Wednesday, February 8, 2023

आतंकवाद और आर्थिक-संकट से रूबरू पाकिस्तान


गत 30 जनवरी को, पेशावर की पुलिस लाइन की एक मस्जिद में हुए विस्फोट ने दिसंबर, 2014 में पेशावर के आर्मी पब्लिक स्कूल पर हुए हमले की याद ताजा कर दी है. इस विस्फोट में सौ से ज्यादा लोग मरे हैं, और ज्यादातर पुलिसकर्मी हैं. इस बात से खैबर पख्तूनख्वा सूबे की पुलिस के भीतर बेचैनी है. दूसरी तरफ देश की अर्थव्यवस्था पर विदेशी ऋणों की अदायगी में डिफॉल्ट का खतरा पैदा हो गया है.

इन दोनों संकटों ने पाकिस्तान की विसंगतियों को रेखांकित किया है. स्वतंत्रता के बाद भारत-पाकिस्तान आर्थिक-सामाजिक क्षेत्र में मिलकर काम करते, जैसा विभाजन से पहले था, तो यह इलाका विकास का बेहतरीन मॉडल बनकर उभरता. पर भारत से नफरत विचारधारा बन गई. हजारों साल से जिस भूखंड की अर्थव्यवस्था, संस्कृति और समाज एकसाथ रहे, उसे चीर कर नया देश गढ़ने तक बात सीमित होती, तब भी ठीक था. आर्थिक-ज़मीन को तोड़ने के दुष्परिणाम सामने हैं.

अविभाजित भारत में आर्थिक-संबंध सामाजिक वर्गों में बँटे हुए थे, जो मिलकर परिणाम देते थे. विभाजन के बाद अचानक एक बड़े वर्ग के तबादले ने कारोबार की शक्ल बदल दी. भारत में भूमि-सुधार के कारण ज़मींदारी-प्रथा खत्म हुई, पाकिस्तान में वह बनी रही. आधुनिक राज-व्यवस्था पनप ही नहीं पाई. बहरहाल अब वहाँ जो हो रहा है, उसके सामाजिक-आर्थिक कारणों पर अलग से शोध की जरूरत है. 

इस्लामी अमीरात

टीटीपी की मांग है कि कबायली जिलों सहित पूरे देश में शरीअत कानून को लागू किया जाए और इन इलाकों से सेना को हटा लिया जाए. वे पाकिस्तान में वैसी ही व्यवस्था चाहते हैं, जैसी तालिबान के अधीन अफगानिस्तान में है. वे एक इस्लामी अमीरात स्थापित करना चाहते हैं, पर पाकिस्तान की सांविधानिक-व्यवस्था ब्रिटिश-जम्हूरियत पर आधारित है, इस्लामी परंपराओं पर नहीं है. यह वैचारिक विसंगति है.

देश की अर्थव्यवस्था अर्ध-सामंती है. एक तबका आज भी सोने-चाँदी के बर्तनों में भोजन करता है. राजनीति में इन्हीं जमींदारों और साहूकारों का वर्चस्व है और प्रशासन में भ्रष्टाचार का बोलबाला है. हुक्मरां जनता को किसी अदृश्य खतरे से डराते हैं, जिससे लड़ने के लिए सेना चाहिए, जबकि खतरा अशिक्षा और गरीबी से है.

Tuesday, February 7, 2023

करगिल के ‘विलेन’ मुशर्रफ, जो शांति-प्रयासों के लिए भी याद रहेंगे


भारत और पाकिस्तान को आसमान से देखें तो ऊँचे पहाड़, गहरी वादियाँ, समतल मैदान, रेगिस्तान और गरजती नदियाँ दिखाई देंगी. दोनों के रिश्ते भी ऐसे ही हैं. उठते-गिरते और बनते-बिगड़ते. सन 1988 में दोनों देशों ने एक-दूसरे पर हमले न करने का समझौता किया और 1989 में कश्मीर में पाकिस्तान-परस्त आतंकवादी हिंसा शुरू हो गई. 1998 में दोनों देशों ने एटमी धमाके किए और उस साल के अंत में वाजपेयी जी और नवाज शरीफ का संवाद शुरू हो गया, जिसकी परिणति फरवरी 1999 की लाहौर बस यात्रा के रूप में हुई.

लाहौर के नागरिकों से अटल जी ने अपने टीवी संबोधन में कहा था, ‘यह बस लोहे और इस्पात की नहीं है, जज्बात की है. बहुत हो गया, अब हमें खून बहाना बंद करना चाहिए.‘ भारत और पाकिस्तान के बीच जज्बात और खून का रिश्ता है. कभी बहता है तो कभी गले से लिपट जाता है. संयोग की बात है कि वाजपेयी जी की भारत वापसी के कुछ दिन बाद देश की राजनीति की करवट कुछ ऐसी बदली कि उनकी सरकार संसद में हार गई. दूसरी ओर उन्हीं दिनों पाकिस्तानी सेना कश्मीर के करगिल इलाके में भारतीय सीमा के अंदर ऊँची पहाड़ियों पर कब्जा कर रही थी.

कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में अटल जी को अचानक आन पड़ी आपदा का सामना करना पड़ा. नवाज़ शरीफ के फौजी जनरल परवेज मुशर्रफ की वह योजना गलत साबित हुई, पर वह साल बीतते-बीतते शरीफ साहब को हटाकर परवेज मुशर्ऱफ़ देश के सर्वे-सर्वा बन गए. उन्हें सबसे पहली बधाई अटल जी ने दी, जो चुनाव जीतकर फिर से दिल्ली की कुर्सी पर विराजमान हो गए थे.

तख्ता-पलट

12 अक्तूबर, 1999 की बात है. उन दिनों भारत के केबल नेटवर्क पर पाकिस्तान टीवी भी दिखाई पड़ता था. शाम को पीटीवी पर खबर आई कि प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने अपने सेनाध्यक्ष जनरल परवेज़ मुशर्ऱफ़ की छुट्टी कर दी. यह बड़ी सनसनीखेज खबर थी, क्योंकि पाकिस्तान में सेनाध्यक्ष के आदेश से प्रधानमंत्री तो हटते देखे गए हैं, पर प्रधानमंत्री किसी सेनाध्यक्ष को हटाने की घोषणा करे, ऐसा दूसरी बार हो रहा था.

यह हिम्मत भी नवाज शरीफ ने ही दोनों बार की थी. इसके पहले 1998 में उन्होंने तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल जहांगीर करामत को बर्खास्त किया था. बहरहाल 12 अक्तूबर 1999 को जब परवेज मुशर्रफ श्रीलंका के दौरे से वापस लौट रहे थे, नवाज शरीफ ने उनकी बर्खास्तगी के आदेश जारी कर दिए. पर इसबार नवाज शरीफ कामयाब नहीं हुए.

Thursday, February 2, 2023

अमृतकाल की बुनियाद का बजट


वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत सालाना आम बजट पहली नज़र में संतुलित और काफी बड़े तबके को खुश करने वाला नज़र आता है। आप कह सकते हैं कि यह चुनाव को देखते हुए बनाया गया बजट है। इसमें गलत भी कुछ नहीं है। बहरहाल इसकी तीन महत्वपूर्ण बातें ध्यान खींचती हैं। एक, सरकार की नजरें संवृद्धि पर हैं, जिसके लिए पूँजी निवेश की जरूरत है। प्राइवेट सेक्टर आगे आने की स्थिति में नहीं है, तो सरकार को बढ़कर निवेश करना चाहिए। इंफ्रास्ट्रक्चर पर दस लाख करोड़ के निवेश की घोषणा से सरकार के इरादे स्पष्ट हैं। एक तरह से इसे नए भारत की बुनियाद का बजट कह सकते हैं। ध्यान दें दो साल पहले 2020-21 के बजट में यह राशि 4.39 लाख करोड़ थी।

वित्तमंत्री ने इसे मोदी सरकार का दसवाँ बजट नहीं अमृतकाल का पहला बजट कहा है। अमृतकाल का मतलब है स्वतंत्रता के 75वें वर्ष से शुरू होने वाला समय, जो 2047 में 100 वर्ष पूरे होने तक चलेगा। सरकार इसे भविष्य के साथ जोड़कर दिखाना चाहती है। वित्तमंत्री ने स्त्रियों और युवाओं का कई बार उल्लेख किया। यह वह तबका है, जो भविष्य के भारत को बनाएगा और जो राजनीतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इस बजट में 2024 के चुनाव की आहट सुनाई पड़ रही है। इसमें कड़वी बातों का जिक्र करने से बचा गया है।   

दूसरी बात है, राजकोषीय अनुशासन। सरकारी खर्च बढ़ाने के बावजूद राजकोषीय घाटे को काबू में रखा जाएगा। बजट में अगले साल राजकोषीय घाटा 5.9 प्रतिशत रखने का भरोसा दिलाया गया है। तीसरे उन्होंने व्यक्ति आयकर के नए रेजीम को डिफॉल्ट घोषित करके आयकर व्यवस्था में सुधार की दिशा भी स्पष्ट कर दी है। यानी छूट वगैरह की व्यवस्थाएं धीरे-धीरे खत्म होंगी। नए रेजीम की घोषणा पिछले साल की गई थी। अभी इसे काफी लोगों ने स्वीकार नहीं किया है, पर अब जो छूट दी जा रही हैं, वे नए रेजीम के तहत ही हैं। इस वजह से लोग नए रेजीम की ओर जाएंगे।  

सप्तर्षि की अवधारणा पर वित्तमंत्री ने बजट की सात प्राथमिकताओं को गिनाया जिनमें इंफ्रास्ट्रक्चर, हरित विकास, वित्तीय क्षेत्र और युवा शक्ति शामिल हैं। बजट में कुल व्यय 45.03 लाख करोड़ रुपये का रखा गया है, जो चालू वर्ष की तुलना में 7.5 प्रतिशत अधिक है। इसमें सबसे बड़ी धनराशि 10 लाख करोड़ रुपये इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए रखी गई है। यह काफी लंबी छलाँग है। अर्थव्यवस्था की सेहत के लिहाज से देखें, तो इसके फौरी और दूरगामी दोनों तरह के परिणाम हैं।

फौरी परिणाम रोजगार और ग्रामीण उपभोग में वृद्धि के रूप में दिखाई पड़ेगा, जिससे अर्थव्यवस्था को अपने पैरों पर खड़ा होने में मदद मिलेगी। साथ ही संवृद्धि के दूसरे कारकों को सहारा मिलेगा। दूरगामी दृष्टि से देश में निजी पूँजी निवेश के रास्ते खुलेंगे और औद्योगिक विस्तार का लाभ मिलेगा, जिसके सहारे अर्थव्यवस्था की गति तेज होगी। सरकार मानती है कि पूँजीगत निवेश पर एक रुपया खर्च करने पर तीन रुपये का परिणाम मिलता है।

Wednesday, February 1, 2023

सिंधु नदी के पानी में घुलती कड़वाहट


 देश-परदेस

भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में पहले से जारी बदमज़गी में सिंधुजल विवाद के कारण कुछ कड़वाहट और घुल गई है. भारत ने पाकिस्तान को नोटिस दिया है कि हमें सिंधुजल संधि में बदलाव करना चाहिए, ताकि विवाद ज्यादा न बढ़ने पाए. इस नोटिस में 90 दिन का समय दिया गया है.

इस मसले ने पानी के सदुपयोग से ज्यादा राजनीतिक-पेशबंदी की शक्ल अख्तियार कर ली है. पाकिस्तान इस बात का शोर मचा रहा है कि भारत हमारे ऊपर पानी के हथियार का इस्तेमाल कर रहा है, जबकि भारत में माना जा रहा है कि हमने पाकिस्तान को बहुत ज्यादा रियायतें और छूट दे रखी हैं, उन्हें खत्म करना चाहिए.

भारतीय संसद की एक कमेटी ने 2021 में सुझाव दिया था कि इस संधि की व्यवस्थाओं पर फिर से विचार करने और तदनुरूप संशोधन करने की जरूरत है. उससे पहले जम्मू-कश्मीर विधानसभा भी इस आशय के प्रस्ताव पास कर चुकी थी. कुल मिलाकर पाकिस्तान को उसकी आतंकी गतिविधियों का सबक सिखाने की माँग लगातार की जा रही है.  

आर्बिट्रेशन का सहारा

पाकिस्तान की फौरी प्रतिक्रिया से लगता नहीं कि वह संधि में संशोधन की सलाह को मानेगा. वह विश्वबैंक द्वारा नियुक्त पंचाट-प्रक्रिया के सहारे इन समस्याओं का समाधान करना चाहता है. यह प्रक्रिया शुक्रवार 27 जनवरी को शुरू हो गई है. उसके शुरू होने के दो दिन पहले भारत ने यह नोटिस दिया है.

भारत को शिकायत है कि पाकिस्तान ने संधि के अंतर्गत विवादों के निपटारे के लिए दोनों सरकारों के बीच बनी व्यवस्था की अनदेखी कर दी है. भारत का यह भी कहना है कि विवादों के निपटारे के लिए संधि के अनुच्छेद 9 में जो चरणबद्ध व्यवस्था की गई थी, उसे भी तोड़ दिया गया है.

खास बात यह भी है कि भारत के जिन बाँधों को लेकर विवाद खड़ा हुआ है, वे इस दौरान ही बने हैं और अब काम कर रहे हैं. यानी पानी अब पूरी तरह बहकर पाकिस्तान जा रहा है. किशनगंगा बाँध झेलम पर और रतले बाँध चेनाब नदी पर बना है. झेलम की सहायक नदी है किशनगंगा, जिसका नाम पाकिस्तान में नीलम है.

Sunday, January 29, 2023

अर्थव्यवस्था के निर्णायक दौर का बजट


इसबार का सालाना बजट बड़े निर्णायक दौर का बजट होगा। हर साल बजट से पहले कई तरह की उम्मीदें लगाई जाती हैं। ये उम्मीदें, उद्योगपतियों, कारोबारियों, किसानों, मजदूरों, कर्मचारियों, गृहणियों, उच्च वर्ग, मध्य वर्ग, निम्न वर्ग यानी कि भिखारियों को छोड़ हरेक वर्ग की होती हैं। सरकार के सामने कीवर्ड है संवृद्धि। उसके लिए जरूरी है आर्थिक सुधार। मुद्रास्फीति और बाजार के मौजूदा हालात को देखते हुए बजट में बड़े लोकलुभावन घोषणाओं उम्मीद नहीं है, अलबत्ता एक वर्ग कुछ बड़े सुधारों की उम्मीद कर रहा है। रेटिंग एजेंसी इक्रा ने हाल में एक रिपोर्ट कहा है कि अगले साल चुनाव होने हैं। ऐसे में बजट में सरकार पूंजीगत व्यय 8.5 से नौ लाख करोड़ रुपये तक बढ़ा सकती है जो मौजूदा वित्त वर्ष में 7.5 लाख करोड़ रुपये है। खाद्य और उर्वरक सब्सिडी में कमी के जरिए राजकोषीय घाटे का लक्ष्य जीडीपी का 5.8 प्रतिशत रख सकती है। रेलवे के बजट में काफी इजाफा होगा। 500 वंदे भारत और 35 हाइड्रोजन ट्रेनों की घोषणा हो सकती है। इनके अलावा 5000 एलएचबी कोच और 58000 वैगन हासिल करने की घोषणा भी की जा सकती है। रेल योजना-2030 का विस्तार भी इस बजट में हो सकता है। 7,000 किलो मीटर ब्रॉड गेज लाइन के विद्युतीकरण की भी घोषणा हो सकती है। वरिष्ठ नागरिकों को छूट की घोषणा भी हो सकती है।

मध्यवर्ग की मनोकामना

मध्यवर्ग की दिलचस्पी जीवन निर्वाह, आवास और आयकर से जुड़ी होती है। सरकार ने अभी तक आयकर छूट की सीमा 2.5 लाख रुपये से अधिक नहीं की है, जो 2014 में तत्कालीन वित्तमंत्री अरुण जेटली ने उस सरकार के पहले बजट में तय की थी। 2019 से मानक कटौती 50,000 रुपये बनी हुई है। वेतनभोगी मध्यम वर्ग को राहत देने के लिए आयकर छूट सीमा और मानक कटौती बढ़ाने की जरूरत है। बजट पूर्व मंत्रणा बैठकों में टैक्स स्लैब में बदलाव और करों में छूट का दायरा बढ़ाने की सरकार से अपील की गई है। इन बैठकों में पीपीएफ के दायरे को डेढ़ लाख से बढ़ाकर तीन लाख करने की माँग की गई। 80सी के तहत मिलने वाली छूट के दायरे को बढ़ाया जा सकता है। स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम के लिए भुगतान पर भी विचार किया जा रहा है। वित्तमंत्री के हाल के एक बयान ने मध्यम वर्ग में उम्मीद बढ़ा दी है कि आगामी बजट में उन्हें कुछ राहत मिल सकती है। वित्त मंत्री ने कहा था,मैं भी मध्यम वर्ग से हूं इसलिए मैं इस वर्ग पर दबाव को समझती हूं।”

राजकोषीय घाटा

महामारी के दौरान सरकार ने गरीबों को मुफ्त अनाज और दूसरे कई तरीके से मदद पहुँचाने की कोशिश की। अब उसका हिसाब देना है। सब्सिडी में कमी और बजट का आकार बढ़ाने की जरूरत होगी। राजकोषीय घाटे को कम करने की भी। पिछले साल के बजट में सब्सिडी करीब 3.56 लाख करोड़ रुपये और राजकोषीय घाटा जीडीपी का 6.4 प्रतिशत रहने की संभावना जताई गई थी। लक्ष्य है कि वित्त वर्ष 2024-25 तक इसे 4.5 फीसदी तक होना चाहिए। 2015 से 2018 के बीच अंतरराष्ट्रीय खनिज तेल की कीमतों में गिरावट आने से राजस्व घाटा 2013-14 के स्तर 4.5 प्रतिशत से नीचे आ गया था। 2016-17 में यह 3.5 प्रतिशत हो गया। इसके बाद सरकार ने इसे 3 पर लाने का लक्ष्य रखा। महामारी ने राजस्व घाटे के सारे गणित को बिगाड़ कर रख दिया है। मार्च 2014 में केंद्र सरकार पर सार्वजनिक कर्ज जीडीपी का 52.2 प्रतिशत था, जो मार्च 2019 में 48.7 प्रतिशत पर आ गया था। पर महामारी के दो वर्षों ने इसे चालू वित्त वर्ष 2022-23 में इसे 59 प्रतिशत पर पहुँचा दिया है। केंद्र और राज्य सरकारों का सकल कर्ज 84 फीसदी है। बढ़ते ब्याज बिल (जीडीपी के 3 प्रतिशत से अधिक) को देखते हुए, मध्यम अवधि में राजकोषीय मजबूती न केवल व्यापक स्तर की स्थिरता के लिए आवश्यक है, बल्कि इसके बिना निजी निवेश में सुधार भी संभव नहीं है जो अर्थव्यवस्था में तेज वृद्धि की कुंजी है। कर्ज का मतलब है, ज्यादा ब्याज। जो धनराशि विकास और सामाजिक कल्याण पर लगनी चाहिए, वह ब्याज में चली जाती है। सरकार के पास संसाधन बढ़ाने का एक रास्ता विनिवेश का है, जिसका लक्ष्य कभी पूरा नहीं होता।