Monday, March 30, 2020

पास-पड़ोस का पहला मददगार भारत


भले ही दुनिया राजनीतिक कारणों से एक-दूसरे की दुश्मन बनती हो, पर प्राकृतिक आपदाएं हमें जोड़ती हैं। ऐसा सुनामी के समय देखा गया, समुद्री तूफानों का यही अनुभव है और अब कोरोनावायरस का भी यही संदेश है। भारत इस आपदा का सामना कर रहा है, पर इसके विरुद्ध वैश्विक लड़ाई में भी बराबर का भागीदार है। इस सिलसिले में नवीनतम समाचार यह है कि भारत कोरोनावायरस के इलाज के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के नेतृत्व में तैयार की जारी औषधि के विकास में भी भागीदार है।
इस सहयोग की शुरुआत अपने पास-पड़ोस से होती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 13 मार्च को सार्क देशों से अपील की थी कि हमें मिलकर काम करना चाहिए। इसकी पहल के रूप में उन्होंने शासनाध्यक्षों के बीच एक वीडियो कांफ्रेंस का सुझाव दिया। अचानक हुई इस पेशकश पर इस क्षेत्र के सभी देशों ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी थी, केवल पाकिस्तान की हिचक थी। उसकी ओर से फौरन कोई प्रतिक्रिया नहीं आई, पर बाद में कहा गया कि प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के स्वास्थ्य संबंधी विशेष सलाहकार डॉक्टर ज़फ़र मिर्ज़ा इसमें शामिल होंगे।
वीडियो कांफ्रेंस से शुरुआत
इस वीडियो कांफ्रेंस में नरेंद्र मोदी के अलावा श्रीलंका के राष्ट्रपति गौतबाया राजपक्षे, मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहीम मोहम्मद सोलिह, नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली, भूटान के प्रधानमंत्री लोटे शेरिंग, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी शामिल हुए। नेपाल के प्रधानमंत्री ने तो खराब स्वास्थ्य के बावजूद इसमें हिस्सा लिया। संकट अभी बना हुआ है, कोई यह बताने की स्थिति में नहीं है कि कब तक रहेगा, पर इतना कहा जा सकता है कि इस आपदा ने भारत की सकारात्मक भूमिका को रेखांकित जरूर किया है।

भारत ने इस आपदा का सामना करने के लिए एक कोष बनाने का सुझाव भी दिया, जिसमें एक करोड़ डॉलर का प्रारम्भिक योगदान भी किया। जरूरत पड़ने पर देशों में हालात से निपटने के लिए भारत डॉक्टरों और विशेषज्ञों की एक त्वरित कार्यवाही टीम बना रहा है, जो टेस्टिंग किट और दूसरे उपकरणों के साथ तैयार रहेगी। प्रधानमंत्री ने पड़ोसी देशों के आपातकालीन कार्यबलों के लिए ऑनलाइन प्रशिक्षण कैप्स्यूलों की व्यवस्था करने और संभावित वायरस वाहकों और उनके संपर्क में आए लोगों का पता लगाने में मदद करने के लिए सॉफ्टवेयर को साझा करने की भी पेशकश की। भारत के पास वैज्ञानिक और तकनीकी आधार है, जो इस क्षेत्र के विकास में मददगार होगा।
पिछले कुछ वर्षों में भारत ने प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने और राहत पहुँचाने में विशेषज्ञता हासिल की है और इस सिलसिले में संरचनात्मक कार्य भी किए हैं। कोरोना संकट से निपटने के लिए नरेंद्र मोदी ने जो संपर्क-संवाद कायम किया है, वह दक्षिण एशिया के साथ-साथ शेष विश्व के लिए भी प्रेरक-पहल है। कोरोना वायरस के कारण चीन में फँसे भारतीयों को निकालने के साथ-साथ भारत ने मित्र देशों के नागरिकों को भी निकालने की पेशकश की थी। इनमें दस से ज्यादा देशों के नागरिक शामिल हैं। इनमें मालदीव, म्यांमार, बांग्लादेश, चीन, अमेरिका, मैडागास्कर, नेपाल, दक्षिण अफ्रीका और श्रीलंका जैसे देश शामिल हैं। यहाँ तक कि पाकिस्तान से भी कहा था कि उनके नागरिकों को भी हम निकाल कर ला सकते हैं। चीन के अलावा भारतीय विमान ईरान, इटली और जापान जैसे देशों से हजारों भारतीयों को निकाल कर लाए हैं। 
सबसे पहले भारत
कोरोना वायरस की खबरों के बीच एक खबर यह भी थी कि हाल में भारत ने हिंद महासागर के देश मैडागास्कर में बाढ़ पीड़‍ितों को तुरंत राहत पहुंचाने के उद्देश्‍य से छह सौ टन चावल मुहैया कराया। भारतीय नौसेना का पोत शार्दूल इस 10 मार्च को चावल की खेप लेकर मैडागास्कर के एंट्सीरानाना बंदरगाह पर पहुंचा था। यह चावल इस वर्ष जनवरी में आए समुद्री तूफान डायने से प्रभावित लोगों में बांटा जाएगा। इससे पहले, 30 जनवरी को भारतीय नौसेना के पोत ऐरावत ने तत्‍काल राहत सामग्री मैडागास्कर पहुंचाई थी।
हिंद महासागर के तटवर्ती देशों पर पड़ने वाली किसी भी प्राकृतिक आपदा में सबसे पहले भारत मददगार के रूप में आगे आता है। इसके पहले पिछले साल मार्च में मोजाम्बीक में तूफान इदाई के कारण काफी लोगों की मौत हुई थी। तमाम लोग बेघरबार हो गए। इस तूफान से मलावी और जिम्बाब्वे तक पर असर पड़ा था। सौभाग्य से उस समय भारतीय नौसेना के तीन पोत आईएनएस सुजाता, आईएनएस शार्दूल और आईएनएस सारथी उस क्षेत्र में सक्रिय थे। उन्होंने फौरन पीड़ित क्षेत्र में पहुँचकर सहायता प्रदान की। लोगों के लिए भोजन, औषधियों और वस्त्रों की व्यवस्था की।
पिछले कुछ वर्षों से भारतीय नौसेना हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को बढ़ा रही है। यह उपस्थिति केवल भारत की सुरक्षा के लिहाज से नहीं है, बल्कि सम्पूर्ण क्षेत्र की सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। भारत ने हाल के वर्षों में आसपास के तटवर्ती देशों में सुविधाएं बढ़ाईं हैं। इनमें ओमान, मॉरिशस, मैडागास्कर, सेशेल्स, इंडोनेशिया, सिंगापुर वगैरह शामिल हैं। मैडागास्कर में रेडार लगाने के अलावा मालदीव, सेशेल्स और मॉरिशस में तटीय सर्विलांस रेडार तैनात किए हैं। ये रेडार केवल सैनिक व्यवस्थाएं नहीं हैं, बल्कि आपदा की सूचनाएं भी देती हैं और संचार के साधन भी उपलब्ध कराती हैं। इन सबके अलावा इस इलाके में सक्रिय जल-दस्युओं यानी पायरेट्स के खिलाफ कार्रवाई में भी हमारी नौसेना बढ़कर हिस्सा ले रही है।
लगातार सुधार
सन 2017 के बाद से भारतीय नौसेना की ऑपरेशनल रणनीति में काफी बदलाव आया है। अब भारतीय पोत इस क्षेत्र में हर समय गश्त लगाते रहते हैं, इसलिए जरूरत पड़ने पर वे सबसे पहले आते हैं। इसके पहले भी हमारी नौसेना राहत कार्यों में हिस्सा लेती रही है। सन 2010 में लीबिया में फँसे 150 भारतीयों को हमारी नौसेना निकाल कर लाई थी। सितम्बर 2011 में सोमालिया, केन्या और जिबूती में पड़े अकाल का सामना करने के लिए वर्ल्ड फूड प्रोग्राम के तहत भारतीय नौसेना ने औषधियाँ और अन्य राहत सामग्री पहुँचाई थी। जनवरी 2012 में लीबिया में राहत पहुँचाई। अप्रैल 2015 में यमन में फँसे 3000 भारतीयों को हमारी नौसेना निकाल कर स्वदेश लाई। सन 2016 में मोजाम्बीक के अकाल के समय हमारे पोतों ने गेहूँ पहुँचाया।
पिछले साल इंडोनेशिया में सुलावेसी द्वीप पर उच्च तीव्रता का भूकंप आया तब भारतीय नौसेना ने ऑपरेशन समुद्र मैत्री के तहत तत्काल सहायता पहुँचाई थी। आए भूकंप और सुनामी के कारण भारी तबाही हुई थी। भारत ने वहां सहायता के लिए दो विमान और नौसेना के तीन पोत भेजे। इन विमानों में सी-130 जे और सी-17 शामिल हैं। सी-130 जे विमान से तम्बुओं और उपकरणों के साथ एक मेडिकल टीम भेजी गई। सी-17 विमान से तत्काल सहायता प्रदान करने के लिए दवाएं, जेनरेटर, तम्बू और पानी आदि सामग्री भेजी गई।
जुलाई 2018 में थाईलैंड में थैल लुआंग गुफा में अंडर-16 फ़ुटबाल टीम के 12 बच्चे और कोच के फँसने के बाद बेचैनी फैल गई। जोखिम भरे राहत और बचाव अभियान में ब्रिटेन, फ्रांस, जापान, अमेरिका समेत तमाम देशों ने अपने विशेषज्ञ भेजे, पर इनसे कोई बात नहीं बनी तो थाईलैंड की सरकार ने भारत सरकार से मदद की गुहार की। भारत ने बगैर समय गंवाए अपने इंजीनियरों को मदद करने का निर्देश दिया। भारत सरकार के आदेश पर महाराष्ट्र के सांगली जिले में स्थित किर्लोस्कर समूह की कंपनी से एक विशेष हैवी ड्यूटी पम्प भेजा गया था। इस के पहुंचने के बाद, गुफा में पानी कम हुआ। पानी कम होने के बाद ही गोताखोरों का काम आसान हुआ और तीन दिनों के कठिन ऑपरेशन के बाद सभी बच्चों और उनके कोच को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया।
दिसंबर 2014 में मालदीव का वॉटर प्लांट जल गया और पूरे देश में पीने के पानी की किल्लत हो गई। आपातकाल की घोषणा कर दी गई। तब भारत ने पड़ोसी का फर्ज अदा किया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने त्वरित फैसला लिया। मालदीव को पानी भेजने का निर्णय कर लिया गया और इंडियन एयर फोर्स के 5 विमान और नेवी शिप के जरिये पानी पहुंचाया जाने लगा।
पाकिस्तानी हिचक
कोरोना वायरस पर भारतीय पहल के बरक्स पाकिस्तानी हिचक के पीछे अपराध बोध है या कोई शरारत इसे भी समझना होगा। एक समय ऐसा था, जब दोनों के बीच मानवीय सहायता को लेकर संदेह नहीं थे। जनवरी 2001 में गुजरात में आए भूकम्प के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने राहत सामग्री से लदा एक विमान अहमदाबाद भेजा था। उसमें टेंट और कम्बल वगैरह थे। सहायता से ज्यादा उसे सद्भाव का प्रतीक माना गया। यह सद्भाव आगे बढ़ता, उसके पहले ही उस साल भारतीय संसद पर हमला हुआ और न्यूयॉर्क में 9/11 की घटना हुई। बावजूद इसके अक्तूबर 2005 में कश्मीर में आए भूकम्प के बाद भारत ने 25 टन राहत सामग्री पाकिस्तान भेजी।
उस दौरान ऐसे मौके भी आए जब भारतीय सेना ने उस पार फँसे पाकिस्तानी सैनिकों की मदद के लिए नियंत्रण रेखा को पार किया। 26 नवम्बर 2008 तक दोनों देशों के बीच सद्भाव और सहयोग की भावना पैदा होती रही। दोनों देशों के बीच कारोबारी रिश्ते बेहतर बनाने के प्रयास होने लगे। अक्तूबर 2014 में भारतीय मौसम दफ्तर ने समुद्री तूफान नीलोफर के बारे में पाकिस्तान को समय से जानकारियाँ देकर नुकसान से बचाया था। सन 2005 के बाद से भारतीय वैज्ञानिक अपने पड़ोसी देशों के वैज्ञानिकों को मौसम की भविष्यवाणियों से जुड़ा प्रशिक्षण भी दे रहे हैं।
सन 2014 में काठमांडू में हुए दक्षेस शिखर सम्मेलन में भारत ने एक उपग्रह सार्क के सदस्य देशों को उपहार में देने की पेशकश की थी। नरेंद्र मोदी ने कहा कि इसका पूरा खर्च भारत उठाएगा। यह उपग्रह दूरसंचार और प्रसारण अनुप्रयोगों अर्थात टेलीविजन, डायरेक्ट-टू-होम, वीसैट, टेली-शिक्षा, टेली-मेडिसिन और आपदा प्रबंधन के क्षेत्रों में मददगार होगा। इस उपग्रह का प्रक्षेपण हुआ, यह काम भी कर रहा है, पर पाकिस्तान इसमें शामिल नहीं हुआ।
सुनामी के सबक
दिसम्बर 2004 में आई दक्षिण पूर्व एशिया की सुनामी के दौरान हमारी नौसेना  संकल्प के साथ राहत कार्य में शामिल हुई। इस आपदा में तटवर्ती देशों के हजारों लोगों की मौत हुई। इस आपदा में भारत ने हिस्सा तो लिया ही साथ ही उससे कुछ सबक भी सीखे। इसके बाद 2005 में भारतीय संसद ने आपदा प्रबंधन अधिनियम पास किया, जिसके तहत राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की स्थापना की गई। 27 अप्रैल, 2015 को नेपाल में आए भूकम्प में आठ हजार से ज्यादा लोगों की जान चली गई। वह भयानक आपदा थी, जिसमें भारत ने आगे बढ़कर मदद की। भारत के राष्ट्रीय आपदा सहायता बल (एनडीआरएफ) ने जितनी तेजी से मदद पहुंचाई गई वह अपने आप में अलग कहानी है।
उसी साल अक्टूबर 2015 में अफगानिस्तान-पाकिस्तान में भूकम्प  से तबाही मची। अफगानिस्तान में भारतीय राहत टीम को बिना देर किए रवाना किया गया और मलबे में फंसे सैकड़ों लोगों को निकाला गया। नवम्बर 2017 में श्रीलंका में पेट्रोल और डीजल का संकट पैदा हो गया। राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना के साथ प्रधानमंत्री मोदी की टेलीफोन पर हुई बातचीत मेंके बाद मदद भेजी गई। इसी किस्म की मदद  कुछ महीने पहले मई में भी भेजी गई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संकटग्रस्त श्रीलंका के लिए राहत भेजी थी। वह मदद भारी वर्षा के कारण हुई तबाही के कारण भेजी गई थी।
अंतरिक्ष कार्यक्रम
सेना, वायुसेना नौसेना और नौसेना के अलावा आपदा राहत बल की सहायता के साथ-साथ भारत अपने मित्र देशों को अंतरिक्ष के क्षेत्र में जो सहायता प्रदान कर रहा है, उसका जिक्र किए बगैर कहानी अधूरी रहेगी। इस महीने के शुरू में भारत सरकार ने इसरो और संयुक्त अरब अमीरात स्पेस एजेंसी के बीच सहयोग के एक सहमति पत्र को मंजूरी दी है। पिछले कई वर्षों से दोनों देशों के बीच अंतरिक्ष कार्यक्रमों में सहयोग पर बातचीत चल रही है। इस साल यूएई का अंतरिक्ष अभियान शुरू होने वाला है, जिसमें भारत भी सहयोग करेगा।
भारत में बना दक्षिण एशिया उपग्रह 5 मई 2017 को प्रक्षेपित किया गया और वह इस क्षेत्र के देशों के संचार तथा टेली मेडिसिन और टेली-शिक्षा जैसे क्षेत्रों में सहायता कर रहा है। भारत अपने उपग्रहों की सहायता से मौसम में आने वाले परिवर्तन की सूचना भी आसपास के देशों को दे रहा है। सन 2013 में उड़ीसा में आया फेलिनी तूफान हज़ारों की जान लेता, पर मौसम विज्ञानियों को अंतरिक्ष में घूम रहे उपग्रहों की मदद से सही समय पर सूचना मिली और आबादी को सागर तट से हटा लिया गया। 1999 के ऐसे ही एक तूफान में 10 हजार से ज्यादा लोग मरे थे। भारत में आई सुनामी के बाद राहत कार्य चलाने में नाइजीरिया के उपग्रहों ने भी मदद की थी। इस किस्म की आपदाएं हमारे सामने नई चुनौतियाँ पेश करती हैं और साथ ही उनसे लड़ने की नई शक्ति और आत्मविश्वास भी पैदा करती हैं।




1 comment:

  1. साथ मिलकर काम करने की पहल वाकई सराहनीय है। वासुदेव कुटम्बकम का नारा हमारा रहा है और प्रधान मंत्री इसी फलसफे को दर्शा रहे हैं। पाकिस्तान अगर समझ जाए कि सबके साथ ही सबका विकास मुमकिन है तो दोनों ही देश आपसी दुश्मनी ने अपनी ऊर्जा क्षय करने से बढ़िया किसी सकारात्मक कार्य में अपनी ऊर्जा लगा सकते हैं। इससे दोनों देशों के नागरिकों का फायदा होगा। उम्मीद है प्रधान मंत्री की यह पहल कामयाब होगी और जल्द ही इस महामारी से हमे निजाद मिलेगी।

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