पिछली 29 फरवरी को दोहा में अमेरिका, अफ़ग़ान सरकार और तालिबान के बीच
हुए क़तर दोहा में
हुए समझौते में इतनी सावधानी बरती गई है कि उसे कहीं भी 'शांति समझौता' नहीं लिखा गया है। इसके बावजूद इसे दुनियाभर में शांति समझौता कहा जा रहा है।
दूसरी तरफ पर्यवेक्षकों का मानना है कि अफ़ग़ानिस्तान अब एक नए अनिश्चित दौर में
प्रवेश करने जा रहा है। अमेरिका की दिलचस्पी अपने भार को कम करने की जरूर है, पर
उसे इस इलाके के भविष्य की चिंता है या नहीं कहना मुश्किल है।
फिलहाल इस समझौते का एकमात्र उद्देश्य अफ़ग़ानिस्तान में
तैनात 12,000 अमेरिकी सैनिकों की वापसी तक सीमित नज़र आता है। यह सच है कि इस
समझौते के लागू होने के बाद अमेरिका की सबसे लंबी लड़ाई का अंत हो जाएगा, पर क्या
गारंटी है कि एक नई लड़ाई शुरू नहीं होगी? मध्ययुगीन
मनोवृत्तियों को फिर से सिर उठाने का मौका नहीं मिलेगा? दोहा में धूमधाम से हुए समझौते ने तालिबान को
वैधानिकता प्रदान की है। वे मान रहे हैं कि उनके मक़सद को पूरा करने का यह सबसे
अच्छा मौक़ा है। वे इसे अपनी ‘विजय’ मान रहे हैं।