दुनियाभर में
दहशत का कारण बनी कोविड-19 बीमारी को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने फरवरी में एक
नए सूचना प्लेटफॉर्म ‘डब्लूएचओ इनफॉर्मेशन
नेटवर्क फॉर एपिडेमिक्स (एपी-विन)’ का उद्घाटन किया। इस मौके पर डब्लूएचओ के डायरेक्टर जनरल टेड्रॉस गैब्रेसस ने
कहा, बीमारी के साथ-साथ दुनिया में गलत सूचनाओं की महामारी भी फैल रही है। हम केवल
‘पैंडेमिक’ (महामारी) से नहीं ‘इंफोडेमिक’ से भी लड़ रहे हैं। सोशल मीडिया के उदय
के बाद दुनिया के हर विषय पर सूचना की बाढ़ है। इस बाढ़ में सच्ची-झूठी हर तरह की
जानकारियाँ हैं। इसी बाढ़ में उतरा रही है अगले कुछ महीनों में उपस्थित होने वाली
वैश्विक राजनीति की झलकियाँ। इंफोडेमिक से लड़ने का दावा करने वाले टेड्रॉस महाशय
खुद विवाद का विषय बने हुए हैं।
Sunday, April 5, 2020
ठान लेंगे तो कामयाब भी होंगे ‘हम’
संयुक्त राष्ट्र और
उसकी स्वास्थ्य एजेंसी ने कोविड-19 वैश्विक महामारी से निपटने के लिए भारत के 21
दिन के लॉकडाउन को 'जबर्दस्त’
बताते हुए उसकी तारीफ
की है। डब्ल्यूएचओ के प्रमुख
टेड्रॉस गैब्रेसस ने इस मौके पर गरीबों के लिए आर्थिक पैकेज की भी सराहना
की है। भारत के इन कदमों से प्रेरित होकर विश्व बैंक ने एक अरब डॉलर की विशेष
सहायता की घोषणा की है। डब्ल्यूएचओ के विशेष प्रतिनिधि डॉ. डेविड नवारो ने देश में
जारी लॉकडाउन का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि यूरोप और अमेरिका जैसे विकसित देशों
ने कोरोना को गंभीरता से नहीं लिया, वहीं भारत में इस पर तेजी से काम
हुआ। भारत में गर्म मौसम और मलेरिया के कारण लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहतर है
और उम्मीद है कि वे कोरोना को हरा देंगे।
हालांकि कोरोना से लड़ाई अभी जारी है और निश्चित रूप से कोई बात कहना जल्दबाजी
होगी, पर इतना साफ है कि अभी तक भारत ही ऐसा देश है, जिसने इसका असर कम से कम होने
दिया है। इस देश की आबादी और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी को देखते हुए जो अंदेशा
था, वह काफी हद तक गलत साबित हो रहा है। यह बात तथ्यों से साबित हो रही है। गत 1
मार्च को भारत में कोरोना वायरस के तीन मामले थे, जबकि अमेरिका में 75, इटली में
170, स्पेन में 84, जर्मनी में 130 और फ्रांस में 130। एक महीने बाद भारत में यह
संख्या 1998 थी, जबकि उपरोक्त पाँचों देशों में क्रमशः 2,15,003, 1,10,574,
1,04,118, 77,981 और 56,989 हो चुकी थी। भारत में पिछले एक हफ्ते में यह संख्या
तेजी से बढ़ी है और अब तीन हजार के ऊपर है, जबकि 27 मार्च को यह 887 थी।
Friday, April 3, 2020
दुनिया का गुस्सा अब चीन पर फूटेगा
इतना स्पष्ट है
कि अमेरिकी जनता और प्रशासन इस महामारी के बाद बहुत बड़े फैसले करेगा. दूसरे
विश्वयुद्ध के बाद भी वैश्विक राजनीति में इतने बड़े बदलाव नहीं आए होंगे, जितने अब आ सकते हैं. इस नए भूचाल का केंद्र चीन बनेगा. इसका
असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार
इस महामारी के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था इस साल मंदी में चली जाएगी. इस रिपोर्ट
के अनुसार भारत और चीन इसके अपवाद हो सकते हैं,
पर दुनिया के
देशों को खरबों डॉलर का नुकसान होगा.
Tuesday, March 31, 2020
क्या तालिबानी हौसले फिर बुलंद होंगे?
पिछली 29 फरवरी को दोहा में अमेरिका, अफ़ग़ान सरकार और तालिबान के बीच
हुए क़तर दोहा में
हुए समझौते में इतनी सावधानी बरती गई है कि उसे कहीं भी 'शांति समझौता' नहीं लिखा गया है। इसके बावजूद इसे दुनियाभर में शांति समझौता कहा जा रहा है।
दूसरी तरफ पर्यवेक्षकों का मानना है कि अफ़ग़ानिस्तान अब एक नए अनिश्चित दौर में
प्रवेश करने जा रहा है। अमेरिका की दिलचस्पी अपने भार को कम करने की जरूर है, पर
उसे इस इलाके के भविष्य की चिंता है या नहीं कहना मुश्किल है।
फिलहाल इस समझौते का एकमात्र उद्देश्य अफ़ग़ानिस्तान में
तैनात 12,000 अमेरिकी सैनिकों की वापसी तक सीमित नज़र आता है। यह सच है कि इस
समझौते के लागू होने के बाद अमेरिका की सबसे लंबी लड़ाई का अंत हो जाएगा, पर क्या
गारंटी है कि एक नई लड़ाई शुरू नहीं होगी? मध्ययुगीन
मनोवृत्तियों को फिर से सिर उठाने का मौका नहीं मिलेगा? दोहा में धूमधाम से हुए समझौते ने तालिबान को
वैधानिकता प्रदान की है। वे मान रहे हैं कि उनके मक़सद को पूरा करने का यह सबसे
अच्छा मौक़ा है। वे इसे अपनी ‘विजय’ मान रहे हैं।
Monday, March 30, 2020
पास-पड़ोस का पहला मददगार भारत
भले ही दुनिया
राजनीतिक कारणों से एक-दूसरे की दुश्मन बनती हो, पर प्राकृतिक आपदाएं हमें जोड़ती
हैं। ऐसा सुनामी के समय देखा गया, समुद्री तूफानों का यही
अनुभव है और अब कोरोनावायरस का भी यही संदेश है। भारत इस आपदा का सामना कर रहा है,
पर इसके विरुद्ध वैश्विक लड़ाई में भी बराबर का भागीदार है। इस सिलसिले में नवीनतम
समाचार यह है कि भारत कोरोनावायरस के इलाज के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के
नेतृत्व में तैयार की जारी औषधि के विकास में भी भागीदार है।
इस सहयोग की
शुरुआत अपने पास-पड़ोस से होती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 13 मार्च को सार्क
देशों से अपील की थी कि हमें मिलकर काम करना चाहिए। इसकी पहल के रूप में उन्होंने
शासनाध्यक्षों के बीच एक वीडियो कांफ्रेंस का सुझाव दिया। अचानक हुई इस पेशकश पर इस
क्षेत्र के सभी देशों ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी थी, केवल पाकिस्तान की हिचक थी।
उसकी ओर से फौरन कोई प्रतिक्रिया नहीं आई, पर बाद में कहा गया कि
प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के स्वास्थ्य संबंधी विशेष सलाहकार डॉक्टर ज़फ़र मिर्ज़ा
इसमें शामिल होंगे।
वीडियो कांफ्रेंस
से शुरुआत
इस वीडियो
कांफ्रेंस में नरेंद्र मोदी के अलावा श्रीलंका के राष्ट्रपति गौतबाया राजपक्षे, मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहीम मोहम्मद सोलिह, नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली, भूटान के प्रधानमंत्री लोटे शेरिंग, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और अफगानिस्तान के
राष्ट्रपति अशरफ गनी शामिल हुए। नेपाल के प्रधानमंत्री ने तो खराब स्वास्थ्य के
बावजूद इसमें हिस्सा लिया। संकट अभी बना हुआ है, कोई
यह बताने की स्थिति में नहीं है कि कब तक रहेगा, पर इतना कहा जा सकता है कि इस
आपदा ने भारत की सकारात्मक भूमिका को रेखांकित जरूर किया है।
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