जनवरी का महीना आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होता है। इस महीने वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम का दावोस में समारोह होता है। इसके ठीक पहले ऑक्सफ़ैम की विषमता से जुड़ी रिपोर्ट आती है, जो परोक्ष रूप से इकोनॉमिक फोरम की विसंगतियों को रेखांकित करती है। विश्वबैंक का ग्लोबल आउटलुक जारी होता है। ये तीनों परिघटनाएं भारत से भी जुड़ी हैं। महीना खत्म होते ही भारत का बजट आता है, जिसमें अब केवल दस दिन बाकी हैं। यह वक्त है अर्थव्यवस्था की सेहत पर नजर डालने का और समझने का कि सामने क्या आने वाला है। दावोस में इकोनॉमिक फोरम के संस्थापक और कार्यकारी चेयरमैन क्लॉस श्वाब ने विभाजित दुनिया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की तारीफ की है। उन्होंने यह भी कहा कि वैश्विक संकट के बीच भारत एक ब्राइट स्पॉट है। भारत की जीडीपी वृद्धि दर साढ़े छह से सात प्रतिशत रहने का अनुमान है, जो दुनिया के दूसरे देशों के लिए सपने जैसा है, फिर भी भारत को 4,256 डॉलर की प्रति व्यक्ति आय की रेखा को पार करने में आठ-नौ साल लगेंगे जो विश्व बैंक की ऊपरी-मध्य आमदनी श्रेणी है। इसपर आज चीन, ब्राजील, मॉरिशस, मलेशिया और थाईलैंड जैसे देश हैं। इतनी बड़ी जनसंख्या को देखते हुए फिर भी इसे संतोषजनक आर्थिक-स्तर मानेंगे। वैश्विक स्तर पर इस साल भी पिछले साल जैसी अनिश्चितताएं और जोखिम जारी हैं, जो हमारी अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित कर रही हैं।
सबसे तेज अर्थव्यवस्था
विश्व बैंक ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर अपने ताजा अनुमान में कहा है कि भारत सात सबसे बड़े उभरते बाजारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना रहेगा। चालू वित्त वर्ष 2022-23 में जीडीपी की संवृद्धि 6.9 फीसदी रहने का अनुमान है, जो अगले वित्त वर्ष (2023-24) में 6.6 और 2024-25 में 6.1 फीसदी रह सकती है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने जनवरी के पहले सप्ताह में चालू वित्त वर्ष के लिए राष्ट्रीय आय का पहला अग्रिम अनुमान जारी किया। यह अत्यधिक महत्त्वपूर्ण आंकड़ा है क्योंकि इसी के आधार पर केंद्रीय बजट का प्रारूप तैयार करने की शुरुआत होती है। अग्रिम अनुमान इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे अगले वित्तीय वर्ष के बजट के लिए आवश्यक इनपुट के रूप में कार्य करते हैं। इस अनुमान के अनुसार वास्तविक संवृद्धि दर 7 प्रतिशत रह सकती है। क्षेत्र-वार विश्लेषण करें, तो सेवा क्षेत्र में तेज सुधार नजर आता है। उच्च इनपुट कीमतों और कमजोर बाहरी मांग के कारण विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादन में गिरावट नज़र आ रही है। आने वाले महीनों में जिंसों की कीमतों में कमी से मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को सहायता मिलने की संभावना है, लेकिन कमजोर बाहरी मांग लगातार दबाव बनाए रखेगी।