफ बैरियर हैं। जैसे कि इंस्पेक्शन, टेस्टिंग और सर्टिफिकेशन वगैरह। जैसे कि सीमेंट की गुणवत्ता कैसी है या किसी खाद्य वस्तु के साथ बीमारी आने का खतरा तो नहीं है वगैरह। ये बैरियर या रुकावटें पाकिस्तान-केन्द्रित नहीं हैं, पर व्यापार में बाधा डालती हैं। पाकिस्तान में भी कई तरह के किन्तु-परन्तु हैं। वहाँ के उद्योग को डर लगता है कि भारत से सस्ता माल आएगा तो हमारे माल के सामने दिक्कत खड़ी हो जाएगी। दोनों देशों की अर्थ-व्यवस्थाएं करीब एक जैसी हैं। दोनों के माल एक जैसे हैं। इसलिए वे एक-दूसरे के पूरक न होकर प्रतिद्वंदी हो जाते हैं। फिर भी एक अनुमान है कि पाकिस्तान में तकरीबन चार अरब डॉलर का भारतीय माल गैर-कानूनी तरीके से आता है। अगर यह सीधे रास्ते से आएगा तो तकरीबन दो अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा बचेगी।

भारत को पाकिस्तान के साथ व्यापार से फौरी तौर पर कोई बड़ा आर्थिक लाभ नहीं मिलेगा। भारत के विदेश-व्यापार का तकरीबन सौवां हिस्सा पाकिस्तान से जुड़ा है। अनौपचारिक व्यापार के औपचारिक व्यापार में तब्दील होने से हमें नहीं पाकिस्तान के व्यापारियों और उपभोक्ताओं को फायदा होगा। नुकसान तस्करों को होगा। अलबत्ता हमारे माल को चीन तथा दूसरे देशों के माल के साथ प्रतियोगिता करनी होगी। चूंकि भारत धीरे-धीरे वैश्विक अर्थव्यवस्था की शक्ल ले रहा है इसलिए हमारे उद्योग-व्यापार को प्रतियोगी बनने का मौका मिलेगा। हम कुशल होंगे तो इसका फायदा उठाएंगे। साथ ही पाकिस्तान के उद्योग-व्यापार के साथ मिलकर हम वैश्विक बाजार में जाने का रास्ता खोज सकते हैं। हम परम्परा से एक अर्थ-व्यवस्था का हिस्सा रहे हैं। तमाम आर्थिक क्रिया-कलाप मिलकर करने के आदी रहे हैं, इसलिए सहज भाव से यह काम कर सकते हैं। सब ठीक रहा तो आने वाले वर्षों में भारत और पाकिस्तान की संयुक्त कम्पनियाँ बन सकती हैं।

भारत और पाकिस्तान को सहज शत्रु माना जाता है। धार्मिक आधार पर हुए विभाजन के अलावा इस शत्रुता का कोई बुनियादी कारण समझ में नहीं आता। अलबत्ता सहज मित्रता के तमाम कारण हैं। हमारा खान-पान, बोली, पहनावा, रहन-सहन, संगीत, मनोरंजन सब कुछ एक जैसा है। दोनों देशों के बीच तना-तनी और युद्ध की आशंकाओं को दूर करने के लिए आर्थिक पराश्रयता विकसित करना लाभकारी होगा। दोनों को एक-दूसरे की ज़रूरत होनी चाहिए। यह सहज-मैत्री चीन और पाकिस्तान की नहीं हो सकती। पाकिस्तान और चीन के बीच इस वक्त सात अरब डॉलर का कारोबार होता है। भारत-पाकिस्तान का औपचारिक कारौबार 2010 में 1.7 अरब डॉलर का था। अगर अनौपचारिक कारोबार तीन अरब डॉलर का भी मान लें तो हम पाकिस्तान के ऑल वैदर फ्रेंड से ज्यादा पीछे नहीं हैं। दोनों देशों का सहयोग हो तो इसमें काफी तेजी आ सकती है।

हम पाकिस्तान-भारत के संदर्भ में ही क्यों सोचें। दक्षिण एशिया के संदर्भ में क्यों न सोचें। पिछले दिनों श्रीलंका में हुए सार्क चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज़ की बैठक में कहा गया कि दक्षिण एशिया में कनेक्टिविटी न होने के कारण व्यापार सम्भावनाओं के 72 फीसदी मौके गँवा दिए जाते हैं। अनुमान है कि इस इलाके के देशों के बीच 65 अरब डॉलर का व्यापार हो सकता है। ये देश परम्परा से एक-दूसरे के साथ जुड़े रहे हैं। भारत, पाकिस्तान, भूटान, मालदीव, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका ने दिसम्बर 1985 में सार्क बनाया। उन दिनों भारत और पाकिस्तान के रिश्ते फिर से पटरी पर लाने की शुरुआत हुई थी। सन 1965 की लड़ाई के बाद दोनों देशों ने आपसी व्यापार बंद कर दिया था। संयोग से वह अफगानिस्तान की अराजकता का शुरुआती दौर था। सन 2005 में अफगानिस्तान को भी सार्क में शामिल कर लिया गया। म्यामार यानी बर्मा अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण आसियान में चला गया है। अन्यथा यह पूरा क्षेत्र एक आर्थिक ज़ोन के रूप में बड़ी आसानी से काम कर सकता है। और इसकी सकल अर्थ-व्यवस्था को जोड़ा जाय तो यह दुनिया की तीसरे-चौथे नम्बर की अर्थ-व्यवस्था साबित होगी। अफसोस यह कि इसकी परम्परागत कनेक्टिविटी राजनीतिक कारणों से खत्म हो गई है। पाकिस्तान के बांग्लादेश, भूटान, नेपाल और श्रीलंका से जोड़ने में भारत की भूमिका हो सकती है। और भारत को अफगानिस्तान से जोड़ने में पाकिस्तान की।

इस इलाके में फ्रिफरेंशियल ट्रेड का समझौता हुआ है, फ्री ट्रेड का भी। सभी देश सन 2016 तक कस्टम ड्यूटी को शून्य के स्तर पर लाने को सहमत हो गए हैं। पर व्यावहारिक बात यह है कि जब तक भारत-पाकिस्तान सहयोग नहीं होगा तब तक दूसरे सहयोग समझौते प्रभावशाली नहीं होंगे। भारत और पाकिस्तान की जनता को यह बात धीरे-धीरे समझ में आ रही है। इस भागीदारी में ही उसकी समझदारी है।

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